जब इंस्पेक्टर ने अंडे बेच रही एक महिला को थप्पड़ मारा, तो इंस्पेक्टर का क्या हुआ?

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वर्दी का अभिमान और न्याय की जीत: डीएम अंकिता शर्मा की कहानी

अध्याय 1: सुबह की हलचल और पुरानी यादों का स्वाद

सुबह के सात बजे थे। शहर की सड़कों पर हल्की-फुल्की चहल-पहल शुरू हो चुकी थी। ठंडी बयार में दुकानदार अपने ठेले सजाते, बच्चे स्कूल की ओर बढ़ते और ऑफिस जाने वाले जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते। इसी बीच, एक महिला पीले रंग का साधारण सलवार सूट पहने, बाल कसकर पीछे बांधे, चेहरे पर सादगी और आत्मविश्वास लिए, बाजार की ओर बढ़ रही थी। वह कोई आम महिला नहीं थी, बल्कि जिले की सबसे शक्तिशाली अधिकारी, जिलाधिकारी अंकिता शर्मा थीं। लेकिन आज वह अपने सरकारी आवास के बजाय आम लोगों के बीच, बिना किसी पहचान या सुरक्षा के निकल पड़ी थीं।

अंकिता शर्मा को अपने कॉलेज के दिनों की यादें सताने लगी थीं। वे सोचने लगीं – “कितना आसान था तब ठेले पर गरमागरम ऑमलेट खाना, दोस्तों संग हँसना, बेफिक्री से जीना।” आज भी वही स्वाद, वही अनुभव उन्हें खींच लाया था सड़क किनारे के ठेले तक। उन्होंने ठेले वाली बुजुर्ग महिला से मुस्कराकर कहा, “दादी, तीन ऑमलेट बना दीजिए। थोड़ा फूला-फूला और करारा।”

बुजुर्ग महिला ने मुस्कराते हुए ऑमलेट बनाना शुरू किया। अंकिता ने पहला निवाला लिया तो जैसे बचपन की सारी यादें ताजा हो गईं। “आहा, वही स्वाद!” उन्होंने मन ही मन कहा। लेकिन यह सुख बहुत देर तक नहीं टिक पाया।

अध्याय 2: वर्दी का अहंकार

अचानक बाजार में पुलिस की जीप आकर रुकी। इंस्पेक्टर मोहित सिंह, अपनी वर्दी की चमक और चेहरे पर सत्ता का मद लिए, दो सिपाहियों के साथ उतरा। वह ठेले के पास आया और बुजुर्ग महिला पर चिल्लाया, “अरे ओ बुढ़िया, जल्दी से हफ्ते का पैसा निकाल! कहाँ छुपा रखा है?”

महिला डर गई, हाथ कांपने लगे। “साहब, अभी तो दिन की शुरुआत है। शाम को आ जाइए, तब दे दूंगी।”
इंस्पेक्टर का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। उसने बिना कुछ सोचे बुजुर्ग महिला के गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया।
पूरा बाजार सन्न रह गया। अंकिता शर्मा का खून खौल उठा।

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अध्याय 3: न्याय की पुकार

अंकिता तुरंत आगे बढ़ीं। “रुकिए इंस्पेक्टर साहब! आप किस अधिकार से इनसे पैसे मांग रहे हैं? किस हक से थप्पड़ मारा?”
मोहित सिंह ने घूरते हुए कहा, “तुम कौन हो बीच में बोलने वाली? पुलिस का मामला है, चुपचाप खड़ी रह। ज्यादा बोली तो यहीं गिरफ्तार कर लूंगा।”

अंकिता ने दृढ़ स्वर में कहा, “आप जो कर रहे हैं, कानून के खिलाफ है। गरीबों पर जुल्म करने का आपको कोई अधिकार नहीं। इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा।”

इंस्पेक्टर ने आपा खो दिया और अंकिता के गाल पर भी थप्पड़ जड़ दिया।
अंकिता लड़खड़ा गईं, लेकिन उनकी आंखों में गुस्से की ज्वाला थी। “अब मैं आप पर एफआईआर दर्ज करवाऊंगी और आपको सस्पेंड करवा कर रहूंगी।”

मोहित सिंह क्रूरता से हंसा, “एफआईआर? ज्यादा बोली तो इतना मारूंगा कि घर तक नहीं जा पाएगी।”

वह फिर बुजुर्ग महिला के ठेले की ओर बढ़ा, ठेले पर लात मारी, सारे अंडे सड़क पर बिखर गए। महिला रोते हुए अंडे समेटने लगी। इंस्पेक्टर ने डंडा उठाकर उसकी पीठ पर भी मार दिया।
महिला दर्द से चीख उठी, “साहब, शाम को आ जाइए, जो भी कमाऊंगी दे दूंगी। प्लीज मत मारिए।”

अध्याय 4: डीएम का संकल्प

अंकिता शर्मा का धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने वृद्ध महिला का हाथ पकड़कर उठाया, “मां जी, आपको किसी से माफी मांगने की जरूरत नहीं। यह लोग गरीबों पर जुल्म ढाते हैं, अब इन्हें सबक सिखाना मेरा काम है।”

महिला कांपते स्वर में बोली, “बेटा, तू क्या कर लेगी उनका? वो पुलिस वाले हैं। हम गरीबों पर सालों से जुल्म करते आ रहे हैं।”

अंकिता की आंखों में आग थी, “नहीं मां जी, अब बहुत हो गया। मैं डीएम हूं, इन लोगों को उनके गुनाहों की सजा दिलवाकर रहूंगी। आप घर जाइए, फिक्र मत कीजिए।”

अध्याय 5: थाने का अपमान

अगले दिन अंकिता साधारण कपड़ों में कोतवाली थाने पहुंचीं। हेड कांस्टेबल मोहित सिंह ऊंघ रहा था, सिपाही हंसी-मजाक कर रहे थे।
अंकिता ने सख्त आवाज में कहा, “सुनिए मोहित!”

मोहित चिढ़कर बोला, “क्या है इस वक्त? क्या करने आई हो?”

“रिपोर्ट लिखवाने आई हूं। तुम्हारे इंस्पेक्टर और तुम्हारे खिलाफ। कल सड़क पर अंडे बेच रही महिला को सताया, ठेला तोड़ा, मुझे मारा।”

मोहित सिंह हंस पड़ा, “रिपोर्ट तू लिखवाएगी? यहां चलता है मोहित सिंह का डंडा। चल भाग यहां से।”

तभी एसपी विक्रम सिंह अंदर आया। उसने अंकिता को देखा, “क्या नाम है तेरा?”

“अंकिता शर्मा, रिपोर्ट लिखवाने आई हूं।”

विक्रम सिंह हंस पड़ा, “यहां फालतू कामों के लिए वक्त नहीं है। निकल यहां से, वरना हवालात में बंद कर दूंगा।”

अंकिता डटी रहीं। विक्रम सिंह ने गुस्से में धक्का दिया, अंकिता जमीन पर गिर पड़ीं। सिर में चोट लगी, आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
लेकिन अपमान का घाव सबसे बड़ा था। अंकिता उठीं, “तुम दोनों का हाल ऐसा करूंगी कि पानी पीने लायक भी नहीं रहोगे।”

विक्रम ने फिर धक्का देकर बाहर निकाल दिया। सिपाही ठहाके लगाने लगे।

अध्याय 6: प्रतिशोध की तैयारी

अंकिता शर्मा ने अपमान और गुस्से को भीतर समेट लिया। “अब इन्हें नहीं छोड़ूंगी। इन सबको उनके किए की सजा ऐसी दूंगी कि सपने में भी नहीं सोच सकते।”

अगली सुबह, शहर में सायरनों की गूंज फैल गई। डीएम अंकिता शर्मा का शाही काफिला कोतवाली थाने पहुंचा।
अंकिता ने वर्दी पहनी थी, टोपी सिर पर सटी हुई। बड़े पुलिस अधिकारी साथ थे।
थाने के सिपाही जो कल हंस रहे थे, आज पत्थर के बुत बन गए। विक्रम सिंह और मोहित सिंह का चेहरा सफेद पड़ गया।

अध्याय 7: न्याय का ऐलान

अंकिता ने ठंडी लेकिन सख्त आवाज में कहा, “चेहरे का रंग क्यों उतर गया? कल मुझे धक्के मारकर निकाला था। आज उसी दरवाजे से वापस आई हूं, फर्क सिर्फ इतना है कि आज डीएम की वर्दी में हूं।”

उन्होंने एसएसपी को आदेश दिया, “इनकी वर्दी उतारो और सर्विस रिवाल्वर जमा करो। तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किया जाता है।”

वर्दी उतरवाने के बाद अंकिता ने आदेश दिया, “इन दोनों को वहीं बाजार ले जाओ, जनता के सामने बुजुर्ग महिला से माफी मंगवाई जाए।”

अध्याय 8: खुले बाजार में न्याय

पूरा थाना और सुरक्षा काफिला बाजार पहुंचा। भीड़ इकट्ठा हो गई। बुजुर्ग महिला करीना देवी टूटे ठेले पर अंडे बेच रही थी।

अंकिता ने कहा, “जो गरीबों का हक मारता है, सत्ता का दुरुपयोग करता है, उसका यही हश्र होता है।”

विक्रम सिंह और मोहित सिंह कांपते हाथ जोड़कर करीना देवी से माफी मांगी।
अंकिता ने आदेश दिया, “अब इन्हें सफेद गंजी और हाफ पट में पूरे बाजार में दौड़ाया जाए। आगे-आगे ये दोनों भागेंगे, पीछे-पीछे मेरा काफिला चलेगा। ताकि लोग देखें कि सत्ता का दुरुपयोग करने वालों का अंजाम क्या होता है।”

पूरा शहर यह दृश्य देख रहा था। लोग तालियां बजाकर न्याय की मिसाल का स्वागत कर रहे थे।

अध्याय 9: न्याय की मिसाल और जनता का विश्वास

डीएम अंकिता शर्मा ने अपनी पावर का इस्तेमाल आम जनता की सेवा के लिए किया।
वर्दी सिर्फ सेवा के लिए है, अहंकार के लिए नहीं – यह उन्होंने साबित कर दिया।
करीना देवी की आंखों में आंसू थे, लेकिन अब उनमें डर नहीं, सम्मान था।
अंकिता ने करीना देवी से कहा, “मां जी, अब आपको कोई डर नहीं। यह बाजार अब आपका है।”

जनता ने अंकिता शर्मा को धन्यवाद दिया। मीडिया ने इसे ‘जिले का सबसे बड़ा न्याय’ बताया।
अंकिता ने कहा, “जब तक मैं डीएम हूं, गरीबों पर कोई जुल्म नहीं होगा।”

अध्याय 10: बदलाव की लहर

इस घटना के बाद पूरे जिले में पुलिसिया भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी गई।
अंकिता ने हर थाने में शिकायत पेटी लगवाई, जनता को सीधा डीएम से संपर्क करने की सुविधा दी।
पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी गई – “अब वर्दी का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं।”

करीना देवी जैसी सैकड़ों गरीब महिलाओं को सहायता मिली।
अंकिता ने अपने अधिकारियों से कहा, “हमारा कर्तव्य है सेवा, न कि डर पैदा करना।”

अध्याय 11: समाज का बदलाव

शहर के बच्चों ने अंकिता शर्मा की कहानी स्कूल में सुनाई।
“डीएम अंकिता शर्मा ने हमें सिखाया कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना चाहिए।”

हर बाजार, हर गली में लोग अब पुलिस से डरने के बजाय कानून पर भरोसा करने लगे।
अंकिता ने एक नई मिसाल कायम की – “अधिकार का मतलब जिम्मेदारी है, तानाशाही नहीं।”

अध्याय 12: परिवार की सीख

अंकिता शर्मा ने अपनी मां को फोन किया।
“मां, आज मैंने आपके दिए संस्कारों को सच किया। गरीबों के लिए लड़ना, सही के लिए डटना – यही मेरी असली जीत है।”

मां ने कहा, “बेटी, तूने वर्दी को इज्जत दी। समाज को न्याय दिया।”

अध्याय 13: अंत नहीं, शुरुआत

डीएम अंकिता शर्मा की कहानी पूरे राज्य में चर्चा का विषय बन गई।
सरकार ने उन्हें ‘जनसेवा सम्मान’ से नवाजा।
करीना देवी ने अपनी दुकान का नाम रखा – “न्याय का ठेला”।

अंकिता ने मुस्कराते हुए कहा, “जब तक मैं यहां हूं, हर गरीब को उसका हक मिलेगा।”

समापन

यह कहानी सिर्फ अंकिता शर्मा की नहीं, हर उस इंसान की है जो अन्याय के खिलाफ लड़ता है।
वर्दी का असली सम्मान सेवा में है, सत्ता के दुरुपयोग में नहीं।
गरीबों की आवाज बनना, साहस से न्याय करना – यही असली अधिकारी की पहचान है।

समाप्त।

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