कहानी: एक गलत ट्रेन और सही मंजिल
संध्या एक छोटे से गाँव में रहती थी। उसके पिता किसान थे और माँ दूसरों के घरों में काम करती थी। संध्या के सपने बड़े थे—वह चाहती थी कि एक दिन किसी बड़ी कंपनी में काम करे। माँ हमेशा कहती, “बेटा, सपना देखना अच्छा है लेकिन रास्ता आसान नहीं होगा।” संध्या मुस्कुराती, “माँ, आसान चीजें तो सबके हिस्से आती हैं, मुझे कुछ बड़ा करना है।”
पैसों की तंगी के कारण कॉलेज जाना मुश्किल था। संध्या ने हार नहीं मानी, गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर पैसे जुटाए। कई रातें वह लालटेन की रोशनी में पढ़ती, जब सब सो जाते। आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई और उसे शहर के बिजनेस मैनेजमेंट कॉलेज में दाखिला मिल गया।
एक दिन दिवाली की छुट्टियों में वह गाँव लौटने के लिए स्टेशन पहुँची। भीड़ थी, उसने जल्दी-जल्दी ट्रेन पकड़ी। लेकिन गलती से वह गलत ट्रेन में चढ़ गई। टीसी ने बताया कि यह दूसरी ट्रेन है, अगला स्टेशन 30 किलोमीटर बाद आएगा। संध्या घबरा गई, रोने लगी। उसी डिब्बे में एक आदमी बैठा था—आदित्य मेहरा, एक टेक कंपनी का मालिक। दोनों की बातचीत शुरू हुई। आदित्य ने संध्या के संघर्ष और ईमानदारी को देखा और कहा, “कभी-कभी गलत ट्रेन सही मंजिल तक ले जाती है।” उसने संध्या को अपनी कंपनी में आने का निमंत्रण दिया।

गाँव लौटकर संध्या सोचती रही—क्या वह सचमुच बदलाव ला सकती है? पढ़ाई पूरी होने के बाद वह शहर आई और कंपनी में इंटरव्यू देने पहुँची। रिसेप्शनिस्ट ने उसका मजाक उड़ाया, अधिकारी ने उसकी योग्यता पर सवाल उठाए। लेकिन संध्या ने आत्मविश्वास नहीं खोया। उसने कंपनी के भ्रष्टाचार और घोटालों की जाँच शुरू की। छोटे कर्मचारियों से बात की, दस्तावेज इकट्ठे किए। धीरे-धीरे उसने सबूतों का ढेर लगा दिया।
आदित्य ने उसकी मेहनत देखी और कहा, “संध्या, अब तुम्हीं हमारी कंपनी को बचा सकती हो।” संध्या ने पूरी ईमानदारी से भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ सबूत पेश किए। कंपनी में बदलाव आया, भ्रष्ट लोग बाहर हुए, कर्मचारियों का विश्वास लौटा।
आदित्य और संध्या के बीच एक खास रिश्ता गहराने लगा। एक दिन आदित्य ने ऑफिस के बगीचे में संध्या से कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बनो, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” संध्या की आँखों में आँसू थे, उसने मुस्कुराकर ‘हाँ’ कह दिया।
शादी के बाद संध्या ने कंपनी में नई पहल शुरू की—शिक्षा, ट्रेनिंग और कर्मचारियों की भलाई के लिए। आदित्य ने उसका पूरा सहयोग किया। दोनों ने मिलकर न केवल अपनी जिंदगी बल्कि कंपनी और कर्मचारियों का भविष्य भी बेहतर बनाया।
इस तरह उस साधारण गाँव की लड़की ने अपने सपनों को सच किया और दुनिया को सिखाया कि असली ताकत मेहनत, साहस और दिल की अच्छाई में होती है।
अगर आपको संध्या की मेहनत और हिम्मत पसंद आई हो, तो कहानी को लाइक करें और अपने विचार जरूर साझा करें। धन्यवाद!
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