क्लर्क पत्नी ने बेरोजगार पति को तलाक दिया,10 साल बाद पति IAS बनकर मिला… फिर जो हुआ

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तलाक, संघर्ष और मुलाकात – 10 साल बाद

भाग 1: एक साधारण शादी

संध्या मिश्रा और आरव मेहता की शादी बहुत साधारण थी। दोनों मध्यवर्गीय परिवारों से थे। संध्या एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क थी, जबकि आरव ग्रेजुएट था लेकिन बेरोजगार। शादी के शुरुआती सालों में सब ठीक था। आरव सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था, और संध्या की नौकरी से घर चलता था।

धीरे-धीरे संध्या पर जिम्मेदारियां बढ़ती गईं। ऑफिस, घर, रिश्तेदारों के ताने, और आरव की बेरोजगारी – सबका बोझ उसके सिर पर था। लोग कहते, “तुम्हारे पति को कोई काम नहीं मिलता क्या?” संध्या को यह सब चुभता था। आरव अपनी कोशिशों में लगा था, लेकिन सफलता दूर थी।

भाग 2: रिश्तों में दरार

समय के साथ झगड़े बढ़ने लगे। संध्या कहती, “सपनों से घर नहीं चलता। मुझे प्रैक्टिकल आदमी चाहिए।” आरव की आत्मा टूटने लगी। उसने कई बार नौकरी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन हर जगह असफलता मिली। संध्या के ताने, घरवालों का दबाव और समाज की बातें – आरव को अंदर ही अंदर तोड़ने लगीं।

एक दिन संध्या ने साफ शब्दों में कह दिया, “मुझे अब तुम्हारे साथ नहीं रहना। तलाक चाहिए।” आरव ने बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन संध्या का फैसला बदल नहीं पाया। दोनों का तलाक हो गया। आरव ने चुपचाप घर छोड़ दिया। वह कसम खाकर गया, “एक दिन ऐसा बनूंगा कि किस्मत भी सलाम करेगी।”

भाग 3: संघर्ष की राह

तलाक के बाद आरव दिल्ली चला गया। वहाँ उसके पास पैसे नहीं थे, रहने के लिए जगह नहीं थी। उसने छोटी-मोटी नौकरियाँ कीं – ट्यूशन पढ़ाया, किताबें बेचीं, लाइब्रेरी में काम किया। खाने के लिए कई बार भूखा रहना पड़ा। लेकिन उसने हार नहीं मानी। IAS बनने का सपना उसकी आँखों में था।

आरव दिन-रात पढ़ता रहा। उसके संघर्ष की कहानी किसी को नहीं पता थी। वह अकेला था, लेकिन उसकी मेहनत जारी थी। पाँच साल तक लगातार उसने परीक्षा दी, हर बार असफलता मिली। लेकिन छठे साल उसने प्रीलिम्स, फिर मेन्स, फिर इंटरव्यू क्लियर किया। आखिरकार उसका चयन IAS के लिए हो गया।

भाग 4: नई पहचान

अब आरव मेहता IAS अधिकारी था। उसकी पहली पोस्टिंग उसी जिले में हुई जहाँ कभी उसने संघर्ष किया था। पूरा शहर उसकी तारीफ करता था – “बहुत सख्त हैं, ईमानदार हैं, संघर्ष करके बने हैं।” लोग उसकी इज्जत करते थे। लेकिन उसके दिल में एक कोना खाली था, जहाँ संध्या की यादें थीं।

दूसरी ओर, संध्या अब भी उसी कलेक्टरेट में क्लर्क थी। उसने अपनी जिंदगी को जैसे-तैसे संभाल लिया था। लेकिन तलाक के बाद उसके मन में हमेशा एक पछतावा था – “क्या मैंने सही किया? क्या वह आदमी वाकई इतना बुरा था?” लेकिन जिंदगी चलती रही।

भाग 5: 10 साल बाद – आमना-सामना

एक दिन कलेक्टरेट में चर्चा थी – “नए डीएम साहब आ रहे हैं।” संध्या भी सुन रही थी। उसे नहीं पता था कि ये वही आरव हैं। वह फाइलें लेकर डीएम ऑफिस पहुँची। पीए ने कहा, “साहब, अकाउंट्स विभाग की फाइलें लेकर मैडम आई हैं।” आरव ने कहा, “भेजिए अंदर।”

संध्या ने दरवाजा खोला। सामने वही चेहरा था – अब लड़का नहीं, अधिकारी था। दोनों की आँखें मिलीं। एक पल को कमरा ठहर गया। 10 साल का दर्द, दूरी और अनकहे शब्द सामने आ गए। संध्या ने खुद को संभालते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग सर, यह आपकी फाइलें।” आरव ने शांत स्वर में फाइल ली। लेकिन उनकी उंगलियां हल्का सा कांपी, जिसे सिर्फ संध्या ने महसूस किया।

क्लर्क पत्नी ने बेरोजगार पति को तलाक दिया,10 साल बाद पति IAS बनकर मिला... फिर जो हुआ

भाग 6: पुराने जख्म

Aarav hỏi tên. Sandhya nói: “Sandhya Mishra, từ bộ phận tài khoản.” Aarav nhắm mắt lại một giây – như thể biển ký ức đang ngẩng đầu lên. Sau đó, cứng người lại, anh nói, “Ngồi đi.” Sandhya ngồi xuống. Bên trong đang có bão. Đôi mắt của Aarav đang dán vào hồ sơ, nhưng tâm trí anh đã ở phía sau 10 năm.

आरव ने पूछा, “काम बताइए, संध्या मिश्रा।” संध्या को लगा, जैसे किसी ने उसके सीने पर पत्थर रख दिया हो। अब वह सिर्फ नाम से पुकारा गया। रिश्ते की कोई झलक नहीं। संध्या ने फाइलें रखीं, अनुमति मांगी। आरव ने सख्त स्वर में कहा, “ठीक है, देख लूंगा।”

भाग 7: भावनाओं का संघर्ष

संध्या वापस जाने लगी, तभी आरव बोले, “रुकिए।” पहली बार अपनी कुर्सी से उठे। फाइल बंद की और धीमे स्वर में पूछा, “क्या अकाउंट्स विभाग में स्टाफ की कमी है?” संध्या ने जवाब दिया, “नहीं सर।” आरव बोले, “फिर फाइलें तीन हफ्ते क्यों रुकी रहीं?” संध्या ने सिर झुका लिया, “गलती मेरी है।”

आरव ने रुमाल निकालना चाहा, लेकिन अचानक रुक गए। 10 साल पहले यही संध्या उन्हें ताना देती थी, “रुमाल भी मैं खरीद कर दूं।” आरव को वह याद आ गया। उनकी आँखों में एक पल को दर्द आया, लेकिन तुरंत खुद को सख्त बना लिया।

भाग 8: अतीत की परछाईं

शाम को ऑफिस में भीड़ कम हो गई। संध्या रिकॉर्ड रूम में फाइलें ढूंढ रही थी, तभी लाइट चली गई। कमरा अंधेरा, जगह तंग। अचानक पीछे धीमे कदमों की आवाज आई। सामने थे – आईएएस आरव मेहता। संध्या के हाथ से फाइलें गिर गईं। दोनों इतने करीब पहली बार खड़े थे। अंधेरे में सिर्फ मोबाइल की रोशनी थी।

आरव ने धीरे से कहा, “आप डर क्यों रही हैं?” संध्या ने कांपते हुए कहा, “नहीं, बस लाइट चली गई थी।” आरव ने टॉर्च ऑन की, कमरा रोशन हो गया। उन्होंने उसकी गिरी फाइलें उठाकर दी। उनके हाथ एक पल को छू गए, वही पुरानी धड़कनें लौट आईं।

भाग 9: दिल की बात

संध्या ने हिम्मत कर के पूछा, “आप कैसे हैं?” एक लंबा मौन। फिर आरव ने कहा, “अच्छा हूँ।” संध्या ने कहा, “बहुत बदल गए हो।” आरव ने ठंडे स्वर में कहा, “समय बदल देता है।” यह शब्द संध्या के दिल में तीर की तरह लगे।

दोनों के चेहरों पर जले हुए रिश्ते के निशान स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। संध्या ने कहा, “मुझे माफ कर दो।” आरव ने एक पल को उसकी आँखों में देखा, फिर बोले, “माफ करना आसान है, भूलना मुश्किल।”

भाग 10: पछतावा और स्वीकार

अगले कुछ दिनों तक दोनों ऑफिस में एक-दूसरे को देखते, लेकिन बात नहीं करते। संध्या को एहसास हुआ कि उसने तलाक देकर गलती की थी। उसने आरव से बात करने की कोशिश की, लेकिन आरव अब सिर्फ अधिकारी थे, पति नहीं।

एक दिन संध्या ने हिम्मत कर के आरव से कहा, “क्या हम पुराने रिश्ते को एक मौका दे सकते हैं?” आरव ने कहा, “रिश्ते काँच की तरह होते हैं। टूट जाएँ तो जुड़ सकते हैं, लेकिन निशान रह जाते हैं।”

भाग 11: समाज की नजरें

ऑफिस में लोग बातें करने लगे – “क्या मैडम और डीएम साहब का कोई पुराना रिश्ता है?” अफवाहें फैलने लगीं। संध्या को लोगों की नजरों का सामना करना पड़ा। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपने काम में और मेहनत शुरू कर दी। आरव भी अपने कर्तव्य में लगे रहे।

भाग 12: नई शुरुआत

एक दिन ऑफिस में एक बड़ा प्रोजेक्ट आया – गाँवों के विकास का। आरव ने संध्या को टीम लीडर बनाया। दोनों ने मिलकर काम किया। गाँव में स्कूल, अस्पताल, सड़कें बनीं। लोगों को रोजगार मिला। दोनों की टीम की तारीफ पूरे जिले में हुई।

काम के दौरान दोनों फिर करीब आए। संध्या ने आरव से कहा, “तुम्हारे संघर्ष ने मुझे सिखाया कि इंसान कभी हार नहीं मानता।” आरव ने मुस्कुराकर कहा, “तुम्हारे ताने ने मुझे मजबूत बना दिया।”

भाग 13: रिश्तों की वापसी

धीरे-धीरे दोनों के बीच की दूरी कम होने लगी। संध्या ने अपने दिल की बात कही, “मैं आज भी तुम्हें चाहती हूँ।” आरव ने कहा, “मैंने तुम्हें कभी छोड़ा ही नहीं, बस वक्त ने हमें दूर कर दिया था।”

दोनों ने समाज की परवाह किए बिना एक-दूसरे को फिर अपनाया। ऑफिस में सबने उनकी हिम्मत की तारीफ की। आरव और संध्या ने मिलकर गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोला, महिलाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया।

भाग 14: कहानी का संदेश

यह कहानी सिर्फ तलाक, संघर्ष और सफलता की नहीं, बल्कि इंसानियत, पछतावे और नए रिश्तों की भी है। आरव ने साबित कर दिया कि मेहनत से सब कुछ संभव है। संध्या ने सीखा कि रिश्तों में धैर्य और समझ जरूरी है।

दोनों की कहानी समाज के लिए मिसाल बन गई। लोगों ने कहा, “सच्चा प्यार कभी हारता नहीं, वक्त चाहे जितना बदल जाए।”

समाप्त