कहानी: अनामिका वर्मा की बहादुरी
प्रस्तावना
रामनगर शहर की रगों में अगर कहीं सबसे ज्यादा धड़कन थी, तो वह थी वीर सावरकर चौक। दिन-रात गाड़ियों का शोर, धूल और ट्रकों की कतारें। लेकिन असली पहचान वसूली का अड्डा। पुलिस खुद लुटेरों की तरह खड़ी और जनता खामोश। इसी माहौल में कदम रखती है एसपी अनामिका वर्मा। लोहे जैसी इरादों वाली अफसर, जिसने अपने करियर में माफियाओं की कमर तोड़ी, नेताओं को जेल पहुंचाया और अब रामनगर में पोस्टिंग पाते ही पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया।
रामनगर की सुबह
रामनगर की सुबह हमेशा एक जैसी लगती थी। हल्की-हल्की ठंडक और धूल से भरी सड़कें। लेकिन उस सुबह कुछ अलग था। अनामिका वर्मा अपनी जीप से सीधे वीर सावरकर चौक पहुंची। यह वही जगह थी जहां सालों से ट्रकों की लाइन लगती। गाड़ियों से वसूली होती और आम आदमी की जेब से आखिरी रुपया तक निचोड़ लिया जाता। गाड़ियां चेकिंग के नाम पर रोकी जातीं। ड्राइवरों को घंटों खड़ा किया जाता और फिर जेब गर्म करने के बाद ही छोड़ा जाता।
अनामिका ने यह सब दूर से कई बार रिपोर्टों में पढ़ा था, लेकिन आज अपनी आंखों से देख रही थी। जीप से उतरते ही उनकी तेज नजरें चौक की हर गतिविधि पर घूमी। एक तरफ इंस्पेक्टर चौहान अपने सिपाहियों के साथ खड़े गाड़ियों को रोक-रोक कर पैसे ऐंठ रहे थे। दूसरी ओर हवलदार जगदीश यादव किसी ड्राइवर से बहस कर रहा था। अनामिका बिना आवाज किए सीधे आगे बढ़ी और उनके पीछे-पीछे गाड़ियों का जाम और लोगों की भीड़ धीरे-धीरे बढ़ने लगी।
भ्रष्टाचार का सामना
“इतना शोर क्यों है यहां?” अनामिका ने सख्त लहजे में पूछा। चौहान सकखया। जल्दी से सैल्यूट ठोका और बोला, “मैडम, चेकिंग चल रही है।”
“चेकिंग या वसूली?” अनामिका की आंखें सीधी उसकी आंखों में थीं। कुछ पल का सन्नाटा हुआ। भीड़ भी चुप हो गई। अचानक एक ट्रक ड्राइवर हिम्मत करके आगे आया और बोला, “मैडम, हर दिन यही होता है। बिना पैसे दिए हमें आगे नहीं बढ़ने दिया जाता। कभी फिटनेस के नाम पर, कभी कागजात के बहाने। अगर पैसा दो तो सब ठीक, वरना गाड़ी खड़ी करके घंटों परेशान करते हैं।”
अनामिका ने तुरंत चौहान की ओर रुख किया। “अगर तुम्हारे पास सचमुच चेकिंग का कोई आदेश है तो मुझे दिखाओ। वरना अभी यहीं खड़े-खड़े निलंबन का आदेश भेज दूंगी।” चौहान पसीने से भीग गया। उसका चेहरा लाल पड़ गया और उसने झूठ-मूठ के कुछ कागज दिखाने की कोशिश की।
अनामिका ने कागज हाथ में लिया। एक नजर डाली और कहा, “यह तो महीनों पुराने आदेश हैं। आज की चेकिंग का इससे क्या लेना-देना?” भीड़ में हलचल मच गई। लोग फुसफुसाने लगे। लगता है इस बार सचमुच कोई ईमानदार अफसर आया है।
विधायक का दबाव
तभी हवलदार जगदीश यादव जो अब तक चुप था, बोल पड़ा, “मैडम, हम तो बस आदेश मानते हैं। ऊपर से दबाव आता है। हम क्या करें?” अनामिका की आंखों में आग भड़क उठी। “ऊपर से आदेश कौन है ऊपर? बताओ साफ-साफ।” जगदीश ने घबराकर इधर-उधर देखा और चुप हो गया।
लेकिन अब तक मामला गर्म हो चुका था। भीड़ ने मिलकर आवाज उठानी शुरू कर दी। “मैडम, हमें रोज लूटा जाता है। कोई हमारी सुनवाई नहीं करता। अगर आप कुछ नहीं करेंगी तो हम सब बर्बाद हो जाएंगे।”
अनामिका ने वहीं खड़े-खड़े फैसला किया। उन्होंने अपने स्टाफ को आदेश दिया कि तुरंत सभी गाड़ियों से अवैध वसूली की पर्चियां ज्त की जाएं। ड्राइवरों से पूछताछ की जाए और पूरे मामले की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए। पल भर में माहौल बदल गया। जो पुलिस वाले अभी तक दबंगई दिखा रहे थे, वही अब हाथ जोड़कर खड़े थे।
इसी बीच एक सफेद रंग की कार धीरे-धीरे चौक पर आकर रुकी। उसमें से उतरे विधायक महेश त्रिपाठी। उनका चेहरा घमंड से भरा था। चौहान और जगदीश दोनों उनके पास भाग कर गए जैसे कोई मालिक आ गया हो। “मैडम, यह हमारे इलाके के विधायक हैं,” चौहान ने धीरे से कहा।
त्रिपाठी ने बिना किसी औपचारिकता के सीधे अनामिका से कहा, “एसपी साहिबा, आप नई-नई आई हैं। आपको यहां के तौर-तरीके समझने चाहिए। यह चौक हमारे लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है। ज्यादा सख्ती से माहौल खराब हो जाएगा।”
अनामिका ने ठंडी नजर से उन्हें देखा। “विधायक जी, रोजी-रोटी मेहनत से चलती है। चोरी और वसूली से नहीं। अगर आपको लगता है कि कानून आपके हिसाब से चलेगा तो आप गलतफहमी में हैं।”
त्रिपाठी की मुस्कान गायब हो गई। भीड़ अब खुलकर तालियां बजाने लगी थी। किसी ने मोबाइल पर वीडियो बनाना शुरू कर दिया था। माहौल पूरी तरह अनामिका के पक्ष में हो चुका था।
अनामिका का संकल्प
त्रिपाठी ने गुस्से में चौहान को घूरा और फिर अनामिका से बोला, “दे मैडम, राजनीति में दुश्मन बनाना आसान नहीं होता। आपको भी कभी हमारी मदद की जरूरत पड़ेगी।”
अनामिका बिना डरे बोली, “जब तक मेरी वर्दी पर यह सितारे हैं, मुझे आपकी मदद की जरूरत नहीं। मुझे सिर्फ कानून चाहिए।” यह कहकर उन्होंने स्टाफ को आदेश दिया कि चौहान और जगदीश दोनों को तुरंत लाइन हाजिर किया जाए और विभागीय जांच शुरू की जाए।
भीड़ में खड़े लोग चिल्ला उठे, “जय हो मैडम की।” उस दिन रामनगर में पहली बार किसी ने देखा कि पुलिस और नेताओं के गठजोड़ को कोई अफसर खुलेआम चुनौती दे रहा है।
अगली चुनौती
लेकिन उन्हें पता नहीं था कि यह तो बस शुरुआत है। असली तूफान अभी बाकी था। अनामिका ने चौक से निकलते वक्त सोचा, “अगर चौक पर इतना भ्रष्टाचार है तो शहर के अंदरूनी हिस्सों में क्या हाल होगा? और अगर विधायक तक इसमें शामिल हैं तो पीछे का असली चेहरा कौन है?”
उनके दिमाग में सवालों का तूफान उमड़ रहा था। लेकिन एक बात साफ थी, यह लड़ाई आसान नहीं होगी। रामनगर में उस दिन का माहौल बदला-बदला सा था। चौक पर जो कुछ हुआ था, उसकी चर्चा हर गली और हर चौराहे पर हो रही थी। लोग मोबाइल पर वीडियो देखकर आपस में कह रहे थे कि पहली बार कोई अफसर इस तरह नेताओं और पुलिस वालों की मिलीभगत के खिलाफ खड़ा हुआ है।
विधायक की साजिश
लेकिन जितना लोग खुश थे, उतना ही नेताओं के बीच बेचैनी फैल चुकी थी। विधायक महेश त्रिपाठी अपने घर लौटते ही गुस्से से तमतमा उठे। फोन उठाकर सीधे अपने खास लोगों को बुलाया और बोले, “यह औरत अगर ऐसे ही चली तो हमारा पूरा खेल खत्म हो जाएगा। चौक से आने वाली रोज की कमाई रुक गई तो सोचो आगे क्या होगा। अभी से इसे सबक सिखाना होगा।”
कमरे में बैठे उसके सहयोगी एक दूसरे की ओर देखने लगे। किसी ने हिम्मत करके कहा, “लेकिन साहब, यह सीधी टक्कर लेना खतरनाक भी हो सकता है। लोगों में इसकी इमेज बहुत तेजी से बढ़ रही है।”
त्रिपाठी ने मेज पर हाथ मारकर कहा, “इमेज से पेट नहीं भरता। हमें पैसे चाहिए और ताकत चाहिए। कल ही इसे संदेश पहुंचाना होगा कि राजनीति और सिस्टम के खिलाफ टिकना आसान नहीं है।”
अनामिका का साहस
इधर एसपी अनामिका अपने दफ्तर में बैठी घटनाओं की रिपोर्ट लिखवा रही थी। चौक पर हुई सारी वसूली की रकम ज्त कर ली गई थी और अब सारे सबूतों के साथ एक विस्तृत फाइल तैयार हो रही थी। उनके स्टाफ ने बताया कि ड्राइवरों ने खुलकर बयान दिए हैं, लेकिन सब डरे हुए भी हैं। अगर नाम उजागर हुआ तो आगे परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
अनामिका ने फाइल बंद करते हुए कहा, “यह शहर डर के साए में बहुत जी चुका है। अगर डर को खत्म नहीं किया तो यहां कभी न्याय नहीं होगा।”
रात को अनामिका घर लौटी तो उन्हें लगा कि बाहर कोई उनकी हरकतों पर नजर रख रहा है। घर के पास खड़ी एक गाड़ी बार-बार इंजन स्टार्ट करके बंद कर रही थी। उन्होंने खिड़की से झांक कर देखा तो गाड़ी अचानक तेजी से निकल गई। वह समझ गईं कि यह कोई इत्तेफाक नहीं है।
बैठक में बेबाकी
अगली सुबह वह एक महत्वपूर्ण बैठक में पहुंची। जिले के बड़े अधिकारियों के साथ यह चर्चा हो रही थी कि शहर में कानून व्यवस्था कैसी चल रही है। वहां भी अनामिका ने बिना डरे चौक पर हुए भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा दिया। कुछ अफसर असहज हो गए। लेकिन उन्होंने साफ कहा, “जब तक इन जड़ों को नहीं काटा जाएगा, रामनगर की हालत सुधरने वाली नहीं है।”
उनकी यह बेबाकी सबको चुभ रही थी। बैठक खत्म होते-होते कई अफसर आपस में फुसफुसाने लगे कि “यह औरत बहुत आगे बढ़ रही है। इसे रोका जाना चाहिए।”
धमकी का सामना
शाम तक अनामिका को एक अनजान फोन आया। आवाज भारी और धमकी भरी थी। “मैडम, आप बहुत ईमानदार बन रही हैं। लेकिन याद रखिए, रामनगर में जो सिस्टम सालों से चल रहा है, उसे कोई रोक नहीं सकता। आप चाहे तो चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठिए। वरना आपकी और आपके परिवार की जिंदगी मुश्किल हो जाएगी।”
फोन रखने के बाद कुछ पल तक कमरे में सन्नाटा छा गया। अनामिका ने गहरी सांस ली और खुद से कहा, “अगर डर गई तो जीत उनकी होगी और अगर डटी रही तो शायद बदलाव की उम्मीद।”
विधायक का दबाव
उधर विधायक त्रिपाठी ने अपने गुर्गों को आदेश दिया कि अनामिका पर दबाव बढ़ाना है। चौक पर उनके खिलाफ बयान देने वाले कुछ ड्राइवरों को डराना धमकाना शुरू हो गया। रात के अंधेरे में कई गाड़ियों को रोककर पत्थर फेंके गए और यह संदेश फैलाया गया कि जो भी एसपी के साथ खड़ा होगा, उसका यही हाल होगा।
अनामिका को यह खबर मिली तो उन्होंने तुरंत कार्रवाई की। पूरे इलाके में गश्त बढ़ा दी। पुलिस पेट्रोलिंग शुरू कर दी और सीसीटीवी फुटेज खंगालने के आदेश दे दिए। उन्होंने अपने भरोसेमंद सब इंस्पेक्टर को बुलाकर कहा, “मुझे किसी भी हाल में पता करना है कि यह सब किसके इशारे पर हो रहा है।”
सच के करीब
धीरे-धीरे जांच की परतें खुलने लगीं। नाम आने लगे, गवाह सामने आने लगे। लेकिन जैसे-जैसे अनामिका सच के करीब पहुंच रही थी, वैसे-वैसे खतरे भी बढ़ते जा रहे थे। शहर में अफवाह फैल गई कि बहुत जल्द एसपी के खिलाफ कोई बड़ा कदम उठाया जाएगा। लोग एक तरफ उनके साहस की तारीफ कर रहे थे तो दूसरी तरफ डर भी रहे थे कि कहीं उनका अंजाम बुरा ना हो।
उसी रात अचानक उनके घर के बाहर गोली चली। गोलियों की आवाज से पूरा मोहल्ला दहल गया। लोग डर के मारे घरों में छुप गए। जब पुलिस पहुंची तो सिर्फ कारतूस के खोखे मिले। हमलावर भाग चुके थे। अनामिका समझ गईं कि अब खेल और गंभीर हो चुका है।
साहस का संकल्प
यह सिर्फ भ्रष्टाचार की लड़ाई नहीं रह गई थी, बल्कि सत्ता और डर के बीच जंग थी। उनकी आंखों में एक अलग चमक आ गई। उन्होंने धीरे से कहा, “अगर यह लोग मुझे चुप कराने के लिए गोलियां चला सकते हैं तो इसका मतलब है कि मैं सही रास्ते पर हूं। अब यह लड़ाई मैं हर हाल में जीतूंगी।”
लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि यह लड़ाई उन्हें कितनी गहराई तक खींच ले जाएगी और कौन-कौन सा सच सामने लाएगी।
गद्दार की पहचान
रामनगर की गलियों में डर और उत्सुकता का अजीब सा माहौल फैल चुका था। एक तरफ लोग फुसफुसाते हुए कह रहे थे कि एसपी अनामिका ने वह कर दिखाया जो सालों से किसी ने करने की हिम्मत नहीं की। दूसरी तरफ सत्ता से जुड़े लोग बुरी तरह बौखलाए हुए थे। विधायक त्रिपाठी ने अपने घर में बंद मीटिंग रखी जिसमें उनके खास लोग और कुछ स्थानीय अफसर शामिल हुए।
सबकी शक्लें उतरी हुई थीं क्योंकि रोज की कमाई चौक से बंद हो गई थी। त्रिपाठी ने टेबल पर हाथ पटक कर कहा, “यह औरत अगर ऐसे ही बढ़ती गई तो हमारा पूरा सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा। हमें उसे किसी भी कीमत पर पीछे हटाना है।”
कमरे में बैठे लोगों में से एक ने डरते-डरते कहा, “लेकिन साहब, जनता उसके साथ खड़ी हो रही है। अगर हमने ज्यादा दबाव बनाया और कहीं मामला बाहर तक पहुंच गया तो बड़ी मुसीबत हो सकती है।”
त्रिपाठी ने ठंडी हंसी-हंसते हुए कहा, “मामला बाहर तभी जाएगा जब वह जिंदा रहेगी या उसके पास सबूत होंगे। हमें दोनों रास्ते बंद करने होंगे।”
अनामिका का संकल्प
इधर अनामिका थाने में बैठी सारे कागजों और बयानात की फाइलें देख रही थी। उनकी आंखों में नींद कम और दृढ़ संकल्प ज्यादा था। उन्होंने अपने सहयोगी को बुलाकर कहा, “यह सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला नहीं है। इसके पीछे बहुत गहरी जड़े हैं। मुझे यकीन है कि इसमें बड़े नेताओं के अलावा कुछ अधिकारी भी शामिल हैं। हमें सबूत चाहिए और जल्दी चाहिए।”
उनके स्टाफ ने कहा कि एक गुप्त मुखबिर ने जानकारी दी है कि चौक से वसूले गए पैसों का बड़ा हिस्सा एक गुप्त गोदाम में रखा जाता है। जहां से यह अलग-अलग लोगों तक पहुंचाया जाता है। अनामिका ने तुरंत योजना बनाई। “अगर हम उस जगह तक पहुंच गए, तो पूरे खेल का नक्शा साफ हो जाएगा।”
गोदाम की खोज
रात का अंधेरा गिर चुका था जब अनामिका अपनी टीम के साथ उस गोदाम के आसपास पहुंची। सड़कें सुनसान थीं और हवा में अजीब सी घुटन थी। उन्होंने कार रोक कर टीम से कहा, “हम अंदर तभी जाएंगे जब पक्का यकीन हो कि यही सही जगह है।” तभी अचानक गोदाम के भीतर से एक ट्रक निकला। ट्रक पर भारी बोरियां लदी थीं और उसके चारों ओर हथियारबंद लोग पहरा दे रहे थे।
अनामिका ने दूरबीन से देखा और उनके चेहरे पर गंभीरता छा गई। “यह सिर्फ पैसे नहीं है। कुछ और भी चल रहा है।” टीम ने पीछा करने की कोशिश की लेकिन ट्रक बहुत तेजी से निकल गया। हालांकि ट्रक के नंबर प्लेट को नोट कर लिया गया।
नकली नोटों का खुलासा
अनामिका ने सोचा, “अब मामला और भी गहरा है। शायद चौक की वसूली सिर्फ एक बहाना है। असली धंधा कुछ और है।” अगले दिन खबर आई कि शहर में नकली नोटों का जाल फैला हुआ है। पुलिस ने कुछ छोटे-मोटे अपराधियों को पकड़ा और उनके पास से भारी मात्रा में नकली करेंसी बरामद हुई।
जब अनामिका ने पूछताछ की, तो उन अपराधियों ने कबूल किया कि उन्हें यह पैसा सीधे विधायक त्रिपाठी के गुर्गों से मिलता था। यह सुनकर अनामिका का शक पक्का हो गया कि चौक पर होने वाली वसूली दरअसल काले धंधों का सिर्फ एक हिस्सा है।
गुमनाम चिट्ठी
इसी बीच अनामिका के पास एक गुमनाम चिट्ठी आई। उसमें सिर्फ एक लाइन लिखी थी, “अगर सच जानना है तो पुराने बस डिपो के पीछे वाली कोठरी में देखो।” चिट्ठी पर कोई नाम नहीं था। वह पल अनामिका के लिए बेहद जोखिम भरा था। वह जानती थी कि यह जाल भी हो सकता है और सुराग भी। लेकिन उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें जाना ही होगा।
शाम होते-होते वह अकेली कार से पुराने बस डिपो की ओर निकली। जगह सुनसान थी। टूटी-फूटी कोठरी खड़ी थी और चारों तरफ वीरानी छाई थी। वह धीरे-धीरे भीतर गई। अंदर जाते ही बदबूदार अंधेरा उनका स्वागत कर रहा था। मोबाइल की टॉर्च जलाई तो देखा कि फर्श पर पुराने थैले पड़े हैं।
एक थैला खोलते ही उनके होश उड़ गए। अंदर नकली नोटों की गड्डियां भरी थीं और कुछ फाइलें भी थीं जिनमें कई नाम दर्ज थे। उन नामों में नेताओं, व्यापारियों और यहां तक कि पुलिस अफसरों के नाम भी लिखे हुए थे।
जान का खतरा
वह फाइलें देख ही रही थी कि अचानक पीछे से किसी ने कदमों की आहट दी। अनामिका झट से मुड़ी लेकिन वहां कोई दिखाई नहीं दिया। वह समझ गईं कि कोई उन पर नजर रख रहा है। अचानक दरवाजा जोर से बंद हो गया और बाहर से ताला लगा दिया गया। वह अंधेरे कमरे में कैद हो चुकी थी।
उन्होंने तुरंत वायरलेस पर संदेश भेजने की कोशिश की, लेकिन सिग्नल नहीं मिल रहा था। बाहर से धीमी आवाजें आ रही थीं। कुछ लोग कह रहे थे, “काम खत्म कर दो। बहुत खेल हो गया।” यह सुनते ही उनके रोंगटे खड़े हो गए। वह जान गईं कि यह जाल था और उनकी जान को सीधा खतरा है।
लेकिन अनामिका वो नहीं थी जो इतनी आसानी से हार मान जाएं। उन्होंने चारों तरफ देखा और एक टूटी हुई खिड़की पर नजर पड़ी। बड़ी मुश्किल से वह वहां तक पहुंची और लोहे की सरियों को धक्का देने लगी।
साहस का प्रदर्शन
सरिया जंग खाए थे और थोड़ी देर की मशक्कत के बाद उनमें से एक ढीला हो गया। उन्होंने पूरी ताकत लगाई और आखिरकार सरिया टूट गया। उसी छोटे से छेद से उन्होंने बाहर झांक कर देखा तो तीन-चार हथियारबंद लोग उनके करीब आ रहे थे। उनकी धड़कन तेज हो गई, लेकिन हिम्मत नहीं टूटी।
उन्होंने जल्दी से अपना सर्विस रिवाल्वर निकाला और खिड़की से बाहर फायर कर दिया। गोलियों की आवाज से हमलावर चौंक गए और अंधेरे में इधर-उधर भागने लगे। मौका देखकर अनामिका खिड़की से बाहर निकल गई और पास खड़ी अपनी कार की ओर दौड़ पड़ी।
संघर्ष की शुरुआत
उन्होंने इंजन स्टार्ट किया और पूरी रफ्तार से थाने की ओर भागी। लेकिन उन्हें यह एहसास हो गया था कि अब वह अकेली इस लड़ाई में नहीं हैं। उनके खिलाफ पूरा सिस्टम खड़ा है और यह लड़ाई अब मौत और जिंदगी की हो चुकी है।
अनामिका जब थाने पहुंची तो उनके चेहरे पर थकान और गुस्से का मिश्रण साफ दिख रहा था। उन्होंने तुरंत अपनी टीम को बुलाया और सारी जानकारी दी जो उन्होंने उस कोठरी में देखी थी। नकली नोटों की गड्डियां और वह फाइलें जिनमें नेताओं और अफसरों के नाम थे, वही असली सबूत थे।
लेकिन सबसे बड़ा झटका यह था कि सबूत अभी भी वहीं पड़े थे और उनके पास सिर्फ उनकी याददाश्त थी। उन्होंने गहरी सांस लेकर कहा, “अगर वह लोग सबूत हटा देंगे तो हमारे पास सिर्फ आरोप रह जाएंगे। हमें जल्दी से जल्दी वहां दोबारा जाना होगा।”
सबूतों की तलाश
टीम तैयार हो गई और कुछ देर बाद जब वे फिर से बस डिपो के पीछे पहुंचे तो जगह बिल्कुल साफ कर दी गई थी। कोठरी के अंदर सिर्फ जली हुई राख बची थी। अनामिका ने राख को हाथ में लेकर देखा तो साफ था कि सबूतों को जला दिया गया है।
उनकी आंखों में निराशा की छाया आई। लेकिन उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा, “अगर यह लोग सोचते हैं कि मुझे इतनी आसानी से रोका जा सकता है तो यह उनकी सबसे बड़ी भूल है। अब मैं उन्हें उन्हीं के खेल में हराऊंगी।”
धमकी का सामना
उसी वक्त उनके मोबाइल पर एक अनजान नंबर से कॉल आया। उन्होंने रिसीव किया तो उधर से किसी की भारी आवाज आई, “मैडम, आपने जो देख लिया है वह आपके लिए खतरनाक है। अगर जिंदगी प्यारी है तो इस मामले से दूर हो जाइए वरना अंजाम बहुत बुरा होगा।”
अनामिका ने बिना डरे जवाब दिया, “धमकियां देने वाले बहुत देखे हैं, लेकिन कानून से बड़ा कोई नहीं होता। अब मैं तब तक चैन से नहीं बैठूंगी जब तक तुम सब सलाखों के पीछे नहीं हो।” कॉल कट गया और चारों तरफ सन्नाटा छा गया।
गद्दार की पहचान
रात गहराने लगी थी और थाने में अनामिका अकेली फाइलों के ढेर के बीच बैठी सोच रही थी कि अगला कदम क्या होना चाहिए। तभी एक कांस्टेबल हड़बड़ाते हुए उनके कमरे में आया और बोला, “मैडम, बड़ी अजीब बात है। हमारे ही विभाग के कुछ अफसर गुपचुप तरीके से विधायक त्रिपाठी से मिल रहे हैं। हमें शक है कि अंदर से कोई आपको धोखा दे रहा है।”
यह सुनते ही अनामिका का माथा ठनका। उन्हें समझ आ गया कि खेल सिर्फ बाहर से नहीं बल्कि अंदर से भी खेला जा रहा है। उन्होंने तुरंत रणनीति बनाई। अगले दिन उन्होंने सबके सामने खुलकर कोई कदम नहीं उठाया बल्कि चुपचाप उन अफसरों पर नजर रखना शुरू किया।
छापे की तैयारी
उनकी जासूसी टीम ने पता लगाया कि रात में पुलिस की एक गाड़ी सीधे त्रिपाठी के फार्म हाउस जाती है और वहां से भारी पैकेट्स लेकर लौटती है। अनामिका ने सोचा, “अगर इस बार सही वक्त पर छापा मार दिया तो पूरे खेल का अंत हो सकता है।”
उस रात उन्होंने खुद अपनी गाड़ी चलाई और गुप्त रूप से उस फार्म हाउस के पास पहुंची। चारों तरफ कड़ी सुरक्षा थी। लेकिन उन्होंने दूर से बयानेकुलर से देखा तो वही पुलिस की गाड़ी अंदर जाती दिखाई दी। कुछ देर बाद गाड़ी बाहर निकली और उसमें दो लोग भारी बक्से लेकर बैठे थे।
अनामिका ने पीछा करना शुरू किया। गाड़ी सुनसान सड़क से होते हुए शहर से बाहर एक पुराने कारखाने में जा पहुंची। जैसे ही अनामिका ने कारखाने के भीतर झांका तो उनके होश उड़ गए।
संगठित अपराध
अंदर ना सिर्फ नकली नोट छप रहे थे बल्कि हथियारों का जखीरा भी रखा था। यह कोई छोटा-मोटा गिरोह नहीं था बल्कि एक पूरी संगठित मशीनरी थी जो पैसे और हथियारों दोनों का धंधा कर रही थी। उनकी सांसे तेज हो गई क्योंकि अब मामला सिर्फ वसूली या नकली नोटों का नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का था।
वह तुरंत अपनी टीम को संदेश भेजने वाली थी कि तभी अचानक उनके मोबाइल पर रोशनी पड़ी और अंदर खड़े एक गार्ड ने उन्हें देख लिया। गोली चलने की आवाज गूंजी और अनामिका जमीन पर झुक गई।
उन्होंने तुरंत कार स्टार्ट की और तेजी से वहां से भागी लेकिन उनकी गाड़ी के पीछे दो जीपें लग गईं। सुनसान सड़क पर गोलियों की बरसात होने लगी। अनामिका ने पूरी रफ्तार से गाड़ी दौड़ाई और हर मोड़ पर बचते-बचाते आगे बढ़ती रही। करीब आधे घंटे तक पीछा चलता रहा और आखिरकार वह शहर के अंदर पहुंचकर हमलावरों से पीछा छुड़ा पाई।
असली लड़ाई
लेकिन अब उन्हें यह साफ हो चुका था कि वह जिस जाल में फंसी हैं, वह बहुत बड़ा है। इसमें विधायक, पुलिस, व्यापारी और शायद बाहरी गिरोह तक शामिल हैं। थाने पहुंचकर उन्होंने अपनी टीम से कहा, “यह मामला अब हमारी सीमा से बाहर है। हमें इसे तुरंत राज्य और केंद्र स्तर तक ले जाना होगा। लेकिन उससे पहले हमें ऐसे ठोस सबूत जुटाने होंगे जिन्हें कोई मिटा ना सके।”
उसी वक्त एक मुखबिर ने आकर कहा कि अगले हफ्ते त्रिपाठी खुद उस कारखाने में बड़ी डील करने वाला है जिसमें विदेशी हथियारों की खेप आने वाली है। यह खबर सुनते ही अनामिका की आंखों में चमक आ गई।
उन्होंने दृढ़ आवाज में कहा, “यही मौका है। अगर हम इस बार हाथ डाल दें तो पूरा गिरोह बेनकाब हो जाएगा।” लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उनके ही बीच से कोई उनकी हर योजना की जानकारी त्रिपाठी तक पहुंचा रहा है और असली साजिश अभी बाकी है।
डील की रात
डील वाली रात आखिरकार आ ही गई थी। अनामिका ने अपनी पूरी टीम को गुप्त रूप से तैनात कर दिया था। हर रास्ते पर नजर रखने के लिए लोग लगाए गए थे और खुद वह उस पुराने कारखाने के पास अंधेरे में खड़ी थी। उनकी आंखों में सिर्फ एक ही लक्ष्य था। त्रिपाठी और उसके गिरोह को पकड़ना।
हवा में अजीब सी बेचैनी तैर रही थी और कारखाने के भीतर से मशीनों की हल्की आवाज आ रही थी। अचानक कुछ काले शीशों वाली गाड़ियां आईं और उनमें से नकाबपश आदमी बाहर निकले। उनके हाथों में अजीब तरह के बक्से थे जिन्हें देखते ही अनामिका समझ गई कि यह वही विदेशी हथियार हैं जिनकी सूचना मिली थी।
उन्होंने अपने वायरलेस पर धीरे से कहा, “सब तैयार रहो लेकिन इशारे का इंतजार करना।” भीतर त्रिपाठी खुद मौजूद था। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास था और वह उन बक्सों को देखते हुए हंस रहा था।
अंतिम संघर्ष
उसने अपने लोगों से कहा, “आज के बाद हमें कोई रोक नहीं पाएगा। पैसे भी हमारे, हथियार भी हमारे और सत्ता भी हमारी।” अनामिका उसकी बातें सुन रही थी और उनके गुस्से का पारावार नहीं रहा।
उन्होंने ठान लिया कि आज रात का अंधेरा ही इस पूरे खेल का अंत बनेगा। लेकिन तभी उनके कानों में गोली चलने की आवाज गूंजी। अनामिका ने मुड़कर देखा तो उनके ही दस्ते का एक जवान जमीन पर गिर पड़ा था और कुछ लोग अचानक उनकी तरफ बढ़ रहे थे।
उनके दिमाग में बिजली सी कौंधी यानी अंदर से जानकारी लीक हो चुकी थी। किसी ने त्रिपाठी को सब बता दिया था। अब मामला और भी खतरनाक हो गया था। उन्होंने तेजी से अपनी पिस्तौल निकाली और जवाबी फायरिंग शुरू की। चारों तरफ अफरातफरी मच गई।
जीत की ओर
उनकी टीम भी सक्रिय हो गई और पूरा इलाका गोलियों की आवाज से गूंज उठा। कारखाने के भीतर धुआं भरने लगा और लोग इधर-उधर भागने लगे। त्रिपाठी अपनी गाड़ी की तरफ भागा लेकिन अनामिका ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।
उन्होंने पूरी ताकत से दौड़ लगाई और आखिरकार उसकी गाड़ी के सामने आकर खड़ी हो गई। गाड़ी अचानक ब्रेक लगाकर रुक गई और त्रिपाठी बाहर कूद पड़ा। दोनों आमने-सामने थे।
त्रिपाठी ने हंसते हुए कहा, “तुम मुझे पकड़ लोगी? तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मेरे पीछे कौन है।” अनामिका ने ठंडे स्वर में जवाब दिया, “सत्ता चाहे जिसकी भी हो, कानून से ऊपर कोई नहीं होता। आज तेरा खेल खत्म।”
यह कहकर उन्होंने अपनी टीम को इशारा किया और त्रिपाठी को दबोच लिया गया। लेकिन जैसे ही उसे हथकड़ियां लगाई गईं, तभी कारखाने के भीतर जोरदार धमाका हुआ। आग की लपटें उठी और सब तरफ चीखपकार मच गई।
निष्कर्ष
वह धमाका इतना बड़ा था कि पूरा इलाका हिल उठा। अनामिका समझ गईं कि कोई न कोई सबूत मिटाने के लिए यह विस्फोट कराया गया है। उन्होंने तुरंत अपनी टीम को सुरक्षित बाहर निकालने का आदेश दिया। धूल और धुएं के बीच उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो कारखाना धीरे-धीरे ढह रहा था।
लेकिन उनके मन में एक सवाल गूंज रहा था। आखिर वो कौन था जिसने त्रिपाठी को सारी जानकारी दी। वह गद्दार अब भी उनके बीच कहीं था और असली खेल अभी बाकी था।
थाने लौटते समय उन्होंने कैमरे की तरफ देखते हुए कहा, “दोस्तों, यह लड़ाई आसान नहीं थी। हर कदम पर मौत का साया था, लेकिन सच्चाई की जीत हुई। अगर आप मेरी इस कहानी को यहां तक सुन रहे हैं तो इसे औरों तक जरूर पहुंचाइए।”
लाइक और सब्सक्राइब करना मत भूलिए और कमेंट में बताइए कि आपको यह कहानी कैसी लगी? असली राज अभी खुला नहीं है और बहुत कुछ बाकी है।
रात की खामोशी टूट चुकी थी। चारों तरफ गोलियों की गूंज और आग की लपटें थीं। अनामिका ने अपने सीने में साहस समेटे आगे कदम बढ़ाया। उनकी आंखें त्रिपाठी पर टिकी थीं, जिसने अब भी हार मानने से इंकार कर दिया था। लेकिन हथकड़ियों की जकड़न ने उसकी सारी ताकत छीन ली थी।
उनके साथियों को भी दबोचा गया था और पूरा गिरोह अब कानून के शिकंजे में था। फिर भी अनामिका के दिल में संतोष नहीं था। उन्हें पता था कि यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई है। विस्फोट के धुएं में कई राज छिप गए थे और वह गद्दार जिसने त्रिपाठी को अंदरूनी खबरें दी, अब भी बेनकाब नहीं हुआ था।
अंत
यह थी अनामिका वर्मा की कहानी, जो साहस, ईमानदारी और संघर्ष से भरी हुई थी। उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी, बल्कि यह तो बस शुरुआत थी।
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