IPS अफसर भिखारिन बनकर थाने पहुंची.. दरोगा ने आम लड़की समझकर बदतमीजी की, फिर जो हुआ देख दंग रह जाओगे
रात का सन्नाटा पूरे शहर पर छाया हुआ था। आसमान में घने बादल थे और बीच-बीच में दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज़ गूंज रही थी। जयनगर की वीरान सड़क पर एक महिला धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई पुलिस चौकी की ओर जा रही थी। उसकी चाल थकी हुई थी, बदन पर फटे पुराने कपड़े, चेहरा धूल से सना, बाल बिखरे हुए और आंखों में डर और उम्मीद का मिला-जुला भाव। देखने वाले को लगता कि यह कोई बेसहारा और बेघर औरत है जो मदद की आस में पुलिस तक पहुंच रही है।
लेकिन असलियत यह थी कि वह कोई साधारण औरत नहीं थी। यह थी आईपीएस अधिकारी समीरा, जिसने अपनी पहचान और वर्दी दोनों को छुपाकर भिखारिन का भेष बनाया था। उसका मकसद था उस सच्चाई तक पहुंचना, जिसकी फुसफुसाहट पिछले कुछ दिनों से उसके कानों तक आ रही थी—जयनगर पुलिस चौकी में गरीबों और कमजोरों पर हो रहे अत्याचार, रिश्वतखोरी और अन्याय की कहानियां।
बचपन से ही समीरा को अन्याय से नफरत थी। एक छोटे शहर में पली-बढ़ी, उसने कई बार अपनी आंखों से देखा था कि कैसे ताकतवर लोग गरीबों को दबाते हैं और पुलिस चौकी में उनकी फरियादों को हंसी में उड़ा दिया जाता है। कभी-कभी तो उन्हीं को अपराधी बना दिया जाता। उसके पिता एक छोटे दुकानदार थे और मां गृहिणी। आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी, लेकिन माता-पिता ने उसे सिखाया था कि ईमानदारी से जीना सबसे बड़ा सम्मान है।
स्कूल के दिनों से ही समीरा अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाती। किताबें सेकंड-हैंड खरीदनी पड़तीं, बिजली कटने पर मिट्टी के तेल के दीये में पढ़ाई करनी पड़ती, लेकिन उसने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उसके मन में देश की सेवा करने और सिस्टम के भीतर से बदलाव लाने की प्रबल इच्छा जगी। कॉलेज में उसने ठान लिया कि वह सिविल सेवा में जाएगी।
सालों की मेहनत, संघर्ष और असफलताओं के बाद अंततः वह आईपीएस बनी। ट्रेनिंग के दौरान ही उसने खुद से वादा किया कि कभी अपने पद का इस्तेमाल गलत कामों के लिए नहीं करेगी। उसकी ईमानदारी और सख्त रवैये के किस्से शुरूआती पोस्टिंग से ही चर्चा में थे।
लेकिन इस बार जो चुनौती सामने थी, वह अलग ही थी। कुछ दिन पहले एक बुजुर्ग महिला कांपते हाथों और डरी आंखों से उसके पास आई थी और बताया था कि चौकी के पुलिसकर्मी गरीबों से रिश्वत मांगते हैं, शिकायत दर्ज करने की बजाय धमकाते हैं और कई बार झूठे केस में फंसा देते हैं। समीरा ने जांच करवाई और पाया कि शिकायतें सच हैं। लेकिन सबूत जुटाना मुश्किल था। तभी उसके मन में योजना आई—भिखारिन का भेष बनाकर चौकी में जाना।
उसने फटे कपड़े जुटाए, चेहरे पर धूल लगाई, बाल अस्त-व्यस्त किए और आवाज़ बदलने का अभ्यास किया। और फिर उस रात, जब पूरा शहर सो रहा था, वह वीरान सड़कों से गुजरते हुए चौकी की ओर बढ़ी। गेट पर एक सिपाही ऊंघ रहा था। समीरा ने पास जाकर करुण स्वर में कहा—
“बेटा, मेरी मदद कर दो… मेरा सामान लूट लिया गया है, कहीं ठिकाना नहीं है।”
सिपाही ने ऊपर से नीचे तक देखा और बेपरवाही से बोला—
“चल हट, यहां भीख मांगने की जगह नहीं है। भाग जा नहीं तो लाठी पड़ेगी।”
समीरा ने अंदर जाने की कोशिश की। तभी उसकी नजर पड़ी—अंदर इंस्पेक्टर महेश एक आदमी से नोटों की गड्डियों के बीच डील कर रहा था। समीरा ने मन ही मन ठान लिया कि अब इस खेल का अंत करना ही होगा। वह चौकी के अंधेरे कोने में खड़ी होकर सब देखती रही। तभी एक कमरे से दबे स्वर में रोने की आवाज आई।
वह धीरे से अंदर गई और देखा कि एक गरीब महिला, जिसकी गोद में छोटा बच्चा था, जमीन पर बैठी कांप रही थी। एक कांस्टेबल उसे डांट रहा था—“चुप बैठ, ज्यादा बोलेगी तो अंदर कर दूंगा।” यह दृश्य समीरा के दिल को झकझोर गया।
अब वह और चुप नहीं रह सकती थी। वह सीधे इंस्पेक्टर के कमरे में गई। दरवाजा खोलते ही सबकी नजरें उस पर पड़ीं। इंस्पेक्टर महेश भड़क कर बोला—
“अरे, तू फिर आ गई? भाग यहां से!”
लेकिन समीरा ने अपनी कमर से मोबाइल निकाला और जोर से कहा—
“बस! बहुत हो गया।”
फिर उसने अपना दुपट्टा हटाया, चेहरे की धूल पोंछी और ठोस आवाज़ में बोली—
“मैं हूं आईपीएस समीरा।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। इंस्पेक्टर महेश का चेहरा सफेद पड़ गया। कांस्टेबल एक-दूसरे को देखने लगे। समीरा ने उसकी आंखों में देखकर कहा—
“तुम सोचते हो कि पुलिस चौकी की चारदीवारी तुम्हें कानून से ऊपर कर देती है? आज देखोगे कि कानून कैसे चलता है।”
उसने तुरंत वायरलेस से कंट्रोल रूम को कॉल किया और फ्लाइंग स्क्वाड बुला लिया। थोड़ी देर में गाड़ियों की आवाज गूंजी और अफसर अंदर घुसे। समीरा ने पूरे हालात बताए और इंस्पेक्टर समेत सभी दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड करने का आदेश दिया।
बाहर भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। जिन लोगों ने चौकी में सिर्फ अपमान सहा था, उनकी आंखों में पहली बार राहत और विश्वास की चमक थी। किसी ने वीडियो बनाया, किसी ने ताली बजाई। एक बुजुर्ग ने भावुक होकर कहा—
“बेटी, तूने हमारी इज्ज़त लौटा दी।”
सुबह अखबारों की सुर्खी थी—
“आईपीएस समीरा ने भिखारिन बनकर पकड़ा भ्रष्टाचार।”
उसकी तस्वीर पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गई। टीवी चैनल इसे ऑपरेशन सच्चाई कह रहे थे।
लेकिन सच बोलने की कीमत भी होती है। उसी शाम समीरा को एक गुमनाम लिफाफा मिला। उसमें लिखा था—
“अगर अपनी और परिवार की सलामती चाहती हो तो चुपचाप ट्रांसफर ले लो।”
साथ में उसके माता-पिता की तस्वीर थी, जिस पर लाल क्रॉस बना था।
समीरा कांपी जरूर, पर डरी नहीं। उसने लिफाफा सील किया और अफसरों के साथ बैठक बुलाई। उसने कहा—
“अगर ये लोग सोचते हैं कि डराकर मुझे रोक देंगे, तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल है।”
उसने अचानक चौकियों की जांच शुरू की। कुछ जगह सुधार दिखा, लेकिन साथ ही राजनीतिक दबाव भी बढ़ने लगा। उसके खिलाफ झूठी शिकायतें डलवाई गईं। लेकिन इस बार जनता उसके साथ थी। सोशल मीडिया पर #WeStandWithSameera ट्रेंड करने लगा। स्कूलों के बच्चे तक “ईमानदारी की मिसाल” लिखे पोस्टर लेकर रैली निकालने लगे।
जल्द ही सस्पेंडेड पुलिसकर्मियों में से एक ने मीडिया के सामने कबूल किया कि वह सालों से रिश्वत लेता था और ऊपर तक हिस्सा पहुंचाता था। इस खुलासे से राजनीति में भूचाल आ गया। कई बड़े नाम फंसने लगे। समीरा ने साफ कहा—
“कानून सबके लिए बराबर है, चाहे वह आम नागरिक हो या नेता।”
धमकियां बढ़ती गईं, लेकिन जनता की ताकत उसके पीछे खड़ी थी। आखिरकार एक उच्चस्तरीय बैठक में प्रभावशाली लोग उस पर दबाव डालने लगे कि वह कुछ मामलों को समझौते से खत्म कर दे। समीरा ने दृढ़ आवाज़ में कहा—
“अगर समझौता करना होता तो आज यहां खड़ी न होती, और आप मुझसे डर नहीं रहे होते।”
कमरे में सन्नाटा छा गया। बाहर लोग ताली बजाने लगे—“जय हिंद!”
उस रात समीरा ने महसूस किया कि सच का रास्ता कठिन है, लेकिन जब जनता का भरोसा साथ हो तो कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती।
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