एयरलाइन ने जब एक गरीब दिखने वाले बुज़ुर्ग को बिजनेस क्लास में जाने से रोका, फिर जो हुआ…

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रात के 10:30 बज रहे थे। दिल्ली एयरपोर्ट की चमकती लाइट्स में हर कोई अपनी मंजिल की तरफ भाग रहा था। कहीं कोई हंसते हुए दोस्त को बाय बोल रहा था तो कहीं कोई जल्दी में बोर्डिंग गेट की तरफ दौड़ रहा था। इसी भीड़ में एक बूढ़ा आदमी भी अपनी पुरानी सी जैकेट पहने, कंधे पर एक पुराना सा बैग लटकाए धीरे-धीरे चल रहा था। उसके सफेद बाल और झुर्रियों से भरा चेहरा देखकर कोई भी कह सकता था कि यह आदमी आम सा है। शायद कोई रिटायर्ड टीचर या फिर एक मामूली कर्मचारी रहा होगा। वह बार-बार अपनी जेब से टिकट निकालकर देखता और फिर वापस जेब में रख देता था। उसके पास बिजनेस क्लास का टिकट था, नई दिल्ली से मुंबई के लिए।

एयरलाइन के चेक-इन काउंटर पर खड़ी अर्पिता ने जब बूढ़े आदमी का टिकट देखा तो उसके होठों पर हल्की सी मजेदार हंसी आ गई। उसने कहा, “बाबा जी, आपसे कुछ गलती हुई है क्या?” बूढ़े आदमी ने उलझकर पूछा, “क्या हुआ बेटी? टिकट ठीक है ना?” अर्पिता ने जवाब दिया, “यह बिजनेस क्लास का टिकट है बाबा जी? आपने खुद खरीदा था या किसी ने आपको दे दिया?” पीछे लाइन में खड़े एक आदमी ने हंसकर कहा, “मैम, लगता है फ्री का टिकट मिल गया होगा।” यह सुनकर लाइन में खड़े बाकी सारे लोग हंसने लगे। बूढ़ा आदमी चुप रहा। उसके चेहरे पर तकलीफ साफ दिख रही थी, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया। धीरे से बोला, “बेटी, यह टिकट मैंने ही खरीदा है। पूरे पैसे दिए हैं।”

अर्पिता ने मजाक वाले अंदाज में अपने जूनियर साथी अर्जुन को बुलाया और कहा, “जरा देखना। बाबा जी बिजनेस क्लास जाना चाहते हैं। लगता है कोई गड़बड़ है।” अर्जुन भी हंसते हुए आगे आया और बोला, “बाबा जी, बिजनेस क्लास आपके लिए नहीं है। आप इकोनमी में जाइए, हम सीट चेंज कर देते हैं। पैसा भी कम लगेगा।” बूढ़े आदमी को बुरा लगा, वह प्यार से बोला, “बिजनेस क्लास मेरे लिए क्यों नहीं है बेटा? मैंने टिकट का पैसा पूरा दिया है। क्या बिजनेस क्लास सिर्फ महंगे सूट और टाई पहनने वाले अमीरों के लिए है?” लेकिन स्टाफ में से किसी ने भी उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। वे बार-बार यही कहते रहे कि बिजनेस क्लास आपके लिए नहीं है और अगर जाना है तो इकोनमी में बैठना होगा।

अब बूढ़े आदमी की आंखों में नमी आने लगी। उसने कहा, “बेटा, मैंने अपनी मेहनत के पैसों से यह टिकट खरीदा है। बिजनेस क्लास में सफर करना मेरा हक है।” लेकिन किसी ने न सुना। इसी दौरान एक लंबा पतला अमीर आदमी महंगे ब्रांड के कपड़े पहने अंदर आया। कलाई पर चमकती घड़ी और चलने के अंदाज में अकड़ साफ दिख रही थी। वह सीधे काउंटर पर आया और कहा, “मुंबई के लिए एक बिजनेस क्लास की टिकट चाहिए थी।” काउंटर पर बैठी अर्पिता ने प्यार से कहा, “सर, बिजनेस क्लास फुल है।” अमीर आदमी ने अकड़ से जेब से क्रेडिट कार्ड निकाला और अपनी आवाज में रब के साथ बोला, “मैं डबल पेमेंट करूंगा। मुझे सीट चाहिए अभी के अभी।”

काउंटर पर खड़ा पूरा स्टाफ एक-दूसरे को देखने लगा। फिर उनकी नजरें उसी बूढ़े यात्री पर टिक गई जो अब भी चुप खड़ा था। एक कर्मचारी आगे बढ़ा और सख्त आवाज में बोला, “बाबा जी, आप अपनी बिजनेस क्लास की सीट छोड़ दीजिए। यह साहब हमारे स्पेशल कस्टमर हैं। इन्हें जरूरत है। आपको हम इकोनमी में एडजस्ट कर देंगे।” बूढ़े ने चौंक कर कहा, “क्या मतलब? मैंने पैसे दिए, टिकट मेरे नाम पर है। फिर क्यों दूं अपनी सीट?” स्टाफ ने उसके बैग को छीनकर कहा, “सर जी, आपसे कह रहे हैं। बहस मत करिए। बिजनेस क्लास आप जैसे लोगों के लिए नहीं है। आपका चेहरा ही बता रहा है कि आप वहां फिट नहीं बैठेंगे।”

अब तो कई यात्रियों को भी यह ड्रामा देखकर शर्म आने लगी। कुछ ने सिर हिलाया लेकिन किसी ने आवाज नहीं उठाई। बूढ़े आदमी की आंखों से आंसू बह निकले। वह कुर्सी पर बैठ गया और धीरे से बोला, “इतनी बड़ी बेइज्जती मेरे अपने ही देश में? क्या गरीब का दिल नहीं होता? क्या बुढ़ापे की इज्जत नहीं होती?” उसकी कांपती आवाज सुनकर एक-दो औरतों ने नजरें झुका लीं। लेकिन एयरलाइन के कर्मचारी अब भी सख्त आवाज में बोल रहे थे, “बाबा जी, ड्रामे का कोई फायदा नहीं। बिजनेस क्लास में आप फिट नहीं बैठेंगे। यह आपके जैसे लोगों के लिए नहीं है। यहां से उठे और इकोनमी में चलें। हम आपको इस टिकट पर थोड़ा डिस्काउंट भी देंगे।”

बूढ़े ने आखिरी कोशिश की, “बेटा, मैंने सारी जिंदगी मेहनत की है। आज पहली बार सोचा था कि जरा आराम से सफर करूं। यह कुछ घंटों के सुकून के लिए पैसे बचा-बचाकर दिए थे। मगर लगता है कि सुकून सिर्फ उनके लिए है जिनके पास पैसा और ताकत है।”

तभी दूर से एक और आदमी अंदर आया। कद-काठी में शानदार, चेहरे पर रब लेकिन आंखों में अजीब सी नरमी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ा। पूरा स्टाफ सीधा खड़ा हो गया, जैसे किसी बड़ी मुसीबत ने दरवाजा खोल दिया हो। यह थे फ्लाइट मैनेजर विकास गुप्ता। उन्होंने बूढ़े की तरफ देखा और फिर स्टाफ पर नजर डालते हुए बोले, “कोई प्रॉब्लम है क्या? सब ठीक है ना?”

अर्पिता फौरन बोली, “सर, इस बूढ़े आदमी ने बिजनेस क्लास का टिकट लिया है, मगर ये लोग अब उसी टिकट को कैंसिल करके उसे इकोनमी में शिफ्ट करना चाहते हैं।”

विकास गुप्ता ने बूढ़े आदमी का टिकट ध्यान से देखा और नरम आवाज में कहा, “बाबा जी, यह टिकट आप ही का है और बिजनेस क्लास की सबसे अच्छी सीट भी आप ही की है। किसी की हिम्मत नहीं कि आपसे आपका हक छीने।”

बूढ़ा कांपती आवाज में बोला, “बेटा, लेकिन ये सब लोग कह रहे थे कि मैं बिजनेस क्लास के लायक नहीं हूं।”

विकास गुप्ता के चेहरे पर गुस्सा आ गया। उसने सबके सामने धीरे-धीरे कहा, “बाबा जी, बिजनेस क्लास के लायक वही लोग हैं जो इज्जत को पहचानते हैं।”

बूढ़े आदमी के चेहरे पर सुकून आया। उसने मैनेजर से पूछा, “बेटा, इस एयरलाइन का मालिक कौन है?”

विकास ने जवाब दिया, “बाबा जी, उनका नाम आदित्य मल्होत्रा है। लेकिन माफ कर दें, अब शिकायत ना करें प्लीज।”

बूढ़ा मुस्कुरा कर बोला, “नहीं बेटा, शिकायत नहीं करनी है। आपने शायद टिकट पर लिखे नाम को ध्यान से नहीं पढ़ा।”

विकास यह सुनकर कंफ्यूज हो गया। उसने टिकट पर लिखे नाम पर नजर डाली। नाम लिखा था आदित्य मल्होत्रा। विकास के चेहरे का रंग उड़ गया। वह हैरानी से बूढ़े की तरफ देखने लगा। वह समझ गया कि जो बूढ़ा आदमी उसके सामने खड़ा था, वह कोई आम इंसान नहीं था।

धीमी आवाज में विकास ने पूछा, “बाबा, क्या जो मैं समझ रहा हूं?”

बाबा ने उसकी बात काटते हुए जवाब दिया, “हाँ बेटा, मैं ही हूं। आदित्य मल्होत्रा, रॉयल एयरलाइंस का मालिक।”

पूरे हॉल में जैसे बिजली कौंध गई। स्टाफ शांत खड़ा रह गया। उनकी जुबान लड़खड़ा गई। जो लड़की जो मजेदार हंसी-हंस रही थी, अब डर और शर्म से पसीने में भीग गई। किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह बुजुर्ग, यह सिंपल कपड़ों वाला इंसान कोई आम यात्री नहीं था। यह एयरलाइन के फाउंडर, मालिक और चेयरमैन आदित्य मल्होत्रा थे। आज वह अपना ही टिकट लेकर चुपचाप सफर करना चाहते थे ताकि देखें कि उनके यात्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। आज इस रूप में आकर उन्हें वह सबक मिला था, जो किसी बड़ी मीटिंग या रिपोर्ट में नहीं मिल सकता था।

हॉल में सन्नाटा छा गया था। एयरलाइन का स्टाफ एक-दूसरे की तरफ देख रहा था, जैसे उन्हें यकीन ही नहीं आ रहा हो कि अभी-अभी उनके साथ क्या हुआ है। वह बूढ़ा यात्री जो कुछ देर पहले उनके लिए एक आम कमजोर आदमी था, अब एयरलाइन का असली मालिक बनकर सामने खड़ा था।

बूढ़े आदमी ने अपना चश्मा उतारा, अपने कपड़ों को हाथ से ठीक किया और गहरी सांस ली। उसकी आंखों में गुस्सा भी था और दुख भी। उसने कहा, “तुम लोगों ने सिर्फ मुझे नहीं, अपने फर्ज को बेइज्जत किया है।”

उसकी भारी आवाज पूरे हॉल में गूंजी। “एक यात्री को उसकी उम्र और कपड़ों की बुनियाद पर जज करना, यह है तुम्हारी ट्रेनिंग?” उसकी आवाज में इतनी सख्ती थी कि अर्पिता, जिसने सबसे ज्यादा बदतमीजी की थी, कांपने लगी। उसके होंठ हिल रहे थे। “सर, हमें पता नहीं था कि आप बूढ़े आदमी…” उसने हाथ के इशारे से उसे चुप करा दिया।

“यह बात नहीं कि मैं कौन हूं, यह बात है कि एक यात्री कौन है? कोई भी हो, अमीर या गरीब, बूढ़ा या जवान, उसका हक है इज्जत। और तुम लोगों ने यह हक छीनने की कोशिश की।”

पूरे स्टाफ पर डर छा गया था। कुछ कर्मचारी नजरें झुका कर खड़े थे, कुछ की आंखों में आंसू थे। इसी वक्त वह अमीर बिजनेसमैन, जिसके लिए स्टाफ ने बूढ़े आदमी की सीट छीनने की कोशिश की थी, धीरे-धीरे आगे बढ़ा। वह भी अब कुछ शर्मिंदा सा लग रहा था। उसने कहा, “सर, मुझे अफसोस है। मैंने नहीं चाहा था कि आपकी सीट छीन कर मुझे दी जाए। मैंने बस एक रिक्वेस्ट की थी। असली गलती स्टाफ ने की।”

बूढ़ा मुस्कुरा कर बोला, “तुमने जब देखा कि एक बूढ़े आदमी को जबरदस्ती उठाया जा रहा है, तो तुम चुप क्यों रहे? तुम्हारी चुप्पी भी जुल्म के बराबर है।”

वह बिजनेसमैन जमीन में गड़ सा गया।

बूढ़े आदमी ने सबके सामने फैसला सुनाया, “मैनेजर विकास को छोड़कर सारे स्टाफ पर जांच होगी और जिनकी नियत और बर्ताव गलत साबित होगा, उन्हें हमेशा के लिए नौकरी से निकाल दिया जाएगा। मैनेजर विकास गुप्ता को प्रमोशन देकर रीजनल मैनेजर बनाया जाएगा।”

यह सुनते ही सारे कर्मचारी एक साथ चिल्लाने लगे, “सर, हमें माफ कर दें। यह दोबारा नहीं होगा। प्लीज सर।” लेकिन उसकी आंखों में कोई नरमी नहीं आई। “जो लोग इंसानियत को भूल जाते हैं, उन्हें माफ करना दूसरों के साथ नाइंसाफी है।”

हॉल में मौजूद दूसरे यात्रियों ने तालियां बजा दीं। कई लोग वीडियो बना रहे थे। किसी ने कहा, “यह हुई ना असली लीडरशिप। अब समझ आया कि यह एयरलाइन क्यों कामयाब है।”

बूढ़े आदमी ने यात्रियों की तरफ मुंह किया और कहा, “मैंने यह एयरलाइन यात्रियों को सुविधा और इज्जत देने के लिए बनाई थी, ना कि उन्हें बेइज्जत करने के लिए।”

यात्रियों की आंखों में इज्जत और हमदर्दी साफ दिख रही थी।

इसी दौरान एक जवान लड़की, शायद यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट, आगे बढ़ी। उसने कहा, “सर, आज आपने हमें एक सबक दिया है। हम हमेशा समझते थे कि अमीरों के सामने ताकत और दौलत का मतलब दूसरों को नीचा दिखाना है, लेकिन आपने साबित कर दिया कि असली ताकत दूसरों को इज्जत देने में है, ना कि उन्हें बेइज्जत करने में।”

उस दिन के बाद से एयरलाइन का स्टाफ हर यात्री से इज्जत से पेश आने लगा। अब अमीर और गरीब में फर्क नहीं होता था।

यह कहानी हमें सिखाती है कि असली ताकत और इज्जत दौलत से नहीं, इंसानियत से आती है। हर व्यक्ति का सम्मान करना हमारा फर्ज है।