सहरा नगर की रहस्यमयी रातें: फकीर, दो जवान लड़कियाँ और छुपा हुआ सच

भंवरगढ़ के सहरा नगर में रेत के बीचों-बीच एक पुराना सा कच्चा घर था। वहाँ रहता था एक 90 साल का बूढ़ा फकीर, अकेला और गुमनाम। उसकी जिंदगी में कोई हलचल नहीं थी, सिवाय उस रात के, जब उसकी किस्मत का दरवाजा जोर-जोर से खटखटाया गया।

रहस्यमयी दस्तक

रात के तीसरे पहर में फकीर की नींद टूटी। दरवाजे पर कोई था। “इतनी रात को यहाँ कौन?” उसने खुद से बुदबुदाया। बाहर निकलकर देखा तो दो जवान, खूबसूरत लड़कियाँ—किरण और आयशा—दरवाजे पर खड़ी थीं। उनके चेहरे पर डर और थकान थी। उन्होंने कहा, “हम रास्ता भटक गई हैं, नूरी नगर जा रही थीं। अगर इजाजत दें तो एक रात यहीं रुक जाएं, सुबह होते ही निकल जाएंगे।”

फकीर ने उन्हें अंदर बुला लिया। दोनों कोने में अपने बिस्तर पर सो गईं। फकीर की नजरें बार-बार उनकी तरफ जातीं। उसके दिल में कोई पुरानी प्यास जाग रही थी।

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अजनबी चाहत और डर

रात के अंधेरे में किरण को महसूस हुआ कि कोई उसके पास है। आँखें खोली तो फकीर उसके करीब था। उसने कहा, “शायद तुम्हें ठंड लग रही हो, चादर देने आया था।” किरण ने नाराज होकर चादर ओढ़ ली, मगर फकीर की नजरें अब भी चाहत भरी थीं। सुबह होते ही लड़कियाँ जाने लगीं, मगर फकीर ने रोका, “नूरी नगर बहुत दूर है, एक रात और रुक जाओ, मैं इंतजाम कर दूंगा।”

लड़कियाँ थोड़ा झिझकीं, मगर मान गईं। फकीर दिनभर उनसे नरमी से बातें करता रहा, जैसे उनके और करीब जाना चाहता हो। रात फिर आई, और फकीर दबे कदमों से उनके पास गया। उसने किरण के बालों पर हाथ रखा, फिर आयशा का हाथ थामा। आयशा घबरा गई, मगर फकीर चुपचाप लौट गया।

रुकने की मजबूरी और बढ़ता डर

सुबह लड़कियाँ फिर जाने की जिद करने लगीं, मगर फकीर ने बहाना बनाया, “काफिला आज शाम तक आएगा, तब जाना।” लड़कियाँ मजबूरी में रुक गईं। फकीर दूर बैठा, उनकी तरफ देखता रहा। उसकी नजरें अब शिकारी जैसी थीं। रात फिर आई, और लड़कियाँ सतर्क हो गईं। उन्होंने तय किया कि चाहे कुछ हो, आज रात के बाद यहाँ नहीं रहेंगी।

तीसरी रात की बेचैनी

रात का सन्नाटा गहरा था। फकीर ने फिर कोशिश की कि उनके करीब जाए, मगर इस बार लड़कियाँ पूरी तरह चौकन्नी थीं। किरण ने गुस्से से उसका हाथ झटक दिया। आयशा ने भी उसकी हरकतों को महसूस किया। सुबह होते ही दोनों ने जाने का फैसला किया।

फकीर ने फिर रोकने की कोशिश की, “यह सुनसान जगह है, तुम्हारी चीखें कोई नहीं सुनेगा।” लड़कियाँ डर गईं, मगर अब उनके सब्र का बांध टूट चुका था। उन्होंने फकीर को धक्का दिया और बाहर निकल गईं।

सच्चाई का खुलासा

बहुत दूर जाकर दोनों एक पेड़ के नीचे रुकीं। तभी पीछे से फकीर फिर आ गया, हाँफता हुआ। उसने कहा, “अगर आज रात मेरे साथ रहोगी, तो तुम्हें नूरी नगर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” लड़कियाँ हैरान रह गईं। किरण ने तीखे लहजे में पूछा, “अगर कुछ कहना है तो साफ-साफ कहो।”

फकीर ने धीरे से कहा, “तुम दोनों अपने पतियों की तलाश में निकली हो ना?” दोनों लड़कियाँ सन्न रह गईं। “तुम्हें यह कैसे पता?” आयशा ने पूछा। फकीर ने जवाब दिया, “मुझे सब पता है। लेकिन तुम्हें एक रात मेरे साथ बितानी होगी, तभी मैं तुम्हारे सारे सवालों के जवाब दूंगा।”

लड़कियाँ डर और उलझन में थीं, मगर मजबूरी में मान गईं। “यह आखिरी रात है,” किरण ने कहा।

अंतिम रात और चमत्कार

रात भर फकीर की नजरें उन पर थीं। उसने फिर कोशिश की कि उनके करीब जाए, मगर लड़कियाँ अब पूरी तरह सतर्क थीं। सुबह होते ही दोनों बिना कुछ बोले बाहर निकल गईं। दरवाजे के पास उन्हें एक योगी दिखा, साफ कपड़े, घने बाल, ताजगी से भरा चेहरा। दोनों ठहर गईं। योगी ने सिर उठाया, और जैसे ही उसका चेहरा रोशनी में आया, दोनों की चीख निकल गई—“यह तो हमारा पति है!”

दोनों दौड़कर उसके गले लग गईं। उनकी आँखों से आंसू बहने लगे। “तुम यहाँ कैसे आए?” किरण ने पूछा। योगी ने नरमी से कहा, “यह सपना नहीं, हकीकत है। मैं वापस आ गया हूँ।”

फकीर की असलियत

आयशा ने पूछा, “तुम उस फकीर को जानते हो?” योगी ने कहा, “हाँ, वो फकीर मैं ही था।” उसने बताया, “एक दिन एक जादुई लड़की ने मुझे श्राप दिया था, जिससे मेरी शक्ल बदल गई। अगर मेरे अपने मुझे बिना पहचान के प्यार से अपनाएँ, तो मैं वापस अपनी असली शक्ल में आ सकता हूँ।”

लड़कियाँ रो पड़ीं, “हमें माफ कर दो, हम तुम्हें पहचान ना सके।” योगी ने प्यार से कहा, “तुम्हारा दिल सच्चा था, इसी ने मेरी सजा खत्म कर दी।”

नया सवेरा

अब तीनों एक नई जिंदगी में कदम रख चुके थे। कोई राज नहीं, कोई दीवार नहीं, सिर्फ भरोसा, वफादारी और प्यार। जिंदगी ने उन्हें सिखाया कि असली खूबसूरती दिल की सच्चाई में होती है, और वफादारी हर सजा को खत्म कर सकती है।