जिसे साधारण पति समझकर घर छोड़ी… लेकिन 5 दिन बाद जब पता चला कि लड़का करोड़पति है, फिर जो हुआ….
कभी-कभी जिंदगी हमें वह सब देती है जो हम चाहते हैं। लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते। पटना शहर की भीड़भाड़ वाली सड़कों से कुछ दूर गुलमोहर कॉलोनी में एक बड़ा और आलीशान घर था। वहां रहती थी रिया शर्मा। एक सुंदर, पढ़ी-लिखी और आत्मविश्वास से भरी लड़की। उसके पिता प्रमोद शर्मा सरकारी विभाग में ऊंचे पद पर थे। बचपन से रिया ने कभी किसी चीज की कमी नहीं देखी थी। हर चीज ब्रांडेड, हर दिन आराम से भरा, महंगे कपड़े, नई कारें, आलीशान पार्टीज—यही उसकी दुनिया थी। वह सोचती थी कि शादी के बाद भी उसकी जिंदगी किसी फिल्म की हीरोइन जैसी ही रहेगी, जहां हर सुबह सुगंधित फूलों की खुशबू होगी और हर शाम रेशमी साड़ियों की चमक।
शादी की तैयारियां
एक दिन उसके पापा ने कहा, “रिया, हमें तुम्हारे लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता मिला है। लड़का बहुत शरीफ, ईमानदार और सादा स्वभाव का है। नाम है अर्जुन वर्मा।” रिया ने बिना कुछ कहे बस हल्की मुस्कान दी। लेकिन मन ही मन सोचा, “पता नहीं यह सादा आदमी मेरी लाइफस्टाइल समझ भी पाएगा या नहीं।” शादी की तैयारियां शुरू हो गईं। महंगे कपड़े, डेकोरेशन और रिश्तेदारों का तानता। शादी का दिन आया तो जैसे सपनों की कोई बारात उतर आई हो। बैंड की आवाज, हंसी-ठिठोली, रंगों की बारिश—रिया को लगा कि अब उसकी नई जिंदगी शुरू हो रही है।
लेकिन असली कहानी तो विदाई के बाद शुरू हुई। जब अर्जुन उसे अपने घर लेकर गया तो सामने एक छोटा सा मकान था। साफ-सुथरा मगर बहुत सादा। ना मार्बल, ना बड़ी खिड़कियां, ना महंगे शोपीस, बस सादगी और शांति। रिया के चेहरे की मुस्कान जैसे अचानक थम गई। अर्जुन ने उसकी ओर देखते हुए कहा, “देखो रिया, यह घर मेरे दिल के बहुत करीब है। यही मैं बड़ा हुआ हूं। मैं चाहता हूं कि हमारी जिंदगी भी ऐसी ही सरल और सच्ची हो।”
नए माहौल में संघर्ष
रिया ने सिर तो हिला दिया, लेकिन भीतर कहीं एक कसक उठी। “यह तो मेरे सपनों जैसा नहीं है। मैं तो एक रॉयल लाइफ चाहती थी।” अर्जुन उसे पूरा प्यार देना चाहता था। वो सुबह जल्दी उठकर खुद चाय बनाता। कई बार नाश्ता भी तैयार कर देता। उसे लगता कि रिया नए माहौल में सहज हो जाए। लेकिन रिया को यह सब अर्जुन की कमजोरी लगने लगी। धीरे-धीरे उसने अर्जुन से घर के सारे काम करवाने शुरू कर दिए।
“अर्जुन, आज कपड़े तुम धुल लो। अर्जुन, बाजार से सब्जी ले आओ। अर्जुन, मैं थक गई हूं, तुम खाना बना दो।” अर्जुन बिना कुछ कहे सब करता रहा क्योंकि उसे लगता था कि रिया को खुश रखने से रिश्ता मजबूत होगा। पर रिया की सोच कुछ और थी। वो अपनी सहेलियों से हंसते हुए कहती, “पता है, मेरा पति तो नौकर की तरह सारे काम करता है। मुझे शर्म आती है इसे अपना पति कहने में।” यह बातें धीरे-धीरे अर्जुन तक पहुंचने लगीं। वो बाहर से मुस्कुराता लेकिन अंदर से टूटने लगा।
टूटते रिश्ते
एक शाम जब अर्जुन काम से लौट रहा था तो उसने दरवाजे से रिया की आवाज सुनी। वो अपनी सहेली सोनिया से कह रही थी, “काश मैंने अर्जुन से शादी नहीं की होती। इससे अच्छा तो मैं अकेली रहती।” उस पल अर्जुन जैसे भीतर से बिखर गया। उसने कमरे का दरवाजा धीरे से बंद किया और बस खिड़की से बाहर देखने लगा। आसमान में तारे चमक रहे थे लेकिन उसके अंदर अंधेरा था। वो सोचता रहा, “कभी तो रिया समझेगी कि असली अमीरी दिल की होती है, ना कि दीवारों पर लगी पेंटिंग्स में।”
लेकिन उसे नहीं पता था कि आने वाले कुछ दिनों में जिंदगी उसे ऐसा मोड़ देने वाली है जो रिया के अहंकार को हमेशा के लिए तोड़ देगा। अगले कुछ दिनों तक रिया और अर्जुन की जिंदगी ऐसे चलती रही जैसे कोई अनहा युद्ध हो। अर्जुन हर दिन ऑफिस से थका हारा लौटता लेकिन घर के दरवाजे पर उसे मुस्कुराहट नहीं, ताने मिलते। रिया के चेहरे पर हमेशा एक सी शिकन रहती। “मेरी किस्मत इतनी खराब कैसे हो सकती है? मैंने सोचा था शादी के बाद सब कुछ बदल जाएगा। लेकिन यहां तो कुछ भी वैसा नहीं है।” अर्जुन बस चुप रहता।
सहेली का प्रभाव
फिर एक दिन रिया की कॉलेज की पुरानी सहेली सोनिया मलिक उसके घर आई। सोनिया आधुनिक थी, आत्मनिर्भर थी और एक बड़ी कंपनी में नौकरी करती थी। रिया ने जैसे ही उसे अंदर बुलाया, सोनिया ने चारों तरफ देखा और हंसते हुए बोली, “रिया, यह कैसा घर है यार? और तेरे पति कहां है?” इतने में अर्जुन रसोई से हाथ धोकर बाहर आया। साधारण कुर्ते में चेहरे पर सादगी।
सोनिया ने व्यंग्य भरी हंसी के साथ कहा, “यह तुम्हारा पति है। यह तो नौकरों जैसा लग रहा है। अरे रिया, तू तो बचपन से शाही ठाट की आदत वाली थी ना।” रिया को भीतर से जैसे किसी ने चुभो दिया हो। लेकिन अपने अहंकार को छुपाने के लिए वह भी हंस पड़ी, “हां सोनिया, यही है मेरा पति। इसे तो सिर्फ घर के काम करना आता है। बस और कुछ नहीं।”
नया निर्णय
अर्जुन सब सुनता रहा। बिना एक शब्द बोले, लेकिन उसके चेहरे की मुस्कान अब कहीं खो चुकी थी। सोनिया ने बात बदलते हुए कहा, “रिया, मैं तो एक बड़ी कंपनी में ब्रांच हेड हूं। तू चाहे तो मेरे साथ चल। मैं तेरे लिए जॉब लगवा दूं। क्यों इस सादगी भरे पिंजरे में अपनी जिंदगी खराब कर रही है?” रिया ने बिना एक पल सोचे कहा, “हां सोनिया, तू सही कह रही है। अब बहुत हो गया। मैं यहां और नहीं रह सकती।”
अर्जुन ने धीरे से कहा, “रिया, गुस्से में कोई फैसला मत लो। हर रिश्ता थोड़ा वक्त मांगता है।” पर रिया का चेहरा गुस्से से लाल था। “अर्जुन, मुझे अब इस छोटी जिंदगी से निकलना है। मुझे तुम्हारे जैसे साधारण आदमी के साथ रहना मंजूर नहीं।” अर्जुन चुप खड़ा रहा। रिया ने अपना सामान पैक किया और सोनिया के साथ चली गई। दरवाजे पर खड़ा अर्जुन बस उसे जाते हुए देखता रहा। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। बस एक खामोश टूटन थी।
नई शुरुआत
रिया ने नया शहर देखा। नई नौकरी शुरू की। ऑफिस की चमक-दमक देखकर उसे लगा, “अब मेरी जिंदगी पटरी पर आ गई है।” लेकिन उसे नहीं पता था कि जिस कंपनी में वह काम करने लगी थी, उसी कंपनी का असली मालिक वही अर्जुन था। हर सुबह वह दर्पण में खुद को देखकर सोचती, “अब मैं आजाद हूं। अब मेरी दुनिया वैसी होगी जैसी मैंने चाही थी।” पर रात को जब वह अकेली कमरे में बैठती तो मन कहीं ना कहीं चुपचाप पूछता, “क्या सच में यह आजादी है या कोई अधूरापन जिसे मैं खुद से छिपा रही हूं?”
समय बीतता गया और एक दिन उस कंपनी में एक नया प्रोजेक्ट आया जिसकी मीटिंग हेड ऑफिस में होनी थी। रिया को पहली बार वहां भेजा गया। वह खुश थी, आत्मविश्वास से भरी हुई। “अब सबको दिखाऊंगी कि मैं क्या कर सकती हूं।” लेकिन किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही लिखा था। अगले दिन सुबह जब रिया हेड ऑफिस पहुंची, उसकी आंखों में चमक थी। चेहरे पर आत्मविश्वास और दिल में वह पुराना अहंकार।
पुरानी यादें
बड़ी कांच की इमारत, अंदर घूमती हुई एयर फ्रेशनर की खुशबू। कॉरिडोर में झिलमिलाती लाइटें। उसे लगा जैसे अब उसकी दुनिया सही जगह पहुंच गई है। वह मन ही मन बोली, “काश मेरी शादी किसी ऐसे इंसान से हुई होती जो इस लेवल का होता, ना कि उस अर्जुन जैसे आदमी से।” वो रिसेप्शन से अपनी फाइल लेकर मीटिंग हॉल की ओर बढ़ी ही थी कि गलियारे में उसकी टक्कर एक आदमी से हो गई। फाइलें जमीन पर गिर पड़ीं।
रिया झुझुलाकर बोली, “देखकर नहीं चल सकते क्या?” जब उसने सिर उठाया तो सामने वही चेहरा था जिसे वह कभी साधारण कहकर छोड़ आई थी। अर्जुन। वो चौकी फिर होठों पर ताने वाली मुस्कान आई। “वाह अर्जुन, तुम यहां भी पहुंच गए। अब क्या इस बड़ी कंपनी में भी झाड़ू-पोछा कर रहे हो?” अर्जुन के हाथ में फाइलें थीं। चेहरे पर वही शांति, वही सादगी। उसने बस हल्की सी मुस्कान दी।
सच्चाई का सामना
ऑफिस के बाकी स्टाफ भी यह सब सुन रहे थे। रिया की आवाज ऊंची होती जा रही थी। “मुझे तो शर्म आती है कि कभी मैं तुम्हारे जैसी सोच वाले आदमी की पत्नी थी। तुम जैसे लोग बस छोटे कामों के लिए ही बने हैं।” सबकी नजरें अर्जुन पर थीं। लेकिन वो बस शांत स्वर में बोला, “रिया, वक्त बहुत कुछ सिखा देता है। बस थोड़ा सब्र रखो। सच्चाई अपने आप सामने आ जाएगी।”
रिया ने आंखें घुमाई और गुस्से में मीटिंग रूम की तरफ चली गई। उसे लगा अर्जुन वहां किसी जूनियर पोस्ट पर काम करता होगा। मीटिंग हॉल में कई सीनियर अधिकारी बैठे थे। रिया भी एक कोने में बैठ गई। सोच रही थी, “देखना आज सबको दिखा दूंगी कि असली टैलेंट क्या होता है।” कुछ मिनटों बाद दरवाजा खुला। सब लोग खड़े हो गए। रिया भी अनजाने में उठ खड़ी हुई।
उलटफेर
उसकी नजर दरवाजे की ओर गई और अगले ही पल उसका चेहरा सफेद पड़ गया। अंदर वही अर्जुन वर्मा दाखिल हुआ। अब उसके चेहरे पर वही शांति नहीं बल्कि आत्मविश्वास और अधिकार की चमक थी। उसके पीछे उसके पर्सनल असिस्टेंट्स, बोर्ड के डायरेक्टर्स और कई मैनेजर खड़े थे। पूरा हॉल एक साथ बोला, “गुड मॉर्निंग सर।” रिया की सांसें थम गईं। वो कुर्सी पर बैठ भी नहीं पा रही थी। जिसे वह अब तक छोटा आदमी कहती आई थी, वहीं इस पूरी कंपनी का सीईओ और मालिक निकला।
अर्जुन ने पूरे आत्मविश्वास से मीटिंग शुरू की। प्रोजेक्ट की चर्चा की। हर व्यक्ति की राय सुनी लेकिन रिया की तरफ एक बार भी नहीं देखा। मीटिंग खत्म हुई तो सब बाहर निकल गए। कमरे में बस दो लोग बचे। अर्जुन और रिया। रिया की आंखें भर आईं। वो कांपते हुए बोली, “अर्जुन, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें कभी समझा ही नहीं। मैं तुम्हारी सादगी का मजाक उड़ाती रही। जबकि तुम तो मुझसे कहीं बड़े इंसान निकले।”
माफी का पल
अर्जुन कुछ देर चुप रहा। फिर शांत आवाज में बोला, “रिया, मैं तुम्हें दोष नहीं देता। गलती तुम्हारी नहीं, उस सोच की है जो समझती है कि बड़ा इंसान वो होता है जिसके पास पैसा हो। जबकि असली बड़ा इंसान वो है जिसके पास दिल हो।” रिया रो पड़ी। हाथ जोड़कर बोली, “बस एक मौका और दे दो अर्जुन, मैं सब ठीक कर दूंगी।”
अर्जुन ने धीरे से कहा, “रिया, टूटे हुए रिश्ते दोबारा जोड़े जा सकते हैं लेकिन उनकी दरारें हमेशा दिखती हैं। मैं तुम्हारे लिए सिर्फ एक दुआ कर सकता हूं कि तुम खुद को पहचानो और वह इंसान बनो जो दिखावे से नहीं, दिल से अमीर हो।” रिया की आंखों से आंसू गिरते रहे। लेकिन अर्जुन उठकर दरवाजे की ओर बढ़ गया।
एक नई शुरुआत
वह दरवाजे से बाहर निकलते हुए बस इतना बोला, “कभी-कभी सादगी ही वह आईना होती है जिसमें इंसान का असली चेहरा दिखता है।” रिया वहीं खड़ी रह गई। टूटी हुई लेकिन जागी हुई। उस मीटिंग के बाद रिया की जिंदगी जैसे रुक गई। वो रात भर नहीं सो पाई। आंखें खुली थीं। लेकिन मन में हजारों सवाल चल रहे थे। जिस आदमी को वह सालों तक साधारण कहती रही, वही असल में एक ऐसा इंसान निकला जिसने अपने सपनों को मेहनत से हकीकत बनाया था।
वो सोचती रही, “मैंने क्यों उसकी सादगी को उसकी कमी समझ लिया? क्यों मैंने उस दिल को ठुकराया जो मेरे लिए हर दिन खुद को छोटा बनाता रहा?” सुबह होते ही रिया ने खुद को आईने में देखा। पहली बार उसे लगा कि वह जितनी बाहर से खूबसूरत है, अंदर से उतनी ही खोखली बन चुकी है।
पत्र का संदेश
उसने जल्दी से एक पत्र लिखा। कंपनी में जाकर अर्जुन के टेबल पर रखा। “अर्जुन, मैं तुम्हारी नहीं रही। लेकिन तुम्हारा सम्मान अब मेरी आत्मा में बस गया है। आज मुझे समझ आया है कि अमीरी पैसों से नहीं, इंसानियत से होती है।”
अर्जुन ने वह चिट्ठी पढ़ी। फिर हल्की सी मुस्कान के साथ आंखें बंद की। उसने धीरे से कहा, “शायद अब वह वही सीख गई है जो मैं देना चाहता था।” कुछ दिनों बाद रिया ने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक एनजीओ में काम शुरू किया जहां वो गरीब बच्चों को पढ़ाने लगी। हर दिन जब वह किसी बच्चे की आंखों में उम्मीद देखती तो अर्जुन की बात याद आती, “असली अमीरी दिल की होती है।”

सम्मान का क्षण
कई महीने बीत गए। एक दिन कंपनी का एक कार्यक्रम था। जहां समाज सेवा में योगदान देने वालों को सम्मानित किया जा रहा था। रिया वहां पहुंची, सादी सफेद साड़ी में, बिना मेकअप के लेकिन चेहरे पर आत्मसंतोष की चमक थी। कार्यक्रम का मुख्य अतिथि था अर्जुन वर्मा। वो मंच पर आया, भीड़ ने तालियां बजाई। अर्जुन ने अपने भाषण में कहा, “कुछ लोग जिंदगी में हमारे दिल को तोड़ते हैं लेकिन वही हमें बनाते हैं। कभी किसी की सादगी को उसकी कमजोरी मत समझो क्योंकि सादगी में जो ताकत है, वह दिखावे में नहीं होती।”
रिया की आंखों से आंसू बह निकले। वो भीड़ में खड़ी ताली बजा रही थी। लेकिन इस बार उसके दिल में कोई जलन नहीं थी। सिर्फ सच्चा सम्मान था। कार्यक्रम के बाद जब भीड़ छंटी तो अर्जुन ने रिया की ओर देखा। एक पल को उनकी नजरें मिलीं। वह नजरों में कोई शिकायत नहीं थी। बस एक शांति थी। जैसे दो आत्माएं अब समझ चुकी हों कि माफ करना ही सबसे बड़ी जीत होती है।
नई पहचान
रिया ने सिर झुकाकर मुस्कुराया। अर्जुन ने हल्का सा सिर हिलाया। दोनों के बीच कोई शब्द नहीं बोले गए। पर हर बात कह दी गई थी। रिया धीरे से बाहर निकली। आसमान की ओर देखा। सूरज ढल रहा था। लेकिन उसके अंदर एक नया सवेरा उग चुका था। अब उसे पता था जिंदगी का असली सौंदर्य महंगे घर या कपड़ों में नहीं बल्कि उस दिल में होता है जो बिना शर्त प्यार करना जानता है।
अंत
दोस्तों, अब फैसला आपके हाथ में है। क्या अर्जुन ने सही किया कि उसने रिया को उसके हालात पर छोड़ दिया या उसे माफ करके एक नई शुरुआत का मौका देना चाहिए था? आपकी राय जरूर बताइए। तो दोस्तों, यह कहानी आपको कैसी लगी? हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं और जाते-जाते हमारे वीडियो पर लाइक एवं चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें और कमेंट में अपना नाम और शहर जरूर लिखें ताकि हमें आपके प्यार और समर्थन का एहसास होता रहे।
तो चलिए फिर मिलेंगे एक और दिल को छू लेने वाली सच्ची कहानी के साथ। जय हिंद!
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