कुली की काम कर रही थी पत्नी, स्टेशन पर मिला तलाकशुदा पति, फिर जो हुआ
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टूटा रिश्ता, जुड़ा दिल
वाराणसी की भीड़-भाड़ वाली गलियों में एक लाल सलवार-सूट पहने महिला सिर झुका कर चल रही थी। उसका नाम था सुमन। कभी वह कॉलेज की सबसे चमकती हुई लड़की थी, जिसे हर कोई राजकुमारी की तरह देखता था। लेकिन आज, वह वाराणसी जंक्शन पर कुली नंबर 108 का बैच बांधकर, सिर पर भारी बोझ उठाते हुए, भीड़ में खोई हुई थी।
सुमन की आंखों में थकान थी, पर उसके चेहरे पर जिद और मजबूरी की छाया साफ दिख रही थी। उसकी हर एक चाल जैसे उसके टूटे हुए सपनों की कहानी कह रही थी। प्लेटफार्म पर खड़े लोग उसे अनदेखा करते हुए अपनी मंजिल की ओर भाग रहे थे, लेकिन एक शख्स था जो उसे देखता ही रह गया। वह था राकेश मल्होत्रा, एक सफल और करोड़पति बिजनेसमैन, जो चमकदार ब्लेज़र पहने, महंगे जूते और ब्रांडेड बैग लिए प्लेटफार्म के एक कोने में खड़ा था।
राकेश की नजरें सुमन पर टिक गईं, और दिल धड़कने लगा। उसकी यादों के झरोखों से एक पुरानी दुनिया लौट आई—जब सुमन उसकी जिंदगी की सबसे प्यारी थी। उस वक्त उसने वादा किया था कि वह उसे कभी बोझ नहीं बनने देगा, उसकी मुस्कान उसकी ताकत होगी। लेकिन आज वही सुमन, उसके सामने बोझ उठाती हुई खड़ी थी।
भीड़ की आवाजें जैसे खत्म हो गईं, और राकेश का दिल टूट गया। वह भीड़ को चीरता हुआ उसके पास गया और धीरे से बोला, “सुमन…”
सुमन ने पलटा, और उसकी आंखों में आंसू थे। “आप…” उसने आवाज़ में कांपते हुए कहा।
राकेश की आंखों में पुरानी यादें तैर आईं। कॉलेज के दिन, जब पहली बार उसने सुमन को देखा था—उसके उड़ते बाल, मासूम हंसी, और किताबों से भरा दुपट्टा। वे दोनों एक-दूसरे के लिए बने थे। उनकी दोस्ती धीरे-धीरे मोहब्बत में बदली। वे गंगा के किनारे टहलते, सपने बुनते, और एक-दूसरे का सहारा बनते।
राकेश ने एक दिन सुमन से कहा था, “मैं बड़ा आदमी बनूंगा, और तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा।”
सुमन ने मुस्कुराकर कहा था, “मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, अमीरी नहीं।”
उनकी शादी हुई, और वे एक साथ खुशहाल जिंदगी बिताने लगे। लेकिन वक्त ने करवट ली। राकेश का कारोबार तेजी से बढ़ा, और उसकी जिंदगी दौड़ती भागती दौलत और शोहरत के पीछे लग गई। वह घर देर से आता, सुमन के लिए वक्त नहीं निकाल पाता। सुमन को अकेलापन सताने लगा।
“मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, राकेश,” वह अक्सर कहती, लेकिन राकेश बस टालता, “थोड़ा और इंतजार करो, जब कामयाब हो जाऊंगा तो तुम्हें सब कुछ दूंगा।”
पर सुमन के लिए पैसा नहीं, प्यार और साथ मायने रखते थे। छोटे-छोटे ताने और गुस्से के लम्हे उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गए। एक दिन उनकी तीखी बहस हुई। सुमन ने आंसू बहाते हुए कहा, “मुझे पैसों से नहीं, तुम्हारे प्यार से मतलब है।”
राकेश गुस्से में बोला, “अगर इतना दर्द है तो जाओ मेरी जिंदगी से।”
सुमन ने बिना कुछ कहे सामान बांधा और घर छोड़ दिया। धीरे-धीरे मामला तलाक तक पहुंच गया। कोर्ट के कमरे में दोनों की चुप्पी ने उनके रिश्ते की मौत कर दी। तलाक के बाद सुमन के सपने टूट गए। परिवार का सहारा छिन गया, रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया।
पढ़ाई अधूरी, नौकरी नहीं मिली। मजबूरी में सुमन ने कुली का काम चुन लिया। वाराणसी जंक्शन पर लाल सलवार-सूट पहने, बैच नंबर 108 बांधे, वह बोझ उठाती थी। उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी।
राकेश जब उस दिन उसे प्लेटफार्म पर देख रहा था, तो उसका दिल टूट गया। उसने खुद को दोषी माना कि उसने उस मासूम औरत को इस हाल तक पहुंचाया। वह भीड़ को चीरता हुआ उसके सामने गया, लेकिन सुमन ने कहा, “अब बातें बेकार हैं। जब दिल तोड़ा था तब क्यों नहीं सोचा था?”
राकेश ने हाथ जोड़कर कहा, “मैं तुम्हें वापस पाना चाहता हूं। मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं। मुझे सजा दो, ताने दो, पर मुझे दूर मत करो।”
सुमन ने कठोरता से कहा, “मेरा पास अब सिर्फ यह प्लेटफार्म और लाल कपड़ा है। तुम्हें करोड़पति की जिंदगी पसंद है, मुझे मजदूरी। हमारी दुनिया अलग हो चुकी है।”
राकेश ने तुरंत कहा, “अगर यही तुम्हारी दुनिया है, तो मैं इसमें जीना सीख लूंगा। तुम्हारे साथ रहने के लिए मैं किसी भी हालात में खुद को ढाल लूंगा।”
सुमन चौक गई, “तुम मेरी झोपड़ी में रहोगे? जहां टूटी छत से बारिश टपकती है, ठंडी रातें आग बिना काटनी पड़ती हैं? तुम वह राकेश हो जो आलीशान बंगले में रहता है।”
राकेश की आवाज कांप रही थी, लेकिन शब्दों में सच्चाई थी, “हाँ, अगर वही झोपड़ी मुझे तुम्हारे करीब लाती है तो वह मेरे लिए महल से कम नहीं।”
सुमन ने कहा, “अगर सचमुच मेरे साथ जीना है तो आओ मेरे झोपड़े में, देखूंगी कितने दिन टिकते हो।”
राकेश ने बिना देर किए कहा, “मैं आज ही आऊंगा। तुम्हारे झोपड़े में रहूंगा जब तक माफ़ नहीं कर देती।”
रात ढली। सुमन झोपड़ी की ओर बढ़ी। पर्दा हटाते ही कदमों की आहट सुनाई दी, वह राकेश था। उसके हाथ में साधारण थैला था, जिसमें उसने सब्जियां खरीदी थीं।
सुमन हैरान रह गई। राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुमने कहा था दरवाजा खुला होगा, मैं यहां हूं।”
झोपड़ी में पुरानी चारपाई, मिट्टी का चूल्हा, दीवार पर लालटेन, टपकती छत—सभी कुछ था। राकेश ने कहा, “यह मेरी दुनिया है अब।”
रात दोनों ने साथ बिताई। राकेश ने खाना बनाया, चाय बनाई। सुमन ने देखा कि वह सचमुच बदल चुका है।
सुबह सूरज की पहली किरण झोपड़ी में आई। राकेश आग जलाता, दूध उबालता, रोटियां सेंकता था। उसने कहा, “आज पहली बार लग रहा है कि मैं इंसान हूं, सिर्फ करोड़पति नहीं।”
सुमन का दिल पिघल गया। उसने पूछा, “क्या यह कुछ दिन का जोश है या सच्चाई?”
राकेश ने कहा, “अगर जोश है तो मेरी सांसों के साथ खत्म होगा, अगर सच्चाई है तो आखिरी सांस तक रहेगा।”
दिन बीते, राकेश झोपड़ी की जिंदगी जीने लगा। मोहल्ले वाले भी उसकी तारीफ करने लगे। एक शाम सुमन ने कहा, “मैं मान गई, तुम सचमुच बदल गए हो। अब मैं तुम्हारी पत्नी बनकर जीना चाहती हूं।”
राकेश की आंखों से आंसू निकले। उसने कहा, “यह मेरी सबसे बड़ी जीत है। अब तुम्हें मैं रानी की तरह रखूंगा।”
कुछ दिनों बाद सुमन उसके साथ बड़े घर लौटी। जहां पहले ठंडा सन्नाटा था, अब प्यार और खुशियों की गूंज थी। राकेश हर जगह गर्व से कहता, “यह मेरी पत्नी है, मेरी असली दौलत।”
समय के साथ दोनों ने नई शुरुआत की। एक दिन राकेश ने कहा, “चलो सफर पर चलते हैं, अपनी जिंदगी की नई यात्रा शुरू करते हैं।”
सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, अब मैं भी चाहती हूं कि हम साथ चलें।”
दोनों फिर से वाराणसी जंक्शन पहुंचे। सुमन अब कुली नहीं, अपने पति का हाथ थामे गर्व से खड़ी थी। उसने कहा, “यहीं मेरी सबसे बड़ी बेइज्जती हुई थी, और आज यही मेरी सबसे बड़ी जीत की गवाही दे रही है।”
राकेश ने कहा, “यह स्टेशन हमारे मिलन की नई मंजिल है।”
ट्रेन की सीटी गूंज रही थी। दोनों हाथों में हाथ डाले डिब्बे की ओर बढ़े। उनकी आंखों में अब सिर्फ प्यार, भरोसा और साथ की मंजिल थी।
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