चप्पल बेचने वाला निकला करोड़ों की कंपनी का मालिक, अगले ही पल क्या हुआ…
मुंबई की भीड़ भरी सड़कों पर जहां हर कोई अपने सपनों के पीछे भाग रहा था, वहीं एक औरत थी जो सड़क किनारे बैठी चप्पल बेच रही थी। उसके चेहरे पर उम्र की झुर्रियां थीं। कपड़े धूल और पसीने से सने हुए थे। उसके पास रखी टोकरी में कुछ सस्ती सी चप्पलें थीं, जिन्हें शायद ही कोई खरीदना चाहता था। लोग रोज उसके पास से गुजरते थे। कुछ तिरस्कार भरी निगाहों से तो कुछ हंसी उड़ाते हुए। किसी को क्या पता था कि वह औरत, जिसकी हालत देखकर लोग दया दिखा रहे थे, वही शहर की सबसे बड़ी फुटवेयर कंपनी की असली मालिक थी। और अगले ही दिन उसकी सच्चाई सामने आने वाली थी, जो पूरे मुंबई को हिला कर रख देगी।
भाग 2: सुबह का समय
सुबह का वक्त था। मुंबई लोकल की आवाजें, गाड़ियों का शोर और सड़कों पर भागते लोग शहर अपनी रफ्तार पकड़ चुका था। भीड़ के बीच एक पुराना नीला त्रिपाल बिछाए बैठी थी। सरला देवी, 70 के करीब उम्र, चेहरे पर थकान लेकिन आंखों में एक अजीब सी चमक थी। वह हर रोज अपनी छोटी सी टोकरी लेकर आती, जिसमें कुछ हाथ से सिली हुई चप्पलें होतीं। कभी दो बिकतीं, कभी एक भी नहीं। फिर भी वह बिना शिकायत के दिन भर बैठती रहती। उसके आसपास के दुकानदार उसे बूढ़ी अम्मा कहकर बुलाते। कोई उसे देख हंस देता, कोई कहता, “अरे अम्मा, अब इस उम्र में क्या कमाई कर लोगी?” वो बस मुस्कुरा देती।
भाग 3: यादें और अधूरे सपने
दिन ढलता सूरज छिप जाता और सरला अपनी बची हुई चप्पलें समेटकर वापस उसी झोपड़ पट्टी में चली जाती, जहां वह पिछले कई सालों से अकेली रह रही थी। ना कोई परिवार, ना कोई साथी, बस यादें और कुछ अधूरे किस्से। कभी यही सरला देवी एक समभ्रांत परिवार की बहू थी। उनके पति, रमेश त्रिपाठी, मुंबई के एक छोटे से फुटवियर स्टार्टअप के मालिक थे। रमेश ने अपने जुनून से उस छोटे बिजनेस को एक बड़ी कंपनी में बदलने का सपना देखा था। सरला हर कदम पर साथ थी, डिजाइन बनाती, ग्राहकों से मिलती और अपने पति के साथ हर संघर्ष में खड़ी रहती।
भाग 4: जिंदगी का मोड़
लेकिन जिंदगी कब किसे पलट दे, कोई नहीं जानता। एक एक्सीडेंट में रमेश की मौत हो गई और फिर उनके पार्टनर मोहित कपूर ने कंपनी पर कब्जा कर लिया। सरला के पास कोई कानूनी कागज नहीं थे। बस अपने पति की कुछ पुरानी नोटबुक्स और कुछ अधूरे सपने। वो सड़कों पर आ गई। कंपनी, जिसका नाम आर एस फुटवेयर प्राइवेट लिमिटेड था, अब एमके फुटवेयर बन चुकी थी और सरला का नाम हमेशा के लिए मिटा दिया गया। कभी जिन चप्पलों के लिए वह डिजाइन बनाती थी, अब उन्हीं जैसी सस्ती चप्पलें सड़क पर बेच रही थी।
भाग 5: संघर्ष की कहानी
लोगों को क्या पता, वो औरत जो मिट्टी में बैठी चप्पलें बेचती है, कभी उन्हीं चप्पलों की ब्रांडिंग करती थी। वो जब-जब एमके फुटवेयर के बिलबोर्ड्स को देखती, उनकी आंखों में कुछ जलने लगता। वो वही कंपनी थी जो उसके पति के नाम से शुरू हुई थी और अब किसी और के नाम से चमक रही थी। फिर भी उसने हार नहीं मानी। हर दिन अपनी टोकरी लेकर निकलती, सड़क किनारे बैठती और ग्राहकों का इंतजार करती। कभी कोई कॉलेज स्टूडेंट आता तो वह मुस्कुराकर कहती, “बेटा, यह हाथ से बनी है। मजबूत चलेगी।” लोग कभी-कभी खरीद लेते, दया में या जरूरत में।
भाग 6: एक नया मोड़
उस दिन भी सब कुछ वैसा ही था। लेकिन उस दिन कुछ अलग होने वाला था। एक काली कार उसके सामने आकर रुकी। उसमें से उतरा एक नौजवान, करीब 30 साल का, फॉर्मल कपड़ों में हाथ में लैपटॉप बैग लिए। चेहरा थका हुआ मगर स्मार्ट। उसका नाम था आदित्य कपूर। वह एमके फुटवेयर का नया सीईओ था। मोहित कपूर का बेटा, आदित्य अपनी कंपनी का निरीक्षण करने निकला था। लेकिन सिग्नल पर रुकी कार से उसकी नजर सड़क किनारे बैठी उसी औरत पर पड़ी।
भाग 7: पहली मुलाकात
आदित्य को पता नहीं था क्यों, पर उसकी आंखें उस औरत पर टिक गईं। वो कार में बैठा सोचता रहा, “इतनी उम्र में भी यह औरत रोज सड़क पर बैठती होगी।” वह कार से उतरा और उसके पास गया। उसने कुछ नहीं कहा। बस एक जोड़ी चप्पल उठाई और पैसे रख दिए। सरला मुस्कुराई और बोली, “भगवान खुश रखे बेटा।” आदित्य ने सिर हिलाया और चला गया। लेकिन दिल में कुछ अजीब सा असर रह गया।
भाग 8: बारिश की रात
उस रात मुंबई में भारी बारिश हुई। लोग अपने घरों में थे। मगर सरला उसी त्रपाल के नीचे सिकुड़ी बैठी थी। चप्पलों की टोकरी भीग गई थी। कई खराब हो गईं। फिर भी वो टोकरी को छाती से लगाए बैठी थी, जैसे कोई खजाना हो। वो धीरे से बोली, “रमेश, तुम्हारे सपने अब भी जिंदा हैं।” उनकी आंखों से बारिश में मिलते हुए आंसू बहते रहे।
भाग 9: सच्चाई का पता
अगले दिन आदित्य अपनी कंपनी के डॉक्यूमेंट्स देख रहा था। उसके पिता ने जो भी पुराने रिकॉर्ड रखे थे, उनमें एक पुरानी फाइल मिली। “आर एस फुटवेयर ओरिजिनल पार्टनरशिप एग्रीमेंट 1991″। वो फाइल खोलते ही उसने देखा, फाउंडर: रमेश त्रिपाठी और सरला त्रिपाठी। आदित्य की आंखें फैल गईं। वो चौंक गया। वो नाम उसने पहले कभी नहीं सुना था। उसने झट से अपने असिस्टेंट से पूछा, “यह सरला त्रिपाठी कौन थी?”
भाग 10: खोज का सफर
असिस्टेंट बोला, “सर, यह तो पुराने पार्टनर की वाइफ थी। एक्सीडेंट के बाद कंपनी के सारे डॉक्यूमेंट मिसिंग हो गए थे।” आदित्य को उस बूढ़ी औरत की तस्वीर याद आई। वो, जो सड़क पर चप्पल बेच रही थी, उसका नाम सरला था। उसे लगा जैसे कुछ अंदर से हिल गया हो। “क्या यह वही औरत है जिसका नाम इस फाइल में लिखा है?” वो सोच में डूब गया।
भाग 11: रात की बेचैनी
उस रात आदित्य की नींद उड़ गई। वो अपने पेंट हाउस की बालकनी में खड़ा शहर की लाइट्स देख रहा था। उसके कानों में उस औरत की आवाज गूंज रही थी, “भगवान खुश रखे बेटा।” वो सोच रहा था, “अगर वही औरत सरला त्रिपाठी है, तो मेरे पापा ने किसे सब छीना?” वह तय करता है, कल सुबह सबसे पहले वह उसी जगह जाएगा जहां वह चप्पलें बेचती है।
भाग 12: फिर से मिलना
अगली सुबह, मुंबई की सड़कों पर हमेशा की तरह भीड़ थी। पर आज सरला देवी का मन भारी था। रात की बारिश में उनकी कई चप्पलें भीग कर खराब हो चुकी थीं। वो टोकरी में सूखी हुई जोड़ी रख रही थी। तभी दूर से किसी गाड़ी के हॉर्न की आवाज आई। वह वहीं काली कार थी, जिससे कल वो नौजवान उतरा था। आदित्य कपूर धीरे-धीरे उनके पास आया।

भाग 13: पहचान का पल
इस बार बिना जल्दी के उसने देखा वही त्रिपाल, वही झुर्रियों से भरा चेहरा और वही मुस्कान जो हर मुश्किल में भी कायम थी। सरला ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, फिर से चप्पल लेनी है क्या?” आदित्य ने जवाब नहीं दिया। वो बस झुक कर बोला, “अम्मा, आपका नाम सरला है ना?” वो थोड़ा चौकी। फिर बोली, “हां बेटा, सरला हूं। पर तू कैसे जानता है मेरा नाम?”
भाग 14: भावनाओं का ज्वार
आदित्य कुछ क्षण चुप रहा। फिर उसकी निगाहें उनके पास रखी पुरानी टोकरी पर पड़ी, जिसके अंदर एक कोने में रखी थी एक पुरानी नोटबुक, जिस पर लिखा था “आर एस फुटवेयर डिज़ बाय सरला त्रिपाठी”। आदित्य की सांसे थम गईं। यही वो नाम था जो उसने कल फाइल में देखा था। वो कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा। फिर बोला, “अम्मा, क्या आप कभी रमेश त्रिपाठी जी को जानती थीं?”
भाग 15: दर्दनाक अतीत
उनकी आंखें भर आईं। धीरे से बोली, “वो मेरे पति थे बेटा। वो रुक गई फिर बुदबुदाई, ‘वो बहुत बड़े सपने देखते थे। चप्पलों की कंपनी बनाना चाहते थे ताकि हर गरीब आदमी भी अच्छे जूते पहन सके। लेकिन उनकी मौत के बाद सब कुछ छीन गया।’” वो बोलते-बोलते रुक गई। आंखें नम थीं, पर आवाज में एक दृढ़ता थी।
भाग 16: सच्चाई की खोज
आदित्य अब बिल्कुल शांत था। उसे समझ आ गया था कि सामने खड़ी औरत वही है, आर एस फुटवेयर की असली सह संस्थापक। आदित्य वापस ऑफिस गया। पर उसका मन नहीं लगा। हर फाइल, हर रिपोर्ट, हर सेल्स चार्ट में उसे एक ही चेहरा दिखता रहा। वो बूढ़ी औरत, जो सड़क पर चप्पलें बेच रही थी, जिसकी कंपनी अब करोड़ों कमा रही थी।
भाग 17: सच्चाई का सामना
रात में उसने पिता के पुराने ईमेल्स, फाइलें और अकाउंट्स खंगालने शुरू किए। वहां उसे वह सब मिला जो उसे नहीं देखना चाहिए था। रमेश त्रिपाठी की मौत के बाद उनके सिग्नेचर फर्जी तरीके से इस्तेमाल किए गए थे। कंपनी के शेयर धीरे-धीरे मोहित कपूर के नाम पर ट्रांसफर कर दिए गए थे। आदित्य की आंखों में आंसू आ गए। उसने फाइल्स बंद करके बस इतना बोला, “पापा, आपने किसी का हक छीन लिया?”
भाग 18: हक की लड़ाई
उसने तय किया, अब जो होगा सही होगा। वो सरला देवी को उनका हक लौटाएगा। अगली सुबह आदित्य फिर उसी जगह पहुंचा। सरला देवी पहले से बैठी थी। उनके सामने एक भी ग्राहक नहीं था। आदित्य उनके पास गया और बोला, “अम्मा, आज आपको कहीं चलना है मेरे साथ?” सरला हंस पड़ी। “बेटा, मेरे पास तो बस यह टोकरी है और कहां जाना?”
भाग 19: नए सफर की शुरुआत
आदित्य बोला, “बस मुझ पर भरोसा रखिए।” उसने उनके लिए एक कार मंगवाई। लोग हैरान थे। सड़क की औरत को सीईओ अपनी गाड़ी में क्यों बैठा रहा है। पर किसी को नहीं पता था कि कहानी का असली मोड़ अभी बाकी है। कार सीधे पहुंची एमके फुटवेयर प्राइवेट लिमिटेड के हेड ऑफिस पर। वो वही जगह थी, जहां कभी सरला और उनके पति ने अपने सपनों की शुरुआत की थी।
भाग 20: सच्चाई का खुलासा
जैसे ही वह अंदर पहुंची, सिक्योरिटी गार्ड्स ने रोकने की कोशिश की। “मैडम, यह जगह आम लोगों के लिए नहीं है।” लेकिन आदित्य ने हाथ उठाया। “यह कंपनी की असली मालिक है। रास्ता दीजिए।” सारा स्टाफ एक पल के लिए सन्न रह गया। वो औरत, जो सड़क पर चप्पल बेचती थी, आज उसी कंपनी के गेट के अंदर खड़ी थी।
भाग 21: पुरानी यादें
वो धीरे-धीरे कदम रखती अंदर गई। हर दीवार, हर टेबल, हर कोना उन्हें अपने पुराने दिनों की याद दिला रहा था। वो एक टेबल के पास जाकर बोली, “यहीं बैठकर रमेश डिजाइन बनाते थे।” उनकी आंखें भीग गईं। आदित्य ने सबके सामने वह पुरानी फाइल निकाली। “आर एस फुटवेयर पार्टनरशिप एग्रीमेंट” और बोला, “यह कंपनी मेरी नहीं, इनकी है। इन्होंने और इनके पति ने इसे बनाया था। मेरे पिता ने सिर्फ इससे फायदा उठाया।”
भाग 22: सच्चाई का सामना
ऑफिस में सन्नाटा छा गया। सबके चेहरों पर शर्म थी। सरला देवी कुछ देर तक कुछ नहीं बोली। फिर बोली, “बेटा, मुझे अब कंपनी नहीं चाहिए। बस चाहती हूं कि कोई गरीब औरत फिर अपने सपनों से वंचित न रहे।” आदित्य ने तुरंत घोषणा की, “आज से एम के फुटवेयर का नाम बदला जाएगा। अब इसका नाम होगा आर एस फुटवेयर फाउंडेशन और इसकी 50% इनकम गरीब औरतों की मदद में जाएगी।” पूरा ऑफिस तालियों से गूंज उठा।
भाग 23: नई शुरुआत
सरला की आंखों में आंसू थे। पर यह आंसू दर्द के नहीं, गर्व के थे। शाम होते-होते यह खबर सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई। सड़क किनारे चप्पल बेचने वाली निकली करोड़ों की कंपनी की असली मालकिन। न्यूज़ चैनल्स, अखबार सब जगह एक ही चेहरा था, सरला त्रिपाठी का। लोग जो कल तक उन्हें दया से देखते थे, आज उनके कदमों में झुक कर सलाम कर रहे थे।
भाग 24: सच्ची अमीरी
वह अब भी वही सादगी से मुस्कुरा रही थी। उन्होंने कहा, “लोगों ने मेरे कपड़े देखे, मेरा दिल नहीं। पर अब शायद कोई किसी के हालात से नहीं, मेहनत से पहचानेगा।” रात को आदित्य ने सरला देवी को नए घर तक छोड़ा। वह अब किसी झोपड़ी में नहीं, बल्कि अपने पुराने घर में थी जो सालों पहले खो चुका था। आज फिर लौट आया था।
भाग 25: पुरानी खुशबू
आदित्य जाते-जाते बोला, “अम्मा, अब यह आपका घर है और यह कंपनी भी।” सरला ने बस मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, अब मेरा नहीं सबका है।” अगले दिन जब सूरज निकला, तो मुंबई की भीड़भाड़ वाली सड़कों पर लोगों की बातें बदल चुकी थीं। जहां कल तक कोई उस बुजुर्ग औरत को गरीब चप्पल वाली अम्मा कहता था, आज लोग उसी के नाम से प्रेरणा ले रहे थे।
भाग 26: सम्मान की प्राप्ति
अखबारों के पहले पन्ने पर बड़े अक्षरों में छपा था, “सरला त्रिपाठी: वो औरत जिसने सच्चाई से करोड़ों का झूठ हरा दिया।” हर न्यूज़ चैनल पर उनका नाम था। लोग सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें शेयर कर रहे थे, जहां वह सड़क किनारे बैठी थीं। उनके पास रखी छोटी टोकरी और चेहरा शांत मगर गरिमामई। वो तस्वीर अब संघर्ष की पहचान बन चुकी थी।
भाग 27: नई जिम्मेदारी
आदित्य कपूर ने अपनी वादा निभाया। एम के फुटवेयर अब आर एस फुटवेयर फाउंडेशन बन चुकी थी। कंपनी के नए बोर्ड मीटिंग में पहली बार हेड चेयर पर सरला देवी बैठी। उनके सामने बैठे दर्जनों युवा कर्मचारी, जो कभी उन्हें पहचानते तक नहीं थे, आज सबकी आंखों में सम्मान था। सरला ने धीरे से कहा, “मैं आज किसी को दोष देने नहीं आई। जिंदगी ने मुझे सिखाया कि जो गिरता है वही संभलना सीखता है। मैं चाहती हूं कि यह कंपनी अब उन औरतों के लिए काम करें जो मेरे जैसी परिस्थितियों में फंसी हैं, जो सिर्फ एक मौके की तलाश में हैं।”
भाग 28: नई शुरुआत
उनकी बात खत्म होते ही तालियों की गूंज पूरे हॉल में भर गई। उस दिन एक नई शुरुआत हुई थी, जहां एक गुमनाम औरत फिर से अपने नाम से जानी जाने लगी थी। शाम के समय आदित्य सरला को उनके पुराने घर लेकर गया। वो वहीं छोटा सा घर था, जहां कभी रमेश त्रिपाठी ने अपने सपनों की पहली रूपरेखा बनाई थी।
भाग 29: पुरानी यादों की वापसी
घर अब जीर्ण था। दीवारों की पपड़ी उतर चुकी थी। पर जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, हवा में एक पुरानी खुशबू फैल गई। वो धीरे-धीरे अंदर चली गई। कमरे के एक कोने में अब भी पुराना जूते का सांचा रखा था। जिसे देखकर उनकी आंखें भर आईं। वो फुसफुसाईं, “रमेश, तुम्हारा सपना अब पूरा हो गया।”
भाग 30: सच्चाई की जीत
आदित्य ने पीछे खड़े होकर हाथ जोड़ लिए। उसने धीरे से कहा, “अम्मा, आज अगर मेरे पापा जिंदा होते, तो शायद वह भी यही चाहते कि सब ठीक हो जाए।” सरला ने उसकी तरफ देखा और बिना किसी गुस्से के बस मुस्कुरा दी। “बेटा, सच्चाई को जानने और मानने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए। तुमने वो कर दिखाया।”
भाग 31: सम्मान का समारोह
कुछ ही हफ्तों में आर एस फुटवेयर फाउंडेशन ने एक बड़ा कार्यक्रम रखा, जहां मुंबई की सैकड़ों औरतों को बुलाया गया था। हर वह महिला, जो रोज किसी फुटपाथ पर, किसी दुकान पर या घरों में काम करके अपने बच्चों का पेट पालती थी। स्टेज पर जब सरला देवी आई, तो पूरा हॉल खड़ा हो गया। तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं।
भाग 32: प्रेरणादायक संदेश
वो धीरे से बोली, “जब मेरे पास कुछ नहीं था, तो भी मेरे पास उम्मीद थी और वही उम्मीद मुझे यहां तक लाई है। अगर कोई भी औरत या आदमी आज यह सुन रहा है, तो याद रखो, लोग तुम्हारे कपड़े देखेंगे। पर भगवान तुम्हारे कर्म देखेगा।” उनकी आवाज में वह सच्चाई थी जो सीधे दिल को छूती है। हर चेहरा नम था, हर आंख चमक रही थी।
भाग 33: पुरस्कार का क्षण
अगले ही महीने, मुंबई नगर निगम ने उन्हें सम्मानित किया। “इंस्पिरेशन ऑफ द ईयर अवार्ड” से। मंच पर जब उन्होंने ट्रॉफी ली, तो पूरा हॉल एक स्वर में गूंज उठा। “जय सरला अम्मा!” कैमरे फ्लैश कर रहे थे। पत्रकार सवाल पूछ रहे थे। पर सरला बस मुस्कुरा रही थी।
भाग 34: सादगी की मिसाल
उन्होंने मंच से नीचे उतर कर उन मजदूर औरतों के बीच जाकर बैठ गई और बोली, “मैं आज भी वही सरला हूं जो कल सड़क पर बैठती थी। फर्क बस इतना है, कल मेरे पास सिर्फ मेहनत थी। आज मेरे पास इज्जत भी है।” रात को सरला देवी फिर उसी जगह पहुंची, जहां वह सालों तक चप्पलें बेचती थी। अब वो जगह सुनसान थी, मगर उनकी पुरानी टोकरी वहीं रखी थी।
भाग 35: मेहनत का फल
वो उसे उठाकर देखती हैं। मुस्कुराती हैं और कहती हैं, “अब तू आराम कर। तेरी मेहनत अब नाम बन गई है।” वह त्रिपाल को मोड़कर कार में रख लेती है और धीरे-धीरे दूर जाती। कार के शीशे में उनकी परछाई गायब हो जाती है।
भाग 36: शिक्षा का संदेश
कहानी यहीं थमती है। पर जो सबक छोड़ जाती है, वो हमेशा याद रहेगा। कभी किसी को उसके हालात से मत आंकिए, क्योंकि जिस औरत को दुनिया ने ठुकरा दिया, उसी ने दुनिया को सिखाया कि सच्ची अमीरी दौलत से नहीं, ईमान और मेहनत से होती है। जिंदगी चाहे जितनी कठिन क्यों ना लगे, अगर आप सच्चे हैं तो एक दिन पूरा शहर आपके आगे झुकेगा।
अंत
तो दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी, हमें कमेंट में जरूर बताना और आप हमारी वीडियो देश के किस कोने से देख रहे हैं, यह भी कमेंट में जरूर बताना। तो मिलते हैं अगली कहानी में।
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