बाप बेटी को जल्दी जवान करने वाली दवा देता रहा
1. दर्द की शुरुआत
सर्दियों की एक सख्त रात थी।
अस्पताल के बाहर एक आदमी—राघव—बेचैन घूम रहा था।
अंदर उसकी बीवी की हालत बहुत खराब थी।
कुछ देर बाद नर्स बाहर आई और अफसोस भरे लहजे में बोली,
“हम माफ कीजिए, हम आपकी बीवी को नहीं बचा सके।”
नर्स के हाथ में एक नन्ही सी बच्ची थी।
जैसे ही उसने वह बच्ची राघव की तरफ बढ़ाई,
राघव ने लपक कर उसे पकड़ा और सीने से लगा लिया।
फिर वो ढाड़ें मार मार कर रोने लगा।
“हाय, यह मासूम बच्ची कैसे पलेगी? या खुदा, यह कैसा पहाड़ मेरे ऊपर टूट पड़ा? मैं अपनी बच्ची को कैसे संभालूंगा?”
रिश्तेदारों ने उसके कंधे पर हाथ रखा और दिलासा दिया।
बीवी की नियत घर ले जाई गई और दफना दी गई।
राघव ने अपनी बेटी को अपनी बहन की गोद में देकर कहा,
“यह बच्ची मां के बगैर रह गई है। मैं किसी और पर भरोसा नहीं कर सकता, इसे तुम्हारे हवाले करता हूं।”
लेकिन उसकी बहन ने झट से बच्ची को परे कर दिया और सख्त लहजे में बोली,
“यह मनहूस बच्ची है। पैदा होते ही अपनी मां को खा गई। इसे मुंह से दूर रखो।”
राघव रोता हुआ अपनी बेटी को गोद में लिए अपने टूटे-फूटे घर वापस आ गया।
उसने बच्ची का नाम आरजू रखा।
बाद में आरजू अपनी नानी के पास पलने लगी और राघव तन्हा रहने लगा।
वो एक मेडिकल स्टोर पर काम करता था।
लेकिन जब शाम को घर आता तो तन्हाई उसे काटने लगती।
इसी दुख में वह नशे का आदि हो गया।
अक्सर वह बिस्तर पर नशे में पड़ा रहता और बार-बार सोचता,
“अगर यह बेटी पैदा ना होती तो आज मेरी बीवी जिंदा होती। यह मनहूस बच्ची है। इसी ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी।”
दिन-ब-दिन वो नशे की लत और काहिली में डूबता चला गया।
काम पर भी जाने का दिल नहीं करता था।
2. बचपन का जहर
आरजू 13 साल की हुई तो उसकी नानी का इंतकाल हो गया।
अब वह दोबारा अपने बाप के पास आ गई।
इन 13 बरसों में उसने हमेशा अपने बाप को अपनी तरफ नफरत भरी निगाहों से देखते पाया था।
एक दिन आरजू ने रोते हुए कहा,
“बाबा, आप मुझसे इतने रूठे रहते हैं क्यों?”
राघव ने कोई जवाब ना दिया।
ना जाने उसके दिमाग में कौन सा फतूर चल रहा था।
वो पहले ही कामचोर बन चुका था।
बेटी बार-बार कहती,
“अगर आप काम पर नहीं जाओगे, तो हम खाएंगे कहां से?”
लेकिन वह चारपाई पर नशे में पड़ा ही रहता।
एक दिन आरजू का चेहरा लाल हो गया।
आंखों में जलन थी।
वो बाप के पास आई और कमजोर आवाज में बोली,
“बाबा, आज मुझे बहुत बुखार है। तबीयत बिल्कुल ठीक नहीं लग रही।”
राघव ने उसकी तरफ देखा।
अचानक उसके दिमाग में खतरनाक ख्याल आया।
वो मुस्कुरा कर बोला,
“बेटी, तुम फिक्र ना करो। मैं तुम्हारे लिए अभी दवा लाता हूं।”
राघव दवाई लाने का बहाना बना कर मेडिकल स्टोर गया,
वहां से एक इंजेक्शन खरीदा और वापस आकर अपनी बेटी आरजू को लगा दिया।
इंजेक्शन लगते ही बेटी नीम बेहोश हो गई और चारपाई पर तिरछी लेट गई।
उसे अपने आप का होश ही ना रहा।
राघव एक कोने में जाकर कहकहे लगाता रहा।
बार-बार इंजेक्शन को देखता और खुश होता,
जैसे कोई बड़ी कामयाबी पाई हो।
शाम को जब आरजू को होश आया तो उसका चेहरा तप रहा था।
बुखार के मारे वह सीधा सो नहीं पा रही थी।
यह सिलसिला यूं ही चलने लगा।
पहले तो राघव बेटी को खाने में कोई दवा मिला देता जिससे उसे बुखार चढ़ जाता।
फिर वही इंजेक्शन लगाता और बहलाकर कहता,
“फिक्र मत करो, सुबह तक बिल्कुल ठीक हो जाओगी।”
3. गुनाह की गहराई
एक दिन राघव ने अपनी बेटी को आवाज दी,
“ओ बेटी आरजू, आज खाने में कुछ अच्छा सा बना लेना। मेरा एक दोस्त हमारे घर आ रहा है।”
आरजू ने हैरत से पूछा,
“कौन सा दोस्त बाबा?”
राघव ने जवाब दिया,
“यह वही दोस्त है जिसने तुम्हें बचपन में प्यार दिया था। खिलाता रहा था। आज वो लखनऊ से सीधा हमसे मिलने आ रहा है।”
सर्दियों की कहर भरी रात थी।
दरवाजे पर दस्तक हुई।
राघव ने खोला तो सामने उसका पुराना दोस्त मनीष खड़ा था।
दोनों गले मिले।
मनीष हंसते हुए बोला,
“अरे भाई, इधर ही खड़े रहोगे या अंदर भी बुलाओगे?”
राघव ने जल्दी से उसे कमरे में बिठाया और बेटी को आवाज दी,
“ओ आरजू, जल्दी से खाना ले आओ। मेरे दोस्त को भूख लगी होगी।”
थोड़ी देर बाद जब आरजू खाना लेकर आई और दरवाजा खोला तो मनीष के मुंह से आवाज ही ना निकली।
वो खाने को नहीं बल्कि आरजू को घूर रहा था।
इतनी कम उम्र मगर इतनी हसीन और जवान लड़की को देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं।
वो होठों पर जबान फेरने लगा।
राघव ने जोर से खंखार कर कहा,
“किस ख्याल में गुम हो गए हो? यह मेरी बेटी आरजू है।”
मनीष मुस्कुराते हुए बोला,
“यह वही बच्ची है ना जिसे मैंने अपने हाथों से खिलाया था। लेकिन समझ नहीं आ रहा—चंद ही बरसों में यह इतनी बड़ी और जवान कैसे हो गई?”
राघव ने बात काटते हुए कहा,
“खाना ठंडा हो रहा है, जल्दी खा लो।”
खाने के बाद मनीष ने कहा,
“आज रात मैं यहीं ठहर जाऊंगा।”
उसकी आंखों में लालच और हवस साफ छलक रही थी।
आरजू को देखकर वो नजरें हटाए नहीं हटा रहा था।
राघव सब समझ रहा था।
मगर मक्कारी से हंसकर बोला,
“भाई, आज मुझे बहुत जरूरी काम है। मैं घर पर नहीं रुकूंगा और मेरी बेटी अकेली है। इसलिए बेहतर है तुम वापस जाओ।”
मनीष ललचाई हुई नजरें डालकर चला गया।
राघव ने खुद उसे गाड़ी में बिठाया और रुखसत किया।
4. बाप का गुनाह
राघव के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी—
“मनीष की बातों ने साबित कर दिया कि पिछले दो सालों से जो मैं मेहनत कर रहा था वो जाया नहीं गई। मेरा काम हो गया।”
उसने जेब में हाथ डाला और वही इंजेक्शन निकाल लिया जो वह कुछ देर पहले आरजू को लगा चुका था।
यह कोई आम इंजेक्शन नहीं था।
कई साल पहले जब राघव एक फार्मेसी में हेल्पर के तौर पर काम करता था,
तब उसे पता चला था कि दुनिया में कुछ अजीब इंजेक्शन होते हैं।
अगर यह किसी लड़की के जिस्म में लगाए जाएं तो वह वक्त से पहले जवान और खूबसूरत हो जाती है।
दो साल पहले से उसने यही इंजेक्शन अपनी बेटी आरजू पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिए थे।
हर हफ्ते खुफिया तौर पर आरजू को दवा दे देता जिससे उसे बुखार चढ़ जाता।
बेचारी आरजू दर्द और बुखार में पूरा दिन तड़पती रहती।
जब वह दवाई मांगती तो राघव मुस्कुराता हुआ वही इंजेक्शन ले आता और लगा देता।
सुबह तक उसका बुखार उतर जाता मगर उसके जिस्म में अजीब ताब्दीलियां आने लगती थीं।
खुद आरजू हैरान थी कि इतनी जल्दी उसके जिस्म में यह ताब्दीलियां क्यों आ रही हैं।
लेकिन असल राज उसके बाप की मक्कारी थी।
5. जुए और लालच का अंजाम
घर का राशन खत्म हो रहा था और पैसे भी नहीं थे।
आरजू मजबूरन बाहर जाकर कुछ खरीद भी नहीं सकती थी।
आज उसे बाप को बताना जरूरी हो गया था।
वो कमरे में गई, बाप का कंधा हिलाया।
राघव यूं हड़बड़ा कर उठा जैसे कयामत आ गई हो।
“क्या हुआ? क्यों उठा रही हो? सुबह सवेरे कितनी बार कहा है, मुझे ना जगाया करो।”
आरजू बोली,
“बाबा अगर आप ऐसे ही घर में सोते रहे तो पैसे कहां से आएंगे? हम खाएंगे क्या?”
राघव ने मजदूरी का काम भी छोड़ दिया था।
“मुझसे नहीं होती यह मजदूरी। मैं अपना कारोबार करूंगा। सारा दिन मजदूरी करके शाम को सिर्फ ₹1000 मिलते हैं। इससे तो दिन का खाना भी नहीं चलता।”
कुछ देर बाद वह घर से बाहर निकल गया।
उसका रुख रमेश के घर की तरफ था।
वहां मोहल्ले के सभी बिगड़े हुए लोग जमा थे।
वो सब पक्के जुआरी थे और राघव भी उन्हीं का हिस्सा था।
उस दिन राघव ने दिल ही दिल में सोचा—
“आज बड़ी बाजी लगाकर जीतूंगा। पूरे महीने का राशन आ जाएगा ताकि फिर मुझे कोई काम ना करना पड़े।”
वह बीच में बैठा और जुआ खेलने लगा।
लेकिन किस्मत ने फिर धोखा दिया।
आखिरकार जब कुछ ना बचा तो उसने अपनी घड़ी दांव पर लगा दी।
फिर भी सब हार गया।
उसके सामने बैठे शमशेर खान जो नशे में चूर था,
कहकहा लगाकर बोला,
“अब देख, अब तो मैं तेरी बेटी को अपने घर ले जा सकता हूं।”
राघव ने जल्दी से सर हिला दिया जैसे उसी लम्हे हार मान ली हो।
6. बेटी की तिजारत
रात को शमशेर खान नशे में धुत राघव के घर आया।
दरवाजा खोला तो अंदर आरजू बेहोश पड़ी थी।
उसने लपक कर आरजू को उठाया और घर से बाहर ले गया।
बाहर उसकी शानदार गाड़ी खड़ी थी।
उसने आरजू को गाड़ी में डाला और फौरन इंजन स्टार्ट कर दिया।
राघव के चेहरे पर एक पुरसरार मुस्कुराहट फैली हुई थी।
वो खुद को तसल्ली देता जा रहा था—
“यह आसानी से नहीं मिला शमशेर खान। मेरी बरसों की मेहनत है। सिर्फ ₹4 लाख का मामला नहीं है।”
दूसरी तरफ आरजू की आंख खुली।
उसने देखा कि वह एक शानदार बेडरूम में है।
कमरा बेहतरीन फर्नीचर और कीमती पर्दों से सजा हुआ था।
वो हड़बड़ा कर उठ बैठी।
उसे याद आया कि उसका घर तो टूटा-फूटा और पुराना सा था।
यह सब क्या है?
फिर अचानक उसके दिमाग में याद आया बेहोश होने से पहले क्या कुछ हुआ था—
राघव और शमशेर का उसे पकड़ना।
फिर बाप का इंजेक्शन लगाना।
वो एकदम कांप उठी—
“नहीं, बाबा तो मेरा सहारा था। उसने ही मेरे साथ यह सब क्यों किया?”
7. कोठे की कैद
शमशेर आगे बढ़कर उसे छूने ही वाला था कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई।
वो झुंझला गया—“अब इस वक्त कौन आ गया है?”
दरवाजा खोला तो एक मुलाजिम खड़ा था।
“साहब, नीचे थोड़ी सी इमरजेंसी है। फौरन बुलाया है।”
शमशेर गुस्से में बाहर निकल गया।
आरजू एक बार फिर कमरे में अकेली रह गई।
अचानक खिड़की पर हल्की सी दस्तक हुई।
“आरजू, दरवाजा खोलो। मैं हूं तुम्हारा बाबा।”
आरजू के जिस्म में एक झटका सा लगा।
फिर दूसरी बार आवाज आई—“जल्दी आओ बेटी, मैं तुम्हें यहां से निकालने आया हूं।”
राघव ने खिड़की खोलकर अंदर हाथ डाला और आरजू को बाहर खींचने लगा।
आरजू खौफजदा थी लेकिन फिलहाल वो शमशेर से जान छुड़ाना चाहती थी।
इसलिए बगैर सोचे समझे बाप के साथ बाहर निकल आई।
बाहर एक छोटी सी गाड़ी खड़ी थी।
आरजू ने हिचकिचाते हुए पूछा—
“बाबा, आप मुझे कहां ले जा रहे हैं?”
राघव ने उसे गाड़ी में बिठाते हुए कहा,
“शमशेर मेरा दोस्त है। मेरे हाथों से उसका कुछ नुकसान हो गया था। इसीलिए उसने शर्त रखी थी कि तुम्हें उसके पास छोड़ दूं। मैंने वक्त तौर पर हामी भर ली थी। मगर जैसे ही मौका मिला, मैं तुम्हें छुड़ाने के लिए आ गया हूं।”
गाड़ी तेजी से अंधेरी सड़क पर दौड़ने लगी।
आरजू की आंखों से आंसू बहने लगे।
उसने दिल में सोचा शायद वो अपने बाप को गलत समझ बैठी थी।
शायद वह अब भी उससे वैसा ही प्यार करता है जैसा पहले करता था।
कुछ देर बाद वह शहर से बहुत दूर निकल आया।
आसपास सिर्फ सुनसान मैदान और झाड़ियां थीं।
गाड़ी एक वीरान गली में जाकर रुकी।
आरजू घबरा गई—“यह कहां ले आए बाबा?”
राघव खामोश रहा।
उसने अपनी तरफ का दरवाजा खोला।
नीचे उतरा और फिर आरजू का हाथ पकड़ कर उसे बाहर ले आया।
सामने का मंजर देखकर आरजू के पैरों तले जमीन निकल गई।
छोटी-छोटी कतार में कई इमारतें खड़ी थीं।
हर इमारत के दरवाजे खुले थे।
ऊपर बालकनियों में औरतें और लड़कियां खड़ी नीचे झांक रही थीं।
जैसे ही राघव आरजू को लेकर आगे बढ़ा, कई औरतों ने आवाजें कसना शुरू कर दी।
उनके लिबास अधूरे थे, हंसी बेहयाई से भरी हुई थी।
राघव ने जबरदस्ती आरजू को घसीटकर अंदर ले गया।
सामने एक मोटी सी औरत साड़ी पहने तख्त पर बैठी थी।
राघव ने सीधा आरजू को उसके कदमों में धकेल दिया।
8. इंसाफ और उम्मीद
आरजू का दिल चाहा जमीन फट जाए और वह उसमें समा जाए।
खानमबाई लालच में डूबी आवाज में बोली,
“ऐसे माल के लिए तो हम तुम्हें ना जाने कितने पैसे देने को तैयार हैं।”
यह सुनते ही आरजू एकदम खड़ी हुई और दरवाजे की तरफ भागी।
मगर बाहर कई गुंडे खड़े थे।
वो लपक कर उस पर झपटे और उसे दोबारा घसीटते हुए खानम बाई के कदमों में फेंक दिया।
आरजू बुरी तरह रो रही थी।
अपने बाप के आगे हाथ जोड़कर फरियाद कर रही थी—
“बाबा, मुझे यहां मत छोड़ो। मैं आपकी बेटी हूं।”
लेकिन राघव ने नफरत से मुंह फेर लिया और मुस्कुराता रहा।
नोट जेब में डाले और उठकर चल दिया।
आरजू चीखती-चिल्लाती रह गई।
मगर उसका बाप उसे बेरहम छोड़कर बाहर निकल गया।
शायद उसे अंदाजा ही ना था कि जो जुल्म उसने किया है, उसके बाद वह खुद इस दुनिया में कहीं पनाह नहीं पा सकेगा।
राघव का पूरा इरादा था कि वह जल्दी से यह मुल्क छोड़ दे और बाहर जाकर ऐश की जिंदगी गुजारे।
लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था।
वह एक बड़ी सड़क पार कर रहा था, अपने ही ख्यालों में गुम था।
अचानक एक तेज रफ्तार ट्रक सामने से आया।
राघव को होश ही ना रहा और ट्रक ने पूरी ताकत के साथ उसे टक्कर मार दी।
वह दूर तक सड़क पर लुढ़कता चला गया।
लोग उसकी चीखें सुनकर दौड़े।
राघव की गर्दन टूट चुकी थी, सर से खून बह रहा था।
उसने आखिरी बार ऊपर आसमान की तरफ देखा।
फिर दम तोड़ गया।
करीब खड़े लोग हैरान रह गए।
जब उसकी जेब से नोटों की गड्डियां निकलीं,
जो जिसके हाथ आया, वो नोट लूट कर भाग गया।
यूँ राघव अपनी लालच और गुनाहों के साथ इस दुनिया से रुखसत हुआ।
9. नई सुबह
उधर आरजू कोठे में कैद थी।
वो रोती-बिलखती थी।
लेकिन कोई उस पर रहम ना करता।
आखिरकार उसने तय किया कि अब खुद ही अपनी जान बचानी है।
रात की तारीकी में जब सब ने समझा कि वह बेहोश है,
तो उसे कोठे के पिछले हिस्से में डाल दिया गया।
मगर वह सिर्फ अदाकारी कर रही थी।
जैसे ही सब लोग वहां से हटे,
वो उठ बैठी।
उसने वहीं छोटा सा खंजर निकाला जो एक दिन पहले शमशेर के कमरे से छुपाया था।
उस खंजर की नोक से उसने दरवाजे का ताला तोड़ा।
थोड़े से जोर के बाद दरवाजा खुल गया और वह दबे पांव बाहर निकल आई।
सामने कोठे का वो हिस्सा था जो वीरान और सुनसान था।
चादर लपेटे वह अंधेरी रात में भागती रही।
उसे पता था कि उसकी खाला इसी शहर में रहती है।
वहीं वह महफूज़ रह सकती है।
फज्र की अजान होने से पहले ही वो खाला के घर पहुंच गई।
खाला ने उसे उस हाल में देखा तो हैरान रह गई।
आरजू झर-ओ-कतार रोते हुए अपने ऊपर गुजरने वाले जुल्म की कहानी सुनाने लगी।
खाला ने आगे बढ़कर उसे गले से लगा लिया।
खाला का जवान बेटा भी अफसोस और हमदर्दी भरी नजरों से आरजू को देख रहा था।
कुछ ही दिनों बाद खाला ने सोचा कि अब और कोई मुसीबत ना आए।
उन्होंने रातोंरात आरजू और अपने बेटे की शादी कर दी।
शादी के बाद आरजू की जिंदगी बदल गई।
अब उसका शौहर उसे इज्जत और मोहब्बत देता था।
उसका मुहाफिज बनकर खड़ा था।
आरजू ने बहुत दुख सहने के बाद सुकून पाया।
खाला की जुबान से एक दुआ निकली—
“ऐ अल्लाह, किसी की मां ना मरे वरना औलाद दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो जाती है।”
आरजू ने तो अपने बाप को अपना सब कुछ समझा,
लेकिन उसने ही उसे जिल्लत की दलदल में धकेल दिया।
आखिरकार कुदरत ने इंसाफ किया।
जालिम बाप लालच के साथ दुनिया से रुखसत हुआ
और मासूम बेटी को एक नया सहारा मिल गया।
समाप्त
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