लड़के ने अमीर महिला को बचाया, लेकिन महिला को होश आते ही उसने पुलिस बुला ली
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दिल्ली की भीड़भाड़ भरी सड़क पर दोपहर का वक्त था। ट्रैफिक का शोर, गाड़ियों के हॉर्न की कर्णभेदी आवाज़ें, और सिर पर तपती हुई गर्म धूप। हवा में एक अजीब सी बेचैनी और जल्दबाजी घुली हुई थी। हर कोई अपनी मंजिल तक पहुँचने की होड़ में था, जैसे कुछ पल रुकने से उनकी दुनिया पीछे छूट जाएगी। इसी आपाधापी के बीच, एक चमचमाती हुई सफेद मर्सिडीज कार तेज रफ्तार में फ्लाईओवर पर चढ़ी। शायद ड्राइवर को आगे लगे जाम का अंदाज़ा नहीं हुआ, उसने अचानक तेज़ ब्रेक लगाए और कार का संतुलन बिगड़ गया। एक पल के लिए कार हवा में लहराई और फिर बेकाबू होकर साइड की लोहे की रेलिंग से जा टकराई। एक ज़ोरदार धमाके जैसी आवाज़ हुई और कार एक तरफ पलट गई।
अचानक सब कुछ थम सा गया। पीछे की गाड़ियाँ रुक गईं। लोग अपनी गाड़ियों से उतरकर देखने लगे। कुछ ने तुरंत अपने मोबाइल फोन निकाले और वीडियो बनाना शुरू कर दिया। किसी ने जूम करके कार की हालत दिखाई, तो कोई फेसबुक लाइव करने की तैयारी में था। पर किसी ने भी उस दस कदम की दूरी को तय करके आगे बढ़ने और मदद करने की जहमत नहीं उठाई। वे सिर्फ तमाशबीन थे, एक ऐसी त्रासदी के दर्शक, जिसे वे अपने सोशल मीडिया पर ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ की तरह परोसने वाले थे।
उसी समय, फ्लाईओवर के नीचे, सड़क के किनारे बनी एक चाय की टपरी पर एक युवा लड़का खड़ा था। नाम था आर्यन, उम्र करीब 24 साल। उसके साधारण कपड़ों पर मेहनत की सिलवटें थीं और कंधे पर एक फटा हुआ पुराना बैग लटका था। वह एक स्टील के गिलास में चाय पी रहा था, शायद किसी इंटरव्यू से लौटा था या अगले इंटरव्यू के लिए जा रहा था। धमाके की आवाज सुनकर उसने ऊपर देखा। कुछ सेकंड तक वह हक्का-बक्का होकर उस पलटी हुई कार और उसके चारों ओर जमा भीड़ को देखता रहा। उसके मन में एक पल का द्वंद्व हुआ, लेकिन अगले ही पल इंसानियत की भावना हर डर पर हावी हो गई। उसने चाय का गिलास वहीं पटका और बिना कुछ सोचे-समझे, भागकर कार की तरफ दौड़ पड़ा।
कार का अगला शीशा पूरी तरह टूटकर बिखर चुका था। इंजन से हल्का धुआँ उठ रहा था। अंदर एक महिला बेहोश पड़ी थी। उम्र लगभग 30-32 साल होगी। उसने महंगे डिजाइनर कपड़े पहने थे, हाथ की उंगलियों में हीरे की अंगूठी चमक रही थी। उसके माथे पर गहरी चोट लगी थी और उससे खून बहकर चेहरे पर फैल रहा था। आर्यन ने एक पल भी नहीं गंवाया। उसने अपने नंगे हाथों से कांच के नुकीले टुकड़े हटाए और दरवाजा खोलने की कोशिश की, जो टक्कर से जाम हो गया था।
भीड़ अब भी बस तमाशा देख रही थी। कोई वीडियो बना रहा था, कोई हंस रहा था, कोई कह रहा था, “अमीर लोग ऐसे ही चलाते हैं।” आर्यन गुस्से और बेबसी से चिल्लाया, “भाई, कोई मदद करो! एम्बुलेंस को फोन लगाओ!” पर उसकी आवाज गाड़ियों के शोर और लोगों की उदासीनता में दबकर रह गई। किसी ने नहीं सुनी। उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर दरवाजे पर जोर से धक्का मारा। दो-तीन कोशिशों के बाद, एक झटके के साथ दरवाजा खुल गया। उसने बड़ी सावधानी से महिला को सीट बेल्ट से छुड़ाया और धीरे से बाहर निकाला। वह उसे अपनी गोद में उठाकर सड़क के किनारे घास पर ले आया और लिटा दिया। उसने अपने कंधे पर लटके बैग से पानी की बोतल निकाली, फिर अपनी पुरानी शर्ट का एक कोना फाड़कर उसे गीला किया और महिला के सिर पर लगी चोट पर एक अस्थायी पट्टी बांधी ताकि खून बहना बंद हो जाए।
महिला की साँसें बहुत धीमी चल रही थीं। आर्यन ने पास के एक पानी के ठेले से बोतल उठाई और धीरे से पानी की कुछ बूँदें उसके सूखे होठों पर लगाईं। कुछ पल बाद, महिला की पलकें झपकीं। उसकी आँखों में एक धुंधलापन था। बहुत धीमी आवाज निकली, “मैं… मैं कहाँ हूँ?”
आर्यन ने सहारा देते हुए कहा, “आपकी कार का एक्सीडेंट हो गया था, मैम। अब सब ठीक है। आप आराम करें। मैंने एम्बुलेंस बुला ली है।” वह महिला सिर उठाने की कोशिश करने लगी, लेकिन दर्द से कराह उठी। आर्यन ने उसके सिर को सहारा दिया और बोला, “कृपया हिलिए मत। आपको चोट लगी है।”

इतने में एम्बुलेंस का सायरन सुनाई दिया। दो मेडिकल स्टाफ स्ट्रेचर लेकर उतरे। उन्होंने महिला को स्ट्रेचर पर रखा और एम्बुलेंस में ले गए। आर्यन भी बिना कुछ सोचे-समझे साथ चला गया। उसे उस अनजान महिला को इस हालत में अकेला छोड़ने तक चैन नहीं था। एम्बुलेंस में बैठी नर्स ने उससे पूछा, “तुम रिश्तेदार हो क्या इनके?”
आर्यन ने सिर हिलाकर कहा, “नहीं। बस… मदद कर रहा था।”
नर्स मुस्कुराई। “आजकल ऐसा कौन करता है, बेटा? भगवान भला करे तेरा।” आर्यन ने कुछ नहीं कहा। वह बस चुपचाप उनके साथ अस्पताल पहुँचा।
अस्पताल में महिला को तुरंत इमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया। डॉक्टर ने आर्यन से पूछा, “मरीज के साथ कौन है?”
आर्यन ने कहा, “मैं तो बस सड़क पर था। मैंने इन्हें बचाया। बाकी मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता।”
डॉक्टर ने सिर हिलाया। “ठीक है। नाम बताओ अपना। रिपोर्ट में लिखना होगा।”
“आर्यन मेहरा,” उसने धीरे से कहा। फिर वह बाहर एक बेंच पर बैठ गया। उसका चेहरा थका हुआ था। कपड़ों पर खून और धूल के निशान साफ दिख रहे थे। हाथ में कांच से लगी खरोंचों में हल्का दर्द हो रहा था, पर उसे उस महिला की चिंता ज्यादा थी।
करीब आधे घंटे बाद, डॉक्टर बाहर आया और बोला, “रोगी अब होश में है। हालत स्थिर है, खतरे से बाहर हैं।”
आर्यन ने राहत की एक गहरी सांस ली। उसका काम पूरा हो गया था। वह चुपचाप उठकर जाने लगा, लेकिन तभी डॉक्टर ने उसे बुलाया, “रुको, वो तुम्हें बुला रही हैं।”
आर्यन झिझकते हुए कमरे में दाखिल हुआ। महिला की आँखें खुली थीं। चेहरा पीला पड़ गया था, लेकिन आँखों में एक अजीब सी तेजी थी। वह अस्पताल के बिस्तर पर लेटी हुई थी, हाथ में ड्रिप लगी थी। उसने आर्यन को देखा और धीरे से बोली, “तुम… तुम ही थे ना, जो मुझे कार से निकाले?”
आर्यन ने विनम्रता से कहा, “जी मैम। बस पास में था, इसलिए…”
महिला कुछ पल तक उसे घूरती रही। उसकी नजरें आर्यन के फटे हुए बैग और साधारण कपड़ों पर टिकी थीं। फिर उसने अपनी नजरें फेर लीं और अचानक उसका लहजा बदल गया। उसने नर्स को आवाज दी और कठोरता से बोली, “नर्स! इस आदमी को बाहर निकालो।”
आर्यन ठिठक गया। “जी?”
महिला ने गुस्से में कहा, “इसने मेरे गहने चुराए हैं! मैंने अपनी डायमंड ब्रेसलेट पहनी थी। अब वह गायब है। इसी ने निकाली होगी जब मैं बेहोश थी।”
कमरे में एक पल के लिए गहरा सन्नाटा छा गया। आर्यन की आँखें हैरानी से फैल गईं। “मैम, मैं… मैंने कुछ नहीं लिया। मैं तो आपकी मदद कर रहा था।”
महिला लगभग चिल्लाई, “चुप रहो! मदद के बहाने चोरी करते हो! सिक्योरिटी को बुलाओ और पुलिस को भी!”
आर्यन के पैर जैसे जमीन में धंस गए। वह एक कदम पीछे हट गया। उसका चेहरा हैरानी और अपमान से पीला पड़ गया। बाहर खड़े सिक्योरिटी गार्ड अंदर भागे। डॉक्टर और नर्स भी घबरा गए। भीतर से महिला की आवाज आ रही थी, “इसने मेरी जान नहीं बचाई, मेरे साथ धोखा किया है। ऐसे ही लोग होते हैं जो मौके का फायदा उठाते हैं।”
आर्यन के होंठ काँप रहे थे। “भगवान के लिए, मैंने कुछ नहीं किया।” लेकिन उसकी आवाज किसी ने नहीं सुनी। एक पल में दो कांस्टेबल अंदर आ गए। और जब उन्होंने आर्यन का हाथ पकड़कर कहा, “चलो थाने,” तब उसका गला पूरी तरह सूख गया। अस्पताल के गलियारे में भीड़ जुटने लगी। किसी ने कहा, “अरे, यही तो था जो उसे बचा रहा था।” दूसरा बोला, “लगता है, बचाने की आड़ में चोरी का प्लान था।”
आर्यन के लिए सब कुछ धुंधला हो गया। जिस औरत को उसने मौत के मुँह से निकाला था, वही अब उसे चोर कह रही थी। उसके मन में बस एक ही सवाल गूंज रहा था, “क्या सच में अच्छे काम की कोई कीमत नहीं होती?”
अस्पताल के बाहर पुलिस की जीप की नीली बत्ती चमक रही थी। लोगों की भीड़ अब और बढ़ गई थी, हर कोई कानाफूसी कर रहा था। पुलिस ने आर्यन को गाड़ी में बैठाया और उसे थाने ले गई। आर्यन की आँखें लाल थीं, थकान से नहीं, बल्कि अन्याय और अपमान के दर्द से। जिस महिला की जान बचाने के लिए उसने अपने हाथों को जख्मी कर लिया, वही अब उसे सलाखों के पीछे भेज रही थी।
थाने पहुँचते ही दरोगा सिंह ने मेज पर हाथ मारा। “नाम?”
“आर्यन मेहरा।”
“पता?”
“मॉडल टाउन के पास किराए पर रहता हूँ।”
“काम?”
“काम… ढूंढ रहा हूँ।”
दरोगा ने एक लंबी सांस ली। “मतलब बेरोजगार।”
आर्यन ने सिर हिलाया। “हाँ, लेकिन मैं चोरी नहीं करता, साहब।”
दरोगा हँस पड़ा। “भाई, ऐसे तो सभी कहते हैं। कोई चोर खुद को चोर थोड़ी कहता है।” आर्यन कुछ नहीं बोला। उसके हाथों में अभी भी कांच के टुकड़ों से बने निशान थे, जिनसे हल्का खून रिस रहा था। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
करीब आधे घंटे बाद, एक महंगी गाड़ी थाने में आकर रुकी। दरवाजा खुला और वही महिला उतरी। अब उसने साफ-सुथरे कपड़े पहन लिए थे, गले में पट्टी बंधी थी, और हाथ में महंगा मोबाइल था। उसके चेहरे पर अब लाचारी नहीं, बल्कि एक अमीर होने का घमंड था। उसके साथ दो पुलिस अधिकारी और एक ड्राइवर थे।
“यही है वो लड़का?” दरोगा ने पूछा।
महिला ने एक ठंडी, तिरस्कार भरी नजर से आर्यन को देखा और बोली, “हाँ, इसी ने मेरी कार से मुझे निकाला था। और जब मैं बेहोश थी, तभी मेरा ब्रेसलेट गायब हुआ। और कौन हो सकता है?”
दरोगा ने कहा, “मैडम, आप चिंता मत कीजिए। अगर इसने लिया है, तो अभी निकलवाते हैं।”
आर्यन ने दबी लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “सर, मैंने कुछ नहीं किया। अगर आप चाहें तो मेरी तलाशी ले लीजिए।”
दरोगा ने इशारा किया। एक सिपाही ने आर्यन की जेबें, उसका फटा हुआ बैग और उसके कपड़े तक टटोले, पर कुछ नहीं मिला।
महिला ने आँखें तरेरीं। “इसने कहीं फेंक दिया होगा। ये लोग बहुत चालाक होते हैं।”
दरोगा बोला, “मैडम, आप आश्वस्त रहें। हम पता लगा लेंगे। हम उस जगह के सीसीटीवी फुटेज निकलवा रहे हैं।”
आर्यन को लॉकअप के बाहर की एक कुर्सी पर बैठा दिया गया। वह सिर झुकाए बैठा रहा। उसका दिमाग सुन्न हो चुका था। वह सोच रहा था, “क्या मैं सच में गलत था? अगर मैं भी सबकी तरह तमाशा देखता, तो शायद आज अपने घर पर होता।”
तभी एक आवाज आई। “भाई, एक गिलास पानी लो।” पास के एक सिपाही ने पानी की बोतल उसकी तरफ बढ़ाई। आर्यन ने एक घूंट लिया। “धन्यवाद।”
सिपाही ने धीरे से कहा, “तूने सही काम किया, लेकिन दुनिया ऐसी ही है बेटा। यहाँ सच्चाई की कीमत अक्सर देर से मिलती है।”
थोड़ी देर में, दरवाजे पर एक और पुलिस अफसर आया। इंस्पेक्टर ठाकुर, उम्र लगभग 45, चेहरे पर सख्ती थी, लेकिन आँखों में अनुभव और समझदारी की चमक थी।
“क्या चल रहा है यहाँ?” उन्होंने पूछा।
दरोगा बोला, “सर, एक अमीर महिला का कहना है कि यह लड़का उनकी ज्वेलरी लेकर भागना चाहता था। हमने जांच शुरू कर दी है।”
इंस्पेक्टर ठाकुर ने आर्यन को गौर से देखा। “तुमने मदद की थी, है ना?”
“हाँ, सर।”
“और गहना तुमने नहीं लिया?”
“कसम से नहीं, सर। मैंने तो सिर्फ उनकी जान बचाई थी।”
ठाकुर कुछ देर तक उसे देखते रहे। फिर बोले, “सीसीटीवी फुटेज दिखाओ।”
पांच मिनट बाद, अस्पताल के बाहर लगे कैमरे की फुटेज कंप्यूटर पर चल रही थी। वीडियो में साफ दिख रहा था कि आर्यन सड़क पर भागता हुआ आता है, कार का दरवाजा तोड़कर महिला को निकालता है, और उसे गोद में उठाकर सड़क किनारे रखता है। वह अपनी शर्ट फाड़कर उसके सिर से बहता खून रोकता है। आसपास लोग हंसते हुए मोबाइल चला रहे हैं। आर्यन की हर हरकत में सिर्फ मदद की सच्ची भावना थी, चोरी की कोई गुंजाइश नहीं थी।
ठाकुर ने स्क्रीन की तरफ झुककर कहा, “अब बताओ, इसमें चोरी कहाँ दिख रही है?”
दरोगा और बाकी सिपाही चुप हो गए। महिला का चेहरा सख्त हो गया। “लेकिन मेरा ब्रेसलेट तो गायब है!”
ठाकुर बोले, “मैडम, वह शायद हादसे के वक्त कहीं गिर गया हो। हम कार की भी जांच करवाएंगे।”
आर्यन ने सिर उठाया। “सर, मैं आपको उसी जगह ले चल सकता हूँ जहाँ एक्सीडेंट हुआ था। शायद वहीं कहीं हो।”
ठाकुर ने इशारा किया। “चलो।”
सभी उस फ्लाईओवर की तरफ रवाना हुए, जहाँ कुछ घंटे पहले आर्यन ने अपनी जान दांव पर लगाई थी। सड़क अब लगभग खाली थी। सूरज ढल रहा था और हवा में शाम की ठंडक घुल चुकी थी। आर्यन धीरे-धीरे मलबे के पास पहुँचा। उसने घास के झुरमुट में झुककर कुछ देखा। फिर उसने हाथ आगे बढ़ाया। उसकी हथेली में वही हीरे का ब्रेसलेट चमक रहा था। धूल में सना हुआ, लेकिन पूरी तरह सलामत।
महिला ने हैरान होकर देखा। उसके चेहरे का रंग उड़ गया।
आर्यन ने ब्रेसलेट धीरे से उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा, “यह रहा आपका ब्रेसलेट, मैम। शायद कार पलटने के समय गिर गया होगा।”
कुछ पल तक गहरा सन्नाटा रहा। फिर इंस्पेक्टर ठाकुर ने एक गहरी आवाज में कहा, “कभी-कभी असली चोरी गहनों की नहीं, सोच की होती है, मैडम।”
महिला की आँखें भर आईं। उसके होंठ काँपने लगे। “मैंने… मैंने तुम्हें चोर कहा, जबकि तुम…”
आर्यन ने कहा, “कोई बात नहीं, मैम। अब सब ठीक है।” पर उसकी आवाज में एक ऐसी सर्द मुस्कान थी, जो किसी टूटे हुए दिल से ही निकलती है।
फ्लाईओवर पर हवा अब और ठंडी हो चली थी। सूरज पूरी तरह डूब रहा था और सड़क पर पीली लाइटें जल उठी थीं। आर्यन की हथेली में अब भी वही हीरे का ब्रेसलेट था, धूल से सना हुआ लेकिन अपनी चमक बिखेरता हुआ। महिला कुछ देर तक उसे देखती रही, फिर उसके कदम लड़खड़ा गए। अगर इंस्पेक्टर ठाकुर ने तुरंत उसका हाथ न पकड़ा होता, तो वह शायद वहीं गिर जाती।
वह काँपती आवाज में बोली, “मैं… मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।”
आर्यन ने शांत स्वर में कहा, “कोई बात नहीं, मैम। गलती हर किसी से हो जाती है।” लेकिन अंदर कहीं, उसके शब्दों में थकान और दर्द दोनों झलक रहे थे।
महिला ने ब्रेसलेट अपने हाथ में लिया और पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“आर्यन मेहरा।”
महिला ने सिर झुकाकर दोहराया, “आर्यन मेहरा…” यह नाम सुनते ही वह जैसे किसी गहरी सोच में पड़ गई। उसने धीरे से पूछा, “तुम… तुम मॉडर्न पब्लिक स्कूल में पढ़े थे क्या? दसवीं कक्षा में?”
आर्यन ने चौंककर उसकी तरफ देखा। “हाँ। लेकिन आप कैसे जानती हैं?”
महिला की आँखें अब पूरी तरह भर आई थीं। “क्योंकि उस वक्त मैं वहाँ टीचर थी। तुम्हारा नाम याद है मुझे। वही लड़का, जो हर समारोह में सबसे आगे रहकर मदद करता था। हर किसी को ‘थैंक यू’ कहता था।”
आर्यन स्तब्ध रह गया। “आप… आप मिस कविता?”
महिला ने सिर हिलाया। “हाँ, मैं ही हूँ। शायद इसीलिए तुम्हारे चेहरे में कुछ जाना-पहचाना लगा। पर मैंने… मैंने पहचानने में बहुत देर कर दी।”
अब माहौल पूरी तरह बदल चुका था। वह अमीर और घमंडी महिला अब पश्चाताप से भरी कविता मैम थी, और वह बेरोजगार, साधारण लड़का अब उसका वही पुराना छात्र था, जिसने हमेशा इंसानियत की मिसाल दी थी। इंस्पेक्टर ठाकुर कुछ दूरी पर खड़े थे। उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, जैसे जिंदगी ने फिर से किसी को एक गहरा सबक सिखाया हो।
कविता धीरे से बोली, “आर्यन, तुम्हारे पापा क्या करते थे?”
आर्यन ने आँखें झुका लीं। “अब नहीं रहे। कोविड के समय चले गए। मैं तब कॉलेज में था। घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई, इसलिए पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी। अब छोटे-मोटे काम करके गुजारा कर रहा हूँ।”
कविता की आँखें नम हो गईं। “मुझे याद है, तुम्हारे पापा स्कूल के गेट पर सिक्योरिटी गार्ड थे, है ना?”
आर्यन ने सिर हिलाया। “हाँ, वही थे। आपने ही तो एक बार कहा था, ‘तुम्हारे पापा ईमानदारी की मिसाल हैं।’”
कविता अब खुद को रोक नहीं पाई और रो पड़ी। “और आज… आज मैंने उसी ईमानदारी की औलाद को चोर कह दिया।”
आर्यन ने धीरे से कहा, “मैम, समय सबको बदल देता है। मैंने आपकी मदद इसलिए नहीं की कि आप अमीर हैं, बल्कि इसलिए कि आप एक इंसान हैं और आपको मदद की जरूरत थी। मुझे नहीं पता था कि अमीरों की जान बचाने की भी कोई कीमत पूछी जाती है।”
कविता ने उसके हाथ पकड़ लिए। “नहीं आर्यन, मुझे माफ कर दो। मेरे पास सब कुछ है – पैसा, नाम, शोहरत। लेकिन आज तुमने मुझे एहसास दिलाया कि मेरे पास इंसानियत की कितनी कमी है। मैं अपनी दौलत के घमंड में इतनी अंधी हो गई कि मुझे एक फरिश्ते में भी चोर नजर आया।”
उसने अपने पर्स से एक चेकबुक निकाली। “मैं तुम्हें…”
आर्यन ने विनम्रता से उसका हाथ रोक दिया। “नहीं मैम। मुझे पैसे नहीं चाहिए। बस, अगर हो सके तो किसी गरीब को शक की नजर से देखने से पहले एक बार सोच लीजिएगा। हर साधारण दिखने वाला इंसान चोर नहीं होता।”
आर्यन के इन शब्दों ने कविता को और भी शर्मिंदा कर दिया। उसे लगा जैसे किसी ने उसे आईना दिखा दिया हो।
इंस्पेक्टर ठाकुर आगे आए और आर्यन के कंधे पर हाथ रखा। “चलो बेटा, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।”
कविता ने तुरंत कहा, “नहीं, इंस्पेक्टर। इसे मैं घर छोड़ूँगी। आज मुझे अपनी गलती सुधारने का एक मौका दीजिए।”
आर्यन चुप रहा। वह न तो हाँ कह पा रहा था, न ही ना।
कविता ने लगभग विनती करते हुए कहा, “प्लीज आर्यन, मना मत करो। मैं जानती हूँ कि मैं माफी के लायक नहीं हूँ, पर कम से कम मुझे पश्चाताप का एक मौका तो दो।”
उस रात, कविता ने आर्यन को अपनी मर्सिडीज में घर छोड़ा। वही कार, जिसे आर्यन ने कुछ घंटे पहले एक मलबे के ढेर से निकाला था। रास्ते भर खामोशी रही, एक ऐसी खामोशी जो हजारों शब्दों से ज्यादा भारी थी। आर्यन के घर पहुँचने पर कविता ने कहा, “आर्यन, मेरी एक बहुत बड़ी कंपनी है। मैं चाहती हूँ कि तुम कल से मेरे ऑफिस में काम करो। अपनी योग्यता के अनुसार, जो पद तुम चाहो।”
आर्यन ने उसकी आँखों में देखा। वहाँ अब घमंड नहीं, बल्कि सच्चा पश्चाताप था। उसने धीरे से सिर हिलाया। “जी मैम।”
अगले दिन, जब आर्यन उस आलीशान ऑफिस में पहुँचा, तो कविता ने खुद उसका स्वागत किया। उसने उसे एक अच्छी पोस्ट पर नौकरी दी। लेकिन यह सिर्फ एक नौकरी नहीं थी। यह एक महिला का अपनी गलती के प्रति प्रायश्चित था, एक टीचर का अपने छात्र को दिया गया सम्मान था, और सबसे बढ़कर, यह इस बात का सबूत था कि इंसानियत आज भी जिंदा है। उस एक घटना ने दो जिंदगियों को हमेशा के लिए बदल दिया था। आर्यन को उसकी ईमानदारी का फल मिला था, और कविता को दौलत से भी कीमती एक सबक।
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