पुलिस ऑटो वाले का ऑटो तोड़ रही थी पास में DM मैडम खड़ी थीं फिर जो हुआ…

लाल साड़ी वाली औरत को पुलिस ने समझा आम नागरिक। पता चला तो हिल गया पूरा सिस्टम। यह कहानी एक ऐसी महिला की है, जिसने अपने साहस और सत्यनिष्ठा से न केवल अपने लिए बल्कि समाज के लिए न्याय की एक मिसाल कायम की।

एक सुबह की शुरुआत

डीएम अनीता तिवारी की लाल साड़ी सुबह की धूप में चमक रही थी। एयरपोर्ट का रास्ता लंबा था। पति की फ्लाइट का समय नजदीक आ रहा था। अचानक गाड़ी रुकी। इंजन से धुआं निकल रहा था। “तुम जल्दी जाओ, मैं बाद में आ जाऊंगी,” अनीता ने कहा। पति चिंतित था, लेकिन समय की मजबूरी थी। एक गाड़ी रुकी और पति चला गया। अनीता तिवारी अकेली रह गई। गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही थी। कई बार कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। बोनट खोला, इंजन गर्म था। समझ गई कि अब घर नहीं जा सकती। मैकेनिक चाहिए था।

सड़क पर मदद की तलाश

आसपास देखा। कोई गैरेज नजर नहीं आया। ऑटो का इंतजार करने लगी। 5 मिनट बाद एक ऑटो आया। हाथ हिलाया। नरेश ने ऑटो रोका। “कहां जाना है मैडम?” उसकी आवाज में सम्मान था। “मेरी गाड़ी खराब हो गई है। कोई मैकेनिक मिलेगा?” अनीता तिवारी ने पूछा। नरेश ने गाड़ी की तरफ देखा। “हां मैडम, पास में ही शर्मा जी की दुकान है। बहुत अच्छा काम करते हैं।”

ऑटो में बैठकर अनीता तिवारी सोच रही थी कि आज का दिन अजीब शुरू हुआ था। पहले गाड़ी खराब, अब ऑटो में सफर। जिंदगी में कभी ऑटो नहीं चलाया था। आज पहली बार चल रही थी। नरेश धीरे चला रहा था। बातचीत शुरू हुई। “मैडम, आप कहां रहती हैं?” नरेश ने पूछा। “सिविल लाइंस में,” अनीता तिवारी ने जवाब दिया। नरेश की आंखों में चमक आई। “वहां तो बहुत बड़े लोग रहते हैं।”

पुलिस की समस्या

अनीता तिवारी मुस्कुराई। “हां, कुछ तो रहते होंगे।” रास्ते में ट्रैफिक था। नरेश बात करता रहा। “मैडम, आजकल पुलिस वाले बहुत परेशान करते हैं। हर दिन चालान काटते हैं। गरीब आदमी की कमाई सब ले लेते हैं।” अनीता तिवारी चुप रही। वह जानती थी कि पुलिस की समस्या क्या है। लेकिन आज वह एक आम नागरिक की तरह इस शहर को देख रही थी।

“कितना चालान काटते हैं?” उसने पूछा। “दो-तीन हजार रोज, कभी 5000 भी कहते हैं तेज चला रहे हो। लेकिन मैं हमेशा धीरे चलता हूं,” नरेश की आवाज में दुख था। अनीता तिवारी को समझ आया कि यह समस्या कितनी गहरी है। वह रोज फाइलों में पड़ती थी। आज सुन रही थी।

पुलिस का सामना

आगे सिग्नल था। लाल बत्ती जल रही थी। नरेश ने ऑटो रोका। इंतजार करने लगे। अचानक एक पुलिस की गाड़ी आई। तीन पुलिस वाले उतरे। अनीता तिवारी की सांस रुक गई। इंस्पेक्टर कमलेश आगे था। शिवम कुमार और सिद्धार्थ उसके पीछे। तीनों का चेहरा कड़ा था। कमलेश ने हाथ उठाया। “रुको।” नरेश घबरा गया। ऑटो रोका। कमलेश पास आया। “कागज निकालो,” आवाज खड़ी थी।

नरेश ने कांपते हाथों से कागज निकाले। कमलेश ने देखे, कुछ देर पढ़ता रहा। फिर बोला, “10,000 चालान।” नरेश का चेहरा पीला पड़ गया। “साहब, क्या गलती हुई है?” कमलेश हंसा। “तेज चला रहे हो?” नरेश ने विरोध किया। “साहब, मैं सिर्फ 40 की स्पीड से आ रहा था।” कमलेश का चेहरा लाल हो गया।

“जवाबी लड़ता है,” एक जोरदार थप्पड़ नरेश के गाल पर पड़ा। आवाज गूंजी। अनीता तिवारी का दिल तेज धड़कने लगा। शिवम कुमार और सिद्धार्थ हंस रहे थे। कमलेश ने इशारा किया, “इसे बाहर निकालो। ऑटो तोड़ दो।” अनीता तिवारी को यकीन नहीं आ रहा था। यह वही शहर था जहां वह डीएम थी। यही वह पुलिस थी जो उनके अधीन काम करती थी। लेकिन आज वह एक आम नागरिक थी। कोई नहीं जानता था कि वह कौन है।

नरेश की दयनीय स्थिति

शिवम कुमार ने ऑटो का दरवाजा खोला। “मैडम, बाहर आइए।” अनीता तिवारी चुपचाप उतरी। नरेश रो रहा था। “साहब, यह मेरी रोजी-रोटी है।” कमलेश ने फिर मारा। “चुप रह।” सिद्धार्थ ने लाठी निकाली। ऑटो पर मारने लगा। शीशे टूटने की आवाज आई। हेडलाइट चकनाचूर हो गई। सीट फट गई। नरेश गिड़गिड़ा रहा था। “साहब, मेरे बच्चे भूखे रह जाएंगे।” कोई सुन नहीं रहा था।

अनीता तिवारी खून खल रहा था। लेकिन वह जानती थी कि अभी कुछ बोलना खतरनाक है। पास ही पत्रकार तरुण यादव खड़ा था। वह सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था। ऑटो का ढांचा बिखर गया था। नरेश जमीन पर बैठकर रो रहा था। उसके पास अब कुछ नहीं बचा था। कमलेश अपनी जीत पर खुश था। शिवम कुमार और सिद्धार्थ हंस रहे थे।

अनीता का साहस

अनीता तिवारी से रहा नहीं गया। “तुमने इसका ऑटो क्यों तोड़ा?” आवाज शांत लेकिन कड़ी थी। कमलेश मुड़ा। “क्या कहा?” अनीता तिवारी ने दोहराया। “तुमने इसका ऑटो क्यों तोड़ा? अब तुम्हें इसको नया ऑटो दिलाना पड़ेगा।” कमलेश की आंखें चौड़ी हो गईं। शिवम कुमार और सिद्धार्थ भी हैरान थे।

कमलेश हंसने लगा। “यह साड़ी वाली मैडम मुझे सजा दिलाने की बात कर रही है।” तीनों जोर से हंसे। आसपास के लोग देख रहे थे। अनीता तिवारी का चेहरा शांत था। “अभी हंस लो। बाद में जेल में रोना पड़ेगा।” कमलेश का हंसना रुक गया। गुस्सा चढ़ा। “क्या बोला?” शिवम कुमार आगे बढ़ा। “मैडम, आप किसे धमकी दे रही हैं?”

अनीता का प्रतिरोध

सिद्धार्थ भी पास आ गया। “जानती हैं हम कौन हैं?” अनीता तिवारी ने जवाब दिया। “जानती हूं, तुम भ्रष्ट पुलिस वाले हो।” कमलेश भड़क गया। “आंखें लाल हो गईं। इस ऑटो वाले को छोड़ो। इस मैडम को पकड़ो।” शिवम कुमार और सिद्धार्थ ने अनीता तिवारी का हाथ पकड़ा। नरेश चिल्लाया। “मैडम को छोड़ दो। इनका कोई कसूर नहीं है।” कमलेश ने नरेश को धक्का दिया। “भाग यहां से।” नरेश गिर गया।

अनीता तिवारी को गाड़ी में धकेल दिया। पत्रकार तरुण यादव सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था। उसका कैमरा चल रहा था। वह समझ गया था कि यह बड़ी खबर है। एक मासूम औरत को बेवजह गिरफ्तार किया जा रहा था। एक गरीब ऑटो वाले का रोजगार बर्बाद कर दिया गया था। यह न्याय नहीं था। यह जुल्म था।

पुलिस थाने में

वह चुपचाप गाड़ी के पीछे हो लिया। उसकी बाइक तेज थी। पुलिस की गाड़ी का पीछा करने लगा। रास्ते में वह वीडियो एडिट करता जा रहा था। उसे पता था कि यह वीडियो वायरल होगा, लेकिन वह नहीं जानता था कि यह औरत कौन है। सिर्फ यह देख रहा था कि एक निर्दोष इंसान के साथ अन्याय हो रहा है।

थाने पहुंचकर अनीता तिवारी को अंदर धकेल दिया गया। कमलेश ने रजिस्टर में लिखा आरोप, “पुलिस का अपमान, सरकारी काम में बाधा।” शिवम कुमार ने पूछा, “नाम क्या है?” अनीता तिवारी चुप रही। सिद्धार्थ चिल्लाया। “नाम बताओ।” अनीता तिवारी ने शांति से कहा, “अनीता।”

“कमलेश ने लिखा, ‘अनीता देवी।’” फिर पूछा, “पता क्या है?” अनीता तिवारी ने सोचा सच बताना खतरनाक था। “सिविल लाइंस।” कमलेश हंसा। “सिविल लाइंस की मैडम पुलिस से लड़ रही है।” शिवम कुमार और सिद्धार्थ भी हंसे। “रात भर यहीं रहोगी। कल कोर्ट में पेश करेंगे।”

जेल की बर्बरता

अनीता तिवारी को लॉकअप में डाल दिया गया। बाहर तरुण यादव सब कुछ रिकॉर्ड कर रहा था। लॉकअप में अनीता तिवारी अकेली थी। दीवारें गंदी थीं। फर्श पर धूल थी। एक कोने में पानी का घड़ा था, दूसरे कोने में शौचालय था, बदबू आ रही थी। यहां रोज गरीब लोग लाए जाते होंगे। यहां न्याय नहीं मिलता होगा।

यहां सिर्फ जुल्म होता होगा। अनीता तिवारी ने सोचा वह रोज फाइलों में पढ़ती थी कि पुलिस सुधार चाहिए। आज समझ गई कि कितना सुधार चाहिए। वह यहां की डीएम थी। लेकिन यहां के पुलिस वाले उसे नहीं जानते थे या जानबूझकर नहीं जानना चाहते थे। भ्रष्टाचार इतना गहरा था कि सिस्टम ही खराब हो गया था।

तरुण की मेहनत

उसने घड़ी देखी। शाम के 5:00 बज गए थे। तरुण यादव घर पहुंच गया था। वह वीडियो एडिट कर रहा था। तरुण यादव का कमरा छोटा था। एक टेबल पर लैपटॉप रखा था। वह वीडियो देख रहा था। हर फ्रेम साफ था। आवाज भी अच्छी आ रही थी। पहले ऑटो तोड़ने का सीन, फिर औरत की बात, फिर गिरफ्तारी, फिर थाने तक का पीछा। सब कुछ परफेक्ट था।

उसने टाइटल लगाया, “पुलिस का जुल्म, निर्दोष औरत गिरफ्तार,” फिर डिस्क्रिप्शन लिखा। “एक गरीब ऑटो वाले का रोजगार बर्बाद। एक मासूम औरत को बेवजह जेल। यह है हमारे शहर की पुलिस।” अपलोड बटन दबाया। वीडियो YouTube पर गया। Facebook पर शेयर किया, Instagram पर पोस्ट किया, Twitter पर ट्वीट किया, WhatsApp पर ग्रुप्स में भेजा। फिर इंतजार करने लगा।

सामाजिक जागरूकता

रात के 9:00 बजे तक वीडियो को 1000 व्यूज मिल गए थे। 10:00 बजे तक 10,000, 11:00 बजे तक 5,000 लोग कमेंट कर रहे थे। “यह औरत कौन है? बहुत गलत हुआ है। पुलिस की हरकत शर्मनाक है। इस औरत को इंसाफ मिलना चाहिए।” शेयर हो रहा था, लाइक आ रहे थे। रात के 12:00 बजे तक 1 लाख व्यूज हो गए। तरुण यादव खुश था। उसकी मेहनत रंग ला रही थी लेकिन वह नहीं जानता था कि इस औरत की पहचान क्या बवंडर लाने वाली है।

सिस्टम की प्रतिक्रिया

सुबह तक वीडियो 10 लाख व्यूज पार कर गया था। लोग पागल हो गए थे। कमेंट्स में लड़ाई हो रही थी। कुछ लोग पुलिस के साथ थे। ज्यादा लोग औरत के साथ थे। सुबह 8:00 बजे एक कमेंट आया, “यह औरत हमारे यहां रहती है सिविल लाइंस में।” फिर दूसरा कमेंट। “मैंने इसे कहीं देखा है।” तीसरा कमेंट। “यह कोई साधारण औरत नहीं लगती।” चौथा कमेंट। “इसकी आवाज में दम है।”

पांचवा कमेंट सबसे अहम था। “यह डीएम अनीता तिवारी लगती है।” तरुण यादव का हाथ कांपा। कमेंट पढ़ा। फिर से पढ़ा। Google पर सर्च किया। “डीएम अनीता तिवारी,” तस्वीरें आईं। वही चेहरा, वही आंखें, वही आवाज, वही अंदाज। तरुण यादव की सांस रुक गई। उसने शहर की डीएम को गिरफ्तार होते हुए फिल्माया था। यह सिर्फ खबर नहीं थी, यह भूचाल था।

न्याय की मांग

तरुण यादव ने तुरंत वीडियो का टाइटल बदला। “शहर की डीएम को पुलिस ने किया गिरफ्तार,” डिस्क्रिप्शन अपडेट किया। “डीएम अनीता तिवारी साधारण कपड़ों में थी, पुलिस ने नहीं पहचाना, गिरफ्तार कर लिया। यह है हमारे सिस्टम की सच्चाई।” नया टैग लगाया, “My DM, Arrest My Your Just Justice, Nay Police Brutality.”

अनीता तिवारी का वीडियो फिर से वायरल होने लगा। अब स्पीड दोगुनी थी। हर मिनट हजारों व्यूज आ रहे थे। लोग पागल हो गए थे। कमेंट्स की बाढ़ आ गई थी। “यह बहुत गलत है। डीएम को ऐसे कैसे गिरफ्तार कर सकते हैं। पुलिस की हद हो गई। इन्हें सजा मिलनी चाहिए।”

सड़कों पर प्रदर्शन

सुबह 10:00 बजे तक पूरा शहर जान गया था। न्यूज़ चैनल्स ने खबर उठाई। रेडियो पर चर्चा शुरू हुई। अखबारों के रिपोर्टर दौड़ने लगे। सोशल मीडिया पर तूफान था। “Justice 4m” ट्रेंड कर रहा था। लोग सड़कों पर आने लगे। पहले 10 लोग, फिर 100, फिर 1000। सबके हाथ में मोबाइल था। सबकी जुबान पर एक ही बात थी। “डीएम को रिहा करो।”

पुलिस स्टेशन के बाहर भीड़ जमा होने लगी। मीडिया की गाड़ियां आने लगी। कैमरे लगने लगे। रिपोर्टर्स माइक लेकर खड़े हो गए। वकील भी आ गए। कुछ राजनेता भी नजर आए। सबकी निगाहें थाने के अंदर थीं। थाने के अंदर हड़कंप मचा था। कमलेश, शिवम कुमार और सिद्धार्थ घबराए हुए थे। उन्होंने वीडियो देखा था। कमेंट्स पढ़े थे। समझ गए थे कि बड़ी गलती हुई है।

सिस्टम की हिलाहवाली

लेकिन अब क्या करें? डीएम को छोड़ना होगा। लेकिन कैसे? सबके सामने इतनी बेइज्जती हो गई है। थानेदार परेशान था। एसपी को फोन करना पड़ेगा। एसपी अभी तक सो रहा होगा। उसे भी पता नहीं होगा। कमलेश की जान निकल रही थी। रात को जो औरत उसे साधारण लगी थी, वह शहर की सबसे बड़ी अफसर थी।

शिवम कुमार और सिद्धार्थ का हाल भी यही था। दोनों कांप रहे थे। अनीता तिवारी अभी भी लॉकअप में थी। वह शांत थी। उसे पता था कि अब क्या होने वाला है। बाहर भीड़ बढ़ती जा रही थी। “डीएम को रिहा करो” के नारे गूंज रहे थे। पत्थर फेंके जा रहे थे। थाने की खिड़कियों पर लग रहे थे। पुलिस वाले डर गए थे। लाठी चार्ज करने की हिम्मत नहीं हो रही थी क्योंकि सामने उनका ही बॉस बंद था।

सरकार की प्रतिक्रिया

मीडिया सब कुछ लाइव कवर कर रहा था। देश भर में खबर फैल गई थी। दिल्ली से फोन आने शुरू हो गए थे। राज्य सरकार हिल गई थी। मुख्यमंत्री को जगाना पड़ा था। होम मिनिस्टर की नींद खुल गई थी। डीजीपी की छुट्टी कैंसिल हो गई थी। सब एक ही बात कह रहे थे। “जल्दी से डीएम को रिहा करो।”

दोपहर 12:00 बजे एसपी थाने पहुंचा। उसका चेहरा पीला था। पसीना छूट रहा था। भीड़ को देखकर डर गया। मीडिया को देखकर परेशान हो गया। सीधे थाने के अंदर गया। कमलेश, शिवम कुमार और सिद्धार्थ खड़े थे। तीनों का सिर झुका था।

अनीता का सामना

एसपी चिल्लाया, “यह क्या किया तुम लोगों ने?” कमलेश की आवाज कांपी। “साहब, हमें पता नहीं था।” एसपी ने थप्पड़ मारा। “पता नहीं था? अपने डीएम को नहीं पहचानते हो?” शिवम कुमार बोला, “साहब, वह साधारण कपड़ों में थी।” एसपी ने उसे भी मारा। “साधारण कपड़े पहनना गुनाह है।” सिद्धार्थ रोने लगा। “साहब, अब क्या होगा?”

एसपी ने कहा, “अब तुम्हारी नौकरी जाएगी, शायद जेल भी जाना पड़े।” तीनों की हालत खराब हो गई। एसपी ने लॉकअप की चाबी मांगी। अंदर गया। अनीता तिवारी बैठी थी। चेहरा शांत था। आंखों में तेज था। एसपी ने सलाम किया। “मैडम, बहुत माफी चाहता हूं।”

न्याय का संकल्प

अनीता तिवारी उठी। कुछ नहीं बोली। एसपी ने दरवाजा खोला। “मैडम, आप बाहर आइए।” अनीता तिवारी बाहर आई। तीनों पुलिस वाले सिर झुकाए खड़े थे। एसपी ने कहा, “मैडम, इन तीनों को तुरंत सस्पेंड कर रहा हूं।”

अनीता तिवारी ने पहली बार मुंह खोला। “सिर्फ सस्पेंशन काफी नहीं है।” एसपी समझ गया। “मैडम, एफआईआर भी दर्ज करवाऊंगा।” अनीता तिवारी ने कहा, “उस ऑटो वाले का क्या?” एसपी ने पूछा, “कौन सा ऑटो वाला?”

अनीता तिवारी ने बताया, “नरेश, इन लोगों ने उसका ऑटो तोड़ दिया था।” एसपी ने कमलेश से पूछा, “ऑटो वाले का क्या हुआ?” कमलेश हकलाया। “साहब, वह…” उसका ऑटो।

भ्रष्टाचार का अंत

एसपी समझ गया। “उसे नुकसान हुआ है।” अनीता तिवारी ने कहा, “पूरा ऑटो बर्बाद कर दिया है। वह गरीब आदमी है। उसका रोजगार छीन गया है।” एसपी ने नोट किया। “मैडम, उसे नया ऑटो दिलवा देंगे। सरकारी खर्चे पर।”

अनीता तिवारी ने कहा, “सिर्फ ऑटो नहीं, उसे हर्जाना भी मिलना चाहिए।” एसपी ने हां में सिर हिलाया। “जो आप कहें, मैडम।” अनीता तिवारी ने थाने से बाहर जाने की तैयारी की। एसपी आगे चला। दरवाजा खोला।

समाज का समर्थन

बाहर हजारों लोग थे। सब इंतजार कर रहे थे। “डीएम साहब आ गई!” की आवाजें आईं। मीडिया दौड़ा। कैमरे उन पर फोकस हुए। माइक उनकी तरफ बढ़े। रिपोर्टर सवाल पूछने लगे। “मैडम, आपके साथ क्या हुआ? पुलिस ने आपको क्यों गिरफ्तार किया? अब क्या कार्यवाही करेंगी?”

अनीता तिवारी ने हाथ उठाया। भीड़ शांत हो गई। आवाज साफ और तेज थी। “मेरे साथ जो हुआ है, वह रोज हजारों लोगों के साथ होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं डीएम हूं।” भीड़ सुन रही थी। “अगर मैं साधारण औरत होती तो कोई वीडियो नहीं बनाता। कोई विरोध नहीं करता। मुझे न्याय नहीं मिलता। यह सिस्टम की खराबी है। गरीबों को परेशान करना उनका अधिकार है।”

न्याय की नई परिभाषा

अनीता तिवारी की आवाज में गुस्सा था। “लेकिन आज के बाद यह बदलेगा। जो भी पुलिस वाला गरीबों पर जुल्म करेगा, उसे सजा मिलेगी।” भीड़ चिल्लाई। “डीएम साहब जिंदाबाद!” अनीता तिवारी ने हाथ हिलाया। “एक और बात, उस ऑटो वाले नरेश को न्याय मिलेगा। उसे नया ऑटो मिलेगा। हर्जाना मिलेगा।”

भीड़ खुश हो गई। तालियां बजीं। अनीता तिवारी अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ी। एसपी साथ था। मीडिया पीछे थी। भीड़ रास्ता दे रही थी। एक वकील आगे आया। “मैडम, हम आपके लिए कोर्ट में केस लड़ेंगे।” अनीता तिवारी मुस्कुराई। “शुक्रिया।”

अंतिम सुनवाई

तरुण यादव भी भीड़ में था। उसका कैमरा चल रहा था। वह खुश था। उसकी वजह से न्याय मिला था। एक निर्दोष को सजा मिलने से बच गई थी। तीन भ्रष्ट पुलिस वालों को सजा मिलने जा रही थी। एक गरीब ऑटो वाले को न्याय मिलने जा रहा था। यह पत्रकारिता की जीत थी। सच की जीत थी। न्याय की जीत थी।

अनीता तिवारी गाड़ी में बैठी। एसपी ने दरवाजा बंद किया। ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की। भीड़ रास्ता दे रही थी। “डीएम साहब जिंदाबाद!” के नारे गूंज रहे थे। गाड़ी आगे बढ़ी। थाना पीछे छूट गया। लेकिन यह खत्म नहीं हुआ था। अभी कोर्ट में सुनवाई होनी थी। न्याय मिलना था।

कोर्ट में हलचल

अगले दिन कोर्ट में भीड़ थी। मीडिया थी। वकील थे। तीनों पुलिस वाले हथकड़ी में थे। नरेश भी था। अनीता तिवारी नहीं आई थी। लेकिन उनके वकील थे। जज ने केस सुना। वीडियो देखा, गवाह सुने। तरुण यादव ने पूरी कहानी बताई। नरेश ने अपना दुख बयान किया।

पुलिस वालों के वकील ने बचाव की कोशिश की, लेकिन सबूत सामने थे। वीडियो में सब कुछ साफ था। जज का फैसला आया। “कमलेश को 2 साल की सजा। शिवम कुमार और सिद्धार्थ को एक-एक साल की सजा।” तीनों की नौकरी गई। नरेश को ₹1 लाख हर्जाना मिला। नया ऑटो मिला। सरकारी खर्चे पर।

न्याय की जीत

कोर्ट के बाहर भीड़ खुश थी। न्याय मिल गया था। “इंसाफ की जीत के नारे लग रहे थे।” नरेश रो रहा था। खुशी के आंसू थे। “डीएम मैडम ने मेरी जिंदगी बचा ली। अगर वह नहीं होती तो मैं बर्बाद हो गया होता।” तरुण यादव का इंटरव्यू हो रहा था। “यह पत्रकारिता की जीत है। सच की जीत है। हमारा काम है सच को सामने लाना।”

वकील खुश थे। “यह मिसाल बनेगा। अब कोई पुलिस वाला गरीबों पर जुल्म करने से पहले 100 बार सोचेगा।”

समापन

इस तरह, अनीता तिवारी ने न केवल अपनी पहचान बनाई, बल्कि समाज में एक नई चेतना भी जगाई। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चाई और न्याय के लिए खड़ा होना हमेशा आवश्यक है। चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर इरादा मजबूत हो, तो बदलाव संभव है। अनीता तिवारी की तरह हमें भी समाज में न्याय के लिए आवाज उठानी चाहिए।

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