पिज़्ज़ा डिलीवरी बॉय को लड़की ने अपना भाई बनाकर अपने घर में रखा , दोनों ने IAS एग्जाम में टॉप किया

दिल्ली – दो दुनिया, एक किस्मत

दिल्ली, सपनों का शहर। यहां लाखों लोग अपनी किस्मत बदलने आते हैं। इसी शहर के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश में रहती थी आरुषि खन्ना – 25 साल की पढ़ी-लिखी, अमीर लड़की। उसके पिता देश के बड़े उद्योगपति, मां मशहूर सोशलाइट। लेकिन आरुषि का सपना अलग था – उसे पार्टी, फैशन, दौलत में कोई दिलचस्पी नहीं थी। उसका जुनून था – आईएएस बनना, देश की सेवा करना।

लंदन से मास्टर्स करके वो दिल्ली लौटी, और अपने माता-पिता से दूर, अकेले उसी घर में तैयारी कर रही थी। उसकी दिनचर्या सख्त थी – सुबह पांच बजे उठना, योगा, और फिर देर रात तक पढ़ाई। दोस्तों, घूमना-फिरना, मनोरंजन – सब उसकी दुनिया से बाहर।

पिज़्ज़ा का डिब्बा – किस्मत की दस्तक

एक सर्द रात, जब आरुषि मौर्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था के जटिल चैप्टर में उलझी थी, उसे भूख लगी। उसने पिज़्ज़ा ऑर्डर किया। आधे घंटे बाद दरवाजे पर घंटी बजी। सामने था – लाल यूनिफार्म में, हेलमेट हाथ में, दुबला-पतला सा लड़का – आकाश। उसके चेहरे पर थकान थी, लेकिन आंखों में चमक और मुस्कान थी।

पिज़्ज़ा देते हुए उसने पूछा – “दीदी, आप आईएएस की तैयारी कर रही हैं क्या?”
आरुषि को उसका सवाल पसंद नहीं आया। उसने रूखेपन से जवाब दिया – “हां, तुम्हें इससे क्या मतलब?”
आकाश बोला – “मैं भी तैयारी कर रहा हूं, अगर कभी मदद चाहिए, खासकर इतिहास में, तो बताइएगा।”
आरुषि को उसकी बात पर हंसी आ गई – “एक डिलीवरी बॉय मुझे आईएएस में मदद करेगा?” उसने मन ही मन सोचा और दरवाजा बंद कर लिया।

मदद की तलाश – एक नई शुरुआत

दो दिन बाद, आरुषि उसी चैप्टर में फंसी थी। उसने इंटरनेट, किताबें सब देख लीं, लेकिन समझ नहीं आया। अचानक उसे आकाश की बात याद आई। उसने फिर से पिज़्ज़ा ऑर्डर किया, खास रिक्वेस्ट की – “वही लड़का भेजिए।”
आधे घंटे बाद आकाश आया। इस बार आरुषि ने उसे अंदर बुलाया, अपनी किताब दिखाते हुए कहा – “तुमने कहा था मदद कर सकते हो?”

आकाश ने किताब देखी, पांच मिनट पन्ने पलटे, फिर कागज-पेन उठाया –
“दीदी, आप इसे कहानी की तरह समझिए। चंद्रगुप्त, चाणक्य, राजस्व नीति, जासूसी प्रणाली – सबको आज के सिस्टम से जोड़िए…”
आधे घंटे में आकाश ने ऐसा समझाया कि आरुषि मंत्रमुग्ध रह गई। जो तीन दिनों में नहीं समझा, वो अब उसकी समझ में आ गया।

“तुम ये सब कैसे जानते हो?”
“दीदी, मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए किया है, गोल्ड मेडल के साथ।”
आरुषि हैरान रह गई – एक गोल्ड मेडलिस्ट पिज़्ज़ा डिलीवरी कर रहा है?

आकाश की कहानी – मजबूरी और सपनों की जंग

आकाश ने बताया –
वो उत्तराखंड के गरीब गांव से है। पिता किसान, मां घर संभालती। पिता की बीमारी, जमीन बिक गई, कर्ज चढ़ गया। परिवार की जिम्मेदारी आकाश पर आ गई। अच्छी नौकरी नहीं मिली, मजबूरी में पिज़्ज़ा डिलीवरी करने लगा। दिन में 12-14 घंटे काम, रात में पढ़ाई। आईएएस का सपना जिंदा रखने की कोशिश।

आरुषि उसकी कहानी सुनकर अंदर तक हिल गई। उसे खुद पर शर्म आई – उसे सबकुछ मिला, फिर भी परेशान थी। आकाश मुश्किलों से लड़ रहा था, फिर भी मुस्कुरा रहा था।

एक सौदा – दो सपनों का साथ

आरुषि ने फैसला लिया –
“आकाश, तुम ये नौकरी छोड़ दो। मैं तुम्हें अपने घर में नौकरी दूंगी – घर के छोटे-मोटे काम, बाजार से सामान, मेरी पढ़ाई में मदद। तुम यहीं रहो, सर्वेंट क्वार्टर खाली है। मैं तुम्हें तनख्वाह दूंगी, पढ़ाई के लिए समय मिलेगा। हम दोनों मिलकर तैयारी करेंगे। आज से तुम मेरे छोटे भाई हो।”

आकाश की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने आरुषि के पैर छुए।
अब दो अजनबी एक छत के नीचे, एक ही सपना जीने लगे।

दोनों की मेहनत – भाई-बहन का रिश्ता

आकाश घर संभालता, नाश्ता बनाता, फिर दोनों साथ पढ़ते। एक-दूसरे के लिए सपोर्ट सिस्टम बन गए। आरुषि करंट अफेयर्स और अंग्रेजी में अच्छी थी, आकाश इतिहास और राजनीति विज्ञान का ज्ञाता। दोनों घंटों बहस करते, जवाब सुधारते, कमियां दूर करते। आरुषि ने कभी एहसान नहीं जताया – हर महीने तनख्वाह देती, आकाश अपने गांव भेजता।

उनका रिश्ता सगे भाई-बहन से भी बढ़कर हो गया। महीने साल में बदल गए। दो साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला।

आईएएस का रिजल्ट – दो सपनों की उड़ान

मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू के दिन दोनों ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं। रिजल्ट वाले दिन घर में खामोशी थी। आरुषि ने अपना रोल नंबर डाला – टॉप 100 में सिलेक्शन!
आकाश का रोल नंबर डाला – ऑल इंडिया रैंक 5!

दोनों खुशी से गले लगकर रोने-हंसने लगे। उनके त्याग, मेहनत, विश्वास की जीत हुई थी। अखबारों में उनकी तस्वीरें, कहानी छपी – एक अमीर लड़की और एक गरीब पिज़्ज़ा बॉय की भाई-बहन बनकर आईएएस टॉप करने की कहानी हर किसी की जुबान पर थी।

मसूरी – मिसाल और प्रेरणा

ट्रेनिंग के लिए मसूरी पहुंचे तो वे सिर्फ सफल कैंडिडेट नहीं थे – मिसाल थे, प्रेरणा थे।
यह सबूत था – इंसानियत और मेहनत मिल जाए तो किस्मत भी घुटने टेक देती है।

सीख:
किसी इंसान को उसके कपड़ों या काम से मत आंकिए। हर इंसान के अंदर एक कहानी, एक काबिलियत छिपी होती है। जरूरत है – उसे पहचानने वाली नजरों की।
आरुषि ने आकाश में सिर्फ डिलीवरी बॉय नहीं, काबिल भाई और होनहार छात्र देखा। उस एक नजर ने दो जिंदगियों को बदल दिया।

यह कहानी भाई-बहन के उस रिश्ते को सलाम करती है जो खून का मोहताज नहीं होता।

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