इस छोटे बच्चे ने बड़े-बड़े बिज़नेस मैन को हिला डाला – सबक़ آموز वाक़िया 🥰 | इस्लामी नैतिक कहानी

फुटपाथ से फलक तक: रिजवान की प्रेरणादायक कहानी

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मुंबई का सूरज हमेशा की तरह तेज चमक रहा था, और उसकी तपिश झुग्गियों को तंदूर सा गर्म कर रही थी। उन्हीं झुग्गियों की तंग गलियों में एक 12 साल का लड़का, रिजवान, नारियल के पत्तों से बनी झाड़ुओं की गठरी कंधे पर लटकाए, रोज़ाना की तरह मेहनत की तलाश में निकल पड़ता। उसकी कमीज़ के बटन टूटे थे, पैरों में चप्पल नहीं, मगर चेहरे पर सुकून और आंखों में उम्मीद की चमक थी।

संकटों से भरी शुरुआत

रिजवान के पिता, अनवर खान, एक छोटे समाजसेवी थे, जो झुग्गी वालों के हक़ के लिए लड़ते रहे। एक दिन वे माफिया के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए अचानक लापता हो गए। मां, जुलेखा, इस सदमे को सह न सकीं और बीमारी में चल बसीं। खुशहाल घर एक झुग्गी और फुटपाथ की हकीकत बन गया। कोई रिश्तेदार या यतीमखाना उसे अपनाने नहीं आया। बचपन की मासूमियत अब मेहनत और खुद्दारी में बदल गई।

मेहनत और इज्जत की राह

रिजवान ने झाड़ू बनाना सीखा और खुद ही उन्हें बाजार में बेचने लगा। वह कभी किसी से मदद नहीं मांगता, बस सुबह से शाम तक मेहनत करता और रात को रेलवे पुल के नीचे अखबार बिछाकर सो जाता। उसके लिए यही इज्जत वाली जिंदगी थी। वह अक्सर कहता, “जब तक जिस्म सलामत है, मांगना शर्मिंदगी है।”

एक मुलाकात, जो किस्मत बदल दे

एक दिन चौराहे पर झाड़ू बेचते वक्त, एक सफेद SUV आकर रुकी। उसमें से उतरे एक अमीर बिजनेसमैन, सोहेल मल्होत्रा, अपनी कार की चाबी ढूंढ रहे थे। रिजवान ने उनकी परेशानी भांप ली, चाबी खोजकर उन्हें लौटा दी। सोहेल ने पैसे देने चाहे, पर रिजवान ने कहा, “साहब, नेकी की कीमत नहीं ली जाती।” सोहेल इस जवाब से हैरान रह गए। उन्होंने रिजवान की पृष्ठभूमि पता करने का आदेश दे दिया।

छुपा हुआ वारिस

जांच में पता चला कि रिजवान के पिता, अनवर खान, बड़े सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिनकी करोड़ों की संपत्ति पर जालसाजों ने कब्जा कर लिया था। असली वारिस रिजवान फुटपाथ पर झाड़ू बेच रहा था। सोहेल ने तय किया कि रिजवान को उसका हक दिलाएंगे।

इज्जत और इंसानियत की जीत

सोहेल ने रिजवान को अपने साथ रखा, पढ़ाई का इंतजाम किया और समाज के सामने उसकी सच्चाई उजागर की। एक दिन फाइव स्टार रेस्टोरेंट में कुछ अमीर लोगों ने रिजवान का मजाक उड़ाया, मगर सोहेल ने सोशल मीडिया पर वीडियो डाल दी। पूरा शहर जाग गया—फुटपाथ का बच्चा करोड़ों का वारिस निकला!

नई शुरुआत

रिजवान को उसका हक मिला, मगर उसने दौलत को अपने लिए नहीं, झुग्गियों के बच्चों की तालीम और भलाई के लिए इस्तेमाल किया। उसने ‘अनवर लाइट’ नाम से तालीमी मरकज खोला, जहां गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता। सोहेल ने उसे बेटे की तरह अपनाया, मगर सोहेल के अपने बेटे कबीर और बेटी आरोही को रिजवान की कामयाबी से जलन होने लगी।

असली इम्तिहान

कबीर ने रिजवान पर सवाल उठाए, मगर रिजवान ने हमेशा विनम्रता और प्यार से जवाब दिया। आखिरकार, सोहेल ने दोनों बेटों को गले लगाकर कहा—”एक दिल से जीतेगा, दूसरा अक्ल से।”

फुटपाथ का बादशाह

रिजवान ने अपनी संपत्ति से ‘सुनीता होम’ नामक स्कूल और शेल्टर खोला। उसने कभी शोहरत या दौलत की चाह नहीं की। उसका हथियार था—खलूस, इंसानियत और तालीम। जो बच्चा कभी फुटपाथ पर झाड़ू बेचता था, आज बच्चों का मसीहा बन चुका था।

सीख

असली ताकत पैसों या ओहदों में नहीं, दिल की नरमी और इंसानियत में है।
मेहनत, खुद्दारी और नेकदिली से किस्मत भी बदली जा सकती है।
समाज को बदलने के लिए एक सच्चा इंसान और उसकी खलूस ही काफी है।

रिजवान की कहानी आज भी हर उस बच्चे को उम्मीद देती है, जो फुटपाथ पर सोता है, मगर दिल में आसमान छूने का ख्वाब रखता है।