एक अहंकारी लड़की का विकलांग लड़के पर ज़ुल्म… फिर ऊपरवाले का ऐसा इंसाफ, जिसने सबको हिला दिया!
दोस्तों, जब किस्मत पलटती है, तो घमंड जमीन पर गिर जाता है। प्रिया शर्मा एक अमीर घराने की घमंडी लड़की थी, जो शहर के सबसे बड़े बिजनेस टकूनों में से एक की बेटी थी। पैसा, शोहरत, सुंदरता—उसके पास वो सब कुछ था जिसका लोग सिर्फ सपना देखते थे। उसकी सुबह महंगी गाड़ियों की सवारी से होती थी और उसकी जिंदगी तेज रफ्तार पार्टियों और झूठे दोस्तों से घिरी हुई थी। वह जमीन पर चलती थी, लेकिन उसके पैर जमीन पर नहीं, अहंकार और घमंड के बादलों पर रहते थे।
प्रिया का घमंड
प्रिया की नजर में इंसान की कीमत उसके बैंक खाते, उसके ब्रांड और उसकी सामाजिक हैसियत से होती थी। गरीबी, मजबूरी और सादगी को वो एक शर्मनाक धब्बा समझती थी। वह शहर के सबसे अच्छे इंटर कॉलेज में पढ़ती थी और वहां उसका मकसद सिर्फ अपने दोस्तों के बीच दिखावा करना था। उसके चारों ओर हमेशा उसी की जैसी बिगड़ी हुई लड़कियों और लड़कों का समूह रहता था। उनका काम बस एक ही था—नए विद्यार्थियों को, खासकर उन्हें जो उनके स्तर के नहीं थे, तंग करना और मजाक बनाना। यह उनके लिए एक मनोरंजन था, एक अय्याशी।
रोहन का आगमन
एक दिन उनकी इस नफरत भरी दुनिया में रोहन आया। वह उस इंटर कॉलेज में स्कॉलरशिप लेकर दाखिल हुआ था। वह एक बहुत ही गरीब परिवार से था, लेकिन बहुत होशियार था। उसकी सबसे बड़ी पहचान उसकी बाहरी शक्ल नहीं थी, बल्कि उसका एक शारीरिक दोष था। वह एक टांग से लंगड़ा कर चलता था। बचपन में किसी दुर्घटना में उसकी टांग खराब हो गई थी।
उसके पास ना महंगे कपड़े थे, ना नया फोन। बल्कि सिर्फ कुछ किताबें, आंखों में एक अजीब सी शर्म और संकोच और चेहरे पर एक असाधारण शांति थी। जिस दिन प्रिया ने उसे पहली बार गलियारे में लंगड़ा कर चलते हुए देखा, उसने अपनी सहेलियों निशा और ऋतू को कोहनी मारी। “देखो लड़कियों, न्यू एडमिशन लगता है। यह इंटर कॉलेज अब भिखारी बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का कार्यक्रम चला रही है।” उसकी बात पर सब जोर-जोर से हंसने लगे।
प्रिया का शिकार
उस दिन के बाद रोहन उनका पसंदीदा निशाना बन गया। वह उसे “लंगड़ा”, “अपंग”, “बेचारा” जैसे नामों से पुकारते। जब वह कैंटीन में खाना लेने जाता, तो वे जानबूझकर उसके रास्ते में रुकावट डालते ताकि वह गिर जाए। लेकिन एक चीज जो प्रिया को सबसे ज्यादा गुस्सा दिलाती थी, वह था रोहन का जवाब ना देना। वह कभी पलटकर जवाब नहीं देता था। ना उसने कभी गुस्से का इजहार किया, ना ही कभी किसी टीचर से शिकायत की। जब वे उसे अपमानित करते, तो वह बस एक हल्की सी अजीब सी मुस्कुराहट के साथ उन्हें देखता और खामोशी से आगे बढ़ जाता।
उसकी वह छुपी हुई मुस्कुराहट प्रिया के अहंकार पर थप्पड़ की तरह लगती थी। प्रिया उसकी इस सहनशीलता को उसकी बुझदिली और कमजोरी समझती थी। वह यह समझ ही नहीं पा रही थी कि यह बुझदिली नहीं, बल्कि यह हिम्मत और सब्र था। समय गुजरता गया और रोहन पर प्रिया का अत्याचार बढ़ता गया।
शैतानी योजना
एक दिन निशा ने प्रिया को एक शैतानी सलाह दी। “प्रिया, सिर्फ उसे परेशान करने से क्या फायदा? उसके दिल को तोड़ कर दिखाओ। उसे अपने प्यार के जाल में फंसाओ। उसे यकीन दिलाओ कि इंटर कॉलेज की सबसे खूबसूरत लड़की उस पर फिदा हो गई है। उसको सपने दिखाओ। उसके दिल में उम्मीद जगाओ और फिर इंटर कॉलेज की सालाना पार्टी में सबके सामने स्टेज पर उसकी मोहब्बत को ठुकरा देना। उसे बताना कि यह सब सिर्फ एक शर्त थी। एक मजाक था।”
यह योजना सुनकर प्रिया के अंदर का शैतान नाच उठा। जिस्मानी चोट तो भर जाती है, लेकिन दिल पर लगी चोट कभी नहीं भरती। यह उसकी आत्मा को घायल करने का सबसे बुरा तरीका था। प्रिया ने चुनौती मान ली। अगले दिन से प्रिया का मिशन रोहन शुरू हुआ।

प्रिया का नया रूप
उसने अपना व्यवहार 180 डिग्री बदल दिया। वह लाइब्रेरी में जाकर जानबूझकर रोहन के पास वाली सीट पर बैठ गई। उसने उसे नोट्स मांगने के बहाने बात शुरू की। रोहन उसकी आवाज सुनकर हैरान हो गया। जैसे उसे यकीन ही नहीं आ रहा हो कि प्रिया शर्मा उससे इतनी नरमी से बात कर रही है। उस दिन उसने प्रिया को बहुत सब्र से वो टॉपिक समझाया।
इस तरह यह खेल शुरू हो गया। प्रिया रोज किसी ना किसी बहाने उससे मिलती। वह उसके सामने ऐसा व्यवहार करती जैसे वह अपनी अमीर और खोखली जिंदगी से थक चुकी हो। वह रोहन को कहती, “रोहन, मेरे दोस्त सिर्फ मतलबी हैं। आप पहले इंसान हो जिससे बात करके मुझे दिल का सुकून मिलता है।” धीरे-धीरे रोहन उससे थोड़ा खुलने लगा। वह प्रिया को अपने घर के बारे में, अपनी मां के बारे में बताता। उसका सपना था कि वह बड़ा आदमी बनकर अपनी मां को एक आरामदायक जिंदगी दे।
सच्चाई का सामना
प्रिया ने इस एहसास को अपने अहंकार के नीचे दबा दिया। हर रोज वह उसके दिल में झूठी मोहब्बत का एक नया बीज बो रही थी। कुछ सप्ताह गुजर गए। प्रिया ने रोहन को पूरी तरह यकीन दिला दिया था कि वह सच में बदल चुकी है और अब वह उससे प्यार करती है। अब समय आ गया था अपनी योजना के आखिरी हिस्से को पूरा करने का।
पार्टी का दिन
एक शाम प्रिया ने रोहन को बाग में मिलने के लिए बुलाया। उसने बहुत ही गंभीर चेहरा बनाकर कहा, “रोहन, जब से मैं आपसे मिली हूं, मेरी जिंदगी बदल गई है। मुझे नहीं पता यह कैसे कहूं, लेकिन आई एम इन लव विद यू। मैं आपसे शादी करना चाहती हूं। मैं आपके लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हूं।” यह सुनकर रोहन के चेहरे का रंग उड़ गया। वो पत्थर की तरह खामोश हो गया। लेकिन उसने नजरें झुका ली और कहा, “प्रिया, आप बहुत अच्छी हैं। लेकिन यह बहुत बड़ा फैसला है। मुझे सोचने के लिए कुछ समय चाहिए।”
अपमान का पल
आखिरकार इंटर कॉलेज की सालाना पार्टी का दिन आ गया। प्रिया ने उस दिन खास तैयारी की और सबसे महंगा पहनावा पहना। सब रोहन का इंतजार कर रहे थे। तभी रोहन दरवाजे से अंदर दाखिल हुआ। उसकी चाल में लंगड़ाहट थी। लेकिन आज उसके चेहरे पर एक अजीब सा नूर और उम्मीद थी। वह धीरे-धीरे चलकर प्रिया के पास आया। उसके हाथ में एक छोटा सा तोहफा था। उसने वह तोहफा प्रिया की तरफ बढ़ाते हुए कहा, “प्रिया, मेरा दिल अब संतुष्ट है। यह आपके लिए है।”
यह वह पल था जिसका प्रिया को इंतजार था। उसकी सहेलियों ने इशारे से अपने फोन निकालकर रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। प्रिया ने उसके हाथ से वह तोहफा लिया। एक पल के लिए उसे देखा और फिर जमीन पर फेंक दिया और फिर एक जोर का ठहाका लगाया। प्रिया आगे बढ़ी और सब कुछ सुनाने के लिए ऊंची आवाज में बोली, “तुम्हारी इतनी औकात नहीं कि तुम मुझे तोहफा दो। तुम्हें सच में लगा कि मैं प्रिया शर्मा तुम जैसे गरीब लंगड़े बेसहारा लड़के से प्यार करूंगी? अपनी हैसियत देखी है।”
रोहन का दर्द
हॉल में सन्नाटा छा गया। रोहन का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। प्रिया ने जुल्म की हद करते हुए कहा, “यह हमदर्दी, यह प्यार, यह सब सिर्फ एक शर्त थी। हम सब तो बस तुम्हें तुम्हारी औकात दिखाना चाहते थे।” यह कहकर प्रिया और उसकी सहेलियां जोर-जोर से हंसने लगीं। रोहन की आंखों से आंसू बह रहे थे। उसने एक गहरी सांस ली।
वो नीचे झुका और बहुत सावधानी से जमीन पर पड़ा हुआ तोहफा उठाया। फिर उसने अपनी नम आंखें उठाकर प्रिया की तरफ देखा। उसकी आंखों में नफरत नहीं थी। ना ही गुस्सा। उसकी आंखों में एक अजीब सा दया भाव था प्रिया के लिए। उसने बहुत धीमी लेकिन साफ आवाज में कहा, “प्रिया, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं। मुझे अफसोस सिर्फ इस बात का है कि आप अपने दौलत के अहंकार में इंसानियत का रिश्ता भूल गईं। मैं यहां से यह ठुकराया हुआ तोहफा नहीं बल्कि अपना भरोसा उठाकर जा रहा हूं। आपने मेरा दिल नहीं तोड़ा। आपने अपने जमीर को तोड़ा है। कुदरत आपको जल्द इंसाफ देगी ताकि आप हकीकत देख सकें।”
प्रिया का पछतावा
यह कहकर वह पलटा और उसी तरह लंगड़ाकर हॉल से बाहर चला गया। उस रात के बाद रोहन ने इंटर कॉलेज आना छोड़ दिया। कुछ दिन बाद प्रिया को पता चला कि रोहन और उसकी मां शहर छोड़कर जा चुके हैं। रोहन के वो आखिरी शब्द “कुदरत आपको जल्द इंसाफ देगी” एक भयानक गूंज की तरह प्रिया के कानों में गूंजते रहे।
उसके दिल में एक शिद्दत भरी बेचैनी और पछतावा पैदा हुआ। उसने पहली बार किसी गरीब को इतनी बेदर्दी से तकलीफ पहुंचाई थी। अब उसकी आत्मा में वह पहले जैसा सुकून नहीं था। उसने चोरी-छिपे उस इलाके में जाकर रोहन को तलाश किया जहां वह रहता था। लेकिन वह वहां नहीं मिला। उसने शहर के कोने-कोने में रोहन को तलाश किया, लेकिन वह कहीं नहीं मिला।
कुदरत का फैसला
यह शर्मिंदगी और पछतावा उसे अंदर ही अंदर खाने लगा। फिर कुदरत का फैसला शुरू हुआ। उसने प्रिया को माफी मांगने का मौका नहीं दिया और अब हिसाब चुकाने का समय आ गया था। कई साल बाद की बात है। प्रिया अपनी नई स्पोर्ट्स कार में अपनी दोस्तों के साथ एक लंबी ड्राइव पर निकली थी। वो बहुत तेज रफ्तार से गाड़ी चला रही थी। अचानक सामने से एक तेज रफ्तार ट्रक गलत दिशा से आया।
उसे बचाने के चक्कर में तेजी की वजह से गाड़ी उसके कंट्रोल से बाहर हो गई। वह सड़क पर घूमती हुई एक बहुत बड़े पेड़ से जा टकराई। टक्कर इतनी जोरदार थी कि प्रिया बेहोश हो गई। जब उसकी आंख खुली, तो वह अस्पताल के एक महंगे प्राइवेट कमरे में थी। वह उठने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उठ नहीं पा रही थी। उसे अपनी टांगों में कुछ महसूस नहीं हो रहा था।
अस्पताल का सच
तभी डॉक्टर अंदर आए। उन्होंने टेस्ट रिपोर्ट्स देखी और फिर प्रिया के पिता को किनारे ले जाकर अफसोस के साथ कहा, “मिस्टर शर्मा, हमें बहुत अफसोस है। प्रिया की स्पाइनल कॉर्ड में बहुत गंभीर चोट आई है। नर्व कनेक्शन बुरी तरह खराब हो चुका है।” उन्होंने आगे कहा, “प्रिया अब शायद कभी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाएगी। वह जिंदगी भर के लिए कमर के नीचे से दिव्यांग रहेगी।”
यह शब्द प्रिया के दिमाग में भूकंप की तरह आए। वो जो अपने कदमों पर गर्व करती थी, अब चलने के काबिल नहीं रही थी। उस समय प्रिया की आंखों के सामने रोहन का लंगड़ाता हुआ चेहरा आ गया। उसका वह आखिरी वाक्य “कुदरत आपको जल्द इंसाफ देगी” प्रिया समझ गई थी। यह कुदरत का इंसाफ था।
रोहन की वापसी
उसने एक शारीरिक दोष का मजाक उड़ाया था। कुदरत ने उससे चलने की क्षमता ही छीन ली थी। इधर दूसरी तरफ प्रिया के पिता ने हार नहीं मानी। एक सप्ताह बाद डॉक्टर ने प्रिया के पिता को बुलाकर एक आखिरी उम्मीद दी। “मिस्टर शर्मा, एक ही रास्ता है। अमेरिका में एक हिंदुस्तानी मूल के न्यूरोसर्जन हैं जो इस तरह के पेचीदा ऑपरेशन में महारत रखते हैं। लेकिन वह बहुत महंगी फीस लेते हैं और आसानी से उपलब्ध नहीं होते।”
शर्मा जी ने बिना किसी झिझक के कहा, “मैं अपनी बेटी के लिए अपनी पूरी दौलत दे सकता हूं। बस आप उनसे संपर्क कीजिए।” डॉक्टर के साथ संपर्क किया गया। खुशकिस्मती से वह डॉक्टर अगले हफ्ते एक कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में मुंबई आ रहे थे। शर्मा जी ने तुरंत उन्हें एक निजी विमान के जरिए बुलवाने का इंतजाम किया। डॉक्टर के आने का दिन आ गया।
ऑपरेशन का समय
ऑपरेशन थिएटर ले जाने से पहले वो प्रिया से मिलने कमरे में आए। जैसे ही डॉक्टर कमरे में दाखिल हुए, प्रिया की सांसे रुक गईं। उसकी आंखें हैरानी और तीव्र शर्मिंदगी से फटी की फटी रह गईं। उसके सामने जो डॉक्टर खड़ा था, वह कोई और नहीं बल्कि रोहन था। वही रोहन, वही नरम मिजाजी और वही मुस्कुराहट। फर्क सिर्फ इतना था कि अब वो एक महंगे सूट में था और उसके चेहरे पर हजारों सूर्य का प्रकाश था।
उसकी टांग में अब भी हल्की सी लंगड़ाहट थी, लेकिन उसकी चाल में दुनिया को जीत लेने का आत्मविश्वास था। उसकी आंखों में कोई नफरत या गुस्सा नहीं, बल्कि एक शांत मुस्कुराहट थी। उसने मुस्कुराहट के साथ शर्मा जी से हाथ मिलाया और कहा, “मिस्टर शर्मा, मुझे खुशी है कि मैं आपकी बेटी को ऑपरेशन के लिए समय दे सका।”
प्रिया का पछतावा
प्रिया ने अपने पिता और मां की तरफ देखा जो हैरान थे कि प्रिया के चेहरे का रंग क्यों उड़ गया? प्रिया की आंखों में आंसुओं का सैलाब आ गया। उसने कांपते हुए हाथ से अपने पिता और मां को इशारा किया कि वे कमरे से बाहर चले जाएं। जब कमरे में सिर्फ प्रिया और रोहन रह गए, तो प्रिया और अधिक अपने आंसुओं को ना रोक सकी।
उसने हकलाते हुए सिसकते हुए कहा, “रोहन, मुझे माफ कर दो। प्लीज मुझे माफ कर दो।” उसने व्हीलचेयर पर पड़े-पड़े अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। “मैंने तुम्हारी लंगड़ाहट का मजाक उड़ाया। मैंने तुम्हें अपमानित करके शहर छोड़ने पर मजबूर किया और आज मैं खुद व्हीलचेयर पर हूं। मेरी दोनों टांगे बेजान हैं। कुदरत ने मेरा अहंकार तोड़ दिया।”
रोहन की दया
प्रिया ने और आंसू बहाते हुए कहा, “तुम्हारे जाने के बाद मैंने तुम्हें बहुत ढूंढा। मैं तुमसे माफी मांगकर शांति हासिल करना चाहती थी।” रोहन खामोशी से उसकी बातें सुनता रहा। फिर वह आगे बढ़ा। नरमी से प्रिया का हाथ थामा और कहा, “प्रिया, जिस दिन आपने मुझे पार्टी में अपमानित किया था, मेरा दिल टूट गया था, लेकिन मैंने उसी दिन आपको माफ कर दिया था क्योंकि नफरत में जीना मुश्किल होता है।”
वो मुस्कुराया और आगे बोला, “शहर छोड़ते वक्त मैंने यह कसम खाई थी कि मैं बहुत कामयाब होकर वापस आऊंगा ताकि मेरी हैसियत को लेकर फिर कभी कोई मेरा मजाक ना उड़ा सके। कुदरत ने मुझे कामयाब किया और आज वह वक्त आया कि ऐसा व्यक्ति जिसे तुम तुच्छ समझती थीं, आज तुम्हारी आखिरी उम्मीद बनकर तुम्हारे सामने खड़ा है। आपको यह सजा नहीं, मार्गदर्शन का रास्ता समझना चाहिए। कुदरत चाहती थी कि आपको विनम्रता सिखाए। उसने आपकी टांगे बेजान कर दी ताकि आपका अहंकार मर जाए और अब मुझे खुशी है कि मैं आपको इस तकलीफ से निकाल सकूंगा।”
नया अध्याय
रोहन ने प्रिया के हाथ को दबाकर कहा, “प्रिया, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। और हां, आपकी आंखों में मेरे लिए जो पछतावा और सच्चा दर्द है, वही मेरे लिए आपकी सबसे बड़ी माफी है।” प्रिया की आंखों में नए आंसू आ गए, लेकिन यह आंसू आभार और शांति के थे।
रोहन ने उसी रात प्रिया की पेचीदा सर्जरी की। 6 घंटे का ऑपरेशन जो कमाल की कामयाबी के साथ पूरा हुआ। उसकी मेहनत, कुशलता और शायद कुदरत की रहमत ने एक चमत्कार कर दिखाया। ऑपरेशन के बाद के महीनों में रोहन ने प्रिया का इलाज और ठीक होने का सारा काम संभाल लिया।
एक नई जिंदगी
प्रिया ने पहली बार उसे अपनी जिंदगी की खोखली सच्चाई बताई और बदले में रोहन ने उसे सादगी, दयालुता और सब्र का मतलब समझाया। एक दिन जब प्रिया पहली बार वॉकर के सहारे दोबारा खड़ी हुई, रोहन उसकी तरफ देखकर एक वास्तविक बहुत खूबसूरत मुस्कुराहट के साथ खड़ा था।
उस दिन प्रिया ने रोहन की तरफ देखा और एक निडर नए आत्मविश्वास के साथ कहा, “डॉ. रोहन, क्या आप मेरी पूरी जिंदगी की जिम्मेदारी ले सकते हैं? क्या आप इस बिगड़ी हुई लड़की को अपनी पत्नी के तौर पर स्वीकार कर सकते हैं? जिसने एक दिन आपको अपमानित किया था।”
प्रेम की जीत
रोहन की आंखों में गहरा प्यार छलक आया। वह धीरे से लंगड़ाता हुआ उसके करीब आया। उसके हाथ को थामा और कहा, “प्रिया, आपने मुझे सिर्फ अपमानित नहीं किया था। आपने मुझे अपनी कमजोरी को मेरी ताकत बनाने का हौसला दिया था। और अब आप वह नई प्रिया हैं जिसके दिल में इंसानियत का दर्द है। मुझे यह नई प्रिया चाहिए जिसकी आत्मा अब अपंग नहीं रही। मैं आपको स्वीकार करता हूं प्रिया। मुझे व्हीलचेयर पर बैठी वह लड़की भी स्वीकार थी क्योंकि आपका पछतावा सच्चा था।”
निष्कर्ष
इस तरह उनकी कहानी का एक नया अध्याय शुरू हुआ। वह लड़की जो अपने अहंकार की वजह से लंगड़े लड़के पर हंसती थी, कुदरत के इंसाफ के बाद उसी लड़के की मोहब्बत और ठीक होने का सहारा बनी। दोस्तों, हमेशा याद रखें, सच्ची अपंगता जिस्म में नहीं, दिल और जमीर के अंधेपन में होती है और प्यार ही सबसे बड़ा इलाज है।
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