10वीं फेल लडकी ने करोडपति को कहा मुजे नोकरी दो 90 दिनो में कंपनी का नक्शा बदल दूँगी फिर जो हुआ!

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अनाया: 10वीं फेल लड़की से शर्मा इंडस्ट्रीज की रक्षक तक

मुंबई का बांद्रा कुरला कॉम्प्लेक्स, जहाँ आसमान को छूती कांच और स्टील की इमारतें शहर की रफ्तार और महत्वाकांक्षा का प्रतीक थीं, वहीं एक पुरानी कंपनी शर्मा इंडस्ट्रीज का मुख्यालय, शर्मा टावर्स, अपनी भव्यता के बावजूद संकट में था। यह कंपनी देश की सबसे बड़ी उपभोक्ता वस्तु निर्माता थी, जो नमक, तेल, साबुन, टूथपेस्ट, बिस्किट और स्नैक्स जैसी चीजें बनाती थी।

कंपनी के मालिक 62 वर्षीय अरविंद शर्मा थे, जिन्होंने अपने पिता के छोटे से कारोबार को मेहनत और तेज दिमाग से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में बदल दिया था। अरविंद के लिए बिजनेस एक पूजा था, जिसमें अनुशासन, परफेक्शन और क्वालिफिकेशन का खास महत्व था। उनकी कंपनी में चपरासी से लेकर डायरेक्टर तक हर किसी की भर्ती डिग्री और अनुभव के आधार पर होती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से कंपनी की नींव में दरारें आ चुकी थीं। प्रोडक्ट्स बाजार में टिक नहीं पा रहे थे, मुनाफा घट रहा था, और कर्मचारी अपने जोश खो चुके थे।

दूसरी तरफ, डोंबिवली की एक भीड़भाड़ वाली कॉलोनी में अनाया नाम की 23 वर्षीय लड़की रहती थी। अनाया पढ़ाई में कभी अच्छी नहीं रही, दसवीं फेल थी, लेकिन उसकी आंखें तेज और दिमाग मशीन की तरह चलता था। वह चीजों को वैसे देखती थी जैसे वे हो सकती थीं, न कि वैसे जैसे दिखती थीं। उसके पिता का कई साल पहले देहांत हो चुका था, और घर की जिम्मेदारी उसकी मां और उस पर थी। मां डोंबिवली स्टेशन के पास एक छोटी चाय की दुकान चलाती थीं, जहाँ अनाया दिनभर हाथ बंटाती थी।

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अनाया का ध्यान अक्सर शर्मा इंडस्ट्रीज की फैक्ट्री पर रहता था। वहां से निकलते ट्रक, गेट पर खड़े ड्राइवर, उदास चेहरे लिए कर्मचारी, सिक्योरिटी गार्ड की लापरवाही और कंपनी के मैनेजरों का घमंडी रवैया, सब कुछ उसकी नजरों में कैद हो जाता था। फैक्ट्री की छोटी-छोटी गड़बड़ियां उसे इतनी साफ दिखती थीं जितनी अंदर बैठे मैनेजर्स को कभी नहीं दिखी थीं।

कुछ महीनों से अनाया की मां की तबीयत बिगड़ रही थी। एक दिन अचानक उन्हें सीने में तेज दर्द उठा। डॉक्टर ने बताया कि दिल का ऑपरेशन जरूरी है, जिसका खर्च लाखों में था। चाय की दुकान से दो वक्त की रोटी तो चल सकती थी, लेकिन इतना बड़ा खर्च असंभव था। उस रात अनाया ने नींद खो दी। उसने ठाना कि वह सीधे अरविंद शर्मा से मिलेगी और मदद मांगेगी, लेकिन मदद भीख मांगकर नहीं, बल्कि अपनी काबिलियत दिखाकर।

अगली सुबह अनाया साधारण कपड़ों में शर्मा टावर्स के गेट पर पहुंची। उसकी आंखों में आत्मविश्वास था। सिक्योरिटी गार्ड ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और हंसकर कहा, “क्यों आई हो? शर्मा साहब से मिलना है? पागल हो क्या? उनके पास अपॉइंटमेंट होता है।” अनाया ने शांत स्वर में कहा, “मुझे उनसे मिलना है।” गार्ड ने धकेलने की कोशिश की, लेकिन अनाया वहीं खड़ी रही। उसने पूरे दिन वहीं बिताया। अगले दिन, फिर उसके अगले दिन, और एक हफ्ता गुजर गया।

उसकी जिद देखकर गार्ड परेशान हो गए और मामला सिक्योरिटी हेड तक पहुंचा। जब अरविंद शर्मा को पता चला कि एक लड़की एक हफ्ते से बाहर खड़ी है, तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने तुरंत आदेश दिया, “उसे अंदर बुलाओ। देखता हूं किस हिम्मत से मेरा वक्त खराब कर रही है।”

जब अनाया शर्मा टावर्स के आलीशान केबिन में दाखिल हुई, तो उसने वहां की भव्यता देखकर भी कोई डर या आश्चर्य नहीं दिखाया। वह सब कुछ ऐसे देख रही थी जैसे किसी समस्या का विश्लेषण कर रही हो। अरविंद शर्मा ने घमंड भरे स्वर में पूछा, “क्या चाहती हो तुम? क्यों मेरा वक्त खराब कर रही हो?”

अनाया ने बिना झिझक कहा, “मुझे आपकी कंपनी में नौकरी चाहिए।” शर्मा ठहाका मारकर हँसे, “नौकरी चाहिए? कौन सी डिग्री है तुम्हारे पास?” अनाया ने जवाब दिया, “मैं दसवीं फेल हूं।” यह सुनकर शर्मा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। “दसवीं फेल और तुम मेरी कंपनी में नौकरी मांग रही हो? हिम्मत कैसे हुई?”

लेकिन अनाया ने अपनी जगह नहीं छोड़ी। उसने दृढ़ स्वर में कहा, “साहब, मुझे सिर्फ तीन महीने का वक्त दीजिए। अगर तीन महीने में मैंने आपकी कंपनी का नक्शा नहीं बदल दिया, तो आप मुझे जेल भेज दीजिए। मैं खुद पुलिस के सामने कहूंगी कि मैंने आपके साथ धोखाधड़ी की है।”

अरविंद शर्मा हक्का-बक्का रह गए। उन्होंने सोचा या तो यह लड़की पागल है या कुछ खास है। उन्होंने तीखे अंदाज में पूछा, “तुम्हें क्यों लगता है कि तुम वो कर सकती हो जो मेरे लाखों की तनख्वाह लेने वाले मैनेजर्स नहीं कर पा रहे?”

अनाया ने आत्मविश्वास से कहा, “क्योंकि आपके मैनेजर्स कंपनी को ऊपर से देखते हैं और मैं उसे नीचे से देखती हूं। मुझे पता है कि आपकी फैक्ट्री के गेट नंबर तीन से रोज हजारों लीटर डीजल चोरी होता है क्योंकि गार्ड ट्रक ड्राइवरों से मिला हुआ है। आपके साबुन के गोदाम में लाखों की बर्बादी होती है क्योंकि छत टूटी हुई है और किसी को परवाह नहीं। राजा बिस्किट बाजार में इसलिए नहीं बिक रहा क्योंकि प्रतियोगी उससे कम दाम में बेहतर क्वालिटी बेच रहे हैं और आपके मैनेजर ने आपको नहीं बताया क्योंकि वे अपनी नौकरी बचाने में लगे हैं।”

अनाया की बातें इतनी सटीक और सच्ची थीं कि शर्मा हैरान रह गए। यह वही बातें थीं जो उन्हें कभी पता नहीं चली थीं। उन्होंने देखा कि अनाया की आंखों में वही आग है जिसकी तलाश उन्हें बरसों से थी। शायद उन्हें अपने जवानी के दिन याद आ गए, जब उन्होंने भी डिग्री नहीं बल्कि जुनून के दम पर शुरुआत की थी।

अरविंद शर्मा ने गहरी सांस ली और फैसला किया, “ठीक है, मैं तुम्हें तीन महीने का वक्त देता हूं। तुम्हारी तनख्वाह ₹10,000 महीने होगी। कोई पद नहीं मिलेगा, कोई कैबिन नहीं मिलेगा। तुम सिर्फ ऑब्जर्वर हो, कंपनी में कहीं भी जा सकती हो, किसी से भी बात कर सकती हो। लेकिन अगर तीन महीने में तुमने कोई फायदा नहीं दिखाया, तो मैं तुम्हें सच में जेल भिजवा दूंगा।”

अनाया के चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान आई, “मंजूर है साहब।”

अनाया ने कंपनी में अपनी पहली सुबह बिताई और महसूस किया कि यहां बाहर की चमक-धमक के पीछे कितना सन्नाटा और सड़न छिपी है। ऑफिस के बड़े-बड़े अफसर मुस्कुराते थे, लेकिन उनकी आंखों में डर और झिझक थी। वहीं फैक्ट्री फ्लोर पर मजदूर धूल, पसीने और शोर के बीच टूटे-फूटे मशीनों से जूझ रहे थे। अनाया ने मजदूरों के बीच बैठकर उनकी तकलीफें सुनी। उसने पाया कि मशीनें इतनी खराब थीं कि हर घंटे आधा घंटा प्रोडक्शन रुक जाता था, लेकिन मैनेजर्स की रिपोर्ट में सब सही बताया जाता था।

मजदूरों ने बताया कि नई मशीनें नहीं खरीदी गईं, जबकि बजट में पैसा दिखाया जाता था। अनाया ने देखा कि गार्ड ट्रकों की चेकिंग नाम मात्र की करते थे। उसने खुद देखा कि दो ट्रक लदे हुए बिना रजिस्टर में नाम लिखे निकल गए। ड्राइवरों से बात करने पर वे घबरा गए। चोरी संगठित थी, जिसमें अंदर के लोग भी शामिल थे।

अनाया ने मार्केट जाकर असली तस्वीर देखी। दादर मार्केट के छोटे दुकानदारों से पूछा कि वे राजा बिस्किट क्यों नहीं रखते। दुकानदारों ने कहा कि बिस्किट महंगा और बेस्वाद है, जबकि प्रतियोगी के ब्रांड सस्ते और अच्छे हैं।

अनाया ने बोर्ड मीटिंग में जाकर चोरी, मशीनों की खराब हालत और बिस्किट के स्वाद की हकीकत सबके सामने रख दी। कई अफसरों ने उसका मजाक उड़ाया, लेकिन अरविंद शर्मा ने सबको रोकते हुए कहा, “यह हमारी ऑब्जर्वर है, जो चाहे कह सकती है।”

अनाया ने मजदूरों के साथ मिलकर मशीनों की मरम्मत शुरू की, चोरी रोकने के लिए गार्डों की ड्यूटी बदली, और खुद निगरानी की। एक रात उसने दो ड्राइवरों को चोरी करते पकड़ा। शर्मा ने जिम्मेदार मैनेजर को निकाल दिया। यह पहली बार था जब किसी बड़े अधिकारी को एक साधारण लड़की की बात पर सजा मिली।

अनाया ने मार्केटिंग टीम के साथ नया रिसर्च किया। दुकानदारों के वीडियो इंटरव्यू बोर्ड मीटिंग में चलाए। इससे अफसरों को समझ आया कि समस्या कितनी गंभीर है।

अरविंद शर्मा ने महसूस किया कि अनाया उनकी कंपनी और सोच को बदल रही है, लेकिन उनका अहंकार अभी भी था।

तीन महीने के अंत में, कंपनी में उत्साह बढ़ा, बिक्री दोगुनी हुई, और नया “राजा” बिस्किट बाजार में छा गया। अरविंद शर्मा ने अनाया को कंपनी का स्पेशल एडवाइजर घोषित किया। उन्होंने कर्मचारियों के सामने कहा कि अब कंपनी में काबिलियत को डिग्री से नहीं, मेहनत और ईमानदारी से तौला जाएगा।

अनाया की मां का ऑपरेशन कंपनी ने पूरा खर्च उठाया। मां स्वस्थ होकर लौटीं, और उन्होंने बेटी को गले लगाकर कहा, “तूने साबित कर दिया कि पढ़ाई से ज्यादा हिम्मत और सच्चाई काम आती है।”

अनाया ने सिर्फ अपनी मां ही नहीं, बल्कि सैकड़ों मजदूरों और हजारों दुकानदारों की जिंदगी बदल दी थी। वह अब शर्मा टावर्स की सबसे ऊपरी मंजिल पर खड़ी थी, उसकी आंखों में वही चमक और विश्वास था, लेकिन अब वह अकेली नहीं थी, पूरी कंपनी उसके साथ थी।

यह कहानी हमें सिखाती है कि काबिलियत कभी डिग्री की मोहताज नहीं होती। डिग्री एक कागज का टुकड़ा है, लेकिन असली ताकत इंसान के हुनर, उसकी सोच और मेहनत में होती है। जब हालात मुश्किल हों, तभी असली जज्बा सामने आता है।

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