कहानी: प्रेम, धोखा और कर्म का इंसाफ
क्या दौलत, रिश्तों से बड़ी हो सकती है? क्या भाई-बहन जैसे पवित्र संबंध भी लालच के सामने हार मान लेते हैं? यही सवाल लोगों के मन में था जब सीतापुर के चौधरी हरनारायण सिंह के परिवार की मिसाल पूरे गांव भर में दी जाती थी। उनके बेटे प्रेम और बेटी पूजा के रिश्ते की कसमें खाई जाती थीं। प्रेम अपनी छोटी बहन पूजा के लिए हर खुशी कुर्बान करने को तैयार रहता था, वहीं पूजा उसकी आंखों का तारा थी।
मां-बाप का साया और खुशियों की हवेली
सीतापुर के पास आम के बागान में बसी पुश्तैनी हवेली किसी खजाने से कम नहीं थी। लेकिन चौधरी साहब की असली दौलत उनकी संतानें थीं—सीधा-सादा, जिम्मेदार प्रेम और मासूम, चंचल पूजा। प्रेम पढ़ लिखकर खेत-खलिहान का कारोबार संभालता, वहीं अपने घर की हर महिला की हर जरूरत का सबसे बड़ा सहारा था। पूजा घर भर की रौनक थी, अपनी मुस्कान और चंचलता से परिवार की जान थी।
पूजा की शादी और परिवार पर दुखों का पहाड़
कुछ समय में ही पूजा की शादी विक्रम नाम के व्यापारी के बेटे से हो गई। प्रेम और चौधरी साहब को विक्रम ठीक नहीं लगा, लेकिन पूजा की जिद के आगे झुकना पड़ा। शादी के कुछ महीनों बाद ही परिवार पर ऐसा दुख टूटा कि सब बिखर गया—मां-बाप की सड़क हादसे में मौत। प्रेम और पूजा अनाथ हो गए। बड़े-बुजुर्गों के सामने वसीयत पढ़ी गई जिसमें पूरी जायदाद दोनों बच्चों के नाम बराबर-बराबर थी। विक्रम की आंखों में लालच चमक उठा और उसने पूजा के मन को धीरे-धीरे बदलना शुरू कर दिया।
भाई को धोखा, दौलत का जाल
विक्रम ने पूजा के मन में शक, भय और लालच की जड़ें बो दीं। पूजा का भरोसा भी डगमगाने लगा। उसने प्रेम को सलाह दी कि सारा कारोबार एक कंपनी के नाम हो जाए तो प्रबंधन आसान रहेगा। प्रेम अपनी बहन की नीयत पर कभी शक नहीं करता था; आंख मूंदकर दस्तखत कर दिए। लेकिन ये दस्तखत जायदाद के बेदखली के कागज थे। सबकुछ पूजा और विक्रम के नाम ट्रांसफर होते ही असली रंग सामने आ गया। प्रेम को घर से बाउंसरों से निकलवा दिया गया।
प्रेम का पतन और दोस्त की डोर
टूटे हुए प्रेम की आंखें उस दिन सच से भर आईं, जब उसे अपनी बहन ने अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया। ठोकरें खाते-खाते वह अपने बचपन के दोस्त शंकर तक पहुंचा। दोस्ती के सहारे, कुछ पैसा उधार लेकर वह शहर गया और नर्सरी में माली का काम करने लगा। धीरे-धीरे अपनी मेहनत और काबिलियत से उसने उस फार्महाउस का मैनेजर बनकर नाम कमाया। मालिक, जिसे बेटा नहीं था, उसने अपनी सारी जायदाद प्रेम के नाम कर दी। प्रेम अब ऑर्गेनिक फार्मिंग कंपनी का मालिक बन गया।
पूजा की बर्बादी और कर्म का लेखा-जोखा
उधर विक्रम और पूजा की दुनिया बर्बादी की ओर बढ़ चली थी। बिजनेस घाटे में जाने लगा, हवेली बिकने को आई। विक्रम ने पूजा को छोड़ दिया, हवेली नीलाम होने लगी और पूजा अकेली, कंगाल हो गई। जिन दोस्तों पर भरोसा था, वे सब दूर हो गए। पछतावे की आग में तपती पूजा अपने भाई की याद में उस फार्महाउस के दरवाजे पर पहुंची—अब वह महज एक भिखारन-सी थी। प्रेम अंदर गाड़ी में था, बाहर आकर वह पहचान जाता है—पूजा रोती हुई उसके पैरों पर गिरती है।
माफ़ी, प्रायश्चित और नया रिश्ता
प्रेम की आंखों में न कोई गुस्सा, न नफरत—बस एक गहरा दुख। वह अपनी बहन को उठा लेता है, कहता है—”तू मेरी बहन है, और हमेशा रहेगी।” उसने गांव का बैंक कर्जा चुका कर हवेली बचाई और कह दिया, “यह हवेली पूजा की है।” प्रेम ने पूजा से कहा, “अब तुम्हारी सजा यह है कि तुम मेरे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करो और अपनी गलतियां सुधारो।” दोनों ने मेहनत की; कुछ सालों बाद प्रेमभूमि ऑर्गेनिक्स देश की बड़ी कंपनी बनी और पूजा उसकी डायरेक्टर बन गई—अब उसकी आंखों में है भाई के लिए प्यार और सम्मान।
सीख: रिश्तों से बड़ा कोई धन नहीं। जो आज धोखा देता है, कल उसे उसी राह पर लौटना पड़ता है। कर्म का इंसाफ सबसे बड़ा होता है।
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