कावेरी के घाट की प्रेम कहानी: संघर्ष, उम्मीद और सच्चे रिश्तों की मिसाल

परिचय

कर्नाटक के मैसूर जिले के एक छोटे से गाँव की यह कहानी, सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं है, बल्कि यह उस जज़्बे की दास्तान है, जो समाज के ताने-बाने, गरीबी, संघर्ष और परिवार की दीवारों के पार अपना रास्ता बनाती है। यह कहानी है संगीता और शिवम की, जो कावेरी नदी के किनारे, एक साधारण जीवन जीते हुए असाधारण प्रेम की मिसाल बन गए।

गाँव, नदी और परिवार

कावेरी नदी के तट पर बसे इस गाँव में, दीनाना नामक एक व्यक्ति अपनी नाव चलाकर अपने परिवार का पेट पालता था। उसका घर घाट से लगभग दो किलोमीटर दूर था। रोज़ सुबह पाँच बजे वह घाट पर पहुँच जाता, जहाँ अभी पुल नहीं बना था। दीनाना के परिवार में उसकी पत्नी और दो बेटियाँ थीं – बड़ी संगीता (17-18 वर्ष) और छोटी सुमन।

हर रोज़ दोपहर में संगीता अपने पिता के लिए खाना लेकर घाट पर आती थी। इसी दौरान, अगर कोई यात्री आता, तो संगीता खुशी-खुशी नाव चलाकर उसे उस पार छोड़ देती थी। उसे नाव चलाना बहुत पसंद था। यही घाट, यही नदी, यही नाव उसकी दुनिया थी।

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पहली मुलाकात – एक नया मोड़

एक दिन, गाँव के रास्ते से एक युवक शिवम (23-24 वर्ष) आता है। वह अपनी बहन के घर जा रहा था, जिसकी शादी हाल ही में हुई थी। जब वह घाट पर पहुँचता है, तो दीनाना खाना खा रहे होते हैं। आमतौर पर यहाँ सिर्फ गाँववाले आते थे, लेकिन शिवम अनजान था। दीनाना उससे बातचीत करते हैं, और फिर संगीता को उसे उस पार छोड़ने के लिए भेजते हैं।

शिवम संगीता को देखता है, उसकी सादगी, मेहनत और सुंदरता पर मोहित हो जाता है। संगीता नाव चलाती है, पतवार घुमाती है, कमर पर दुपट्टा बांधकर पूरी लगन से काम करती है। शिवम उसकी ओर देखता रहता है। संगीता को थोड़ी झिझक होती है, लेकिन वह अपना काम करती है। जब शिवम पैसे देता है, तो वह ईमानदारी से छुट्टे लौटाने की कोशिश करती है। यही सरलता शिवम को और भा जाती है।

धीरे-धीरे बढ़ती नज़दीकियाँ

अगले दिन शिवम फिर घाट पर आता है। दोनों के बीच बातचीत शुरू होती है – नाव चलाना, तैरना सीखना, गाँव की बातें। शिवम अपनी भावनाएँ छुपाता है, लेकिन संगीता की मासूमियत उसे आकर्षित करती है। दोनों हँसी-मज़ाक करते हैं, एक-दूसरे को देखने लगते हैं। शिवम संगीता को पैसे देने की कोशिश करता है, लेकिन वह सिर्फ उतना ही लेती है जितना किराया है।

समय के साथ, दोनों की मुलाकातें बढ़ती हैं। शिवम को रातों को नींद नहीं आती, वह बस संगीता के बारे में सोचता है। संगीता भी अब उसके बारे में सोचने लगी थी, लेकिन अपने दिल की बात किसी से नहीं कह पाती थी।

इज़हार-ए-मोहब्बत

एक दिन, नाव पर बैठे-बैठे शिवम अपने दिल की बात कह देता है। “मुझे तुम्हारी याद आती है,” वह कहता है। संगीता शर्म जाती है, लेकिन उसकी आँखों में भी वही भावनाएँ झलकती हैं। दोनों पहली बार खुलकर अपने जज़्बात साझा करते हैं। शिवम कहता है, “मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ।” संगीता भी स्वीकार करती है कि उसे भी शिवम की याद आती है।

यहाँ से उनकी प्रेम कहानी शुरू होती है। अब दोनों रोज़ मिलते हैं, बातें करते हैं, एक-दूसरे को समझते हैं।

समाज की दीवारें

लेकिन गाँव की लड़की के लिए प्रेम आसान नहीं होता। एक दिन शिवम संगीता के पिता से शादी की बात करता है। दीनाना पहले तो हैरान हो जाते हैं, फिर अपनी औकात, गरीबी और समाज की सोच के बारे में बताते हैं। “मैं अपनी बेटी को अमीरों की चौखट की बलि नहीं बनाना चाहता,” वे कहते हैं। लेकिन जब शिवम गिड़गिड़ाता है, अपनी नौकरी, परिवार की सहमति और सच्चे प्रेम का वादा करता है, तो दीनाना मान जाते हैं।

शिवम अपने परिवार से बात करता है, लेकिन वहाँ भी मुश्किलें आती हैं। उसके माता-पिता, बहनें – सब जात-पात, समाज, स्टेटस की बातें करते हैं। “नाविक की बेटी से शादी? लोग क्या कहेंगे?” लेकिन शिवम अडिग रहता है, “मैं उसी से शादी करूंगा।” आखिरकार, परिवार मान जाता है और साधारण तरीके से मंदिर में शादी होती है।

शादी के बाद संघर्ष

शादी के बाद, संगीता को ससुराल में ताने, अपमान और प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। शिवम के माता-पिता और बहनें उसे रोज़ ताने मारती हैं, कभी-कभी मारपीट भी होती है। संगीता सब कुछ चुपचाप सहती है, सिर्फ इस उम्मीद में कि शिवम उसे बहुत प्यार करता है।

शिवम को कभी पता नहीं चलता कि उसकी पत्नी कितना दर्द सहती है। छह महीने ऐसे ही बीत जाते हैं। संगीता कभी मायके में भी कुछ नहीं बताती।

बाढ़ का कहर और रिश्तों की परीक्षा

एक दिन, संगीता की छोटी बहन की शादी होती है। पूरा परिवार, शिवम के माता-पिता, बहनें सब मायके जाते हैं। दीनाना सबको नाव पर बिठाकर नदी पार करा रहे थे। जुलाई का महीना था, नदी पूरे उफान पर थी। इसी दौरान, शिवम की मां ताने मारना शुरू करती है – “तुम्हारी औकात यही है, नाव चलाना। हमारे बेटे को फंसा लिया।”

शिवम का सब्र टूट जाता है, वह नदी में छलांग लगा देता है। संगीता भी उसके पीछे कूद जाती है। दोनों नदी में बह जाते हैं। संगीता गर्भवती थी, लेकिन वह शिवम को बचाने की कोशिश करती है। दोनों कई किलोमीटर बह जाते हैं, आखिरकार गाँववाले, तैराक और नाव लेकर उन्हें बचाते हैं।

माफी, बदलाव और नई शुरुआत

इस घटना के बाद, शिवम के माता-पिता को अपनी गलती का एहसास होता है। वे संगीता से माफी मांगते हैं, उसे अपनाते हैं। संगीता का बच्चा खो जाता है, लेकिन कुछ दिनों बाद दोनों ठीक होकर घर लौटते हैं। अब परिवार में सबका व्यवहार बदल जाता है। सब संगीता को प्यार और सम्मान देने लगते हैं।

आज और यादें

आज इस घटना को सात-आठ साल बीत चुके हैं। संगीता और शिवम के दो बच्चे हैं। अब उस घाट पर पुल बन चुका है, लेकिन जब भी दोनों वहाँ जाते हैं, अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हैं। उनके प्रेम में वही अटूटता है, वही सच्चाई। गाँववाले, परिवार वाले – सब उनका सम्मान करते हैं।

निष्कर्ष

यह कहानी सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं है, यह समाज के बदलते स्वरूप, संघर्ष, उम्मीद और रिश्तों की ताकत की मिसाल है। संगीता और शिवम ने दिखा दिया कि सच्चा प्रेम हर दीवार को तोड़ सकता है। चाहे वह गरीबी हो, समाज की सोच हो या परिवार की बंदिशें – अगर दिल में सच्चाई है, तो मंज़िल मिल ही जाती है।