उसे ग़रीब समझकर शोरूम से भगा दिया गया, तो उसने खड़े-खड़े पूरा शोरूम ही खरीद डाला — शेयर मार्केट की ताक़त!

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गरीबी से सफलता तक: अर्जुन की कहानी

उत्तर प्रदेश के लखनऊ के एक छोटे से गाँव में एक गरीब परिवार रहता था। इस परिवार में माता-पिता और उनके दो बच्चे थे—एक बेटा अर्जुन और एक बड़ी बहन गौरी। अर्जुन बचपन से ही मेहनती और होशियार था, लेकिन घर की गरीबी और तंगी ने उसकी जिंदगी को कठिन बना दिया था। उसके माता-पिता उसे अक्सर नालायक और बेकार समझते थे। वे कहते, “तू कुछ नहीं कर सकता, तेरे बस की बात नहीं है, तू बस हमारा बोझ है।” लेकिन अर्जुन के दिल में एक आग थी, जो किसी को दिखाई नहीं देती थी।

गौरी, उसकी बड़ी बहन, 21 साल की थी। गांव में इस उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती थी। लेकिन गौरी समझदार थी, वह जानती थी कि घर की हालत क्या है। वह कहती, “मां-बाबूजी, मेरी शादी इतनी जल्दी क्यों? अर्जुन पढ़ाई कर लें, कुछ काम पकड़ ले, फिर आराम से कर लेना मेरी शादी।” लेकिन गांव का माहौल ऐसा था कि जवान लड़की का घर में रहना ताने का विषय बन जाता था।

एक दिन अर्जुन अपने पिता शंभू के साथ शहर गया। शंभू के एक पुराने दोस्त ने कहा था कि वह थोड़ी मदद करेगा और एक नई गाड़ी दिलवाएगा। अगर कार आ गई तो गांव में टैक्सी चलाकर कुछ आमदनी होगी। अर्जुन के दिल में पहली बार उम्मीद जगी।

दोनों चमचमाते कार शोरूम में पहुंचे। बाहर नई-नई कारें खड़ी थीं, अंदर ठंडी हवा और शीशों की दीवारें थीं। गांव से आए शंभू और अर्जुन को यह दुनिया सपने जैसी लगी। लेकिन जैसे ही वे शोरूम में घुसे, सेल्समैन ने उन्हें तिरस्कार से देखा। अर्जुन के गंदे चप्पल, पसीने से भीगी कमीज और पिता के पुराने झोले को देखकर वह बोला, “यह जगह आपके लिए नहीं है। बाहर सेकंड हैंड कार की दुकानें हैं, वहीं जाइए।”

शंभू ने विनम्रता से कहा, “भैया, एक दोस्त ने भेजा है।” लेकिन सेल्समैन ने कहा, “हर कोई जान पहचान होने का बहाना करता है, पर खरीदने लायक हो तब बात करो। यहाँ टाइम पास मत करो।” अर्जुन कुछ नहीं बोला, लेकिन उसका दिल टूट गया। रात को घर लौटे तो मां ने पूछा, “गाड़ी मिली?” शंभू ने झूठ मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं, दोस्त नहीं मिला।”

अर्जुन के दिल में कुछ टूट गया था, लेकिन साथ ही कुछ बनने लगा था। उसे समझ आ गया था कि गरीबी सिर्फ पेट काटती नहीं, आत्मा भी खा जाती है।

इसी बीच एक और हादसा हुआ। गौरी की शादी तय हो गई थी, लेकिन दहेज की भारी मांग थी: मोटरसाइकिल और दो लाख रुपये। शंभू ने ब्याज पर पैसा लिया और मां ने सारे गहने गिरवी रख दिए। शादी का दिन आया, बारात आई, लेकिन लड़के वालों ने दहेज पूरा न होने का बहाना बनाकर शादी तोड़ दी। उन्होंने कहा, “हम भीख नहीं मांग रहे, यह रिश्ता अब नहीं हो सकता।” गौरी की आंखें सूनी थीं, मां मूर्छित हो गईं और शंभू को दिल का दौरा पड़ा।

गांव वाले बातें उड़ाने लगे, “लड़के किसी काम के नहीं,” “लड़की की शादी कौन करेगा?” अर्जुन की आंखों में आंसू नहीं थे, पर उसके दिल में आग जल रही थी। उसने ठाना कि अब उसकी जिंदगी का मकसद सिर्फ एक होगा—इतना पैसा कमाना कि वह समाज और शोरूम वाले सबको उनकी औकात दिखाए।

घर की दीवारें उदास थीं, मां चुपचाप लेटी रहती, पिता बीमार थे, और गौरी बोलना भूल गई थी। अर्जुन अब पहले जैसा नहीं था। उसकी आंखों में सन्नाटा नहीं, आग थी। वह कम बोलता, किसी से नजर नहीं मिलाता, दिन में काम करता और रात में पढ़ाई करता। इंटरनेट न होने के कारण वह दूर जाकर नेटवर्क पकड़ता, कभी दोस्त से हॉटस्पॉट मांगता।

एक दिन उसने सोचा कि नौकरी से कुछ बड़ा नहीं होगा। उसे पैसा छापना था, और पैसा छापने का तरीका था—शेयर मार्केट। उसने ठाना कि अब बड़ा खेल खेलना है।

शेयर मार्केट की पढ़ाई के लिए उसने इंटरनेट कैफे जाकर घंटे बिताए। भूखा रहने के बावजूद वह हार नहीं माना। एक बार तो भूख से बेहोश हो गया, अस्पताल में जब होश आया तो डॉक्टर ने आराम की सलाह दी, पर अर्जुन को आराम नहीं, रिजल्ट चाहिए था।

धीरे-धीरे उसने डेमो ट्रेडिंग से अभ्यास शुरू किया, फिर गांव के एक पुराने जान पहचान वाले से पांच हजार रुपये उधार लेकर असली ट्रेडिंग शुरू की। पहली बार मुनाफा हुआ तो आंखें बंद करके आसमान की तरफ देखा।

आत्मविश्वास बढ़ा, वह हर ट्रेंड पकड़ने लगा। कई बार घाटा हुआ, पर हार नहीं मानी। जब खाता पहली बार एक लाख पार हुआ तो मां को फोन किया, “अम्मा, अब चिंता मत करना, घर की हालत बदल जाएगी।” मां को तब भी नहीं पता था कि अर्जुन क्या कर रहा है।

कुछ महीनों में अर्जुन लाखों में खेलने लगा। उसने एक फंड शुरू किया, दोस्तों को पैसे कमाने के तरीके सिखाए। लेकिन खुद को छुपाए रखा। उसे शोरूम वाला याद था, उसकी घिनौनी हंसी और तिरस्कार भरी नजरें।

फिर एक दिन अर्जुन ने खुद को बदलने का फैसला किया। उसने अच्छे कपड़े खरीदे, बाल कटवाए और उसी शोरूम में नई कार बुक की, जहां उसे और उसके पिता को कभी बेइज्जत किया गया था। वह कार खरीदने नहीं, बदला लेने गया था।

शोरूम में घुसते ही मैनेजर ने उसे पहचाना नहीं, लेकिन घमंड और तिरस्कार से भरी नजरें उसी तरह थीं। अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “वो गाड़ी चाहिए जो आप देख रहे हैं।” मैनेजर ने कहा, “यह गाड़ी महंगी है, क्या आप पेमेंट कर सकते हैं?” अर्जुन ने चुपचाप बैंक स्टेटमेंट, डीममैट अकाउंट की कॉपी और फंड के दस्तावेज टेबल पर रख दिए। मैनेजर का रंग उड़ गया।

“आप अर्जुन सिंह हैं?” उसने घबराकर पूछा। अर्जुन ने कहा, “हाँ, और आज मैं पूरा शोरूम खरीदने आया हूँ।” शोरूम सन्नाटे में डूब गया। अर्जुन की आंखों में अब गुस्सा नहीं, ठंडा आत्मविश्वास था।

मैनेजर कांपते हाथों से कागज पलट रहा था। अर्जुन ने कहा, “याद है? कुछ साल पहले मैं और मेरे पिता इसी दरवाजे से लौट आए थे क्योंकि हम गरीब दिखते थे। आज मैं तुम्हारा मालिक हूँ। लेकिन मैं वही अर्जुन हूँ, फर्क बस इतना है कि अब मैं चुप नहीं हूँ।”

मैनेजर ने माफी मांगी। अर्जुन ने कहा, “गलतियां इंसान करता है, पर कुछ गलतियां इंसान को इंसान नहीं रहने देतीं। माफी की जरूरत नहीं, पर एक बात सीखो—किसी को उसके कपड़ों से मत तोलो।”

अर्जुन ने शोरूम में विशेष डिस्काउंट स्कीम शुरू की, ताकि गांव के जरूरतमंद किसान और गरीब परिवार भी कार खरीद सकें। एक बड़ा पोस्टर लगा, “कभी किसी को छोटा मत समझो, हो सकता है वह कल तुम्हारा मालिक हो।”

अब अर्जुन उस कुर्सी पर बैठा था जहां कभी उसे बैठने नहीं दिया गया था। लेकिन उसके मन में घमंड नहीं, संतोष था।

वापसी के रास्ते पिता ने पूछा, “अब क्या सोच रहे हो?” अर्जुन ने कहा, “अब असली खेल शुरू करना है। अब मेरे जैसे हजारों अर्जुन तैयार करने हैं।”

गांव लौटकर अर्जुन की कहानी फैल गई। जो लोग पहले मुंह फेरते थे, अब मुस्कुराने लगे। मां ने उसे गले लगाया, बहन गौरी ने कहा, “भैया, अब कभी दूर नहीं जाओगे।”

अर्जुन ने पिता को अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया, घर की मरम्मत कराई। गांव वाले अब उसे इज्जत से देखते थे, लेकिन अर्जुन को इज्जत नहीं, परिवार की मुस्कान चाहिए थी।

गौरी की शादी फिर से तय हुई, इस बार बिना दहेज के, एक सादे समारोह में। पंचायत में जो लोग पहले जलील करते थे, उन्हें भी बुलाया गया। अर्जुन ने कहा, “मैं किसी से बदला नहीं लेता, बस बदलाव लाता हूँ।”

अर्जुन ने एक डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘जड़े’ बनाया, जो गांव के बच्चों को स्किल सिखाता। उसने टीम बनाई, ऐप को दूसरे गांवों तक पहुंचाया। उसकी कहानी वायरल हुई। कई बड़े निवेशकों ने पैसे देने की पेशकश की, लेकिन अर्जुन ने मना कर दिया।

अब वह सिर्फ अर्जुन नहीं, बल्कि एक मिशन था।

यह कहानी हमें सिखाती है कि गरीबी और तिरस्कार के बावजूद अगर हिम्मत और मेहनत हो तो कोई भी इंसान अपनी किस्मत बदल सकता है। समाज की सोच बदल सकती है, और असंभव को संभव बनाया जा सकता है।