कहानी: “असली पहचान”
सुबह के 9:30 बजे थे। मुंबई के नरीमन पॉइंट पर स्थित एक भव्य कॉर्पोरेट ऑफिस के बाहर महंगी गाड़ियों की कतार लगी थी। चमकते जूते, टाई और महंगे सूट पहने लोग गाड़ियों से उतर रहे थे। हर चेहरे पर सफलता की चाह और प्रतिस्पर्धा का भाव था। उसी भीड़ में एक बुजुर्ग व्यक्ति, लगभग 60 वर्ष के, पुराने कपड़े पहने, फटे बैग के साथ धीरे-धीरे ऑफिस की ओर बढ़ रहे थे। उनके जूते घिसे हुए थे, चाल में थकान थी, और चेहरे पर गहरी शांति थी। उनका नाम था दिनेश चंद्र।
कोई भी उनकी ओर ध्यान नहीं देता था। सबकी नजर में वे एक साधारण सफाई कर्मचारी थे। लेकिन असलियत कुछ और थी। दिनेश चंद्र उस कंपनी के असली मालिक और वारिस थे। वर्षों विदेश में कंपनी के बड़े डिवीजन को संभालने के बाद वे भारत लौटे थे। उन्होंने फैसला किया कि वे अपनी पहचान छिपाकर देखेंगे कि उनकी टीम कैसी है, कौन ईमानदार है, कौन चापलूसी करता है, और कौन अपने पद के घमंड में मानवता भूल गया है।
दिनेश चंद्र ने सफाई कर्मचारी का रूप धारण किया। हाथ में झाड़ू, कमर झुकी हुई, चेहरे पर विनम्रता। वे ऑफिस के अंदर गए। गेट पार करते ही एक महिला तेज़ी से उनकी ओर बढ़ी। उसका नाम था नंदिनी शर्मा, कंपनी की असिस्टेंट मैनेजर। वह कठोर स्वभाव की थी और अपने अधीनस्थों पर सख्ती के लिए जानी जाती थी।
नंदिनी ने ऊपर से नीचे तक दिनेश चंद्र को देखा और कठोर स्वर में बोली, “यहां क्यों खड़े हो? जल्दी सब साफ करो। यह तुम्हारी खड़े रहने की जगह नहीं है।” दिनेश चंद्र ने सिर झुका लिया, उनके सीने में हल्का दर्द हुआ, लेकिन चेहरे पर शांति बनाए रखी। वह चुपचाप झाड़ू उठाकर कोने में चले गए। नंदिनी ने जाते-जाते व्यंग्य किया, “यहां आलसी मत दिखना, नहीं तो ज्यादा दिन टिक नहीं पाओगे।” आसपास के कर्मचारी मुस्कुरा उठे, कुछ चुपके से हंसे, किसी ने भी यह नहीं सोचा कि जिसे वे साधारण समझ रहे हैं, वही कल उनके भविष्य का फैसला करेगा।
दिनेश चंद्र ने मन ही मन प्रतिज्ञा की कि वह सब कुछ देखेंगे, सहेंगे और सही समय पर सच्चाई सबके सामने लाएंगे।
दिनभर ऑफिस में हलचल थी। लंच टाइम पर कुछ कर्मचारी जोर-जोर से हंस रहे थे, कुछ कॉफी के मग के साथ गपशप कर रहे थे। दिनेश चंद्र चुपचाप सफाई में लगे थे। अचानक एक महिला बोली, “देखो नया सफाई कर्मचारी कितना देहाती है, लगता है पहली बार बड़े ऑफिस में आया है।” पास बैठी लड़की ने कहा, “लिफ्ट का बटन दबाना भी नहीं जानता।” एक और कर्मचारी ने जोड़ा, “कल फिर से हमारे साथ कैंटीन में खाना मांगने मत आना।” सबकी हंसी गूंज उठी। माहौल में घृणा और अहंकार था। दिनेश चंद्र ने सिर नहीं उठाया, बस हल्की मुस्कान के साथ सबके चेहरे याद करते रहे।
कुछ देर बाद सब चले गए। दिनेश चंद्र सफाई करते रहे। उनके अंदर कहीं गुस्से की चिंगारी थी, लेकिन उन्होंने मन शांत रखा। वे जानते थे कि भावुक हो गए तो योजना बिगड़ जाएगी। उन्हें धैर्य रखना था।
शाम को ऑफिस के बाहर नंदिनी लग्जरी कार में बैठ रही थी। उसके चेहरे पर अहंकार था। फोन पर बोली, “आज रात मुझे फाइव स्टार रेस्टोरेंट में ले जाना, सस्ते कैफे में नहीं जाऊंगी।” दिनेश चंद्र ने एक पल दृश्य देखा और सोचा, “यह अहंकार ज्यादा दिन नहीं चलेगा।”
ऑफिस में दिनेश चंद्र की मुलाकात छोटे लाल से हुई। छोटेलाल कई सालों से कंपनी में सफाई कर्मचारी थे। सीधे-सादे, कम बोलने वाले, मेहनती इंसान। लोग उनका मजाक उड़ाते, कोई ‘बूढ़ा सफाई कर्मचारी’ कहता, कोई कपड़ों पर तंज कसता। लेकिन छोटेलाल कभी कुछ मन में नहीं रखते थे।
एक दिन दिनेश चंद्र ने पूछा, “भाई, इतने सालों से यहां हो। लोग जब अपमान करते हैं, बुरा नहीं लगता?” छोटेलाल हंसकर बोले, “सम्मान ऊपर से मिलता है। जो आज हंस रहे हैं, कल भूल जाएंगे। अगर हम ईमानदारी से काम करें, तो मन शांत रहता है।” यह शब्द दिनेश चंद्र के मन को छू गए। उन्होंने महसूस किया कि असली मजबूती इसी इंसान में है।
खाने के समय छोटेलाल अपनी रोटी बांट देते थे। एक दिन उन्होंने दिनेश चंद्र को आधी रोटी दी, “ले बेटा, तू भी खा ले। मैं अकेला हूं, मेरा चल जाता है। तू जवान है, तुझे ताकत चाहिए।” दिनेश चंद्र की आंखें नम हो गईं। उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि सबसे पहले न्याय छोटेलाल को मिलेगा।
दिन बीतते गए। एक दिन खबर आई कि कंपनी के कोऑपरेटिव सोसाइटी से पैसे चोरी हो गए हैं। ऑफिस में हड़कंप मच गया। नंदिनी ने सबके सामने छोटे लाल पर चोरी का आरोप लगाया। छोटेलाल कांपते हुए बोले, “मैडम, मैंने कुछ नहीं किया।” लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। एचआर ने छोटेलाल को चेतावनी दी। छोटेलाल चुपचाप सिर झुकाकर चले गए। दिनेश चंद्र ने यह सब देखा और उनका मन टूट गया।
रात को ऑफिस खाली होने के बाद दिनेश चंद्र सिक्योरिटी रूम में गए। उन्होंने कैमरे की रिकॉर्डिंग देखी। साफ दिखा, छोटेलाल सिर्फ पानी रखकर चले गए थे, पैसे के बॉक्स को छुआ तक नहीं। दिनेश चंद्र ने वीडियो कॉपी कर लिया। उन्होंने ठान लिया कि अब अन्याय नहीं सहेंगे।
अगले दिन ऑफिस में शांति थी। मुख्य गेट पर एक काली लग्जरी कार रुकी। उसमें से दिनेश चंद्र अपने असिस्टेंट के साथ उतरे, पूरी अथॉरिटी और परिपक्वता के साथ। सब हैरान थे, यह वही बुजुर्ग था जिसे वे साधारण कर्मचारी समझते थे। मीटिंग हॉल में सब इकट्ठा हुए। नंदिनी ने मुस्कान के साथ स्वागत किया, लेकिन पहचान नहीं पाई।
मीटिंग शुरू हुई। दिनेश चंद्र ने स्क्रीन पर सीसीटीवी फुटेज चलवाई, जिसमें छोटेलाल पर झूठा आरोप लगाया गया था। सब देख रहे थे कि छोटेलाल निर्दोष थे। हॉल में सन्नाटा छा गया।
दिनेश चंद्र बोले, “पिछले कुछ दिनों से मैं यहां था, एक साधारण इंसान के रूप में। मैं देखना चाहता था कि कौन ईमानदार है, कौन सिर्फ पद के घमंड में है। देखा कि कैसे एक मेहनती इंसान पर आरोप लगाया गया।” नंदिनी का चेहरा सफेद पड़ गया।
दिनेश चंद्र ने छोटेलाल को बुलाया, “आज से आप कंपनी के लॉजिस्टिक कोऑर्डिनेटर हैं। यह आपकी ईमानदारी और मेहनत का इनाम है।” छोटेलाल की आंखों में आंसू थे। दिनेश चंद्र ने सबको संबोधित किया, “जिनमें मानवता और ईमानदारी की कमी है, उनके लिए इस कंपनी में जगह नहीं।”
नंदिनी को कंपनी से निकाल दिया गया। बाद में दिनेश चंद्र ने उससे कहा, “जिंदगी यहीं खत्म नहीं होती। तुम्हें बदलने का मौका है। अहंकार अस्थाई सम्मान देता है, लेकिन सब छीन लेता है। हमारे पास ट्रेनिंग प्रोग्राम है, चाहो तो नई शुरुआत कर सकती हो।” नंदिनी ने सिर झुकाकर धन्यवाद दिया और चली गई।
अगले दिन से ऑफिस का माहौल बदल गया। कर्मचारी कंधे से कंधा मिलाकर काम करने लगे। सबने समझ लिया कि असली पहचान पद, पैसे या कपड़ों से नहीं बल्कि चरित्र और मानवता से होती है। कभी किसी को छोटा मत समझो, क्योंकि कौन जाने किसके पास क्या छिपी प्रतिभा है।
सीख:
कभी किसी को उसकी स्थिति या कपड़ों से मत आंकिए। असली पहचान इंसान के चरित्र, ईमानदारी और मानवता से होती है। पद, पैसा और अहंकार अस्थाई है, लेकिन सम्मान और सच्चाई हमेशा जीवित रहती है।
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