ट्रेन में चाय बेच रही पत्नी को देख पति फूट-फूट कर रो पड़ा!

दोस्तों, सोचिए अगर जिंदगी में वह पल आ जाए जब सबसे प्यारा रिश्ता पति और पत्नी का रिश्ता समय की मार झेलते झेलते एक अजनबी जैसा हो जाए और अचानक सालों बाद भीड़ भरी ट्रेन में दोनों की नजरें मिले। एक पत्नी चाय के गिलास थामे इधर-उधर पुकार रही हो और पति उसे देखकर टूट कर रो पड़े। यह सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि इंसानी जज्बातों की वह परत है जो शायद आपको भीतर तक हिला दे।

बरसात का मौसम था। दिल्ली से हावड़ा जाने वाली ट्रेन की सिटी ने पूरे प्लेटफार्म को जैसे झकझोर दिया। लोग हड़बड़ी में डिब्बों की ओर भाग रहे थे। हर कोई अपने सफर और मंजिल में डूबा हुआ था। उसी भीड़ के बीच एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा था, अजय। उसके चेहरे की थकान उसकी आंखों से साफ झलक रही थी। नौकरी की परेशानियां, जिंदगी की उधेड़बुन और सालों पुरानी यादें उसे भीतर ही भीतर खा रही थीं।

ट्रेन चल पड़ी थी। अजय ने खिड़की से बाहर झांक कर एक लंबी सांस ली। हवा के झोंके से उसे लगा जैसे कोई पुरानी याद फुसफुसाकर उसके कानों में लौट आई हो। उसकी आंखें बंद हुईं और उसके दिमाग में एक चेहरा तैर गया, मीरा – उसकी पत्नी। मीरा से उसका रिश्ता अब रिश्ता कम और बोझ ज्यादा बन गया था। कभी दोनों की हंसी-ज़ाक से भरी जिंदगी अब झगड़ों और खामोशी का सिलसिला बन चुकी थी। पैसों की कमी, घर की जिम्मेदारियां और छोटी-छोटी गलतफहमियां रिश्ते में जहर घोल चुकी थीं।

सालों पहले मीरा ने गुस्से में अजय का घर छोड़ दिया था। अजय ने भी अपनी जिद में उसे रोकने की कोशिश नहीं की। उसे लगा कुछ दिन की बात है, वह लौट आएगी। मगर वह दिन कभी नहीं आया। मीरा अपने मायके चली गई थी और उसके बाद दोनों की दुनिया अलग हो गई।

ट्रेन की खटरपटर आवाजें अजय को जैसे अतीत में खींच रही थीं। हर पहिया जैसे एक दर्दनाक याद को जगा रहा था। उसने अपने मन ही मन बुदबुदाया, काश मैंने उस दिन उसे रोक लिया होता। काश मैंने अपना अहंकार छोड़कर बस एक बार कह दिया होता कि मत जाओ मीरा, मुझे तुम्हारी जरूरत है।

अचानक ट्रेन एक छोटे से स्टेशन पर रुकी। गर्म चाय की खुशबू हवा में तैर गई। कुछ आवाजें आईं, चाय चाय गर्म चाय। अजय ने अनमने ढंग से खिड़की से बाहर देखा। एक महिला साड़ी में सिर पर हल्का पल्लू डाले, ट्रे में चाय के गिलास लिए डिब्बे-डिब्बे घूम रही थी। उसकी आवाज थकी हुई थी, लेकिन उसमें मजबूरी और हिम्मत का एक अजीब मेल था। अजय ने पहले तो ध्यान नहीं दिया। लेकिन जैसे ही वह महिला उसके डिब्बे में दाखिल हुई, उसकी नजरें उस पर टिक गईं। उसका दिल जैसे धड़कना भूल गया, वह महिला और कोई नहीं मीरा थी।

सालों बाद इस हाल में चाय बेचती हुई उसे देखकर अजय का दिल चीर गया। वो अवाक रह गया। उसके होंठ कांपने लगे, आंखों से आंसू फूट पड़े। मीरा ने जैसे ही उसकी तरफ नजर डाली, उसकी आंखें भी भर आईं। लेकिन उसने तुरंत अपना चेहरा फेर लिया जैसे वह इस मुलाकात को अनदेखा करना चाहती हो। अजय का पूरा शरीर कांप रहा था। उसके दिल में सैकड़ों सवाल थे, यह कैसे हुआ? मीरा यहां चाय क्यों बेच रही है? उसकी जिंदगी इस मोड़ पर कैसे आ गई? और मैंने क्यों कभी उसके दर्द को समझने की कोशिश नहीं की?

ट्रेन आगे बढ़ रही थी। भीड़ भरे डिब्बे में शोर-शराबा था। लेकिन अजय और मीरा के बीच एक खामोश तूफान चल रहा था। उनकी आंखें मिलतीं और फिर छिप जातीं। अजय अब फूट-फूट कर रो रहा था। उसके आंसू किसी बच्चे की तरह निकल रहे थे।

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