कहानी: अतिथि देवो भव – रामू और लूना की कहानी

लंदन की ठंडी और धुंधली गलियों में पली-बढ़ी लूना एक आर्ट स्टूडेंट थी। उसकी आंखों में भारत के रंग-बिरंगे सपनों की चमक थी। उसने किताबों, फिल्मों और इंटरनेट पर भारत की संस्कृति, त्योहारों और लोगों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा था। उसका सपना था कि वह एक दिन भारत जाकर वहां की असली संस्कृति, लोगों की मेहमाननवाजी और विविधता को खुद महसूस करे। कई महीनों तक पार्ट टाइम जॉब करके पैसे जोड़ने के बाद उसने अपनी पहली भारत यात्रा की योजना बनाई।

मुंबई में पहला कदम

एक सर्द फरवरी की सुबह लूना मुंबई एयरपोर्ट पर उतरी। यहां की भीड़, शोर और गर्म हवा उसके लिए बिल्कुल नई थी, फिर भी उसके चेहरे पर उत्साह था। उसने एक प्रीपेड टैक्सी ली और इंटरनेट पर बुक किए गए होटल की ओर रवाना हो गई। होटल बाहर से ठीक-ठाक था, लेकिन अंदर घुसते ही उसे कुछ अजीब सा अहसास हुआ। मैनेजर मिस्टर शर्मा की मुस्कान में उसे बनावटीपन लगा, लेकिन उसने इसे मेहमाननवाजी समझकर नजरअंदाज कर दिया।

शुरुआती अनुभव

पहले दो दिन लूना के लिए सपने जैसे थे। उसने मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया, मरीन ड्राइव, और लोकल बाजारों का आनंद लिया। वह हर चीज अपने कैमरे में कैद करती, डायरी में नोट्स लिखती और भारतीय खाने का स्वाद लेती। लेकिन जल्द ही उसे होटल स्टाफ का व्यवहार अजीब लगने लगा। मैनेजर शर्मा बार-बार उससे टूर पैकेज लेने के लिए दबाव डालता, उसके आने-जाने पर सवाल करता और स्टाफ उसे घूरता रहता।

संकट की शुरुआत

तीसरे दिन होटल लौटने पर लूना ने देखा कि उसके कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला है। अंदर जाकर उसने पाया कि एक कांच का गुलदस्ता टूट गया है। तभी शर्मा दो कर्मचारियों के साथ कमरे में आया और उस पर होटल की प्रॉपर्टी तोड़ने का आरोप लगा दिया। शर्मा ने धमकी दी कि जब तक वह 10,000 रुपये नहीं देगी, उसका पासपोर्ट और सामान जब्त रहेगा। अगर पुलिस को बुलाया तो उस पर झूठे आरोप लगा दिए जाएंगे। लूना डर और बेबसी में अपने कमरे में बंद हो गई। दो दिन तक वह एक कैदी की तरह कमरे में रही, रोती रही, किसी से संपर्क नहीं कर पाई।

उम्मीद की किरण – रामू

तीसरी रात उसने बहाना बनाया कि पैसे निकालने के लिए एटीएम जाना है। शर्मा ने अपने स्टाफ रामू को उसके साथ भेजा, लेकिन बाहर निकलते ही लूना ने सामने खड़ी एक टैक्सी में बैठकर ड्राइवर से कहा, “कहीं भी ले चलिए, बस यहां से दूर।” टैक्सी ड्राइवर रामू करीब 40 साल का, सांवले रंग का साधारण आदमी था, लेकिन उसकी आंखों में ईमानदारी और सहानुभूति थी। लूना की हालत देखकर उसने नरमी से पूछा, “क्या हुआ मैडम?” लूना ने टूटी-फूटी हिंदी और अंग्रेजी में अपनी आपबीती सुनाई। रामू को गुस्सा भी आया और तरस भी। उसने लूना को भरोसा दिलाया कि जब तक वह है, कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

रामू का घर

रामू ने लूना को अपने घर ले जाने का फैसला किया। उसका घर मुंबई के बाहरी इलाके की एक छोटी बस्ती में था। उसकी पत्नी सीता, बूढ़ी मां और छोटी बेटी पिंकी ने पहले तो संकोच किया, लेकिन रामू की बातों और लूना की हालत देखकर उनका दिल पिघल गया। सीता ने उसे अपने हाथों से खाना खिलाया, मां ने सिर पर हाथ फेरा और पिंकी ने अपनी गुड़िया दे दी। लूना को पहली बार भारत में सच्चे अपनापन और सुरक्षा का अहसास हुआ।

नया परिवार, नई उम्मीद

तीन दिन तक लूना रामू के घर रही। उसने गरीबी में भी खुशियां देखीं, लोगों का प्यार और आपसी सम्मान देखा। सीता की मेहनत, मां की पूजा और पिंकी की मासूमियत ने उसे भारत की असली आत्मा से मिलवाया। लेकिन रामू जानता था कि लूना को सुरक्षित वापस भेजना जरूरी है। उसके पासपोर्ट और सामान के बिना यह मुमकिन नहीं था।

दोस्तों की मदद और साहसिक योजना

रामू ने अपने टैक्सी ड्राइवर दोस्तों – लखन, सलीम और जोसेफ – को पूरी बात बताई। सबने मिलकर एक फिल्मी योजना बनाई। सलीम टूरिस्ट ऑफिसर बनकर होटल पहुंचा, शर्मा को डराया और पासपोर्ट की मांग की। उसी समय लखन और रामू ने नगर निगम कर्मचारी बनकर होटल के पीछे धुआं कर दिया, जिससे होटल में अफरातफरी मच गई। जोसेफ, जो पहले से वेटर बनकर होटल में था, चुपके से मैनेजर के केबिन से लूना का पासपोर्ट और बैग लेकर पिछले दरवाजे से बाहर निकला। रामू टैक्सी लेकर तैयार खड़ा था। सब सामान लेकर वे भाग निकले।

विदाई और इंसानियत का इनाम

रामू ने अपने पास की सारी जमा पूंजी लगाकर लूना का एयर टिकट कराया और खुद उसे एयरपोर्ट छोड़ने गया। लूना ने उसे सोने की चैन देना चाहा, लेकिन रामू ने मना कर दिया। “मैंने इंसानियत के नाते मदद की है, तोहफे के लिए नहीं।” लूना ने रोते हुए कहा, “आप मेरे हीरो हो।” रामू उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई।

किस्मत का तोहफा

छह महीने बाद, एक दिन रामू के घर के सामने एक बड़ी विदेशी गाड़ी आकर रुकी। उसमें से लूना के पिता जेम्स निकले। उन्होंने रामू को गले लगाकर धन्यवाद कहा और 50 लाख रुपये का ब्रीफकेस दिया, साथ ही बताया कि वे भारत में ‘अतिथि कैब्स’ नाम से एक नई टैक्सी कंपनी शुरू करना चाहते हैं, जिसमें रामू मैनेजिंग डायरेक्टर बनेगा। पिंकी की पढ़ाई और मां के इलाज की जिम्मेदारी भी जेम्स ने ली। रामू की मेहनत, ईमानदारी और इंसानियत का फल उसे मिला। अतिथि कैब्स दिल्ली की सबसे भरोसेमंद टैक्सी सर्विस बन गई। रामू अब सैकड़ों लोगों को रोजगार देने लगा।

संदेश

रामू की कहानी हमें सिखाती है कि नेकी का रास्ता कभी बेकार नहीं जाता। अतिथि देवो भव सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। अगर हर कोई रामू जैसा बन जाए, तो भारत की पहचान हमेशा दुनिया के सामने ऊंची रहेगी।