“एएसपी मीना ठाकुर की बहादुरी – दिल्ली जेल का सच जिसने पूरे निज़ाम को हिला कर रख दिया।”
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भारत की राजधानी दिल्ली एक ऐसा शहर है जो बाहर से बहुत खूबसूरत और पुर अमन दिखाई देता है, मगर अंदर से उतना ही खतरनाक भी है। कहते हैं कि दिल्ली एक ऐसा शहर है जो कभी नहीं रुकता। इसी दिल्ली में शिवानी ठाकुर नाम की एसपी मैडम अपने ओहदे पर तैनात थीं। बाहर से नाजुक, शायस्ता और नरम मिजाज नजर आने वाली शिवानी ठाकुर दरअसल अंदर से बहुत मजबूत और सख्त दिल अफसर थीं। हर मुजरिम उनके नाम से कांपता था। लोग कहते थे कि अगर कोई शख्स बेकसूर भी हो, तब भी शिवानी ठाकुर का नाम सुनते ही उसके दिल में खौफ बैठ जाता और वह खुद अपने गुनाह कबूल कर लेता।
शिवानी ठाकुर एक छोटे से गांव से आई थीं। आंखों में बड़े ख्वाब लेकर निकली थीं और उन्होंने अपने ख्वाब पूरे भी किए। वह एक ऐसी खातून थीं जो हमेशा इंसाफ के लिए लड़ती थीं। उन्होंने कभी किसी के साथ नाइंसाफी नहीं की। हमेशा कमजोरों का साथ देती थीं और मजलूमों की मदद करती थीं। लेकिन उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि एक दिन उनकी जिंदगी में ऐसा मोड़ आने वाला है जो सब कुछ बदल देगा।
एक दिन की बात है। एसपी मैडम अपने दफ्तर के केबिन में बैठी चाय पी रही थीं। चाय पीते हुए वह अखबार की सर्खियों पर नजर डाल रही थीं। तभी वहां रामू नाम का एक सिपाही आया। रामू जो तिहाड़ जेल में बावर्ची के तौर पर काम करता था, घबराहट में बोला, “मैडम, हमारे जेल में कुछ ठीक नहीं चल रहा।”
शिवानी ने चौंक कर पूछा, “रामू, तुम कहना क्या चाहते हो? साफ-साफ बताओ।” रामू ने लरजती आवाज में कहा, “मैडम, हमारी महिला तिहाड़ जेल में खवातीन कैदी महफूज़ नहीं हैं। उनका इस्तेहसाल हो रहा है। उनके साथ गलत बर्ताव किया जा रहा है।”
शिवानी ने हैरत से कहा, “रामू, होश में तो हो? तुम्हें मालूम है तुम कितनी संगीन बात कर रहे हो?” रामू बोला, “जी मैडम, मैं होश में हूं। जो कह रहा हूं सच है।” शिवानी ने सख्त लहजे में पूछा, “कौन है जो ऐसा कर रहा है?” रामू ने धीरे से कहा, “मैडम, वही पुलिस वाले जो दिन में तो जेल की निगरानी करते हैं, मगर दिन के दूसरे हिस्से में कायदी खवातीन के साथ गलत सुलूक करते हैं।”
शिवानी ने संजीदगी से कहा, “रामू, तुम्हें पता है तुम कितना बड़ा इल्जाम लगा रहे हो? क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है?” रामू बोला, “नहीं मैडम, मगर मैंने यह सब अपनी आंखों से देखा है। अगर मैं आवाज उठाता तो वही लोग मेरे साथ भी वैसा ही सुलूक करते। इसलिए मैंने हिम्मत नहीं की। मैं सिर्फ आपसे इंसाफ की उम्मीद लेकर आया हूं।”
यह सुनकर एसपी शिवानी ठाकुर के चेहरे का रंग बदल गया। उनके अंदर गुस्सा भी था और दर्द भी। शिवानी को यह बात बिल्कुल भी कबूल नहीं थी कि किसी भी खातून के साथ नाइंसाफी हो। और जैसा कि मैंने आपको बताया था, शिवानी ठाकुर वो खातून थीं जो नाइंसाफी के खिलाफ हमेशा तैयार रहती थीं।
शिवानी ने रामू से कहा, “रामू, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कि आपने यह खबर मुझे दी।” फिर उन्होंने पूछा, “एक बात बताओ, जब मैं पिछले दौरे पर उस जेल में आई थी तो मुझे यह बात क्यों नहीं बताई गई?” रामू ने खौफदा लहजे में जवाब दिया, “मैडम, वहां के जितने पुलिस वाले हैं, वह सब कैदी खवातीन को धमकाते हैं। वो कहते हैं कि अगर तुमने हमारे खिलाफ कुछ कहा तो तुम्हारा भला नहीं होगा। हम तुम्हारे साथ इतना बुरा सुलूक करेंगे कि तुमने सोचा भी ना होगा।” यही बातें करके वह खवातीन को डराते हैं।

शिवानी ने कहा, “रामू, तुम्हारा बहुत शुक्रिया। तुमने हिम्मत करके जो बात बताई उसकी मैं कदर करती हूं। मैं कोशिश करूंगी कि हुकूमत से तुम्हारे लिए कुछ एतराफ या इनाम भी हासिल करूं।” फिर शिवानी ने संजीदगी से पूछा, “बताओ रामू, यह बदसलूकी कब होती है?” रामू ने बताया, “जब दिन भर के काम के बाद पुलिस वाले थक जाते हैं तो वह दिन के वक्त ही कैदी खवातीन के केबिन के पास जाते हैं, जहां सब खवातीन अपनी सजा काट रही होती हैं, और वहां उनके साथ गलत सुलूक किया जाता है।”
शिवानी ने कहा, “ठीक है रामू, तुम जाओ और मुझे हर छोटी बड़ी बात बताते रहना। मैं आज ही दिन में जेल का मुआयना करने आ रही हूं।” शिवानी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था। आखिर खवातीन के साथ ऐसा क्यों होता है? क्यों हर बार खवातीन को ही झुकना पड़ता है? लोग कहते हैं कि औरत का जीवन बहुत कठिन होता है। अगर कोई खातून गलती करती है तो पूरा समाज उसके खिलाफ खड़ा हो जाता है। कोई साथ नहीं देता, मगर वह भी एक इंसान है। उसे भी सहारे की जरूरत होती है। और उसी वजह से दूसरी खवातीन ही उसे समझती हैं। शिवानी भी उन खवातीन का दर्द समझती थीं। इसीलिए वह अक्सर जेल जाती रहती थीं।
उसी दिन जब शिवानी जेल का मुआयना करने पहुंची तो बैरूनी तौर पर सब कुछ ठीक नजर आ रहा था। मगर अंदर क्या हो रहा था, वो सिर्फ कैदी खवातीन जानती थीं। शिवानी ने तमाम कैदियों से बात करने की कोशिश की, मगर कोई भी खुलकर बात करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। न कोई इशारा कर रहा था, न कोई कुछ बताने की कोशिश कर रहा था। शिवानी समझ गई थीं कि यह लोग खुद से बात नहीं खोलेंगे।
अगले दिन वह अपने केबिन में बैठकर सोचने लगीं, आखिर यह जालिम लोग कैसे बेनकाब किए जाएं? कौन से तरीके अपनाए जाएं ताकि वह पुलिस वाले सामने आ जाएं जो खवातीन कैदियों का इस्तेहसाल करते हैं और उनका फायदा उठाते हैं। शिवानी ने फैसला किया कि अगर पर्दाफाश करना है तो उसे खुद बहुत सोच-समझकर और प्लान के साथ करना होगा। जहां अगर कोई कैदी किसी कगदी को नुकसान पहुंचा दे तो भी अक्सर माफ कर दिया जाता है और अगर कोई पुलिस वाला किसी कैदी पर जुल्म करे तो वह भी छुप जाता है।
दोस्तों, दिन के 3:00 बजे के करीब शिवानी ठाकुर कैदियों के लिबास में जेल के अंदर पहुंची। वह सीधा उसी हिस्से में गई जहां खवातीन अपने केबिन में बंद थीं। बाहर कुछ पुलिस वाले बैठे थे। कुछ खवातीन से नचवा रहे थे। कुछ उनसे पांव दबवा रहे थे और कुछ उनके साथ बदसलूकी कर रहे थे।
जब एसपी मैडम ने यह सब देखा तो उनके दिल में गुस्सा और दुख दोनों भर गए। लेकिन उन्हें मालूम था कि अगर वह सच्चाई को बेनकाब करना चाहती हैं तो उन्हें सबूत जमा करने होंगे। वरना इंसाफ दिलाने के बजाय खुद ही मुश्किल में फंस जाएंगी। इसीलिए जब वह उस दिन जेल में दाखिल हुई तो अपने कपड़ों के कॉलर में एक छोटा सा खुफिया कैमरा और माइक छुपा कर ले गई।
जब वह कैदियों के दरमियान पहुंची तो एक पुलिस वाला उनके पास आया और बोला, “अरे तुम कौन हो? मैंने तुम्हें आज तक यहां नहीं देखा। तुम्हारा नाम क्या है?” शिवानी ने फौरन जवाब दिया, “साहब, मैं आज ही यहां लाई गई हूं। सुबह गिरफ्तार किया गया है।” पुलिस वाला बोला, “क्या जुर्म किया है तुमने?” शिवानी ने कहा, “मेरे ऊपर चोरी का इल्जाम है, लेकिन मैंने कुछ नहीं किया।”
यह सुनते ही दो-तीन पुलिस वाले जो पास खड़े थे, हंसने लगे और तंज से बोले, “सब यही कहते हैं कि हमने कुछ नहीं किया। तुम्हारा नाम क्या है?” शिवानी ने आहिस्ता से कहा, “मेरा नाम रुक्मणी है।” यह नाम सुनकर सब पुलिस वाले जोर-जोर से हंसने लगे, “अरे वाह, यह भी कोई नाम है।” फिर एक दरोगा बोला, “चलो रुक्मणी, मेरे पांव दबा दो। बहुत दुख रहे हैं।”
शिवानी ने सीधे लहजे में कहा, “साहब, मैं यहां सिर्फ अपनी सजा काटने आई हूं। अभी तक यह साबित नहीं हुआ कि मैंने कोई जुर्म किया है। मैं आपके पांव क्यों दबाऊं।” यह सुनकर दो दरोगा आगे बढ़े और बोले, “ज्यादा बातें मत करो। चुपचाप जो कहा जाए वो करो। अगर वैसा ना किया तो मैं तुम्हें ऐसे केबिन में ले जाऊंगा कि तुम वहां से बाहर निकलने के लायक ना रहोगी।”
यह धमकी सुनकर एसपी मैडम ने अटल अंदाज में जवाब दिया, “चाहे कुछ भी हो जाए, मैं यहां किसी के पांव दबाने नहीं आई हूं। मैं यहां अपनी सजा काटने आई हूं। मुझे झूठे इल्जाम में फंसाने की कोशिश मत करो। मैं किसी के पांव नहीं दबाऊंगी।” इसी मौके पर एक कैदी सामने आई और बोली, “बेटा, जो वह बोल रहे हैं वैसा कर दो। अगर ना करोगे तो वह तुमको बहुत जलील करेंगे, बहुत मारेंगे।”
एसपी ने नरमी से पूछा, “तुम क्यों डरती हो?” कैदी ने दिल छलाने वाले अंदाज में कहा, “हमें डर कर रहना पड़ता है। यहां इन्हीं का राज है। जो वह कहेंगे हमें वही करना पड़ेगा।” इतने में एक दरोगा ने एसपी का हाथ पकड़ कर धमकी दी, “चलो, बहुत सवाल जवाब। नहीं तो तुम्हें ऐसी हालत में ले जाएंगे कि तुम बाहर ना निकल पाओगी।”
एसपी को फौरन समझ आ गया कि अगर उन्हें यह मामला बेनकाब करना है तो उन्हें इन्हीं अहलकारों के दरमियान जाकर मामले की जड़ तक पहुंचना पड़ेगा। दो पुलिस अहलकार उन्हें एक अलग केबिन में ले गए। वहां उसके अलावा कोई मौजूद ना था। अहलकारों ने धमकीअमेज लहजे में पूछा, “बताओ तुम्हारा नाम क्या है? और यहां आकर इतने सवाल क्यों कर रही हो? ज्यादा हरारत ना करो।”
एक अहलकार ने दूसरे से कहा, “आजकल की लड़कियां खुद को बहुत बड़ी समझती हैं। अगर हम दोस्त बन गए तो दुश्मन भी बन सकते हैं।” एसपी ने पुरसकून अंदाज में कहा, “साहब, आप लोग मुझे यहां क्यों लेकर आए हैं? मैंने क्या गलत किया?” अहलकार सख्त लहजे में बोले, “चुप। यहीं बैठो। आधे घंटे में हमारे साहब आएंगे। वह तुम्हारी पूरी कहानी निकालेंगे।”
इसी लम्हे एसपी ने फैसला किया और अपनी असल शिनाख्त बता दी। उन्होंने कहा कि वह दरअसल दिल्ली के एक थाने की एएसपी हैं। और यह बात इसलिए बता रही हैं कि अब तुम लोगों को भी मेरा साथ देना पड़ेगा। फिर एसपी ने दोनों अहलकारों के नाम पूछे। एक ने अपना नाम कुणाल बताया और दूसरे ने कहा अभिषेक।
एसपी ने उनसे सीधी आंखों में देखकर कहा कि वह उनकी कहानियां पहले से जानती हैं। उनकी पोस्टिंग यहां 8 महीने पहले हुई थी। वह अपनी नौकरी से मोहब्बत करते थे, मगर सिस्टम के दबाव और गलत माहौल ने उन्हें इस राह पर धकेल दिया था। एएसपी ने नरमी और सख्ती का मरकब लहजा अपनाते हुए कहा, “मैंने तुम्हारी कहानी सुन ली है। तुम दोनों ने जिस तरह यहां काम करना शुरू किया, शायद तुम्हारे पास भी वजह हो। मगर यह गलत है कि तुम ताकत के नशे में औरतों का इस्तेहसाल करो। अगर तुमने दिल से साथ दिया तो हम इस पूरे मामले को ऐसे खोल सकते हैं कि इंसाफ जरूर हो।”
अब केबिन में एक खामोशी छा गई। कुणाल और अभिषेक के चेहरे पर उलझन और खौफ का मिलाजुला इजहार था। एसपी ने अंदर छुपा कैमरा और माइक हाथ में छुपाते हुए कहा, “तुम्हारा फैसला आज का है? या तुम इंसाफ के साथ कदम बढ़ाओगे या फिर मैं खुद ऐसी कार्यवाही करूंगी कि सच सामने आ जाएगा।”
दोनों पुलिस अहलकार एएसपी मीना की बातों में नहीं आए और तंजिया अंदाज में मजाक उड़ाने लगे। वे हंसकर बोले, “ओ, तुम एएसपी हो तो हम भी प्रधानमंत्री हैं।” फिर एक ने मजाक करते हुए बद्धे राजनैतिकों के नाम ले दिए और एएसपी मीना का मजाक उड़ाया। मीना गुस्से से कहने लगीं, “तुम भूल रहे हो कि किसके साथ बदतमीजी कर रहे हो। तुम जल्द ही अपनी नौकरी से हाथ धो बैठोगे। अगर मेरा साथ नहीं दोगे तो तुम्हारी जिंदगी का हिसाब कर होगा।”
उन दोनों अहलकारों के चेहरे पर खौफ की झलक आ गई। मीनापुर एतमाद अंदाज में बोल रही थी। फिर उन्होंने अपनी जेब से अपना पुलिस शिनाख्ती कार्ड निकाला। जब उन्होंने वो कार्ड दोनों को दिखाया तो दोनों अहलकार खद्देखे कांपने लगे। घबरा गए और झुक कर माफी मांगने लगे, “मैडम, हमें माफ कर दें। हमने आपको पहचाना ही नहीं। हमसे बड़ी गलती हो गई।”
मीना ने एक लम्हे के लिए गौर किया और फिर बोली, “मैं तुम लोगों को एक शर्त पर माफ कर सकती हूं। अगर तुम मेरी मदद करोगे।” दोनों अहलकार फौरन कहने लगे, “जी मैडम, जो भी हुक्म देंगे हम करेंगे। हम आपकी मदद के लिए तैयार हैं।”
फिर मीना ने पूछा, “अच्छी बात। फिर बताओ इस जेल में हर दिन और हर दिन के उस हिस्से में औरतों के साथ क्या सुलूक होता है?” दोनों ने वही कुछ बता दिया जो रामू ने पहले बताया था। दिन के इख्तिताम के बाद कुछ अहलकार खवातीन कैदियों के पास आकर उनका इस्तेहसाल करते। उन्हें धमकाते और उनका फायदा उठाते।
यह सुनकर मीना के सामने सच्चाई और वाज़ हो गई। रामू की बात सच साबित हो गई थी। मीना ने दोनों अहलकारों को अपना खुफिया कैमरा और माइक थमा दिए और कहा, “मेरे पास एक खुफिया कैमरा और माइक पहले से हैं। मगर तुम दोनों भी जाकर वहां जो कुछ हो रहा है उसे रिकॉर्ड करके मुझे लाकर दो।” इब्तदा में दोनों अहलकार डरे हुए और हिचकिचा रहे थे, मगर मीना ने उन्हें तस्ली दी, “घबराओ नहीं। मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम्हारी ताजा पोस्टिंग यहां आठ माह पहले हुई थी। मैं तुम्हें जानती हूं।”
इस यकीन देहानी से वे दोनों हिम्मत जमा करके कैमरा और माइक लेकर वहां चले गए जहां दीगर अहलकार जमा थे और खवातीन कैदियों का इस्तेहसाल हो रहा था। उन्होंने सब कुछ कैमरे में रिकॉर्ड किया और मीना को दे दिया।
मीना फौरन रिकॉर्ड मिलते ही जेल से निकल गई। जब वे दोनों अहलकार वापस उन दीगर अहलकारों की महफिल में लौटे तो वहां मौजूद दो अफसरों ने हैरत से पूछा, “अरे तुम लोग यहां कहां गए थे?” कॉपी-पेस्ट के लिए बिल्कुल तैयार वीडियो रील्स, वॉइस ओवर आदि में इस्तेमाल करें।
जब बाकी अहलकारों ने देखा कि दोनों दरोगा वापस आ गए हैं तो एक अफसर बोला, “कहां चले गए थे तुम लोग? वो औरत कहां गई जो बहुत ज्यादा सवाल कर रही थी? जरा मैं भी जाकर उससे अकेले में कुछ पूछ-पूछ कर लूं।” दोनों दरोगा कुणाल और अभिषेक अंदर से घबरा गए मगर बोलने की हिम्मत नहीं हुई। उन्हें याद था कि एएसपी मैडम ने साफ कहा था, “अगर तुमने किसी को बताया कि मैं एएसपी हूं और यहां कैदी बनकर आई थी तो तुम दोनों का अंजाम भी वही होगा जो इन जालिमों का होने वाला है।” इसलिए वे दोनों फौरन बोले, “साहब, उस औरत को हमने सबक सिखा दिया है। अब वो दोबारा कुछ नहीं बोलेगी।” फिर वे दोनों चुपचाप जाकर अपने मुकाम पर बैठ गए।
लेकिन दोस्तों, जो कुछ उस दिन हुआ वो सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। एसपी मैडम उस दिन जेल से निकलने में कामयाब हो गईं। अगली सुबह वह तमाम सबूत लेकर पुलिस हेड क्वार्टर पहुंचीं और अपने आला अफसरों को वह वीडियोस दिखाई। वीडियो देखकर पूरा हेड क्वार्टर हिल कर रह गया।
फौरन ही एएसपी मीना के साथ एक बड़ी टीम तिहाड़ खवातीन जेल पहुंची। उन्होंने सभी अहलकारों को गिरफ्तार कर लिया और उन पर सख्त कार्रवाई की। उन जालिम पुलिस वालों को फौरन नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए।
पूरे पुलिस महकमे में एएसपी मीना की बहादुरी के चर्चे होने लगे। तमाम कैदी खवातीन उनके कदमों में झुक कर कहने लगीं, “मैडम, आपका बहुत शुक्रिया। आपने हमें इस जहन्नुम से बचा लिया। हम कितनी बार आवाज उठाना चाहती थीं, मगर कोई सुनता ही नहीं था। जब भी बोलने की कोशिश करते हमें धमकाया जाता, सताया जाता। आपने हमें इंसाफ दिलाया। हम हमेशा आपके एहसानमंद रहेंगे।”
जेल के आला अफसरान ने भी एएसपी मीना की बहादुरी की खूब तारीफ की। जिन अहलकारों ने यह भयानक जुर्म किया था, उन्हें उम्र भर के लिए पुलिस फोर्स से निकाल दिया गया। क्योंकि जो उन्होंने किया वो कोई आम गलती नहीं थी। वह इंसानियत के खिलाफ जुर्म था।
दोस्तों, इसी तरह एएसपी मीना ने इस भयानक वाकये का पर्दाफाश किया, सच्चाई को सबके सामने लाया और मजलूम खवातीन को इंसाफ दिलाया। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इसे दूसरों तक जरूर पहुंचाइए ताकि हर कोई जान सके कि एक सच्ची ईमानदार खातून अफसर कैसे पूरे निजाम को बदल सकती है।
जय हिंद, जय भारत, वंदे मातरम, जय जवान, जय किसान।
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