मासूम बच्चे ने सिर्फ खाना मांगा था,पति–पत्नी ने उसे घर बुलाकर जो किया… पूरी इंसानियत रो पड़ी

अहमदाबाद के एक समृद्ध और शांत इलाके में राजेश जी और उनकी पत्नी प्रिया का भव्य घर था। आर्थिक रूप से वे बेहद सम्पन्न थे। आलीशान गाड़ी, सुंदर घर, नौकर-चाकर—सब कुछ था। मगर इन सारी भौतिक संपत्तियों के बीच एक ऐसी कमी थी जो उनके दिल को भीतर तक तोड़ चुकी थी। छह महीने पहले उनके इकलौते बेटे अनिल का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था।

अनिल ही उनकी दुनिया था। उसकी मासूम मुस्कान, उसकी शरारतें और उसके सपने—सब एक झटके में खत्म हो गए। उसके जाने के बाद घर की दीवारें भी उदास लगती थीं। प्रिया अक्सर अनिल के कमरे में जाकर उसकी तस्वीरों को घंटों तक निहारती रहतीं। राजेश जी भी अपने काम में डूबकर दर्द को दबाने की कोशिश करते, मगर मन बार-बार बेटे की यादों में भटकता।

अनिल की डायरी और आंखों के आंसू

एक दिन प्रिया सफाई करते हुए अनिल की पुरानी डायरी तक पहुँच गई। उसमें लिखा था—
“मम्मी-पापा, आप दोनों मेरी जिंदगी हो। मैं हमेशा आपका सम्मान करूंगा।”

इन शब्दों को पढ़ते ही प्रिया की आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। राजेश जी भी वहां आए और दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे के कंधे पर सिर रखकर रो पड़े। तभी अचानक घर की घंटी बजी।

दरवाज़ा खोला तो सामने एक सात-आठ साल का बच्चा खड़ा था। मैले-कुचैले कपड़े, गंदे पैरों में टूटी-फूटी चप्पल, लेकिन आंखों में मासूमियत। बच्चे ने हाथ जोड़कर कहा—
“आंटी, मुझे बहुत भूख लगी है। अगर कोई काम हो तो कर दूँ, बदले में थोड़ा खाना दे दीजिए।”

प्रिया का दिल पिघल गया। उस छोटे बच्चे में उसे अपने अनिल की छवि दिखी। उसने तुरंत कहा—“अंदर आ जाओ बेटे।”

विकास की कहानी

बच्चे ने झिझकते हुए कहा—“पहले काम बताइए, बिना काम किए मैं खाना नहीं खाता।”
प्रिया की आंखें और भर आईं। इतनी छोटी उम्र और इतनी समझदारी! उसने बच्चे को गरमागरम खाना परोसा। बच्चा हर निवाला ऐसे खा रहा था जैसे कई दिनों से भूखा हो।

राजेश जी दूर से यह सब देख रहे थे। उन्हें लगा जैसे भगवान ने उनकी पुकार सुन ली हो। खाना खत्म करने के बाद प्रिया ने उससे नाम पूछा। उसने धीमे स्वर में कहा—
“मेरा नाम विकास है। पास के गांव का हूँ। मम्मी-पापा का एक्सीडेंट में देहांत हो गया। अब मामामी के साथ रहता हूँ, लेकिन वहाँ डांट-फटकार मिलती है, पढ़ाई भी छुड़वा दी है। सोचा यहाँ कोई काम मिल जाए।”

राजेश और प्रिया का दिल टूट गया। राजेश जी ने कहा—“बेटा, आज से यह घर तुम्हारा भी है। तुम यहाँ रहोगे।”
विकास बोला—“अंकल, लेकिन मैं बिना काम किए नहीं रह सकता।”
प्रिया मुस्कुराई—“ठीक है, तुम रोज पौधों में पानी देना और अपना कमरा साफ रखना। बस यही काम है।”

नई शुरुआत

उस शाम प्रिया ने विकास के लिए नए कपड़े लाए। नहा-धोकर जब वह तैयार हुआ, तो बिल्कुल अलग लग रहा था। आईने में देखकर वह खुद भी मुस्कुरा पड़ा। अगले दिन राजेश जी ने उसका स्कूल में दाखिला कराया।

शुरुआत में बच्चे उसकी बोली और तौर-तरीकों पर हँसते, लेकिन विकास की मेहनत और सादगी ने सबका दिल जीत लिया। एक दिन उसने प्रिया से कहा—
“आंटी, क्या मैं आपको मम्मी कह सकता हूँ?”
प्रिया ने उसे गले लगा लिया—“हां बेटे, अब हम तुम्हारे मम्मी-पापा हैं।”

समाज की बातें और विकास की जीत

पड़ोसी कानाफूसी करने लगे—“देखना, यह लड़का बड़ा होकर धोखा देगा। अपना खून ही अपना होता है।” मगर राजेश और प्रिया ने किसी की परवाह नहीं की।

समय बीता, विकास पढ़ाई में चमकने लगा। निबंध प्रतियोगिता में उसने लिखा—
“मेरे आदर्श मेरे मम्मी-पापा हैं, जिन्होंने मुझे नई जिंदगी दी है।”

उसका निबंध पहला स्थान लाया। विकास ने ट्रॉफी मम्मी-पापा के चरणों में रख दी। प्रिया और राजेश की आंखें गर्व से भर आईं।

अतीत की दस्तक

तीन साल बाद, अचानक विकास के मामा-मामी घर आ धमके। वे उसे वापस ले जाना चाहते थे। विकास डर गया कि कहीं उसे प्रिया और राजेश से अलग न कर दें। मगर उसने साहस दिखाया और कोर्ट में साफ कहा—
“मैं अपनी मर्जी से यहाँ रहता हूँ। ये मेरे सच्चे मम्मी-पापा हैं।”

जज ने फैसला प्रिया और राजेश के पक्ष में सुनाया। उस दिन विकास ने दुनिया को दिखा दिया कि रिश्ता खून से नहीं, दिल से बनता है।

सफलता की ओर

विकास मेहनत करता गया। पढ़ाई में टॉप किया, खेलों में भी अव्वल रहा। अखबार में उसकी तस्वीर छपी—“गरीब बालक की मेधा का कमाल।”

विकास ने कहा—“पापा, मैं इंजीनियर बनूंगा और अपनी कंपनी खोलूंगा।”
राजेश जी की आंखें भर आईं—“बेटे, तू पहले से ही हमारा गर्व है।”

प्यार और परिवार

कॉलेज में उसकी दोस्ती श्वेता से हुई, जो बाद में उसका प्यार बन गई। विकास ने पहले प्रिया और राजेश से अनुमति मांगी। उन्होंने श्वेता को अपनी बेटी की तरह अपनाया। दोनों की शादी हुई।

शुरुआत में सब अच्छा था, मगर धीरे-धीरे श्वेता का रवैया बदलने लगा। एक दिन विकास ने सुना कि वह प्रिया से ऊंची आवाज़ में बात कर रही है। विकास का खून खौल गया—
“अगर तुमने मेरी मां का अपमान किया, तो भूल जाना कि तुम मेरी पत्नी हो।”

उस रात विकास ने श्वेता को अपनी पूरी कहानी सुनाई। श्वेता की आंखें नम हो गईं। उसने प्रिया से माफी मांगी और फिर से परिवार में प्यार लौट आया।

नई पीढ़ी और नई सुबह

कुछ साल बाद विकास और श्वेता के घर दो प्यारे बच्चे आए। प्रिया और राजेश दादा-दादी बन गए। घर में फिर से किलकारियां गूंजने लगीं।

विकास ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से कंपनी खड़ी की। अब सैकड़ों लोग उसके अधीन काम करते थे। टीवी इंटरव्यू में जब पत्रकार ने पूछा—
“आपकी सफलता का राज क्या है?”
विकास ने मुस्कुराकर कहा—
“मेरे माता-पिता का प्यार और संस्कार। रिश्ता खून से नहीं, प्रेम और सम्मान से बनता है।”

अंत में

विकास की कहानी पूरे देश में छा गई। लोग कहने लगे—“देखो, जिसने कहा था कि खून का रिश्ता अलग होता है, वही अब विकास की मिसाल देता है।”

आज विकास एक सफल व्यवसायी, अच्छा पति, प्यारा पिता और सबसे बढ़कर—एक आदर्श बेटा है। प्रिया और राजेश के लिए यह संतोष की बात थी कि भगवान ने उनके अनिल को छीनकर उन्हें विकास जैसा बेटा दिया।

कहानी यही सिखाती है कि—
“असली रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। प्रेम और संस्कार ही सबसे बड़ी पूंजी हैं।”

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