मकैनिक ने 24 घंटे काम करके आर्मी ट्रक को ठीक किया और पैसे भी नहीं लिए, फिर जब…
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रफीक अहमद की कहानी
देशभक्ति का मतलब सिर्फ वर्दी पहनकर सरहदों पर लड़ना नहीं होता। कई बार एक साधारण इंसान की छोटी-सी निस्वार्थ सेवा, बिना किसी नाम या पहचान के, देश के रक्षकों के दिलों को इस कदर छू जाती है कि वे उसकी जान की बाजी लगाने को भी तैयार हो जाते हैं। यह कहानी है ऐसे ही एक गुमनाम मैकेनिक की, जिसकी छोटी सी दुकान बर्फीले पहाड़ों के बीच भारत की सबसे खतरनाक सड़कों में से एक पर थी। और यह कहानी है उन जांबाज फौजियों की, जिनके लिए उनकी जान से ज्यादा कीमती उनकी ड्यूटी थी।
जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग: भारत की जीवन रेखा
जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि देश की जीवन रेखा है। ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, गहरी खाइयां और बदलता मौसम इसे दुनिया की सबसे खतरनाक और खूबसूरत सड़कों में से एक बनाते हैं। इस राजमार्ग पर रामबन और बनिहाल के बीच एक वीरान, सुनसान इलाका था। मीलों तक ना कोई गांव था, ना कोई बस्ती। केवल घुमावदार सड़क, सर्द हवाओं का शोर और दूर-दूर तक फैले पहाड़।
इसी वीराने के बीच एक छोटे से मोड़ पर टिन की चादरों से बनी एक पुरानी सी दुकान थी। दुकान के ऊपर लकड़ी के फट्टे पर धुंधले अक्षरों में लिखा था “रफीक ऑटोवक्स 24 घंटे सेवा”। यह दुकान थी रफीक अहमद की, 40 साल का एक ऐसा इंसान, जिसके चेहरे पर पहाड़ों की सख्ती और आंखों में झरनों जैसी सादगी थी।
रफीक की जिंदगी: संघर्ष और सपने
रफीक पिछले 15 सालों से इसी सड़क पर अपनी छोटी सी दुकान चला रहा था। वह इस सड़क, इसके मौसम और यहां चलने वाली हर गाड़ी का डॉक्टर था। उसकी दुनिया बहुत छोटी थी—उसकी दुकान और उसके पीछे बना एक छोटा सा कमरा, जो उसका घर था। वहां उसके साथ उसकी पत्नी जरीना और 12 साल का बेटा इरफान रहता था।
इरफान पास के एक छोटे से गांव के सरकारी स्कूल में सातवीं कक्षा में पढ़ता था। उसकी आंखों में एक सपना था—भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने का। जब भी सड़क से गुजरते सेना के ट्रक और जवानों को देखता, उसकी आंखें चमक उठतीं। वह घंटों अपने अब्बू से फौजियों की बहादुरी की कहानियां सुनता।
रफीक अपने बेटे के इस सपने को जानता था और गर्व महसूस करता था। वह चाहता था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बने और देश का नाम रोशन करे। लेकिन उसे अपनी गरीबी और इस वीराने में संसाधनों की कमी का भी एहसास था। यहां अच्छी पढ़ाई का कोई इंतजाम नहीं था और बड़े शहर में भेजकर पढ़ाने की हैसियत नहीं थी। यह चिंता उसे अंदर से खाती रहती थी।
रफीक की दुकान: मुसाफिरों का सहारा
रफीक की दुकान इस वीरान सड़क पर मुसाफिरों के लिए वरदान से कम नहीं थी। चाहे कोई ट्रक ड्राइवर हो, पर्यटक हो या सेना का कोई जवान, अगर किसी की गाड़ी खराब हो जाती, तो रफीक का दरवाजा उनके लिए हमेशा खुला रहता। वह दिन हो या रात, बर्फबारी हो या तूफान, कभी किसी की मदद करने से मना नहीं करता था।
सेना के जवानों के लिए उसके दिल में अलग ही इज्जत थी। वह उन्हें देश का रक्षक, अपना मुहाफिज मानता था। जब भी कोई फौजी गाड़ी लेकर उसकी दुकान पर आता, वह काम शुरू करने से पहले उनके लिए चाय बनाता, उनसे बातें करता, उनका हालचाल पूछता। काम के पैसे लेने में भी वह हमेशा हिचकिचाता।
तूफानी रात और जद्दोजहद
यह दिसंबर के आखिरी दिन थे। पहाड़ों पर घनी बर्फबारी हो चुकी थी और सड़क पर सफर करना बेहद खतरनाक था। शाम के करीब 7 बजे रफीक अपनी दुकान बंद करने की तैयारी कर रहा था, तभी एक जवान दौड़ता हुआ उसकी दुकान पर आया। वह बुरी तरह हाफ रहा था और उसके कपड़े बर्फ से भीगे हुए थे। वह भारतीय सेना का जवान था।
उसने घबराई आवाज में कहा, “उस्ताद जी, हमारी गाड़ी खराब हो गई है। यहां से करीब 2 किलोमीटर आगे एक मोड़ पर खड़ी है।”
रफीक ने बिना देर किए अपने औजारों का बक्सा उठाया और कहा, “चलो, देखते हैं।”
जब वह जवान के साथ पैदल बर्फ में उस जगह पहुंचा, तो देखा कि सेना का एक बड़ा ट्रक, जिसे स्टालियन कहते हैं, सड़क के बीचों-बीच खड़ा था। ट्रक के आसपास कुछ और जवान ठंड से ठिठुर रहे थे। उनके लीडर थे सूबेदार बलविंदर सिंह, एक अनुभवी और रबदार चेहरे वाले फौजी, जिनकी आंखों में चिंता साफ झलक रही थी।
सूबेदार ने पूछा, “क्या नाम है तुम्हारा?”
“रफीक,” उसने जवाब दिया।
“देखो रफीक, यह कोई मामूली ट्रक नहीं है। इसमें हमारी यूनिट के लिए बहुत जरूरी सामान और रसद है, जिसे सुबह से पहले श्रीनगर पहुंचाना है। हमारे साथी आगे पोस्ट पर इंतजार कर रहे हैं। क्या तुम इसे ठीक कर सकते हो?”
रफीक ने ट्रक का बोनट खोला और अपनी टॉर्च की रोशनी में इंजन देखा। बर्फीली हवाएं चाकू की तरह चुभ रही थीं और उसके हाथ ठंड से सुन पड़ रहे थे। आधे घंटे की मेहनत के बाद उसने कहा, “साहब, क्लच प्रेशर पाइप फट गया है और गियर बॉक्स का ऑयल सील लीक हो रहा है। काम बड़ा है और मेरे पास पूरा सामान नहीं है। कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा।”
सूबेदार ने पूछा, “कितना वक्त लगेगा?”
“अगर मौसम ठीक रहा तो 7-8 घंटे, लेकिन इस बर्फबारी में कुछ कह नहीं सकता। कोशिश करूंगा सुबह तक ठीक कर दूं।”
सूबेदार के चेहरे पर चिंता और गहरी हो गई। उन्होंने वायरलेस पर बात करने की कोशिश की, लेकिन बर्फबारी की वजह से सिग्नल नहीं मिल रहा था। वे पूरी तरह से दुनिया से कट चुके थे। उनकी एकमात्र उम्मीद थी रफीक।
देशभक्ति का जज्बा
“ठीक है रफीक, अपना काम शुरू करो। जो भी मदद चाहिए बताना। हमारे जवान तुम्हारे साथ हैं।”
और फिर शुरू हुई उस तूफानी रात में एक जिद्दी मैकेनिक की जंग, जो किसी फौजी की जंग से कम नहीं थी। रफीक ट्रक के नीचे लेटा, बर्फीली जमीन की ठंड उसकी हड्डियों तक कंपा रही थी। जवान टॉर्च और इमरजेंसी लाइट पकड़कर खड़े थे।
जरीना, घर से बनाकर गरम-गरम चाय और रोटियां लेकर आई। उसने जवानों से कहा, “जब तक काम चल रहा है, आप लोग दुकान में आकर बैठ जाओ, बाहर बहुत ठंड है।”
सूबेदार और जवान बारी-बारी से दुकान में जाकर आग तापते और वापस रफीक की मदद के लिए आते। वे देख रहे थे कि रफीक किस लगन और जुनून से काम कर रहा था। वह सिर्फ मैकेनिक नहीं, एक फौजी की तरह मिशन पर था।
रात गुजरती गई, बर्फबारी तेज होती गई। रफीक के हाथ कई जगह से छिल गए थे, लेकिन वह रुका नहीं। सूबेदार ने कई बार आराम करने को कहा, लेकिन रफीक मुस्कुराकर मना कर देता।
“साहब, आप लोग अपनी जान हथेली पर रखकर 24 घंटे हमारी हिफाजत करते हैं, क्या मैं आपके लिए एक रात भी नहीं जाग सकता?”
इस बात ने सूबेदार के दिल को छू लिया। उन्होंने उस साधारण मैकेनिक में असाधारण देशभक्त देखा।
मिशन पूरा और सम्मान
सुबह करीब 5 बजे, जब आसमान का रंग बदल रहा था, रफीक ट्रक के नीचे से बाहर निकला। उसके कपड़े ग्रीस और मिट्टी से सने थे, चेहरा थका हुआ, लेकिन आंखों में मिशन पूरा करने की चमक थी।
उसने चाबी सूबेदार के हाथ में देते हुए कहा, “हो गया साहब, एक बार स्टार्ट करके देख लीजिए।”
सूबेदार ने ट्रक स्टार्ट किया। इंजन एक बार में दहाड़ उठा। जवानों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने जोर से “भारत माता की जय” के नारे लगाए और रफीक को कंधों पर उठा लिया।
रफीक ने झिझकते हुए कहा, “मैंने तो बस अपना फर्ज निभाया है।”
सूबेदार ने पर्स निकालकर कहा, “रफीक, तुम्हारी मेहनत का कोई मोल नहीं, लेकिन यह हमारी तरफ से छोटा सा इनाम है।”
रफीक ने हाथ जोड़कर मना किया, “नहीं साहब, मैंने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है। आपकी दुआएं मेरी सबसे बड़ी कमाई हैं।”
सूबेदार निशब्द रह गए। उन्होंने रफीक को गले लगा लिया, कहा, “तुम सिर्फ मैकेनिक नहीं, सच्चे हिंदुस्तानी हो। हम तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलेंगे।”
नया अध्याय: इरफान की पढ़ाई
चार महीने बाद, रफीक अपनी दुकान में व्यस्त था और इरफान अपनी पढ़ाई में। इरफान अक्सर अपने अब्बू से उन फौजी अंकल के बारे में पूछता, जिन पर वह गर्व करता था।
एक दिन सेना का वही ट्रक रफीक की दुकान पर आया। सूबेदार बलविंदर सिंह और उनके साथी उतरे। उन्होंने इरफान के लिए जम्मू के आर्मी पब्लिक स्कूल में एडमिशन का फॉर्म दिया। सेना ने इरफान की पढ़ाई, रहन-सहन का पूरा खर्च उठाने का वादा किया।
रफीक और जरीना की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। सूबेदार ने कहा, “जो इंसान देश के जवानों की इतनी कदर करता है, उसके बच्चों के भविष्य की भी कदर करना देश का फर्ज है। हम इरफान को एक ऐसा अफसर बनाएंगे, जिस पर तुम और देश दोनों गर्व करेंगे।”
सपनों की उड़ान
समय बीता, इरफान ने अपनी पढ़ाई पूरी की और नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के लिए चयनित हो गया। जब उसने पहली बार भारतीय सेना की वर्दी पहनी, तो रफीक और जरीना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
सूबेदार मेजर बलविंदर सिंह ने समारोह में लेफ्टिनेंट इरफान अहमद को सलाम किया। इरफान ने अपने अब्बू और सूबेदार दोनों के पैर छुए।
आज लेफ्टिनेंट इरफान अहमद देश की सेवा कर रहा है और रफीक अहमद उसी वीरान सड़क पर अपनी छोटी सी दुकान चलाता है, देश के जवानों की गाड़ियां ठीक करता है। लेकिन अब उसकी आंखों में चिंता नहीं, बल्कि गर्व और संतोष है।
सीख और संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि देशभक्ति सिर्फ वर्दी पहनकर लड़ना नहीं, बल्कि अपने छोटे-छोटे कामों से देश के रक्षकों की मदद करना भी है। रफीक जैसे गुमनाम नायक, जिनकी निस्वार्थ सेवा देश के लिए अनमोल है।
यह कहानी भारतीय सेना के उस जज्बे को भी सलाम करती है, जो दुश्मनों से लड़ने के साथ-साथ अपने लोगों के एहसान याद रखने और उन्हें सम्मान देने में भी अग्रणी है।
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