“रास्ते में खाना लेने उतरी थी, ट्रेन निकल गई – अनजाने स्टेशन पर एक लड़के ने बदल दी किस्मत”

छूटी ट्रेन, अनजान स्टेशन और एक अनमोल दोस्ती: अंजलि और अर्जुन की कहानी

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क्या होता है जब किस्मत आपको आपकी आरामदायक दुनिया से निकालकर एक ऐसे अनजान स्टेशन पर अकेला छोड़ देती है, जहाँ ना कोई अपना होता है, ना कोई पहचान? क्या होता है जब आपकी ट्रेन आपके सपनों और मंज़िल के साथ आपकी आँखों के सामने से गुजर जाती है, और आप बस प्लेटफार्म पर खड़े रह जाते हैं?

यह कहानी है अंजलि की—दिल्ली की एक सुलझी हुई, जमीन से जुड़ी लड़की की। वह देश के मशहूर उद्योगपति श्री रमेश खन्ना की इकलौती बेटी थी, जिसकी जिंदगी किसी परीकथा से कम नहीं थी। उसके पास सब कुछ था, लेकिन दिल में सादगी और दूसरों के लिए अपनापन भी था।

गर्मियों की छुट्टियों में अंजलि अपने पुश्तैनी घर लखनऊ जा रही थी। आखिरी वक्त पर उसके माता-पिता को विदेश जाना पड़ा, तो अंजलि ने अकेले ही ट्रेन से सफर करने का फैसला किया। फर्स्ट क्लास एसी का टिकट, ढेर सारी हिदायतें और उसके सफर की शुरुआत हो गई।

ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। दोपहर के वक्त अंजलि को भूख लगी, और उसने सोचा कि अगले बड़े स्टेशन पर उतरकर कुछ अच्छा सा खाना ले लेगी। दिल्ली-लखनऊ के बीच एक छोटा सा स्टेशन था—रामगढ़। वहाँ अर्जुन नाम का एक बीस साल का लड़का अपनी छोटी सी चाय की दुकान चलाता था। उसकी दुनिया स्टेशन से शुरू होकर गाँव की कच्ची झोपड़ी तक जाती थी, जहाँ उसकी बीमार माँ और छोटी बहन राधा रहती थीं। अर्जुन खुद पढ़ना चाहता था, अफसर बनना चाहता था, लेकिन जिम्मेदारियों ने उसे दुकान तक सीमित कर दिया था।

उस दिन अंजलि की ट्रेन किसी तकनीकी खराबी के कारण रामगढ़ स्टेशन पर रुक गई। अंजलि ने प्लेटफार्म पर उतरकर अर्जुन की दुकान से दो समोसे और पानी की बोतल ली। तभी ट्रेन का हॉर्न बजा, और पल भर में ट्रेन चल पड़ी। अंजलि भागी, चिल्लाई, लेकिन ट्रेन उसकी आँखों के सामने से निकल गई। उसका सामान, फोन, पैसे—सब ट्रेन में रह गए। उसके पास बस कुछ रुपये, समोसे और पानी की बोतल थी। वह घबराकर प्लेटफार्म पर ही बैठ गई और रोने लगी।

अर्जुन ने उसकी बेबसी देखी। वह दौड़कर उसके पास आया और उसे दिलासा दिया। स्टेशन मास्टर से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि अगली ट्रेन सुबह आएगी। अर्जुन ने अंजलि को अपनी दुकान पर बैठाया, गर्म चाय दी और फिर उसे अपने घर चलने की सलाह दी, ताकि रात सुरक्षित गुज़र सके। अंजलि ने अर्जुन की सच्चाई और ईमानदारी देखी और हाँ कह दी।

अर्जुन ने अंजलि को अपनी छोटी सी झोपड़ी में ले गया, जहाँ उसकी माँ शारदा देवी और बहन राधा ने उसे अपनापन दिया। शारदा देवी ने अंजलि के सिर पर हाथ फेरा, राधा ने कपड़े दिए, और सबने मिलकर खाना खाया। अंजलि ने पहली बार इतना सादा, लेकिन इतना स्वादिष्ट खाना खाया। रात भर अंजलि और राधा ने सपनों की बातें कीं—राधा टीचर बनना चाहती थी, लेकिन पैसों की तंगी थी।

अगले दिन अर्जुन ने अपने बचाए हुए पैसों से बस का टिकट लिया और अंजलि को लखनऊ पहुँचाने का फैसला किया। रास्ते में अर्जुन ने खुद खाना नहीं खाया, ताकि अंजलि के लिए पैसे बचा सके। अंजलि समझ गई कि अर्जुन कितना नेकदिल है।

लखनऊ पहुँचकर अंजलि अपने आलीशान बंगले पहुँची। वहाँ उसका परिवार दो दिनों से परेशान था, सबने उसे गले लगा लिया। अंजलि ने पूरी कहानी सुनाई, और अर्जुन की इंसानियत ने सबका दिल जीत लिया। उसके पिता रमेश खन्ना ने अर्जुन को पैसे देना चाहा, लेकिन अर्जुन ने मना कर दिया। उसने कहा—यह मेरा फर्ज था।

रमेश खन्ना ने अर्जुन की पढ़ाई, उसकी बहन की पढ़ाई और माँ के इलाज का जिम्मा ले लिया। रामगढ़ स्टेशन पर अर्जुन के नाम से एक बड़ा रेस्टोरेंट और जनरल स्टोर खुलवाया गया, जिससे गाँव के लोगों को रोजगार मिला।

पाँच साल बाद, अर्जुन एक बड़ा अफसर बन गया। उसकी बहन राधा टीचर बन गई, माँ स्वस्थ हो गई, और गाँव की तस्वीर बदल गई। अंजलि भी अपने पिता का बिज़नेस सँभालने लगी। उनकी दोस्ती अब सम्मान और अपनापन का रिश्ता बन गई।

यह कहानी हमें सिखाती है कि एक छोटी सी निस्वार्थ मदद किसी की पूरी दुनिया बदल सकती है। जब हम किसी के लिए अच्छा करते हैं, तो वह अच्छाई कई गुना होकर हमारे पास लौटकर आती है।

अगर अर्जुन की इंसानियत और अंजलि के परिवार की कृतज्ञता ने आपके दिल को छुआ है, तो इस कहानी को जरूर शेयर करें। नेकी और इंसानियत का यह संदेश हर किसी तक पहुँचे।