पति से झगड़ा करके बेटी मायके आई थी मायके लेकिन, अगले दिन पिता ने जो किया उसने सभी को हैरान कर दिया

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सूरजगांव की सुबह सूरज की किरणों से जगमग थी। गलियों में मंदिर की घंटियाँ बज रही थीं और हवा में ताजगी थी। इसी गाँव के एक छोटे-से घर में श्यामल अपनी पत्नी सरिता और बेटी निहारिका के साथ रहता था। श्यामल एक साधारण स्कूल मास्टर था, जिसने अपनी बेटी को हमेशा अपनी आँखों का तारा समझकर पाला था। उसकी पत्नी सरिता ने हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की थी। निहारिका खूबसूरत थी, पढ़ाई में तेज थी, लेकिन उसकी सुंदरता और सफलता ने उसे थोड़ा घमंडी बना दिया था। वह रिश्तों से ज्यादा अपनी शक्ल की परछाई को चाहने लगी थी।

जब शादी की बात आई, निहारिका ने साफ कहा, “पिताजी, मुझे हीरो जैसा पति चाहिए, जो मेरे रंग-रूप के लायक हो।” श्यामल का दिल डूब गया, पर वह पिता था, हार नहीं मानता। उसने चंद्रपुर में विकास को ढूंढा—एक बैंक कर्मचारी, संस्कारी और आकर्षक। निहारिका ने तस्वीर देखी और बिना उत्साह के हामी भर दी। शादी धूमधाम से हुई। श्यामल ने सोचा, अब बेटी सुखी होगी।

चंद्रपुर में विकास के घर माँ मीरा और पिता प्रताप ने निहारिका को बाहें खोलकर अपनाया। पर निहारिका ने सम्मान को ठुकराया। उसकी बातों में ताने, चाल में अकड़ थी। वह बहू कम, मेहमान ज्यादा लगती थी। विकास ने प्यार से समझाया, पर निहारिका का दिल नहीं पिघला। धीरे-धीरे घर का माहौल बिगड़ने लगा।

एक दिन गाँव में एक रहस्यमयी चिट्ठी आई—”विकास का परिवार वैसा नहीं जैसा दिखता है।” निहारिका का शक गहरा गया। उसने विकास पर सवाल उठाए, उसके माँ-बाप को ताने मारे। “मैं इस घर के लायक नहीं,” वो चिल्लाई। एक झगड़े में विकास का धैर्य टूट गया और एक थप्पड़ ने सब बिखेर दिया। निहारिका अपने बेटे तनिश को लेकर सूरजगांव लौट आई। सरिता ने बेटी का साथ दिया, पर श्यामल चुप था। उसकी आँखों में दर्द था और दिल में एक फैसला पक रहा था।

क्या थी उस चिट्ठी में? क्या श्यामल अपनी बेटी को सुधार पाएगा या उसका घमंड सब कुछ निगल लेगा?

सूरजगांव की गलियाँ

गाँव की गलियाँ सुबह की धूप में नहाई थीं। मंदिर की घंटियाँ हवा में गूंज रही थीं और चौक पर चाय की दुकान से हँसी-ठिठोली की आवाजें आ रही थीं। श्यामल अपने छोटे से घर के आंगन में बैठा था। उसकी आँखों में एक पुराना सपना तैर रहा था—अपनी बेटी को ऐसा जीवन देना, जहाँ उसका मन कभी ना टूटे।

निहारिका अब बीए पास कर चुकी थी। अपने कमरे में शीशे के सामने खड़ी थी। उसने अपने नए दुपट्टे को गौर से देखा, फिर मुस्कुराई। “मैं किसी रानी से कम नहीं,” उसने बुदबुदाया। उसकी बातों में अब गाँव की सादगी नहीं, बल्कि शहरों की चमक झलकती थी। श्यामल ने कई बार उसे समझाया था, “बेटी, खूबसूरती चेहरे में नहीं, दिल में होती है।” पर निहारिका हँसकर टाल देती थी।

शादी के बाद निहारिका का व्यवहार और बदल गया। चंद्रपुर में वह विकास के घर गई, जहाँ मीरा ने उसे बेटी की तरह अपनाया। प्रताप ने आशीर्वाद दिया। विकास ने निहारिका का बैग उठाया, मुस्कुराया। पर निहारिका की चाल में अकड़ थी। वह कमरे में गई, चारों ओर देखा। “बस इतना ही?” उसने बुदबुदाया। मीरा ने सुना, पर चुप रही। पहले कुछ दिन सब ठीक चला। विकास हर शाम निहारिका के लिए कुछ लाता—कभी मिठाई, कभी फूल। पर निहारिका की बातों में ठंडक थी। “यह शहर तो गाँव से भी गया गुजरा है,” वह ताने मारती।

चिट्ठियों का खेल

एक सुबह सूरजगांव में श्यामल के घर एक लिफाफा आया। कोई नाम नहीं, सिर्फ लिखा था—”विकास का परिवार वैसा नहीं जैसा दिखता है।” श्यामल ने चिट्ठी पढ़ी, उसकी भौंहें सिकुड़ीं। “यह क्या माजरा है?” उसने सरिता से पूछा। सरिता ने कंधे उचकाए, “कोई मजाक होगा?” पर श्यामल का मन अटक गया। उसने चिट्ठी छिपा दी, सोचा पहले सच जान लूं।

उधर चंद्रपुर में निहारिका का व्यवहार बदलने लगा। वह मीरा के सुझावों को हँसी में उड़ाती। “माँ जी, आपके जमाने की बातें अब नहीं चलती,” उसने एक दिन कहा। मीरा चुप रही, पर उसकी आँखें उदास थीं। प्रताप ने एक शाम निहारिका से बात की, “बेटी, घर प्यार से चलता है।” निहारिका ने जवाब दिया, “मुझे उपदेश मत दीजिए। मैं जानती हूँ क्या सही है।” विकास ने रात को समझाया, “माँ-बाबूजी का सम्मान करो।” पर निहारिका चिल्लाई, “मुझे यह घर बंधन लगता है।”

तभी डाक से एक और चिट्ठी आई, निहारिका के नाम—”सावधान, विकास का सच छिपा है।” निहारिका ने पढ़ा, उसका चेहरा सख्त हो गया। “क्या विकास मुझे धोखा दे रहा था?” उसने चिट्ठी जला दी, पर शक का बीज बो गया।

शक और बिखराव

चंद्रपुर की संकरी गलियों में शाम की चहल-पहल थी। विकास के घर में बालकनी पर खड़ी निहारिका शहर की रोशनी देख रही थी, पर उसका मन अशांत था। दूसरी चिट्ठी ने उसके दिल में शक का काँटा बो दिया था। “सावधान, विकास का सच छिपा है।” क्या विकास और उसका परिवार कोई राज छिपा रहे थे? उसने चिट्ठी जला दी थी, पर शब्द उसके दिमाग में गूंज रहे थे।

नीचे ड्राइंग रूम में मीरा चाय बना रही थी। निहारिका ने ठंडे लहजे में जवाब दिया, “नहीं माँ जी, मुझे भूख नहीं।” मीरा ने आह भरी, पर कुछ नहीं बोली। विकास ऑफिस से लौटा, हाथ में निहारिका की पसंद की मिठाई का डिब्बा। “लो तुम्हारी फेवरेट बर्फी,” उसने मुस्कुरा कर कहा। निहारिका ने डिब्बा लिया, पर उसकी आँखें शक से भरी थीं। “तुम हर बार कुछ लाते हो? क्या छुपाने की कोशिश है?” उसने तंज कसा। विकास चौंका, “क्या बात कर रही हो?” निहारिका ने नजरें फेरी, “कुछ नहीं।” पर उसका लहजा कड़वा था।

रात को खाने की मेज पर प्रताप ने बात शुरू की, “बेटी, शहर में मेला लगा है, चलें?” निहारिका ने बिना देखे कहा, “मुझे भीड़ पसंद नहीं।” प्रताप चुप हो गए। निहारिका का व्यवहार दिन-ब-दिन बदल रहा था।

घर में दरार

एक सुबह मीरा ने कहा, “बेटी, आज सब्जी मैं बनाऊंगी, तुम थोड़ा रोटी बेल दो।” निहारिका ने व्यंग किया, “माँ जी, मैं नौकरानी नहीं हूँ। आपका जमाना और था।” मीरा की आँखें नम हो गईं, पर उसने चुप्पी साध ली। विकास ने रात को समझाया, “माँ का सम्मान करो, वो तुम्हें बेटी मानती है।” निहारिका चिल्लाई, “सम्मान? मुझे लगता है तुम लोग कुछ छिपा रहे हो।” विकास रुक गया, “क्या छिपा रहे हैं हम?” निहारिका ने चिट्ठी का जिक्र नहीं किया, पर बोली, “मैं सब जान जाऊंगी।”

उधर सूरजगांव में श्यामल के मन में बेचैनी थी। पहली चिट्ठी “विकास का परिवार वैसा नहीं जैसा दिखता है,” उसके दिमाग में अटकी थी। उसने गाँव के डाकिया से पूछा, “किसने भेजी थी?” डाकिया बोला, “मास्टर जी, चंद्रपुर से आई थी।” श्यामल ने सोचा, क्या कोई निहारिका को बदनाम करना चाहता है?

अंतिम टकराव और सच

चंद्रपुर में तनिश, निहारिका और विकास का बेटा आंगन में खेल रहा था। निहारिका उसे देखती, पर उसका ध्यान कहीं और था। तभी डाक वाला एक और चिट्ठी लाया, “विकास का अतीत जान लो वरना पछताओगी।” उसका चेहरा सफेद पड़ गया। वह कमरे में गई, दरवाजा बंद किया, “विकास का अतीत?” उसने बुदबुदाया। क्या वह किसी और से प्यार करता था या कोई बड़ा राज था?

शाम को विकास लौटा। निहारिका ने चिट्ठी नहीं दिखाई, पर उसका गुस्सा फट पड़ा, “तुम्हारा कोई पुराना रिश्ता था? है ना?” विकास की आँखें फैल गईं, “क्या बकवास है ये?” मीरा और प्रताप ने सुना। मीरा बोली, “बेटी, विकास ऐसा नहीं है।” निहारिका ने तंज मारा, “आप सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हो।” प्रताप ने गहरी सांस ली, “बेटी, बात को समझो।” पर निहारिका चिल्लाई, “मुझे कुछ नहीं सुनना। यह घर जेल है।”

तनिश जो पास बैठा था, डर कर रोने लगा। निहारिका ने उसे गोद में लिया, पर उसका गुस्सा ठंडा नहीं हुआ। रात को विकास ने फिर समझाया, “निहारिका, तेरा शक मुझे तोड़ रहा है। बताओ क्या हुआ?” निहारिका ने चिट्ठी का जिक्र डाला, “मुझे बस सच चाहिए।” विकास ने सिर पकड़ा, “कैसा सच? मैंने तुझसे कुछ नहीं छिपाया।” निहारिका की आँखें जल रही थीं, “सच सामने आएगा।”

सूरजगांव की वापसी

अगली सुबह मीरा ने निहारिका को रसोई में बुलाया, “बेटी, तनिश के लिए खाना बना दो।” निहारिका ने जवाब दिया, “मुझे यह सब नहीं आता। आप कर लो।” मीरा की आँखें भर आईं, “क्या हमने तुझे कभी पराया माना?” निहारिका चुप रही, पर उसका दिल नहीं पिघला। उसी दिन एक और चिट्ठी आई, “आज रात सच सामने आएगा।” निहारिका का दिल धड़कने लगा।

रात को जब सब सो गए, वह तनिश को छोड़कर चुपके से घर से निकली। गली के मोड़ पर एक साया दिखा। “कौन है?” उसने पुकारा, कोई जवाब नहीं। तभी एक और चिट्ठी जमीन पर गिरी, “सच तेरा ही अतीत है।” निहारिका की सांस अटक गई। क्या यह उसका भ्रम था या कोई उससे खेल रहा था?

वह घर लौटी, तनिश को सोता देखा। उसकी मासूम सांसें देखकर निहारिका का मन भारी हो गया। पर शक का जहर अब उसके खून में था। उसने चिट्ठी को तकिए के नीचे छिपाया और बेचैन नींद में डूब गई।

सच का सामना

सुबह विकास ने निहारिका को उदास देखा, “क्या बात है? तू रात को कहाँ थी?” उसने पूछा। निहारिका ने नजरें फेरी, “बस ऐसे ही।” विकास की भौंहें सिकुड़ीं, “निहारिका, तू मुझसे कुछ छिपा रही है।” निहारिका का गुस्सा भड़क गया, “छिपा रही हूँ? तुम लोग मुझसे क्या-क्या छिपा रहे हो?” मीरा ने सुना, चाय का कप रख दिया, “बेटी, ऐसा मत बोल। हमने तुझे बेटी माना।” निहारिका ने तंज मारा, “बेटी? फिर ये चिट्ठियां कौन भेज रहा है?” वो रुक गई, बात निकल गई थी।

विकास चौंका, “कैसी चिट्ठियां?” निहारिका ने झक कर तकिए के नीचे से चिट्ठी निकाली। विकास ने पढ़ा, उसका चेहरा सख्त हो गया, “यह बकवास है। मेरा कोई अतीत नहीं।” मीरा और प्रताप ने चिट्ठी देखी। प्रताप बोले, “कोई बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।” निहारिका चिल्लाई, “तो सच बताओ, क्या छिपा रहे हो?” विकास ने गहरी सांस ली, “निहारिका, मुझ पर भरोसा कर।” पर निहारिका की आँखें शक से भरी थीं।

उधर सूरजगांव में श्यामल चंद्रपुर पहुंच चुका था। उसने विकास के घर का पता लिया और सीधे वहाँ गया। दरवाजा खटखटाया, मीरा ने खोला, “मास्टर जी?” श्यामल ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटी से मिलने आया हूँ।” निहारिका ने पिता को देखा, उसकी आँखें नम हो गईं, “पिताजी?” श्यामल ने उसे गले लगाया, “सब ठीक है ना बेटी?” निहारिका चुप रही।

श्यामल ने कमरे का माहौल भांपा। विकास ने चिट्ठी की बात बताई। श्यामल ने चिट्ठी पढ़ी, उसकी आँखें सिकुड़ीं, “यह लफ्ज जैसे किसी अपने के हों।” श्यामल ने निहारिका से पूछा, “बेटी, तुझे कोई दुश्मन तो नहीं?” निहारिका ने सिर हिलाया, “मुझे नहीं पता, पिताजी। पर यह चिट्ठियां मुझे पागल कर रही हैं।”

श्यामल ने गाँव के स्कूल में एक पुराना रजिस्टर देखा, जिसमें सरिता ने कुछ लिखा था। लिखावट मिलती थी। उसका दिल डूब गया, “क्या सरिता ने यह चिट्ठियां भेजी?” पर क्यों?

रात को श्यामल ने सरिता को बुलाया, “यह चिट्ठियां तूने भेजी?” सरिता चौकी, “क्या कह रहे हो?” श्यामल ने चिट्ठी दिखाई। सरिता की आँखें फैल गईं, “यह मैंने नहीं लिखा,” पर उसकी आवाज कांप रही थी। श्यामल ने दबाव डाला, “सच बोल सरिता।” सरिता की आँखें नम हो गईं, “मैंने सिर्फ एक चिट्ठी लिखी थी, निहारिका को डराने के लिए ताकि वो विकास का सम्मान करें। पर बाकी मैंने नहीं।”

सच का खुलासा और आत्म-परिवर्तन

कुछ दिन बाद, गाँव के चौक पर श्यामल ने एक साया देखा। उसने पीछा किया, सामने गोपाल था—स्कूल का पुराना चपरासी। “गोपाल?” श्यामल ने पुकारा। गोपाल घबराया, “मास्टर जी माफ करो, मैंने चिट्ठियां लिखी।” श्यामल ने गुस्से में पूछा, “क्यों?” गोपाल ने सिर झुकाया, “निहारिका ने मेरी बेटी के रिश्ते को ठुकराया था, मैंने बदला लिया।”

श्यामल ने पुलिस को सौंपा। सुबह श्यामल ने निहारिका और सरिता को सच बताया। निहारिका की आँखें खुल गईं, “पिताजी, मैंने सब गलत समझा।” उसने तनिश को देखा, जो चुपके से रो रहा था, “मम्मी, पापा?” निहारिका का घमंड पिघल गया। उसने श्यामल के पैर छुए, “पिताजी, मुझे विकास के पास ले चलो, मैं माफी मांगूंगी।”

चंद्रपुर में निहारिका दरवाजे पर खड़ी थी, तनिश गोद में। विकास ने दरवाजा खोला, उसकी आँखें गंभीर थीं। निहारिका ने मीरा और प्रताप के पैर छुए, “माँ जी, बाबूजी, मुझसे गलती हुई, आपका सम्मान नहीं किया।” मीरा ने उसे गले लगाया, “बेटी, प्यार से सब ठीक होगा।” निहारिका ने विकास से कहा, “मुझे माफ कर दो, मैं अब वो निहारिका नहीं।” विकास ने तनिश को गोद लिया, “एक आखिरी मौका।”

घर में रोशनी लौटी। सूरजगांव में श्यामल ने डायरी में लिखा, “निहारिका ने खुद से जीत लिया।”

कहानी का संदेश:
घमंड, शक और गलतफहमियों से परिवार टूट सकता है, पर आत्म-परिवर्तन, माफी और प्यार से सब सुधर सकता है।
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