गरीब बच्चे को मिला करोड़पति का पर्स लेकिन उसने जो ईमानदारी दिखाई, करोड़पति की आंखें भर आईं!

“एक पर्स की कीमत”

दिल्ली की तपती दोपहर में जब शहर शोर और धूल में डूबा हुआ था, तब एक छोटा सा लड़का, विकास, नंगे पांव और फटी हुई कमीज में फुटपाथ पर चलते हुए कबाड़ बीन रहा था। उसका छोटा सा थैला प्लास्टिक की बोतलों और टिन के डिब्बों से भरा हुआ था। पसीना उसके माथे से टपक रहा था और उसका पेट भूख से मरोड़ रहा था, लेकिन वह रुका नहीं – क्योंकि उसे दवा लानी थी अपनी मां कमला के लिए, और नई किताबें अपनी छोटी बहन अनन्या के लिए।

सड़क पर पड़ा पर्स

एक व्यस्त चौराहे के पास, जब लोग ट्रैफिक सिग्नल पर भाग-दौड़ कर रहे थे, विकास की नजर फुटपाथ पर कुछ चमकती चीज़ पर पड़ी। वह झुका, और पाया कि यह एक कीमती चमड़े का पर्स था। अंदर देखा तो नोटों की मोटी गड्डी थी, क्रेडिट कार्ड्स, ड्राइविंग लाइसेंस और एक मुड़ी हुई चिट्ठी।

उसका मन डोल गया – इतने पैसों से वह महीनों का खर्च चला सकता था। मगर तभी उसे अपनी मां की सीख याद आई – “एक आदमी का चरित्र किसी भी खजाने से बड़ा होता है बेटा। सही काम करो, चाहे कोई देखे या ना देखे।”

ईमानदारी का फैसला

विकास ने पर्स में रखे विजिटिंग कार्ड से पता लगाया – “राहुल मेहरा, सीईओ, मेहरा एंटरप्राइज, कनॉट प्लेस, दिल्ली”। पसीने से भीगा, थका हुआ और भूखा विकास कनॉट प्लेस की ओर बढ़ा। गेट पर गार्ड्स ने उसे रोका, शक की नजरों से देखा, पर एक महिला कर्मचारी, निशा, उसकी बात सुनकर उसे अंदर ले गई।

सच का खुलासा

ऑफिस के अंदर, जब राहुल मेहरा को पर्स और चिट्ठी मिली, तो उनका चेहरा बदल गया। उनकी आंखें भर आईं। वह चिट्ठी उनकी दिवंगत पत्नी माया की आखिरी चिट्ठी थी, जो उन्होंने अपनी बीमारी के अंतिम दिनों में लिखी थी। उस चिट्ठी में प्यार, उम्मीद, और जीवन का सार छिपा था।

राहुल ने भावुक होकर विकास से पूछा – “तुम्हारी मां का नाम क्या है?”
“कमला”, विकास ने जवाब दिया। यह सुनकर राहुल जैसे सन्न रह गए। उन्होंने धीमे से कहा, “बहुत साल पहले मैं एक कमला को जानता था…”

सदियों पुराना रिश्ता

विकास घर लौटा और अपनी बीमार मां से पूछा – “क्या आप राहुल मेहरा को जानती हैं?”
कमला की आंखें भर आईं। उन्होंने सिर हिलाते हुए बताया कि वह और राहुल कभी एक-दूसरे से प्यार करते थे, पर राहुल के अमीर परिवार ने उन्हें अलग कर दिया। कमला गर्भवती थीं, लेकिन राहुल को कभी पता नहीं चला। वह अकेली ही विकास और अनन्या को पालती रहीं।

विकास ने कमला को समझाया कि राहुल को कभी पता ही नहीं चला कि वह पिता बनने वाले हैं। बहुत सोचने के बाद, कमला ने कहा, “अगर तुम्हें लगता है कि यह सही है, तो मैं उसे एक बार फिर देखना चाहूंगी।”

नया अध्याय

अगले दिन, विकास राहुल से फिर मिला। उसने कहा, “आप मेरे पिता हैं।”
राहुल की आंखों में आंसू थे। उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानता था विकास। अगर जानता, तो कभी तुम्हें और कमला को नहीं छोड़ता।”

राहुल ने वादा किया – “मैं अब सब ठीक करूंगा। तुम्हारी मां का इलाज होगा, अनन्या स्कूल जाएगी, और तुम पढ़ाई करोगे। मैं तुम्हारे साथ हूं।”

समाप्ति पर एक नई शुरुआत

विकास की आंखों में एक नई चमक थी – वह अब सिर्फ एक कबाड़ बीनने वाला लड़का नहीं था। वह एक बेटा था, जो अपने पिता को, अपनी मां को और अपने परिवार को फिर से जोड़ लाया था – बस एक पर्स लौटाने के फैसले से।

उस दिन, विकास ने सिर्फ एक पर्स नहीं लौटाया – उसने एक टूटा हुआ परिवार, बिछड़े हुए रिश्ते और खोए हुए सपनों को वापस जीवन दे दिया।


“ईमानदारी, चरित्र और सच्चाई – ये वो खजाने हैं जो किसी भी दौलत से ज्यादा कीमती होते हैं।”

यह कहानी हमें याद दिलाती है कि एक छोटा सा सही फैसला, कितनी बड़ी और खूबसूरत बदलाव ला सकता है।