शानवी और अजय: कानून से परे एक रिश्ते की कहानी

गर्मियों की तपती दोपहर थी। अदालत के बड़े हॉल में वकीलों की भीड़ थी। हर कोई अपनी फाइलों और बहस में डूबा हुआ था। लेकिन उस भीड़ में एक महिला ऐसी भी थी जिसकी पहचान सबसे अलग थी—शानवी मिश्रा। उम्र केवल 27 साल, मगर चेहरे और चाल-ढाल में गजब का आत्मविश्वास था। लोग कहते थे कि वह केस जीतने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है, लेकिन सच यह था कि वह सच और न्याय के लिए हर कदम लड़ती थी।

शानवी का बचपन दुखों से भरा था। मां-बाप का साया सिर से जल्दी उठ गया था, रिश्तेदारों के बीच पलते हुए उसने जाना था कि अनाथ बच्चे समाज के लिए बोझ माने जाते हैं। यही वजह थी कि उसने कानून की पढ़ाई चुनी ताकि कभी किसी के साथ अन्याय हो तो वह खुलकर लड़ सके।

अजय का केस

उस दिन अदालत में एक केस आया—एक 14 साल के लड़के पर आरोप था कि उसने पास की दुकान से चोरी की है। लड़के का नाम अजय था। चेहरा दुबला-पतला, आंखों में डर और मासूमियत। पुलिस वाले उसे पकड़ कर लाए थे और लोग कह रहे थे कि यह लड़का जन्मजात चोर है। मगर शानवी की नजरें जब उस पर पड़ीं, तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि इतना छोटा और मासूम बच्चा चोर हो सकता है। उसने तुरंत उसकी तरफ से केस लड़ने का निश्चय कर लिया।

अदालत में अभियोजन पक्ष ने अजय को चोर साबित करने की कोशिश की। कहा कि वह पहले भी छोटी-मोटी चोरी कर चुका है। लेकिन शानवी ने दलील दी, “केवल आरोप और अफवाहों से किसी बच्चे को अपराधी नहीं कहा जा सकता। अजय का परिवार ठीक नहीं है। मां गुजर चुकी है, पिता शराबी है। लड़का भूखा-प्यासा गलियों में भटकता रहता है। अगर उसने रोटी का टुकड़ा उठाया भी है, तो वह मजबूरी थी, अपराध नहीं।”

शानवी की दलीलों ने जज को सोचने पर मजबूर कर दिया। आखिरकार कोर्ट ने अजय को दोषमुक्त कर दिया और कहा कि इस बच्चे को किसी संस्था या जिम्मेदार व्यक्ति की देखरेख में रखा जाए।

नया रिश्ता

अदालत से निकलते समय अजय की आंखों में आंसू थे। उसने शानवी के पैर पकड़ लिए, “दीदी, अगर आप ना होतीं तो मैं आज जेल में होता।” शानवी ने उसे उठाया और अपने पास बिठा लिया। वह सोचने लगी कि इस बच्चे को अब कहां भेजा जाए। संस्था में भेजना मतलब था कि वहां वह फिर लाचार और अकेला हो जाएगा, जैसा दर्द उसने खुद अपने बचपन में महसूस किया था। उसके दिल में ख्याल आया—क्यों ना वह खुद ही अजय को अपने साथ रखे।

अगले दिन उसने कोर्ट में अर्जी दी कि अजय को उसकी देखरेख में रहने दिया जाए। कोर्ट ने मान लिया। इस तरह अजय शानवी के घर आ गया। शुरुआत में अजय बहुत डरता था, लेकिन शानवी ने उसे प्यार से रखा, पढ़ाई में लगाया, अच्छे कपड़े दिलाए और सबसे बढ़कर उसे यह एहसास कराया कि वह अकेला नहीं है।

धीरे-धीरे अजय का जीवन बदलने लगा। उसके चेहरे पर चमक आने लगी, पढ़ाई में भी वह अच्छा करने लगा। मोहल्ले वाले हैरान थे कि जो बच्चा कल तक चोर कहलाता था, आज शानवी जैसी नामी वकील का साथ पाकर बदल गया है।

समाज की दीवारें

लेकिन समाज की निगाहें बदलने लगीं। लोग कानाफूसी करने लगे कि अविवाहित महिला अपने घर में 14 साल के लड़के को रख रही है, न जाने इसका अंजाम क्या होगा। शानवी ऐसे तानों को नजरअंदाज करती थी, लेकिन अंदर ही अंदर परेशान रहने लगी थी। अजय की मासूमियत उसे बहुत भाती थी। कभी-कभी वह सोचती, जैसे बचपन का अकेलापन उसने झेला था, वैसे ही अजय ने भी झेला है। शायद यही वजह थी कि वह उसकी तरफ खिंचती चली जा रही थी।

अजय भी धीरे-धीरे शानवी को सिर्फ दीदी नहीं समझता था, बल्कि उसके दिल में एक अजीब सा लगाव पनपने लगा था। एक दिन स्कूल में बच्चों ने अजय का मजाक उड़ाया, “तू तो किसी दीदी के घर पल रहा है, तेरे मां-बाप तो हैं ही नहीं।” अजय रोता हुआ घर आया और शानवी से लिपट गया। शानवी ने उसके आंसू पोंछे और कहा, “अब मैं ही तेरे लिए सब कुछ हूं।”

रिश्ते की गहराई

उस पल दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता जन्म ले रहा था जिसे नाम देना आसान नहीं था। समाज की दीवारें ऊंची थीं, लेकिन दिल की भावनाएं उन्हें तोड़ रही थीं। अजय अब आत्मविश्वास से भरा बच्चा बन चुका था, लेकिन उम्र के इस मोड़ पर उसका मन बार-बार विचलित हो जाता था। वह कभी खुद को छोटा महसूस करता, कभी लगता कि शानवी ही उसकी पूरी दुनिया है।

शानवी का जीवन भी अब अजय के बिना अधूरा लगने लगा था। वो सुबह उठते ही उसके लिए नाश्ता बनाती, स्कूल भेजती, लौटने पर होमवर्क कराती और रात को उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती, “तू बिल्कुल अकेला नहीं है, मैं हूं तेरे साथ।”

धीरे-धीरे दोनों के बीच का रिश्ता गहराता गया। लेकिन यह रिश्ता ऐसा था जिसे समाज ना समझ सकता था, ना स्वीकार।

समाज का विरोध

मोहल्ले में चर्चा होने लगी कि एक अविवाहित महिला वकील अपने से 13 साल छोटे लड़के को पाल रही है। लोग फुसफुसाते कि आगे चलकर ना जाने क्या होगा। शानवी इन बातों की परवाह नहीं करती थी, पर कभी-कभी रात को अकेले में सोचती कि क्या सचमुच वह अजय को अपनाकर कोई गलती कर रही है।

अजय की पढ़ाई में रुचि बढ़ती गई। उसने अच्छे अंक लाने शुरू कर दिए। स्कूल के अध्यापक भी उसकी तारीफ करने लगे थे। लेकिन बच्चे फिर भी उसे ताने देते, “तेरी मां नहीं, तेरे पास वकील दीदी है।” यह बातें अजय को चुभती और वह शानवी से कहता, “दीदी, आप मुझे मां क्यों नहीं कहने देतीं?” शानवी उसके भोलेपन पर मुस्कुरा देती, लेकिन मन ही मन सोचती कि वह मां से ज्यादा उसके लिए कुछ बन चुकी है।

एक अनोखा प्रस्ताव

एक रात दोनों छत पर बैठे थे। ठंडी हवा चल रही थी। अजय ने संकोच भरे स्वर में कहा, “दीदी, अगर मैं हमेशा आपके साथ रहना चाहूं तो?” शानवी चौंक गई। उसने कहा, “तू हमेशा रहेगा मेरे साथ। इसमें क्या सवाल है?” अजय ने धीरे से कहा, “नहीं, मतलब हमेशा जैसे पति रहते हैं।”

यह सुनकर शानवी सन्न रह गई। उसने तुरंत कुछ नहीं कहा, बस उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा, “तू अभी बच्चा है अजय। तुझे इन सब बातों की समझ नहीं है।” लेकिन उस रात शानवी भी करवटें बदलती रही। अगले दिन अदालत में केस लड़ते हुए भी उसका मन वहीं अटका रहा।

समाज और कानून की जंग

समाज का दबाव बढ़ता गया। एक दिन स्कूल से खबर आई कि कुछ बच्चों ने अजय को बहुत मारा है, सिर्फ इसलिए कि वह शानवी के घर रहता है। अजय रोते हुए घर आया, “अगर हमारा रिश्ता दुनिया के सामने साफ नहीं हुआ, तो लोग मुझे यूं ही सताते रहेंगे।” शानवी अब टूट चुकी थी। वह नहीं चाहती थी कि अजय वही दुख सहे जो उसने बचपन में सहा था।

दोनों ने फैसला किया कि वे समाज से लड़ेंगे। कुछ दिन बाद उन्होंने शादी का फैसला किया। शानवी जानती थी कि यह कानूनी और सामाजिक दृष्टि से असंभव सा है। अजय ने भी जिद पकड़ ली थी कि वह शादी करेगा तो सिर्फ शानवी से।

शानवी ने कानून की किताबें पलटनी शुरू कर दीं। उसमें साफ लिखा था कि शादी के लिए लड़के की उम्र 21 और लड़की की 18 से अधिक होना आवश्यक है। लेकिन अजय तो अभी 15 का भी पूरा नहीं हुआ था। ऐसे में यह कदम कानूनन गुनाह माना जाएगा।

शादी और तूफान

फिर भी दोनों ने गुपचुप शादी की। एक छोटे से मंदिर में, केवल पुजारी और एक दोस्त राधा गवाह बनी। मंदिर की घंटियों के बीच दोनों ने फेरे लिए। उस पल समाज की सारी दीवारें, कानूनी किताबों की सारी बंदिशें, मोहल्ले वालों की सारी गालियां फीकी पड़ गईं। दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई, सिंदूर भरा गया और एक नया रिश्ता जन्म ले लिया।

लेकिन यह रिश्ता जितना पवित्र उनके दिलों में था, उतना ही विवादास्पद समाज की नजरों में। शादी की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। अखबारों में हेडलाइन बनी—”27 साल की महिला वकील ने 15 साल के लड़के से शादी की।” अदालत में भी याचिका दायर कर दी गई कि शानवी ने नाबालिग से शादी कर अपराध किया है।

अदालत का फैसला

जज ने दोनों को बुलाया। माहौल तनावपूर्ण था। अजय ने आत्मविश्वास से कहा, “मुझे कानून का सब पता है। लेकिन मुझे यह भी पता है कि अगर मैंने शानवी जी से शादी ना की होती, तो मैं जिंदा ही नहीं रहता।” शानवी ने कहा, “कभी-कभी कानून से भी बड़ा इंसान का जीवन और उसकी भावनाएं होती हैं।”

मामला गंभीर था, इसलिए जज ने तुरंत कोई फैसला नहीं दिया। इस बीच मीडिया ने इसे और तूल दे दिया। महिला संगठनों ने शानवी का समर्थन किया, लेकिन बाल संरक्षण संस्थाएं और कानून विशेषज्ञ सख्ती से कह रहे थे कि यह बाल विवाह है और इसे रोका जाना चाहिए।

संघर्ष और जीत

अजय को स्कूल से निकाल दिया गया। शानवी ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने अजय की शिक्षा पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया और आदेश दिया कि उसे पढ़ाई जारी रखने दी जाए। यह शानवी की पहली जीत थी। हालांकि शादी को लेकर कानूनी लड़ाई जारी रही, लेकिन समाज का नजरिया धीरे-धीरे बदलने लगा।

समय बीता। अजय 18 साल का हो गया। उस दिन शानवी ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “अब हमारा रिश्ता कानून के हिसाब से भी वैध है।” अजय बोला, “हमारा रिश्ता तो उसी दिन वैध हो गया था जिस दिन आपने मेरा हाथ थामा था।”

अदालत ने भी अंत में फैसला सुनाते हुए कहा कि हालांकि शादी के वक्त कानून का उल्लंघन हुआ था, लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए यह रिश्ता अब मान्य माना जाता है।

नई शुरुआत

अजय ने वकालत की डिग्री ली और शानवी के साथ अदालत में खड़े होकर कहा, “अब हम दोनों मिलकर हर उस बच्चे का केस लड़ेंगे जिसे समाज और हालात ने अकेला छोड़ दिया है।”
उनकी कहानी यह साबित कर चुकी थी कि प्यार और अपनापन उम्र, कानून और समाज की सीमाओं से कहीं बड़ा होता है।