देखो पुलिस इंस्पेक्टर ने मिट्टी के बर्तन बेचने वाले बूढ़े आदमी के साथ क्या किया?
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मिट्टी के बर्तन बेचने वाले बूढ़े आदमी और पुलिस इंस्पेक्टर की कहानी
यह कहानी है एक बूढ़े आदमी हाजी करीम की, जो अपनी झुकी कमर और कमजोर शरीर के बावजूद मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता था। उसकी जिंदगी में गम का साया हमेशा मंडराता रहा। बरसों पहले उसकी बीवी बीमारी के चलते गुजर गई थी। फिर कुछ साल बाद उसका इकलौता बेटा एक हादसे में दुनिया छोड़ गया। इस हादसे ने हाजी करीम की कमर तोड़ दी। मगर वह अपने गम को दबाकर जिंदा रहे क्योंकि उनके बेटे की बेवा बहू जैनत और दो छोटे बच्चे हिना और अफान अब सिर्फ उन्हीं पर निर्भर थे।
हाजी करीम का संघर्ष
हाजी करीम दिन-रात मेहनत करता था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता और उन्हें बेचकर घर का खर्च चलाता। जैनत, जो बेहद खूबसूरत और हया दिल औरत थी, अपने बच्चों की परवरिश करती और घर संभालती। अपने शौहर की मौत के बाद वह अकेली हो गई थी, मगर हाजी करीम की छांव में उसने कभी अकेलापन महसूस नहीं किया।
लेकिन उनके पड़ोस में एक पुलिस इंस्पेक्टर अनीला शाह रहती थी। अनीला शाह सख्त मिजाज और घमंडी औरत थी। वह अपनी वर्दी का धौंस दिखाकर गरीबों को दबाती थी। उसका भाई रशीद एक शराबी और आवारा लड़का था। वह रात को गलियों में झूमता, लड़कियों को छेड़ता और स्कूल के सामने बदतमीजी करता। गांव वाले उससे तंग थे, मगर अनीला शाह की वजह से कोई उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाता था।
रशीद की बुरी नजरें
रशीद की नजरें अब जैनत पर थीं। वह चोरी-चोरी उसे घूरता और इशारे करता, मगर जैनत चुप रहती क्योंकि गांव वाले उसका साथ नहीं देते। एक दिन रशीद ने हद पार कर दी। वह नशे में धुत होकर जैनत के घर का टूटा-फूटा दरवाजा लात मारकर तोड़ दिया और अंदर घुस गया। उसने जैनत के साथ बदतमीजी करने की कोशिश की। जैनत डर कर रोने लगी और अल्लाह का वास्ता देकर उसे छोड़ने की गुहार लगाई।
जैनत ने गुस्से में रशीद को धक्का दिया और अपने बच्चों को अंदर ले जाकर दरवाजा बंद कर लिया। तभी बाहर से लौट रहे हाजी करीम ने यह सब देख लिया। उनका खून खौल उठा। कांपते कदमों से वह रशीद की तरफ बढ़े और उसके मुंह पर जोरदार थप्पड़ मारते हुए गरज कर बोले, “तुझे शर्म नहीं आती? यह मेरी बहू है। मेरे बेटे की अमानत। अगर दोबारा इस तरफ नजर डाली, तो यह मेरा बुढ़ापा तुझे कब्र में उतार देगा। हम गरीब जरूर हैं, मगर गरीबों के पास सिर्फ इज्जत होती है और तूने उसी पर हाथ डालने की कोशिश की।”
पुलिस थाने में अपमान
रशीद ने गुस्से में हाजी करीम को धमकी दी, “बाबा, तेरी बहू पर अब मेरा हक है। देखना, एक दिन उसे मेरे कदमों में झुकना ही पड़ेगा। तेरी तो टांगे कब्र में हैं। आखिरकार आज ना सही, कल तू मर ही जाएगा। फिर यह अकेली क्या करेगी?”
यह सुनकर हाजी करीम कांप उठे और सीधा थाने की तरफ गए ताकि रिपोर्ट दर्ज करा सकें। मगर वहां मौजूद सिपाही हंसने लगे। उन्होंने कहा, “बाबा जी, रशीद हमारा खास आदमी है। उस पर इल्जाम लगाते हो, तुम्हें शर्म नहीं आती। तुम्हारी अपनी बहू ही इसके साथ आंख मटका करती होगी। जाओ अपनी उम्र देखो और घर बैठो। हमें और काम है।”
हाजी करीम की आंखों में आंसू भर आए। उन्होंने दिल ही दिल में कहा, “या अल्लाह, यह कैसा इंसाफ है? जालिम आजाद फिरते हैं और मजलूम को आवाज उठाने की इजाजत भी नहीं।”
वकार अहमद की एंट्री
थाने से बाहर निकलते ही हाजी करीम की मुलाकात नए थानेदार वकार अहमद से हुई। वकार अहमद ने उनकी फरियाद सुनी और पहली बार किसी के चेहरे पर यकीन की झलक नजर आई। वकार ने कहा, “बाबा जी, आप फिक्र ना करें। सच छुपता नहीं। मैं आपको इंसाफ दिलाकर रहूंगा।”
यह सुनकर हाजी करीम को कुछ सुकून मिला। मगर दूसरी तरफ जैसे ही रशीद को खबर मिली कि नया अफसर उसके खिलाफ खड़ा हो गया है, उसने अपनी बहन अनीला शाह से मदद मांगी।
अनीला शाह की साजिश
अनीला शाह ने रशीद को भरोसा दिलाया कि वह सब संभाल लेगी। उसने अपने साथी अकरम को बुलाया और कहा, “अकरम, कल हाजी करीम की रेहड़ी में घड़े लादने हैं। बस उनमें नशा छुपा देना। बाकी तमाशा मैं कर लूंगी।”
अकरम ने रात को हाजी करीम के घर में दबे पांव घुसकर कुछ घड़ों में नशे के पैकेट रख दिए और ऊपर से मिट्टी से सील कर दिया। बूढ़े को खबर भी ना हुई कि उसकी मेहनत का सहारा अब उसकी बर्बादी का सामान बन चुका है।
हाजी करीम पर इल्जाम
अगली सुबह हाजी करीम ने हमेशा की तरह अपनी रेहड़ी पर घड़े लादे और गली में आवाज लगाने लगे, “मिट्टी के बर्तन ले लो। पकी मिट्टी के उम्दा घड़े ले लो।” मगर आज लोगों का जवाब अलग था। सब चुपचाप देख रहे थे और आपस में फुसफुसा रहे थे, “यही वह घड़े हैं जिनमें नशा आता है।”
कुछ ही देर में पुलिस की जीप गली में दाखिल हुई। अनीला शाह ने सिपाहियों को हुक्म दिया कि सारे घड़े तोड़ दिए जाएं। जब तीसरे घड़े से नशे के पैकेट बाहर गिरे, तो भीड़ हक्का-बक्का रह गई।
हाजी करीम की बेगुनाही
हाजी करीम रोते हुए बोले, “यह सब झूठ है। यह नशा मेरा नहीं। यह कोई सोची-समझी साजिश है।” मगर किसी ने उनकी एक ना सुनी। अनीला शाह ने उन्हें थप्पड़ मारा और उनकी रेहड़ी उलट दी।
वकार अहमद का इंसाफ
वकार अहमद ने मामले की जांच शुरू की। उन्होंने एक बच्चे से गवाही ली, जिसने देखा था कि रात को अकरम ने घड़ों में नशा रखा था। इसके अलावा वकार ने मिट्टी के टुकड़े पर रशीद के हाथ का निशान पाया।
अगले दिन वकार ने थाने में रशीद को गिरफ्तार कर लिया। रशीद ने नशे में सच उगल दिया कि यह सब उसकी और अनीला शाह की साजिश थी।
जालिमों का अंजाम
अनीला शाह और रशीद को गिरफ्तार कर लिया गया। अनीला शाह की वर्दी सबके सामने उतार दी गई। गांव वालों ने हाजी करीम से माफी मांगी।
सुखद अंत
कुछ हफ्तों बाद वकार अहमद ने जैनत से शादी कर ली। उन्होंने बच्चों को पढ़ाया और उनका भविष्य बनाया। हाजी करीम ने अपनी बाकी जिंदगी सुकून से बिताई और फिर एक दिन अल्लाह को प्यारे हो गए।
यह कहानी हमें सिखाती है कि जुल्म का अंजाम हमेशा बुरा होता है और अल्लाह मजलूम की दुआ जरूर सुनता है।
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