सड़क से सपनों तक: मानसी और उसके पिता की कहानी
मुकेश मल्होत्रा एक करोड़पति थे, जिनकी बेटी मानसी सालों पहले एक हादसे में खो गई थी। एक दिन, शहर के सिग्नल पर, मुकेश ने एक छोटी सी लड़की को गाड़ियाँ साफ करते देखा। नंगे पैर, फटे कपड़े, हाथ में गीला कपड़ा, और चेहरे पर मासूमियत – वो थी मानसी। उसकी उम्र मुश्किल से 10-11 साल थी, लेकिन उसकी आँखों में उम्र से ज़्यादा थकान थी।
हर दिन, मानसी उसी सिग्नल पर आती थी, जहाँ लोग अपनी महंगी गाड़ियों में इंसानियत भूल जाते थे। कोई उसे ताने मारता, कोई धक्का देता, कोई पैसे देने का वादा करके चला जाता। लेकिन मानसी मुस्कुराती रहती थी, क्योंकि उसके पास घर नहीं था, माँ नहीं थी, और पेट भरने के लिए यही एक सहारा था।
एक दिन, मुकेश की चमचमाती काली गाड़ी सिग्नल पर रुकी। मानसी भागी और शीशा साफ करने लगी। मुकेश ने उसे अनदेखा किया, लेकिन किस्मत की कहानी यहीं से शुरू हो गई। अगले दिन, मानसी को किसी ने धक्का दे दिया, वो कीचड़ में गिर गई, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। मुकेश ने उसे देखा, और पहली बार उसके दिल में अजीब सा अपनापन महसूस हुआ।

मुकेश ने मानसी से उसका नाम पूछा। उसने मुस्कुराकर कहा, “मानसी।” यही नाम उसकी खोई हुई बेटी का था। मुकेश की आँखों में आँसू आ गए। वो रात भर बेचैन रहा, बेटी की पुरानी तस्वीर देखता रहा। अगली सुबह, उसने मानसी को ढूंढा, जो सड़क पर घायल बैठी थी। मुकेश ने उसकी मदद की, अस्पताल ले गया, खाना खिलाया। मानसी ने कहा, “साहब, सड़क ही मेरा घर है।” उसके शब्दों ने मुकेश को झकझोर दिया।
मुकेश ने गुपचुप मानसी की मदद करनी शुरू की – कभी खाने के लिए पैसे, कभी पढ़ाई के लिए एनजीओ को दान। लेकिन मानसी को नहीं पता था कि जो उसकी मदद कर रहा है, वही उसका खोया हुआ पिता है। एक दिन, मुकेश ने ठान लिया कि अब सच बताना ही होगा। उसने मानसी को बुलाया, उसके लिए नए कपड़े, खिलौने और एक हार लाया – वही हार जो उसने अपनी बेटी के लिए सालों पहले खरीदा था।
मुकेश ने मानसी से कहा, “मैं तुम्हारा पापा हूँ।” मानसी हैरान रह गई। उसने पूछा, “अगर आप मेरे पापा हैं, तो इतने साल मुझे सड़क पर क्यों छोड़ दिया?” मुकेश ने रोते हुए कहा, “मुझे लगा तुम इस दुनिया में नहीं हो।” बारिश शुरू हो गई, और दोनों गले लगकर रो पड़े। तभी अचानक एक गाड़ी आई, मुकेश ने मानसी को बचाया, लेकिन खुद घायल हो गया। अपनी आखिरी सांस में उसने कहा, “अब कोई तुझे सड़क पर नहीं छोड़ेगा।”
मुकेश चला गया, लेकिन उसकी आखिरी चमक ने दुनिया को दिखा दिया कि रिश्ते खून से नहीं, एहसास से जिंदा रहते हैं। सालों बाद, मानसी बड़ी हो चुकी थी। उसने अपने पिता की याद में “सड़क से सपनों तक” नाम से एनजीओ शुरू किया। अब वह सड़क के बच्चों को खाना, शिक्षा और आश्रय देती थी। हर बच्चे की मुस्कान में उसे अपने पिता की आखिरी मुस्कान दिखती थी।
मानसी ने सीखा कि दुख और दर्द से ही इंसान मजबूत बनता है। उसने अपने पिता के सपनों को सच किया – हर बच्चे को एक घर, एक आशा और एक भविष्य दिया। उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार वो आँसू खुशी के थे। उसने साबित कर दिया कि अगर दिल में सच्चाई और प्यार हो, तो हर टूटा सपना एक नई सुबह ला सकता है।
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