महिला वकील ने 14 वर्ष के लड़के से शादी क्यों की, फिर अगले दिन महिला के साथ जो हुआ ….

भारत का सबसे अनोखा मामला – अनामिका और नीलेश की कहानी

गर्मियों की झुलसाती दोपहर थी। अदालत में काले कोट पहने वकीलों की भीड़ थी, कोई फाइलें पढ़ रहा था, कोई बहस की तैयारी कर रहा था। उसी भीड़ में एक चेहरा सबसे अलग दिख रहा था – अनामिका राय। उम्र केवल 27 साल, तेज नजर, आत्मविश्वास से भरी एक वकील। बचपन कठिनाइयों में बीता, मां-बाप को छोटी उम्र में खो दिया, रिश्तेदारों के घर पली लेकिन हमेशा ताने ही मिले – “तू अनाथ है, बोझ है!” तभी उसने ठान लिया – बड़ी होकर कानून की पढ़ाई करेगी और समाज के बोझ समझे जाने वालों के लिए लड़ेगी।

उस दिन अदालत में एक नया केस आया – आरोपी था 14 साल का लड़का नीलेश। पुलिस उसे पकड़कर लाई थी। दुबला-पतला शरीर, सूखे होंठ, डर से भरी आंखें, चेहरे पर मासूमियत। उस पर आरोप था – किराने की दुकान से चोरी। जज के सामने पेश किया गया तो लोग कहने लगे – “यह तो बचपन से चोर है, इसे जेल भेज देना चाहिए।”

अनामिका ने नीलेश को देखा तो उसका दिल पिघल गया। वह सोचने लगी – इतना मासूम चेहरा क्या सचमुच चोर हो सकता है? जरूर कोई मजबूरी रही होगी। अभियोजन पक्ष ने कहा – “यह लड़का पहले भी चोरी कर चुका है, मोहल्ले वाले शिकायत करते हैं, इसे सबक सिखाना जरूरी है।” लेकिन जब अनामिका ने बोलना शुरू किया, उसकी आवाज पूरे कोर्ट में गूंज गई – “केवल आरोपों से किसी बच्चे को अपराधी साबित नहीं किया जा सकता। नीलेश की मां नहीं रही, पिता शराबी है, यह बच्चा भूखा-प्यासा गलियों में भटकता है। अगर इसने सचमुच रोटी उठाई है, तो वह अपराध नहीं मजबूरी है।”

अदालत में सन्नाटा छा गया। जज सोच में पड़ गए। कुछ देर की बहस के बाद अदालत ने निर्णय सुनाया – “नीलेश दोषमुक्त है। उसे जेल नहीं भेजा जाएगा बल्कि किसी जिम्मेदार व्यक्ति की देखरेख में रखा जाएगा।”

कोर्ट से बाहर आते ही नीलेश के आंसू निकल पड़े। वह अनामिका से लिपटकर रोने लगा – “दीदी, अगर आप नहीं होतीं तो मैं आज जेल में होता।” अनामिका को अपना बचपन याद आ गया – वही अकेलापन, वही बेबसी। उसने सोचा – अगर इसे संस्था में भेजा तो यह फिर अकेला हो जाएगा। क्यों न मैं ही इसे अपने साथ रखूं?

अगले दिन अनामिका ने अदालत में आवेदन दिया – “नीलेश को मेरी देखरेख में मेरे घर में रहने दिया जाए।” कोर्ट ने मंजूरी दे दी। नीलेश अनामिका के घर आ गया। शुरुआत में वह सहमा रहता, कोने में बैठ जाता, बार-बार पूछता – “दीदी आप मुझे मारेंगी तो नहीं?” अनामिका उसे प्यार से समझाती – “अब तू मेरे साथ है, तुझे कोई नहीं मारेगा।”

धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा। अनामिका ने अच्छे कपड़े दिलाए, स्कूल में दाखिला करवाया, रात को कहानियां सुनाती – “तू अकेला नहीं है, अब मैं हूं तेरे साथ।” दिन गुजरते गए, नीलेश के चेहरे पर आत्मविश्वास लौटने लगा, स्कूल में अच्छा करने लगा। टीचर भी हैरान थे – इतना सहमा बच्चा इतना बदल गया!

लेकिन मोहल्ले वालों की नजरें बदलने लगीं। बातें होने लगीं – “एक जवान अविवाहित औरत और घर में 14 साल का लड़का! कुछ तो गड़बड़ है।” अनामिका इन तानों को नजरअंदाज करती, लेकिन रात को सोचती – “क्या सचमुच मैं गलती कर रही हूं?”

नीलेश भी अब अनामिका को सिर्फ दीदी नहीं मानता था, उसके दिल में एक अजीब सा लगाव था। एक दिन स्कूल में बच्चों ने उसका मजाक उड़ाया – “तेरे मां-बाप नहीं हैं, तू किसी वकील दीदी के घर पल रहा है।” नीलेश रोता हुआ घर आया – “दीदी, सब मुझे चिढ़ाते हैं।” अनामिका ने उसका सिर सहलाया – “अब मैं ही तेरे लिए सब कुछ हूं।”

समाज की दीवारें ऊंची थीं, लेकिन दिल की भावनाएं उन्हें चीर रही थीं। दो साल बीत गए, नीलेश अब 16 साल का हो गया। कद बढ़ चुका था, चेहरा किशोर से जवान की तरफ बढ़ रहा था। लेकिन दिल अभी भी मासूम था। वह हर छोटी बात पर अनामिका से राय लेता – “दीदी, मैं बड़ा होकर आप जैसा वकील बनूंगा।” अनामिका मुस्कुराती – “काश यह बच्चा हमेशा मेरे पास रहे।”

पर अब ताने तेज हो गए। पड़ोस की औरतें बातें करतीं – “वकील औरत अपने घर में 14 साल के लड़के को रखती है!” कभी सामने वाले अंकल बच्चों को समझाते – “उस घर के पास मत जाना।” अनामिका कोशिश करती इन बातों को अनसुना करने की, लेकिन इंसान आखिर इंसान है। रात को अकेली बैठती तो ये शब्द उसके कानों में गूंजते।

धीरे-धीरे दो साल और बीत गए। अब नीलेश 16वें साल में था। स्कूल में कुछ लड़कों ने उसका खूब मजाक उड़ाया – “सुना है, वह तुझे बेटे की तरह नहीं, और किसी तरह रखती है।” नीलेश के दिल पर चोट लगी, गुस्से में लड़ बैठा। स्कूल के प्रिंसिपल ने शिकायत की – “मोहल्ले की बातें अब स्कूल तक पहुंच रही हैं, ऐसे माहौल में पढ़ाई मुश्किल हो जाएगी।”