बहन ने धोखे से भाई की सारी संपत्ति हड़प ली, फिर कर्म ने उसे ऐसा सबक सिखाया कि वह दौलत की रानी से सड़क की भिखारन बन गई, और एक दिन उसी भाई के दरवाज़े पर आकर गिर पड़ी, जिसे कभी उसने घर से निकाल दिया था।
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कहानी: प्रेमभूमि – रिश्तों का इम्तिहान
सीतापुर जिले के पास एक हरा-भरा गांव था, नाम था हरिपुर। गांव के किनारे गोमती नदी की कल-कल करती धारा बहती थी और उसी किनारे एक पुरानी हवेली खड़ी थी – चौधरी हरनारायण सिंह की हवेली। चौधरी साहब गांव के सबसे प्रतिष्ठित जमींदार थे। उनके पास जमीन-जायदाद की कोई कमी नहीं थी, लेकिन अगर उनसे कोई पूछता कि उनकी सबसे बड़ी दौलत क्या है, तो वे मुस्कुरा कर कहते – “मेरे बच्चे – प्रेम और पूजा।”
प्रेम, उनका बड़ा बेटा, 25 साल का नौजवान था – शांत, समझदार, पढ़ा-लिखा और जिम्मेदार। उसने शहर के एक नामी कॉलेज से एग्रीकल्चर की पढ़ाई की थी और अब आधुनिक खेती के ज़रिए अपने पिता का काम आगे बढ़ा रहा था।
पूजा, उससे पांच साल छोटी, घर की लाडली और सबकी आंखों का तारा थी। उसकी हंसी हवेली के कोने-कोने में गूंजती थी। भाई-बहन का ऐसा प्यार था कि गांव में मिसाल दी जाती थी – “ऐसी जोड़ी हर घर में हो।”
प्रेम ने पूजा को कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी। जब पूजा ने शहर जाकर पढ़ाई करने की ज़िद की, तो पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर प्रेम ने उसे भेजा। और जब पूजा की शादी की बात आई, तो प्रेम ने हर रिश्ता ठुकराकर वही रिश्ता मंजूर किया जिसे पूजा चाहती थी – विक्रम नाम का एक पढ़ा-लिखा, शहर का लड़का।
विक्रम देखने में स्मार्ट था, पर उसकी आंखों में लालच की चमक थी – जो सिर्फ प्रेम देख सका। पर बहन की खुशी के आगे प्रेम ने चुप्पी साध ली।
शादी के कुछ महीने बाद ही एक दुखद घटना घटी। चौधरी साहब और उनकी पत्नी एक सड़क दुर्घटना में चल बसे। प्रेम और पूजा एकाएक अनाथ हो गए। लेकिन प्रेम ने अपनी बहन को पिता बनकर संभाला।
चौधरी साहब की वसीयत के अनुसार, उनकी संपत्ति दोनों बच्चों में बराबर बांटी गई। बस, यहीं से विक्रम की आंखों में लालच ने आग पकड़ ली। उसने पूजा को समझाना शुरू किया, “तुम्हारा भाई कुछ नहीं जानता बिजनेस के बारे में। वह सब बरबाद कर देगा। क्यों न हम पूरी जायदाद एक कंपनी के नाम करवा लें और शहर में बड़ा कारोबार शुरू करें?”
पूजा को यह सुझाव अच्छा लगा। उसने प्रेम से कहा, “भैया, विक्रम कह रहा है कि हम दोनों का बिजनेस एक ही छत के नीचे हो, जिससे मैनेजमेंट आसान हो जाए।” प्रेम को क्या शक होता? उसने आंख बंद कर दस्तखत कर दिए।
पर दस्तखत किसी कंपनी फॉर्मेशन पर नहीं, बल्कि अपनी सारी जायदाद को बहन और बहनोई के नाम सौंपने के कागजों पर थे।
जिस दिन हवेली और सारी संपत्ति विक्रम और पूजा के नाम हुई, उसी दिन प्रेम को उसकी ही हवेली से बाहर निकाल दिया गया। “अब यह घर तुम्हारा नहीं रहा। तुम्हारे लिए इसमें कोई जगह नहीं,” पूजा ने कहा।
प्रेम के लिए यह सदमा किसी तूफान से कम नहीं था। जिस बहन को उसने आंखों पर बिठाया, उसी ने उसकी आंखों में आंसू भर दिए। वह टूटा, बिखरा, पर उसने हार नहीं मानी।
गांव के बाहर पुराने मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा वह अपने अतीत को कोस रहा था, तभी शंकर नाम का उसका बचपन का दोस्त उसे ढूंढ़ता हुआ आया। उसने प्रेम को अपने घर ले जाकर सहारा दिया। प्रेम ने शंकर की मदद से शहर जाकर एक नर्सरी में माली की नौकरी शुरू की।
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। उसने नर्सरी के मालिक को नई किस्मों के पौधों और खेती के आधुनिक तरीकों से अवगत कराया। मालिक प्रभावित हुआ और उसे अपना फार्महाउस मैनेजर बना दिया।
फिर आया एक मोड़ – मालिक ने बिना वारिस के अपनी सारी जायदाद और फार्म प्रेम के नाम कर दिए। प्रेम ने उस संपत्ति का नाम रखा – प्रेमभूमि ऑर्गेनिक्स। जल्द ही वह ऑर्गेनिक खेती में एक बड़ा नाम बन गया।
उधर पूजा और विक्रम की जिंदगी बिखर रही थी। विक्रम ने शेयर बाजार में पैसा गंवा दिया, शराब और सट्टे में सब लुटा दिया। एक रात वह पूजा को छोड़कर भाग गया। हवेली पर कर्ज का पहाड़ टूट पड़ा।
जब हवेली की नीलामी की नौबत आई, तो पूजा का घमंड चकनाचूर हो गया। वह रोती-बिलखती, भूखी-प्यासी शहर में प्रेमभूमि के गेट तक पहुंची। गार्ड ने उसे भिखारिन समझकर भगा दिया। पर तभी प्रेम की गाड़ी वहां से निकली। उसने अपनी बहन को देखा, पहचान लिया।
पूजा ने प्रेम के पैरों में गिरकर माफी मांगी। प्रेम की आंखों में न गुस्सा था, न घृणा। उसने बहन को गले लगाया और कहा, “जो हो गया, उसे भूल जा। तू मेरी बहन है और हमेशा रहेगी।”
प्रेम ने पूजा को फिर से वही हवेली लौटा दी। गांववालों से कहा, “यह हवेली आज भी मेरी बहन की है, आप सब इसका सम्मान करें।”
पर प्रेम ने पूजा को एक शर्त दी – “तुझे मेरे साथ काम करना होगा। मेहनत करनी होगी, और अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना होगा।”
पूजा ने वह शर्त खुशी-खुशी मानी। उसने अपने भाई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत की। कुछ वर्षों बाद, प्रेमभूमि ऑर्गेनिक्स देश की सबसे सफल ऑर्गेनिक फूड कंपनियों में से एक बन गई – और उसकी डायरेक्टर बनी पूजा।
अब उसके चेहरे पर घमंड नहीं, आत्मग्लानि नहीं, बल्कि भाई के लिए प्यार और सम्मान की झलक थी।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि:
दौलत कभी रिश्तों से ऊपर नहीं हो सकती।
विश्वास की डोर एक बार टूटे, तो जोड़ना मुश्किल होता है।
लेकिन अगर दिल सच्चा हो, तो माफ करना और फिर से जोड़ना भी संभव है।
कर्म का पहिया जब घूमता है, तो हर बुरे इंसान को उसका फल जरूर मिलता है – चाहे देर से ही क्यों न।
अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ ज़रूर शेयर करें। रिश्तों की अहमियत को समझना और दूसरों को भी सिखाना आज की दुनिया में सबसे बड़ी सीख है।
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