ट्रेन में बैग बदल गए थे, एक बैग में कीमती सामान था, लड़की ने वह बैग उसके मालिक को एक अप्रत्याशित तरीके से लौटा दिया।

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रोशनी की ईमानदारी: एक छोटी सी गलती जिसने जिंदगी बदल दी

जब जिंदगी की आखिरी उम्मीद एक छोटी सी गलती की वजह से टूटने लगती है, तब इंसान के सामने दो रास्ते होते हैं—या तो वह अपने आप को खो दे या फिर अपने उसूलों के साथ मजबूती से खड़ा रहे। यह कहानी है रोशनी की, एक पढ़ी-लिखी लेकिन बेरोजगार लड़की की, जो अपने परिवार की इकलौती सहारा थी। उसकी जिंदगी का एक-एक पल संघर्ष से भरा था, और एक नौकरी का इंटरव्यू उसके लिए जिंदगी और मौत का सवाल था।

रोशनी राजस्थान के अलवर जिले की अरावली पहाड़ियों के तलहटी में बसे एक छोटे से कस्बे की रहने वाली थी। उसका घर पुराना था, लेकिन साफ-सुथरा और प्यार से भरा। 23 साल की रोशनी अपने परिवार की इकलौती उम्मीद थी। उसके पिता श्री रामनिवास एक सरकारी स्कूल से रिटायर्ड मास्टर थे, जिनकी मामूली पेंशन से घर का गुजारा मुश्किल से चलता था। उसकी मां एक कुशल गृहिणी थी, जो हर मुश्किल में मुस्कुराना जानती थी। उसकी एक छोटी बहन भी थी, जो कॉलेज में पढ़ रही थी।

रोशनी बचपन से ही होशियार और मेहनती थी। उसके मां-बाप ने अपनी सारी जमा पूंजी और कुछ कर्ज लेकर उसे जयपुर के एक अच्छे कॉलेज से MBA कराया था। उनका सपना था कि उनकी बेटी एक दिन बड़ी अफसर बनेगी और पूरे परिवार की तकलीफें दूर कर देगी। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। पिछले छह महीनों से रोशनी नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रही थी। वह रोज अखबारों में नौकरियों के विज्ञापन देखती, ऑनलाइन आवेदन करती और शहर-शहर की बसें पकड़ती, लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगती। कहीं अनुभव की कमी आड़े आती, तो कहीं सिफारिश की जरूरत।

धीरे-धीरे उसकी उम्मीदें खत्म होने लगीं। घर के हालात भी बिगड़ते जा रहे थे। पिता की दमा की बीमारी बढ़ रही थी, बहन की कॉलेज फीस का वक्त नजदीक आ रहा था, और परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी।

फिर एक दिन एक उम्मीद की किरण दिखाई दी। उसे गुड़गांव की एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी, ग्लोबल टेक सॉल्यूशंस, से मैनेजमेंट ट्रेनी के पद के लिए इंटरव्यू का कॉल आया। यह मौका उसके लिए किसी वरदान से कम नहीं था। अगर यह नौकरी मिल गई, तो उसकी सारी मुश्किलें खत्म हो सकती थीं। यह इंटरव्यू अब उसके लिए सिर्फ नौकरी पाने का मौका नहीं, बल्कि जिंदगी और मौत का सवाल बन गया था।

इंटरव्यू के दिन उसकी मां ने पूजा घर में दीपक जलाया और पिता ने कांपती आवाज में उसे जीत का आशीर्वाद दिया। रोशनी ने एक पुराने लेकिन मजबूत काले रंग के सूटकेस में अपने कुछ कपड़े, डिग्रियों की फाइलें और पूरे परिवार के सपने पैक किए।

दूसरी ओर दिल्ली की तेज़ रफ्तार जिंदगी में, अजय सिंघानिया का नाम बिजनेस की दुनिया में मिसाल बन चुका था। 35 साल के अजय ने दस सालों में मेहनत और तेज बुद्धि से अपनी छोटी सी स्टार्टअप कंपनी को 1000 करोड़ के साम्राज्य में बदल दिया था। उसके लिए वक्त ही पैसा था, और ईमानदारी सौदे की पहली शर्त। वह अपने कर्मचारियों से परफेक्शन की उम्मीद करता और खुद 18 घंटे काम करता।

वह भी उसी दिन जयपुर से दिल्ली जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस में सफर कर रहा था, साथ में एक काले रंग का साधारण सूटकेस था, जिसमें उसकी कंपनी का बेहद गोपनीय नया प्रोडक्ट प्रोटोटाइप, करोड़ों की डील के दस्तावेज और पिता की कीमती पुश्तैनी घड़ी थी।

ट्रेन जयपुर स्टेशन पर सिर्फ दस मिनट के लिए रुकी। स्टेशन की भीड़ में एक कुली ने गलती से रोशनी और अजय के एक जैसे दिखने वाले सूटकेस आपस में बदल दिए। ना रोशनी ने ध्यान दिया, ना अजय ने।

रोशनी गुड़गांव स्टेशन पर उतरी, थकी हुई पर उम्मीद से भरी। उसने ऑटो लिया और सीधे ग्लोबल टेक सॉल्यूशंस के भव्य ऑफिस की ओर बढ़ी। ऑफिस की भव्यता देखकर वह घबरा गई, लेकिन फिर गहरी सांस लेकर अंदर चली गई।

इंटरव्यू कठिन था। तीन अनुभवी मैनेजरों ने ऐसे सवाल पूछे जिनका जवाब किताबों में नहीं, बल्कि अनुभव में छिपा था। रोशनी ने पूरी मेहनत से जवाब दिए, लेकिन अंत में उसे एहसास हो गया कि यह नौकरी शायद उसे नहीं मिलेगी। जब वह इंटरव्यू रूम से बाहर निकली, उसका चेहरा उदास था। उसकी आखिरी उम्मीद भी टूट चुकी थी।

भारी मन से वह ऑफिस से बाहर निकली। वापसी की ट्रेन रात में थी। उसने सोचा कुछ घंटे पास के सस्ते गेस्ट हाउस में आराम कर लिया जाए। कमरे में उसने सूटकेस खोला, लेकिन अंदर उसने महंगे ब्रांडेड कपड़े, गोपनीय दस्तावेज और एक मखमली डिब्बे में कीमती घड़ी देखी। उसका दिल बैठ गया। उसका सूटकेस बदल गया था।

उसने फर्श पर बैठकर फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया। उसकी नौकरी चली गई, उसकी पहचान चली गई। लेकिन फिर उसने अपनी जरूरतों और लालच को काबू किया। उसने सोचा, यह सामान मेरा नहीं है, यह किसी का अमानत है। मैं अपनी खुशियों की नींव किसी और के नुकसान पर नहीं रख सकती।

उसने बैग में रखे दस्तावेजों में CEO अजय सिंघानिया का बिजनेस कार्ड पाया। अब उसके पास एक मकसद था। उसने ऑटो लिया और सिंघानिया इंडस्ट्रीज के विशाल ऑफिस की ओर बढ़ी।

वहीं अजय सिंघानिया भी दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही सूटकेस खोलकर अंदर सलवार सूट और फाइलें देखकर गुस्से में था। उसका प्रोटोटाइप अरबों का था, और वह किसी गलत हाथ में चला गया तो उसकी मेहनत बर्बाद हो सकती थी। उसने पूरी सिक्योरिटी टीम को लगा दिया।

कुछ देर बाद रोशनी को दो सिक्योरिटी गार्ड्स के साथ अजय के ऑफिस में लाया गया। अजय ने उसे गुस्से से घूरते हुए कहा, “तुम चोर हो? क्या यह सब लेकर भाग जाओगी?”

रोशनी ने शांत और दृढ़ आवाज़ में कहा, “सर, मैं चोर नहीं हूं। मेरा बैग गलती से आपके पास आ गया है। मैं आपकी अमानत वापस करने आई हूं।”

उसने पूरी कहानी बताई—कैसे वह इंटरव्यू देने आई, कैसे बैग बदल गया। उसकी सच्चाई और गरिमा ने अजय को चुप करा दिया। उसने सूटकेस खोला, सब कुछ वैसा ही था। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

अजय ने पूछा, “तुम्हारा इंटरव्यू कैसा रहा?”

रोशनी ने कहा, “अच्छा नहीं। शायद मैं इस नौकरी के लायक नहीं हूं।”

अजय ने कहा, “जिस कंपनी ने तुम्हें रिजेक्ट किया, उसने अपनी सबसे बड़ी गलती की है। हमें तुम्हारे जैसे ईमानदार और भरोसेमंद लोग चाहिए।”

उसने HR को बुलाया और कहा, “मिस रोशनी शर्मा, क्या आप हमारी कंपनी में काम करना चाहेंगी?”

रोशनी हैरान थी, “सर, मेरे पास अनुभव नहीं है।”

अजय ने कहा, “तुम इसी प्रोजेक्ट की असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर बनोगी। जिस चीज़ को तुमने ईमानदारी से लौटाया है, उसकी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी।”

कुछ मिनटों में रोशनी को अपॉइंटमेंट लेटर मिला। सैलरी इतनी अच्छी थी कि वह विश्वास नहीं कर पा रही थी। उसकी आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। अजय ने मुस्कुराते हुए कहा, “और हां, तुम्हारा बैग भी मैंने मंगवा लिया है।”

उस दिन रोशनी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। उसकी ईमानदारी ने उसके तकदीर के सारे बंद दरवाजे खोल दिए। यह कहानी हमें सिखाती है कि चरित्र दुनिया की सबसे बड़ी डिग्री है, और ईमानदारी एक ऐसा निवेश है जिसका मुनाफा जरूर मिलता है।