तलाकशुदा पत्नी से बेटा छीनने आया वकील पति… लेकिन अदालत में जो हुआ उसने सबको रुला दिया
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तलाकशुदा पत्नी से बेटा छीनने आया वकील पति… लेकिन अदालत में जो हुआ उसने सबको रुला दिया
उत्तर प्रदेश के फैमिली कोर्ट की एक सुबह किसी भी आम दिन की तरह शुरू हुई थी। लेकिन उस दिन की कहानी हर किसी के दिल को छू जाने वाली थी। कोर्ट के बाहर सफेद साड़ी में लिपटी आरती अपनी वकील निधि से बात कर रही थी। उसके हाथ कांप रहे थे, लेकिन आंखों में एक अजीब सी दृढ़ता थी। वहीं दूसरी तरफ काली कोट में करण अपने साथी वकीलों से घिरा हुआ आत्मविश्वास से भरा खड़ा था। दोनों के बीच की दूरी सिर्फ चंद कदमों की थी, लेकिन उनके रिश्ते में आई दरार मीलों लंबी हो चुकी थी।
आरती ने अपनी वकील निधि से कहा, “मैडम, मुझे नहीं पता कि आज क्या होगा। लेकिन मैं अपने बेटे के बिना नहीं जी सकती। विवान मेरी जान है। मेरे जीने की वजह है।” निधि ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “आरती जी, हिम्मत रखिए। सच्चाई और मां की ममता से बड़ी कोई ताकत नहीं होती।”
इस बीच, करण अपने वकील दोस्त राजीव से बोल रहा था, “देखो राजीव, मैंने सब कागजात तैयार कर लिए हैं। मेरी सैलरी स्लिप, बैंक स्टेटमेंट, प्रॉपर्टी के कागजात सब कुछ अदालत को दिखाना होगा कि मैं विवान को बेहतर भविष्य दे सकता हूं।”
कोर्ट रूम नंबर पांच का दरवाजा खुला और दोनों पक्षांतर दाखिल हुए। जज साहब जस्टिस शर्मा एक अनुभवी और संवेदनशील व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने 25 साल के करियर में कई परिवारों को टूटते और जुड़ते देखा था। उनकी नजर पहले आरती पर पड़ी, जो घबराई हुई लेकिन दृढ़ दिख रही थी। फिर करण पर, जो पूरे आत्मविश्वास से भरा था। जज साहब ने केस की फाइल खोली और पढ़ना शुरू किया। केस नंबर 2457, 2024 आरती बनाम करण, बच्चे की कस्टडी का मामला।
करण का वकील राजीव पहले खड़ा हुआ और बोला, “माय लॉर्ड, मेरे मुकिल श्री करण शर्मा एक सफल वकील हैं जिनकी मासिक आय ₹1 लाख है। उनके पास अपना घर है, गाड़ी है और विवान के भविष्य के लिए पर्याप्त बचत है। वहीं दूसरी तरफ श्रीमती आरती के पास कोई स्थाई आय का स्रोत नहीं है। वह अपने माता-पिता के घर में रह रही हैं। ऐसे में विवान का भविष्य करण जी के साथ ही सुरक्षित हो सकता है।” राजीव ने एक के बाद एक कागजात जज के सामने रखे – बैंक स्टेटमेंट्स, प्रॉपर्टी के कागजात, विवान के लिए खोले गए एजुकेशन फंड के दस्तावेज।
आरती की वकील निधि खड़ी हुई और बोली, “माय लॉर्ड, क्या पैसा ही सब कुछ है? क्या एक बच्चे के लिए सिर्फ बैंक बैलेंस और प्रॉपर्टी ही मायने रखती है? मैं कोर्ट के सामने कुछ तथ्य रखना चाहूंगी। श्री करण शर्मा ने पिछले दो सालों में विवान से मिलने की सिर्फ पांच बार कोशिश की है। वह अपने काम में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने बेटे के स्कूल का नाम तक नहीं पता। विवान की पसंदीदा डिश क्या है? उसका पसंदीदा कार्टून कौन सा है? उसके बेस्ट फ्रेंड का नाम क्या है? इनमें से किसी भी सवाल का जवाब श्री करण नहीं दे सकते।”
करण अपनी कुर्सी पर बेचैन हो गया। उसे याद आया कि पिछली बार जब विवान से मिला था, तो उसने पूछा था, “पापा, आप मेरे बर्थडे पर क्यों नहीं आए?” और उसके पास कोई जवाब नहीं था सिवाय इसके कि “बेटा, पापा को एक जरूरी केस था।”
राजीव ने फिर से अपनी बात रखी, “माय लॉर्ड, श्री करण अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं रहे। वह हर महीने बच्चे के खर्च के लिए ₹10,000 भेजते हैं। उन्होंने विवान के नाम से फिक्स डिपॉजिट करवाई है। यह सब एक जिम्मेदार पिता के लक्षण हैं।”
आरती अब अपनी जगह से खड़ी हो गई। जज ने उसे बैठने का इशारा किया, लेकिन उसने अनुरोध किया, “माय लॉर्ड, क्या मैं कुछ कह सकती हूं?” जज ने सिर हिलाकर अनुमति दी। आरती की आवाज कांप रही थी, लेकिन उसके शब्दों में मां की पूरी ताकत थी। “जज साहब, मैं मानती हूं कि मेरे पास बड़ा घर नहीं है, गाड़ी नहीं है, बैंक बैलेंस नहीं है। लेकिन जब विवान को रात में बुखार आता है तो मैं पूरी रात उसके सिर पर पट्टी रखकर बैठी रहती हूं। जब वह स्कूल से रोता हुआ आता है क्योंकि किसी ने उसे परेशान किया तो मैं उसे गले लगाकर समझाती हूं। जब वह अपने पापा को याद करता है तो मैं ही उसे समझाती हूं कि पापा व्यस्त हैं लेकिन वह उससे प्यार करते हैं।”
आरती ने आगे कहा, “जज साहब, करण ने मुझे छोड़ा इसलिए नहीं कि मैंने कोई गलती की थी, बल्कि इसलिए कि उन्हें लगा कि मैं उनके स्टेटस के हिसाब से नहीं हूं। जब वह हाई कोर्ट में वकील बन गए तो एक साधारण ग्रेजुएट पत्नी उनकी शान के खिलाफ लगने लगी। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि जब वह लॉ की पढ़ाई कर रहे थे तब मैंने ट्यूशन पढ़ाकर घर चलाया था। जब वह रात भर पढ़ते थे तो मैं उनके लिए चाय बनाती रहती थी। लेकिन मैं इन सब बातों को लेकर कोई शिकायत नहीं करना चाहती। मैं सिर्फ इतना चाहती हूं कि मेरा बेटा मेरे साथ रहे।”
करण का चेहरा लाल हो गया। वह खड़ा हुआ और बोला, “माय लॉर्ड, यह सब इमोशनल ब्लैकमेलिंग है। अदालत को तथ्यों पर फैसला करना चाहिए, भावनाओं पर नहीं। मैं विवान को बेस्ट स्कूल में पढ़ा सकता हूं। उसे विदेश में हायर एजुकेशन दिला सकता हूं। क्या आरती यह सब कर सकती है?” उसकी आवाज में अहंकार साफ झलक रहा था। “मैं अपने बेटे से प्यार करता हूं और उसे वह सब कुछ दे सकता हूं जिसकी उसे जरूरत है।”
निधि ने तुरंत जवाब दिया, “माय लॉर्ड, श्री करण कहते हैं कि वह विवान को सब कुछ दे सकते हैं। लेकिन क्या वे उसे वह समय दे सकते हैं जो एक बच्चे को अपने माता-पिता से चाहिए? पिछले साल विवान के स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग हुई थी। करण जी नहीं आए। विवान के स्पोर्ट्स डे पर वह नहीं आए। यहां तक कि जब विवान को डेंगू हुआ था और वह 15 दिन हॉस्पिटल में भर्ती था तब भी करण जी सिर्फ दो बार मिलने आए।”
जज शर्मा ने करण की तरफ देखा और पूछा, “क्या यह सच है श्री करण?” करण ने जवाब दिया, “माय लॉर्ड, मैं एक व्यस्त वकील हूं। मेरे क्लाइंट्स मुझ पर निर्भर करते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अपने बेटे से प्यार नहीं करता।”
जज ने कहा, “श्री करण, कोर्ट समझता है कि आप व्यस्त हैं। लेकिन क्या आपके क्लाइंट्स आपके बेटे से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं?” इसी बीच कोर्ट रूम का दरवाजा खुला और एक कोर्ट स्टाफ ने अंदर आकर कहा, “माय लॉर्ड, बच्चा विवान आ गया है।” जज ने विवान को अंदर बुलाने का आदेश दिया।
सात साल का विवान अपनी नानी का हाथ पकड़े डरा सहमा सा अंदर आया। उसकी मासूम आंखें पहले अपनी मां को ढूंढ रही थी। जैसे ही उसने आरती को देखा, वह दौड़कर उसके पास गया और उससे लिपट गया। आरती ने उसे गले से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “बेटा, डरो मत। जज अंकल से बात करनी है बस।”
जज शर्मा ने बहुत ही नरम आवाज में विवान से पूछा, “बेटा, मुझे बताओ तुम किसके साथ रहना चाहते हो?” विवान ने अपनी मां का हाथ कसकर पकड़ा और फिर जज की तरफ देखकर बोला, “जज अंकल, मैं मम्मा के साथ रहना चाहता हूं।”
करण ने तुरंत कहा, “माय लॉर्ड, बच्चे को प्रभावित किया गया है। आरती ने उसे सिखाया है यह कहने के लिए।” विवान ने अपने पापा की तरफ देखा और उसकी आंखों में आंसू आ गए। वह बोला, “पापा, आप हमेशा कहते थे कि आप मुझे लेने आओगे लेकिन कभी नहीं आए। मेरे बर्थडे पर भी नहीं आए। जब मैं बीमार था तब भी नहीं आए। मम्मा ने कहा था कि आप बिजी हो। लेकिन क्या आप इतने बिजी हो कि मेरे लिए टाइम ही नहीं है?” यह सुनकर पूरा कोर्ट रूम शांत हो गया। करण के पास कोई जवाब नहीं था।
जज ने विवान से और सवाल किए। “बेटा, तुम्हारी मम्मा तुम्हारे साथ क्या-क्या करती हैं?” विवान का चेहरा चमक उठा। “जज अंकल, मम्मा मेरे साथ होमवर्क करती हैं। मेरे साथ खेलती हैं। मुझे स्टोरी सुनाती हैं। जब मैं डर जाता हूं तो वह मेरे पास सो जाती हैं। वो मेरे लिए मेरा फेवरेट खाना बनाती हैं। और जब मैं पापा को मिस करता हूं तो वह मुझे समझाती हैं कि पापा मुझसे प्यार करते हैं।”
जज ने पूछा, “और पापा?” विवान चुप हो गया। फिर धीरे से बोला, “पापा अच्छे हैं लेकिन वह कभी मेरे पास नहीं होते। वह हमेशा फोन पर बात करते रहते हैं।”
जज ने विवान को वापस भेज दिया और फिर दोनों पक्षों की तरफ देखा। उन्होंने कहा, “मैं कोर्ट को 30 मिनट के लिए स्थगित करता हूं। इस दौरान मैं अपने चेंबर में दोनों पक्षों से अलग-अलग मिलना चाहूंगा।” पहले करण को बुलाया गया। जज ने उससे पूछा, “श्री करण, मैं आपसे एक सीधा सवाल पूछना चाहता हूं। अगर विवान आपके साथ रहेगा तो क्या आप अपनी प्रैक्टिस कम करेंगे? क्या आप उसके साथ समय बिताएंगे?” करण ने जवाब दिया, “सर, मैं एक आया रख लूंगा। वह विवान का ख्याल रखेगी। मैं उसे बेस्ट बोर्डिंग स्कूल में डाल दूंगा।”
जज ने कहा, “तो आप उसे अपने से और दूर करना चाहते हैं। श्री करण, बच्चे को आया या बोर्डिंग स्कूल नहीं, माता-पिता का प्यार चाहिए।” करण ने तर्क दिया, “लेकिन सर, आरती के पास कोई इनकम नहीं है। वह विवान का भविष्य कैसे संवारेगी?”
इसके बाद आरती को बुलाया गया। जज ने पूछा, “आरती जी, करण सही कह रहे हैं। आपके पास कोई स्थाई आय नहीं है। आप विवान की परवरिश कैसे करेंगी?” आरती ने जवाब दिया, “जज साहब, मैंने बीएड किया है। मैं एक स्कूल में टीचर की नौकरी के लिए अप्लाई कर चुकी हूं। जल्द ही मुझे नौकरी मिल जाएगी और तब तक मेरे माता-पिता मेरा साथ दे रहे हैं। वह विवान से बहुत प्यार करते हैं। मैं विवान को शायद महंगे खिलौने या विदेशी ट्रिप्स नहीं दे सकूं। लेकिन मैं उसे अच्छे संस्कार, अच्छी शिक्षा और भरपूर प्यार दे सकती हूं।”
जज वापस कोर्ट रूम में आए। उन्होंने दोनों पक्षों के वकीलों से आखिरी दलीलें सुनी। राजीव ने फिर से करण की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी पर जोर दिया। वहीं निधि ने विवान की इमोशनल जरूरतों और मां के साथ उसके बॉन्ड की बात की।
अंत में जज ने अपना फैसला सुनाने के लिए खड़े हुए। पूरे कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया। “यह कोर्ट दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा है कि बच्चे के सर्वोत्तम हित में यह होगा कि वह अपनी मां आरती के साथ रहे। कोर्ट का मानना है कि एक बच्चे के लिए सिर्फ आर्थिक सुरक्षा ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा और प्यार भी उतना ही जरूरी है। श्रीमती आरती ने साबित किया है कि वह एक जिम्मेदार और प्यार करने वाली मां है जो अपने बेटे के लिए हर संभव त्याग करने को तैयार है।”
जज ने आगे कहा, “हालांकि कोर्ट यह भी मानता है कि श्री करण विवान के पिता हैं और उन्हें अपने बेटे से मिलने का पूरा अधिकार है। इसलिए कोर्ट आदेश देता है कि श्री करण हर दूसरे वीकेंड पर विवान से मिल सकते हैं और स्कूल की छुट्टियों में विवान को अपने साथ रख सकते हैं। साथ ही श्री करण को हर महीने विवान के खर्च के लिए ₹10,000 देने होंगे।”
करण का चेहरा उतर गया। उसे अपनी हार स्वीकार करना मुश्किल हो रहा था। उसने कहा, “श्री करण, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं। आप एक सफल वकील हैं। लेकिन पिता होना सिर्फ बच्चे के लिए पैसे कमाना नहीं है। पिता वो होता है जो अपने बच्चे के आंसू पोंछे, उसके साथ खेले, उसकी छोटी-छोटी खुशियों में शामिल हो। आपके पास अभी भी मौका है। विवान अभी छोटा है। अगर आप चाहें तो उसके जीवन में एक अच्छे पिता की भूमिका निभा सकते हैं।”
आरती की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे। वह जज के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गई। करण ने एक गहरी सांस ली और फिर कुछ अप्रत्याशित किया। वह आरती के पास गया और बोला, “आरती, मुझे माफ कर दो। मैं अपनी महत्वाकांक्षा में इतना खो गया कि मैं भूल गया कि असली खुशी क्या होती है। तुम सही कह रही थी। मैंने विवान के साथ समय नहीं बिताया। मैं एक बुरा पति था और एक बुरा पिता भी। लेकिन मैं बदलना चाहता हूं। क्या तुम मुझे एक मौका दोगी?”
आरती ने विवान की तरफ देखा जो अपनी नानी के साथ बाहर खड़ा था। फिर उसने करण से कहा, “करण, मैं तुम्हें माफ कर देती हूं। लेकिन यह मौका तुम्हें विवान को देना होगा। अगर तुम सच में बदलना चाहते हो तो उसे साबित करो कि तुम एक अच्छे पिता बन सकते हो। वह तुम्हारा इंतजार कर रहा है।”
कोर्ट से बाहर निकलते वक्त विवान दौड़कर अपनी मां के पास आया। आरती ने उसे गोद में उठा लिया। करण ने धीरे से विवान के सिर पर हाथ रखा और कहा, “बेटा, पापा ने गलती की है। लेकिन अब पापा बदलेंगे। क्या तुम पापा को माफ कर दोगे?” विवान ने अपनी मासूम आंखों से अपने पापा को देखा और फिर मुस्कुराकर सिर हिला दिया। उसने अपनी छोटी सी बाहें फैलाईं और करण ने उसे गले से लगा लिया। यह पहली बार था जब करण की आंखों में आंसू थे।
उस दिन के बाद से करण ने अपना वादा निभाया। वह हर दूसरे वीकेंड विवान से मिलने आता। शुरुआत में विवान थोड़ा झिझकता था। लेकिन धीरे-धीरे पिता-पुत्र के बीच का रिश्ता मजबूत होने लगा। करण ने अपनी प्रैक्टिस कम कर दी और विवान के साथ ज्यादा समय बिताने लगा। वह उसके स्कूल के फंक्शंस में जाने लगा, उसके साथ क्रिकेट खेलने लगा और उसके होमवर्क में मदद करने लगा।
आरती ने भी एक स्कूल में टीचर की नौकरी पा ली। वह विवान को अच्छे संस्कार दे रही थी और उसकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रही थी। विवान एक खुशमिजाज और होनहार बच्चा बन रहा था। उसके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी क्योंकि अब उसके पास मां का प्यार भी था और पिता का साथ भी।
एक दिन विवान के स्कूल में पेरेंट्स डे था। पहली बार करण और आरती दोनों साथ में गए। टीचर ने कहा, “विवान बहुत लकी है कि उसके माता-पिता दोनों उसकी परवाह करते हैं। वह क्लास में सबसे अच्छा परफॉर्म कर रहा है।” यह सुनकर दोनों को बहुत खुशी हुई। विवान ने स्टेज पर एक कविता सुनाई जो उसने अपने माता-पिता के लिए लिखी थी। कविता में उसने लिखा था कि कैसे उसकी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है और उसके पापा अब दुनिया के सबसे अच्छे पापा बन रहे हैं।
समय बीतता गया और विवान बड़ा होता गया। सालों बाद जब वह कॉलेज जाने लगा तो उसने अपने दोस्तों से कहा, “मेरे माता-पिता अलग रहते हैं लेकिन उनका प्यार कभी अलग नहीं हुआ। मां ने मुझे जीना सिखाया और पापा ने सपने देखना। वह दोनों मेरे हीरो हैं।”
उस दिन की कोर्ट की कार्यवाही सिर्फ एक कस्टडी केस नहीं थी, बल्कि तीन जिंदगियों के लिए एक नया मोड़ थी। करण ने सीखा कि पिता होने का मतलब सिर्फ प्रोवाइडर होना नहीं, बल्कि एक दोस्त, एक गाइड और एक साथी होना है। आरती ने साबित किया कि मां की ममता किसी भी दौलत से बड़ी होती है। और विवान वह इस बात का जीता जागता सबूत बना कि जब माता-पिता अपने अहंकार को छोड़कर बच्चे की खुशी को प्राथमिकता देते हैं तो टूटे रिश्ते भी एक नया और खूबसूरत रूप ले सकते हैं।
उस फैमिली कोर्ट के फैसले ने सिर्फ विवान की कस्टडी तय नहीं की थी, बल्कि एक परिवार को यह सिखाया था कि प्यार कभी कोर्ट के आदेश से नहीं, बल्कि दिल से दिल के रिश्ते से तय होता है। और यही था इस कहानी का सबसे बड़ा सबक कि रिश्तों की असली नीव पैसा या पावर नहीं, बल्कि प्यार, समझदारी और एक दूसरे के लिए त्याग की भावना होती है।
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