दिल्ली की सड़कों पर बिछड़ी मां-बेटे की दर्दनाक कहानी: जब VIP कार में बैठी मां को फुटपाथ पर मिला अपना खोया हुआ बेटा

भूमिका

दिल्ली की व्यस्त सड़कों पर रोज़ाना लाखों लोग अपनी-अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते हैं। कोई ऑफिस जाता है, कोई दुकान, तो कोई अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी के लिए संघर्ष करता है। लेकिन इन्हीं सड़कों पर कभी-कभी ऐसी कहानियाँ जन्म लेती हैं, जो दिल को झकझोर देती हैं। ऐसी ही एक कहानी है राधिका और उसके बेटे दीपक (दीपपू) की, जो किस्मत के खेल में बिछड़ गए थे और वर्षों बाद एक ट्रैफिक सिग्नल पर फिर से मिले। यह कहानी सिर्फ एक मां-बेटे की नहीं, बल्कि समाज की सच्चाई, रिश्तों की गहराई और मजबूरियों की परछाई भी है।

शुरुआत: ट्रैफिक सिग्नल पर एक मासूम बच्चा

राधिका एक पढ़ी-लिखी महिला थी, जो अपने पति वरुण के साथ रोज़ाना बदरपुर बॉर्डर से नेहरू प्लेस अपनी दुकान पर जाती थी। वरुण की कंप्यूटर और लैपटॉप की दुकान थी, जिससे परिवार की अच्छी आमदनी थी। राधिका की ज़िन्दगी अब सुकून भरी थी, लेकिन दिल के किसी कोने में एक अधूरी कहानी दबी थी।

हर दिन ऑफिस जाते समय उनकी कार ट्रैफिक सिग्नल पर रुकती थी, जहां कई बच्चे और बुजुर्ग भीख मांगते या छोटी-मोटी चीजें बेचते दिखते थे। उन्हीं में एक मासूम बच्चा था, जो कभी गुब्बारे बेचता, कभी पान, तो कभी गुलाब का फूल। उसका नाम था दीपपू। उसकी भोली बातें, मासूम मुस्कान राधिका के दिल को छू जाती थी। धीरे-धीरे राधिका को वह बच्चा बहुत पसंद आने लगा था। वह हर बार उससे कुछ न कुछ खरीद लेती, कभी गुब्बारे, कभी पेन, और चुपके से उसे पैसे भी दे देती।

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एक दिन की घटना: मासूमियत का दर्द

एक दिन राधिका की कार सिग्नल पर रुकी, लेकिन दीपपू वहां नहीं था। उसकी गैरमौजूदगी ने राधिका को बेचैन कर दिया। तभी कुछ बच्चे दौड़कर आए और बताया कि दीपपू का एक्सीडेंट हो गया है। यह सुनते ही राधिका की आंखों में आंसू आ गए। उसने वरुण से कहा कि उसे दीपपू के घर जाना है। वरुण ने उसे वहां उतार दिया और राधिका एक बच्चे के साथ संगम विहार की झुग्गियों में पहुंच गई।

वहां पहुंचकर राधिका ने देखा कि एक बुजुर्ग महिला बैठी थी, जिसे वह पहचानती थी। महिला ने राधिका को देखते ही रोना शुरू कर दिया और बताया कि वह दीपपू को नहीं बचा सकी। राधिका ने जब पूछा कि क्या वह उसका बेटा था, तो महिला ने हां में जवाब दिया। राधिका बेसुध हो गई, छाती पीटने लगी और रोने लगी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि 8 साल बाद उसका बेटा इस हालत में मिल रहा है।

कहानी की जड़ें: अतीत का दर्द

राधिका लखनऊ की रहने वाली थी। 19 साल की उम्र में उसे दीपक नाम के लड़के से प्यार हो गया था। परिवार के विरोध के बावजूद उसने दीपक से शादी कर ली। एक साल बाद उनके बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम दीपक के नाम पर दीपपू रखा गया। लेकिन कुछ ही समय बाद राधिका को पता चला कि दीपक एक हिस्ट्री शीटर था, गैंगस्टरों से जुड़ा हुआ था। एक दिन उसके दुश्मनों ने उसे मार दिया।

राधिका टूट चुकी थी, लेकिन बेटे के सहारे जी रही थी। तभी उसके माता-पिता आए और उसे समझाया कि उसकी जिंदगी अभी लंबी है, वह दोबारा शादी कर ले। लेकिन शर्त थी कि उसे अपने बेटे को छोड़ना होगा। दादी-दादा ने आश्वासन दिया कि वे दीपपू का ध्यान रखेंगे। भारी मन से राधिका ने बेटे को छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ चली गई।

परिवार ने उसकी दूसरी शादी वरुण से कर दी, लेकिन उसकी पिछली शादी और बेटे की सच्चाई छुपा ली गई। वरुण से शादी के बाद राधिका दिल्ली आ गई और वरुण के साथ सुखी जीवन बिताने लगी। लेकिन दिल के किसी कोने में बेटे की याद हमेशा बनी रही।

दीपपू की संघर्ष भरी जिंदगी

दीपपू अपनी दादी के साथ दिल्ली आ गया। दादी ने उसे बहुत प्यार दिया, लेकिन परिवार में कलह रहता था। दादी की तबीयत भी बिगड़ने लगी थी। दीपपू ने देखा कि कई बच्चे सड़क पर सामान बेचकर पैसे कमाते हैं। उसने भी गुब्बारे, पान, और फूल बेचना शुरू कर दिया। इसी दौरान उसकी मुलाकात राधिका से हुई, लेकिन राधिका उसे पहचान नहीं पाई। 8 साल बाद वह बड़ा हो गया था, चेहरे पर गरीबी और संघर्ष की छाप थी।

एक्सीडेंट और सच्चाई का खुलासा

दीपपू का एक्सीडेंट हुआ, तो राधिका उसकी खोज में उसके घर पहुंची। वहां उसकी दादी ने सच्चाई बताई कि वही उसका बेटा है। राधिका का दिल टूट गया। वह अस्पताल गई, जहां दीपपू भर्ती था। तीन दिन बाद जब दीपपू को होश आया, तो राधिका ने उसे बताया कि वह उसकी मां है। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाकर खूब रोया। राधिका ने तय किया कि अब वह अपने बेटे को कभी नहीं छोड़ेगी।

रिश्तों की परीक्षा: वरुण की प्रतिक्रिया

राधिका ने वरुण को फोन किया, लेकिन वरुण नाराज़ हो गया। उसे लगा कि उससे बड़ा धोखा हुआ है। उसने राधिका का नंबर ब्लॉक कर दिया और उससे सारे रिश्ते तोड़ने का फैसला कर लिया। राधिका टूट चुकी थी, लेकिन उसे तसल्ली थी कि उसका बेटा उसके पास है।

कुछ दिनों बाद वरुण, उसकी मां और बहन संगम विहार आए। राधिका ने बेटे को सीने से लगाकर खूब रोया। वरुण के परिवार ने भी राधिका की हालत देखकर उसे माफ कर दिया और कहा कि वे मां-बेटे को अलग नहीं करेंगे। राधिका, दीपपू, उसकी दादी और वरुण सब साथ घर लौट आए।

नई शुरुआत: परिवार का पुनर्मिलन

राधिका की जिंदगी में फिर से खुशियां लौट आईं। तीन महीने बाद उसे एक बेटा हुआ, फिर दो साल बाद एक बेटी। पूरा परिवार अब सुखी जीवन बिता रहा है। दीपपू उर्फ दीपक अपने छोटे भाई-बहन के साथ खुश है। उसकी बुआ भी आती-जाती रहती है। राधिका अब अपने बेटे को कभी नहीं छोड़ेगी।

समाज के लिए संदेश

यह कहानी सिर्फ राधिका और दीपक की नहीं, बल्कि उन लाखों बच्चों की है जो मजबूरी में मां-बाप से बिछड़ जाते हैं। यह कहानी बताती है कि हालात चाहे जैसे भी हों, एक मां का प्यार कभी खत्म नहीं होता। समाज को चाहिए कि वह मजबूरियों को समझे, रिश्तों की अहमियत को पहचाने और किसी बच्चे को उसकी मां से जुदा न करे।

निष्कर्ष

दिल्ली की सड़कों पर घटी यह सच्ची घटना आंखें नम कर देती है। किस्मत का खेल, मजबूरियों की मार और मां-बेटे का प्यार – इन सबका अद्भुत मेल इस कहानी में देखने को मिलता है। राधिका और दीपक की कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हों, मां-बेटे का रिश्ता सबसे अनमोल होता है।

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