गर्भवती महिला नौकरी मांगने पहुँची, सामने था तलाकशुदा पति – फिर जो हुआ, सबकी आंखें नम कर गया

प्रिय पाठकों,
जरा सोचिए, जब जिंदगी हर मोर्चे पर आपको आजमाने लगे, तब एक औरत के हौसले कैसे मायने रखते हैं। यह कहानी है प्रिया की, जो आठ महीने की गर्भवती है, लेकिन हालात के आगे झुकने को तैयार नहीं। उसके चेहरे पर थकान की लकीरें हैं, आंखों में नींद से ज्यादा डर, और हाथ में एक पुराना बायोडाटा। बारिश से भीगी हुई प्रिया नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रही थी। हर जगह से उसे सिर्फ इनकार मिलता – “तुमसे काम नहीं होगा”, “घर जाओ, बच्चा संभालो”। लेकिन प्रिया की हिम्मत हार मानने वाली नहीं थी।

नई उम्मीद की किरण

एक दिन, जब ठंडी हवा और बारिश की बूंदों ने उसके पुराने घर की खिड़कियों को कंपा दिया, प्रिया को एक बूढ़ी अम्मा मिली। अम्मा ने उसे एक बड़ी कंपनी का पता दिया – “मालिक सख्त है, पर अगर दिल छू जाए तो काम जरूर देगा।” अगले दिन, कांपते कदमों के साथ प्रिया उस कंपनी के गेट पर पहुँची। रिसेप्शन पार किया और मालिक के केबिन का दरवाजा खोला।
जैसे ही उसने सामने देखा, उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। सामने उसका तलाकशुदा पति विक्रम बैठा था – वही विक्रम जिसने कभी उसे प्यार से दुलार किया था, और वक्त बदलते ही बोझ समझकर छोड़ दिया था।

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टकराव और आत्मसम्मान

विक्रम ने हैरानी और ठंडेपन से पूछा, “तुम नौकरी इस हालत में?”
प्रिया ने सीधा जवाब दिया, “हां, क्योंकि मेरे पेट का बच्चा मोहताज नहीं होगा और मैं भी नहीं।”
विक्रम ने कंपनी के सख्त नियमों का हवाला दिया, लेकिन प्रिया ने साफ कह दिया – “मैं यहां बीवी बनकर नहीं, इंसान बनकर आई हूं। बस काम चाहिए।”
आखिरकार, विक्रम ने एक हफ्ते का ट्रायल दिया। प्रिया के लिए यह सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि अपनी इज्जत और आत्मसम्मान की लड़ाई थी।

मुश्किलों की परीक्षा

ऑफिस में हर नजर उसके पेट पर थी, लोग फुसफुसाते – “यह प्रेग्नेंट है, काम कैसे करेगी?”
लेकिन प्रिया ने खुद को साबित करने की ठान ली थी। पहले ही दिन उसने फाइलों का ढेर संभाल लिया, डाटा तैयार किया और विक्रम को प्रभावित किया।
दूसरे दिन उसे आउटडोर प्रोजेक्ट पर भेजा गया – तेज धूप, भारी पेट, लेकिन प्रिया रुकी नहीं। एक वर्कर ने कहा, “मैडम, बैठ जाइए।”
प्रिया ने मुस्कुरा कर जवाब दिया – “अगर मैं बैठ गई, तो मेरे बच्चे को कौन बताएगा कि उसकी मां हार मान गई थी।”

मेहनत का फल

इवेंट के दिन, प्रिया का काम देखकर क्लाइंट ने तारीफ की, तालियां बजीं। विक्रम के चेहरे पर गर्व की हल्की मुस्कान थी।
धीरे-धीरे ऑफिस में प्रिया की पहचान बनने लगी। एक बड़े प्रोजेक्ट की प्रेजेंटेशन जब किसी ने लेने से मना किया, प्रिया आगे आई। उसकी कहानी और आत्मविश्वास ने क्लाइंट को प्रभावित किया और कंपनी को करोड़ों की डील मिल गई।

रिश्तों की नई शुरुआत

एक दिन अचानक प्रिया को लेबर पेन हुआ। विक्रम उसे अस्पताल लेकर भागा। बेटे के जन्म के बाद विक्रम की आंखें भर आईं। उसने पहली बार महसूस किया कि प्रिया उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी ताकत है, बोझ नहीं।
कुछ हफ्ते बाद, विक्रम ने प्रिया को कंपनी की क्रिएटिव हेड बना दिया। लोग बोले – “यह तो पुराने रिश्ते की वजह से है” – लेकिन सच यह था कि प्रिया ने अपनी मेहनत से सबका दिल जीत लिया था।

प्यार, सम्मान और भरोसा

वक्त के साथ विक्रम ने प्रिया से फिर से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, लेकिन प्रिया ने साफ कहा – “शुरुआत करने के लिए माफी काफी नहीं होती, भरोसा चाहिए।”
एक तूफानी रात, जब बेटे को तेज बुखार आया, विक्रम ने बिना देर किए मदद की। प्रिया ने महसूस किया – सच्चा रिश्ता वही है जो मुश्किल वक्त में बिना बुलाए साथ खड़ा हो।

नई जिंदगी की ओर

कुछ महीनों बाद, एक सादी सी शादी हुई – ना कोई भव्यता, ना दिखावा, बस परिवार और एक नई शुरुआत।
प्रिया ने अपने आत्मसम्मान, मेहनत और हौसले से न सिर्फ अपनी जिंदगी बदली, बल्कि विक्रम और पूरे समाज को यह सिखाया कि औरत कभी बोझ नहीं, बल्कि हर रिश्ते की असली ताकत होती है।

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