भिखारी को खाना बांट रहा था आदमी…तभी सामने आया उसका अतीत, लेकिन फिर जो हुआ

एक इंसान अगर गलती करता है तो गुनाहगार बनता है, लेकिन वही इंसान अपनी गलती स्वीकार करके बदल जाए तो इंसानियत की मिसाल बन सकता है। यही कहानी है अभय वर्मा और आराधना की।

अभय – 35 साल का सफल व्यापारी, तीन बुटीक का मालिक, जो हर गुरुवार मंदिर में गरीबों को अपने हाथों से भोजन कराता था। उसका मानना था कि सेवा भगवान का शुक्रिया अदा करने का तरीका है।

एक दिन भोजन बाँटते समय उसकी नज़र कतार में बैठी एक औरत पर पड़ी – बिखरे बाल, मैले कपड़े, कांपते हाथ। अभय ने थाली आगे बढ़ाई, लेकिन औरत उसके पैरों में गिर पड़ी और बोली – “माफ कर दो अभय, मैं आराधना हूं – वही पत्नी जिसे तूने सात साल पहले खो दिया था।”

अभय स्तब्ध रह गया। यही आराधना जिसने उसे दहेज, लालच और ऊँचे सपनों के कारण ठुकरा दिया था, आज भिखारी बनकर उसके सामने खड़ी थी।

आराधना ने अपना दर्द सुनाया – उसने अभय को छोड़ अमीर व्यापारी से शादी की थी, लेकिन वहाँ उसे सिर्फ लालच, मारपीट और अपमान मिला। झूठे केस, टूटा हुआ परिवार, शराब और जुए की लत ने उसे सब कुछ छीन लिया। उसके पास अब न मायका था, न ससुराल, न नाम, न पहचान – बस भूख और अपराधबोध।

अभय ने उसे सीधे घर नहीं लाया। पहले मंदिर ले जाकर कहा – “कल तक तू भीख मांग रही थी, आज देख क्या तू दूसरों की भूख मिटा सकती है।” आराधना ने कांपते हाथों से पहली थाली बढ़ाई और उसी पल उसे एहसास हुआ – इंसानियत वहीं लौटती है, जहाँ से खोई जाती है।

इसके बाद अभय ने उसे अपने बुटीक में असिस्टेंट बना दिया, सख्त शर्तों पर – ना चोरी, ना झूठ, ना आलस।

आराधना ने तानों, अपमान और ग्राहकों की झिड़कियों के बीच काम करना शुरू किया। जिन हाथों में कभी सोने के कंगन थे, अब वही हाथ कपड़े तय करते, सफाई करते और मेहनत का पसीना बहाते। धीरे-धीरे उसने सभी का भरोसा जीतना शुरू किया।

ग्राहक, जो पहले उसे तिरस्कार से देखते थे, अब कहने लगे – “यह औरत सचमुच बदल गई है।”

यहाँ तक कि अभय के सख्त पिता विजय वर्मा, जो उसे घर की दहलीज पर भी नहीं देखना चाहते थे, धीरे-धीरे नरम पड़ने लगे। उन्होंने कहा – “तेरा इम्तिहान हर दिन जारी रहेगा। लेकिन अगर ऐसे ही डटी रही तो शायद एक दिन मैं भी तुझे सिर्फ तिरस्कार की नजर से नहीं देखूंगा।”

समाज के ताने, पत्रकारों के सवाल और अमीर ग्राहकों की शंकाओं के बीच आराधना हर दिन साबित करती रही कि इंसान अगर चाहे तो सुधर सकता है।

सात महीने बाद, अब वह पहले वाली औरत नहीं रही। अब उसके चेहरे पर मेहनत का तेज और आँखों में आत्मसम्मान की चमक थी।

अभय अब भी उससे दूरी बनाए रखता, पर उसके दिल में यह सवाल ज़रूर था – “क्या यह औरत सच में बदल सकती है?”


और आराधना हर दिन अपने काम, सेवा और विनम्रता से इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करती।

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