जज साहब गंदे कपड़े पहनकर चाय वाले के भेष में थाने पहुंचे फिर जो हुआ…
शहर की सुबह हमेशा शोरगुल से भरी रहती थी। गाड़ियों के हॉर्न, भागते लोगों की भीड़ और धुएँ से भरी हवा। उसी शहर की एक छोटी-सी गली में कीर्ति नाम की लड़की अपने परिवार के साथ रहती थी। उसका घर बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन उसकी माँ के हाथों का बना हुआ खाना और पिता की मेहनत ने उस छोटे घर को हमेशा खुशियों से भरा रखा था। कीर्ति पढ़ाई में तेज़ थी और सपना देखती थी कि एक दिन वकील बनेगी और समाज के कमजोर लोगों को न्याय दिलाएगी।
लेकिन सपने और हकीकत अक्सर टकरा जाते हैं। एक दिन ऐसा हादसा हुआ जिसने कीर्ति की ज़िन्दगी को पूरी तरह बदल दिया।
षड्यंत्र की शुरुआत
शहर के बड़े नेता और व्यापारी राघव मल्होत्रा का नाम हर अख़बार में छपा करता था। ऊपर से वह समाजसेवी दिखता था, लेकिन अंदर ही अंदर उसने भ्रष्टाचार और ग़ैरक़ानूनी धंधों की जड़ें गहरी फैला रखी थीं। कीर्ति ने एक बार कॉलेज में अपने भाषण में उसके भ्रष्ट कामों का जिक्र किया था। यह बात राघव को चुभ गई।
कुछ ही दिनों में, कीर्ति पर चोरी और धोखाधड़ी का झूठा आरोप लगा दिया गया। पुलिस रात को उसके घर पहुँची और बिना कोई ठोस सबूत दिखाए उसे गिरफ़्तार कर लिया। माँ-बाप रोते रहे, लेकिन किसी ने उनकी एक न सुनी।
जेल की दीवारों के पीछे
जेल की अंधेरी कोठरी में बैठी कीर्ति का मन बार-बार यही सोचता रहा— “आख़िर मेरा कसूर क्या है? मैंने तो सिर्फ़ सच कहा था।” लेकिन सच कहने की कीमत वही चुका रही थी। पुलिसवाले भी उसके साथ कठोर बर्ताव करते और कहते— “तू सोच भी नहीं सकती किसके ख़िलाफ़ बोल दिया तूने।”
कोठरी के कोने में बैठी कीर्ति ने भगवान से प्रार्थना की कि कोई तो उसे न्याय दिलाए।
भाग्य का मोड़
उसी समय शहर में एक नया चाय वाला आया। उसका नाम सबके लिए बस रामू था। वह रोज़ थाने के सामने अपनी चाय की गुमटी लगाता और पुलिसवालों को चाय पिलाता। कोई नहीं जानता था कि यह साधारण चाय वाला वास्तव में कौन है।
रामू अक्सर जेल में कैदियों को भी चुपचाप चाय थमा देता। एक दिन उसने कीर्ति को चाय दी और धीरे से कहा— “हिम्मत मत हारना बेटी, सच को दबाया नहीं जा सकता।” कीर्ति उसकी बात सुनकर चौंक गई। उसे लगा यह चाय वाला कुछ अलग है।
असली चेहरा
कुछ ही दिनों बाद शहर में तहलका मच गया। अदालत में बड़ा मुक़दमा शुरू हुआ— राज्य बनाम कीर्ति। कीर्ति को कठघरे में खड़ा किया गया। राघव मल्होत्रा अपने वकीलों और गुर्गों के साथ वहाँ मौजूद था। सबको लगता था कि फैसला उसके हक़ में ही आएगा।
तभी अदालत में चौंकाने वाला दृश्य हुआ। मुख्य न्यायाधीश अदालत में दाख़िल हुए और सब दंग रह गए। क्योंकि वही चाय वाला रामू अब जज की पोशाक पहने सामने खड़ा था।
कीर्ति की आँखों से आँसू बह निकले। उसे समझ आ गया कि भगवान ने सचमुच उसे एक रक्षक भेजा है।
अदालत की जंग
जज ने गवाही और सबूतों को ध्यान से सुना। पुलिस द्वारा दिए गए कागज़ात झूठे निकले। गवाहों को पैसे देकर खरीदा गया था। धीरे-धीरे सच सामने आने लगा।
कीर्ति ने अपनी मासूमियत और राघव के भ्रष्टाचार को पूरे साहस से बयान किया। उसकी आवाज़ काँप रही थी, लेकिन शब्दों में सच्चाई थी।
राघव ने कई बार जज को प्रभावित करने की कोशिश की, लेकिन अब वह नाकाम था।
न्याय की जीत
कई दिनों की सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया। कीर्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। वहीं राघव मल्होत्रा पर भ्रष्टाचार, फरेब और निर्दोष पर झूठा केस थोपने के आरोप सिद्ध हो गए। उसे लंबी सज़ा सुनाई गई।
अदालत के बाहर जनता की भीड़ खड़ी थी। जैसे ही फैसला आया, लोग ताली बजाकर “सत्य की जीत हुई” के नारे लगाने लगे।
कीर्ति की माँ ने उसे गले से लगा लिया। उसकी आँखों में ख़ुशी और राहत के आँसू थे।
नई शुरुआत
उस दिन कीर्ति ने ठान लिया कि वह सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं बल्कि उन सबके लिए लड़ेगी जिन्हें झूठे आरोपों में फँसाया जाता है। उसने क़ानून की पढ़ाई पूरी की और धीरे-धीरे एक नामी वकील बन गई।
लोग कहते थे— “वो लड़की जो कभी झूठे केस में फँसाई गई थी, आज दूसरों को न्याय दिला रही है।”
जज साहब, जिन्होंने चाय वाले का भेष धारण किया था, अक्सर चुपचाप मुस्कुरा देते। उन्हें पता था कि उन्होंने एक ज़िन्दगी को बर्बाद होने से बचा लिया है।
अंत लेकिन शुरुआत भी
यह कहानी सिर्फ़ कीर्ति की नहीं है, बल्कि हर उस इंसान की है जिसे सत्ता और पैसे के बल पर दबाने की कोशिश की जाती है। यह कहानी बताती है कि झूठ चाहे कितना भी ताक़तवर क्यों न हो, सच की लौ बुझाई नहीं जा सकती।
न्याय देर से मिल सकता है, लेकिन जब मिलता है तो वह पूरे समाज को रोशनी देता है।
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