लखनऊ: हवेली मालिक और नौकरानी की लाश आम के पेड़ के नीचे मिली

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लखनऊ की हवेली में दो लाशें: एक सनसनीखेज़ कहानी

लखनऊ की तपती जून की रात थी। मालहोत्रा हवेली, जिसकी ऊँची दीवारें और जर्जर खिड़कियाँ बीते समय की गवाही देती थीं, अचानक मौत की गवाही देने लगी। सुबह 4 बजे सावित्री देवी, जो 25 वर्षों से हवेली में नौकरानी थीं, रोज़ की तरह पूजा के लिए आंगन साफ़ करने आईं। आम के पेड़ की जड़ों के पास उन्होंने एक लाश देखी। घबराकर उन्होंने “बाबूजी!” पुकारा और घर की ओर दौड़ीं।

राजेश मालत्रा, हवेली के मालिक, 60 वर्षीय सेवानिवृत्त व्यापारी थे। परिवार के अन्य सदस्य—बड़ा बेटा विक्रम, छोटी बेटी अंजलि—भी आंगन में पहुँचे। पेड़ की छांव में पड़ा शव खून से लथपथ था, चेहरे पर कपड़ा बंधा, हाथ रस्सी से जकड़े, शरीर पर चोटों के निशान थे। यह कोई साधारण मौत नहीं थी, बल्कि हिंसक हत्या थी।

मोहल्ले में अफवाहें फैलने लगीं—कोई परिवार की दुश्मनी, कोई चोरी की घटना। थोड़ी देर में पुलिस पहुँची। इंस्पेक्टर अरविंद कुमार ने क्षेत्र को घेर लिया, फॉरेंसिक टीम ने जांच शुरू की। रस्सी, खून के धब्बे, कपड़े पर क्लोरोफॉर्म का अंश—सबूतों से साफ़ था कि सोची-समझी हत्या थी।

जांच की शुरुआत

अरविंद ने परिवार से पूछताछ की। विक्रम ने पड़ोसी रमेश शर्मा पर शक जताया, अंजलि ने कहा कि वह देर तक मम्मी की डायरी पढ़ रही थी। सावित्री ने बताया कि पिछली रात रसोई बंद करके अपने कमरे में गई थी। माली गुलाम नबी ने कहा कि वह दवा लेने शहर गया था, हवेली नहीं आया।

फॉरेंसिक टीम ने रस्सी, मिट्टी, और दीवार के पास घिसाव के निशान देखे। एक चाबी के गुच्छे का रिंग मिला। CCTV की हार्ड ड्राइव में छेड़छाड़ की पुष्टि हुई, रिकॉर्डिंग में समय जंप था। विक्रम ने कबूल किया कि वह स्टडी में देर रात फाइल ढूंढ रहा था।

साजिश का खुलासा

पुलिस ने कॉल डिटेल्स निकालीं। विक्रम की देर रात दो कॉल्स—एक व्यापारी, एक अनजान नंबर। बाद में पता चला कि अनजान नंबर एक ब्रोकर गुलाटी का था, जो अक्सर रमेश के साथ मंडी में ताश खेलता था। गुलाटी ने कबूल किया कि रमेश शर्मा ने दस्तावेजों पर विक्रम का नाम डलवाया, ताकि शक परिवार पर जाए और असली खिलाड़ी बच निकले।

स्टडी में एक गुप्त बॉक्स मिला, जिसमें जमीन सौदे के दस्तावेज, नेता की मोहर, और विक्रम के हस्ताक्षर थे। यह सौदा हवेली के बाग को बिल्डर को बेचने का था। अंजलि और राजेश को गहरा धक्का लगा।

हत्या की रात का सच

रमेश शर्मा की कार आधी रात हवेली के बाहर थी। उसकी पत्नी सुनीता ने कबूल किया कि उसने ताले की जानकारी दी थी, लेकिन हत्या से उसका कोई लेना-देना नहीं था। रफीक ड्राइवर ने बताया कि उसे आदेश मिला था कि कार गेट के पास रोके और इंतजार करे। दो आदमी आए, जिनमें एक की आवाज विक्रम जैसी थी।

फॉरेंसिक रिपोर्ट में दो अलग-अलग दबावों के निशान थे, यानी हत्या में दो लोग शामिल थे। क्लोरोफॉर्म का इस्तेमाल हुआ था, जिसका तेल माली के स्टोर रूम से मिला। स्टडी के कैमरों पर छेड़छाड़ का समय विक्रम की मौजूदगी से मेल खाता था।

अंतिम जाल

इंस्पेक्टर अरविंद ने विक्रम को खुले आरोप की बजाय जाल में फंसाया। स्टडी में नकली दस्तावेज छोड़ दिए, विक्रम ने उनकी तस्वीर सचिव को भेजी, जो नेता के फार्महाउस में था। वहां से कई फाइलें, नक्शे और सौदे से जुड़ी रकम की गिनती के दस्तावेज मिले। एक पत्र में लिखा था कि अगर राजेश मालत्रा सौदे से पीछे हटे तो बाधा को हटाने की जिम्मेदारी विक्रम की होगी।

विक्रम ने कबूल किया कि वह सौदे में शामिल था, पर हत्या नहीं की। लेकिन सबूत उसके खिलाफ थे—कॉल रिकॉर्ड, दस्तावेज, गवाह। विक्रम, नेता और सचिव की गिरफ्तारी हुई।

न्याय की जीत

हवेली की दीवारें उस दिन एक और इतिहास देख रही थीं। धन और लालच से अंधे हुए बेटे की गिरफ्तारी, पिता की आंखों का टूटा विश्वास, बहन की करुण पुकार। राजेश ने अंजलि से कहा, “इज्जत घर की दीवारों से नहीं, कर्मों से बनती है।” अंजलि ने मां के सपने पूरे करने का वादा किया—बाग को ट्रस्ट में देकर स्कूल बनवाएंगी।

सावित्री देवी ने कहा, “पेड़ अगर सही हाथों में जाए तो फिर से फल देता है।” इंस्पेक्टर अरविंद ने रिपोर्ट बंद की और मीडिया से कहा, “यह केस सिखाता है कि लालच और सत्ता की चालें चाहे कितनी भी गहरी हों, सच उजागर हो ही जाता है।”

हवेली अब एक मिसाल बन गई थी—जहां धन से बढ़कर ईमानदारी और रिश्तों का सम्मान ही सबसे बड़ी पूंजी है।

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