DM की माँ के अपमान पर फूटा गुस्सा | डॉक्टरों की नींद उड़ा दी” सरकारी हॉस्पिटल की सच्ची कहानी,!
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डीएम की माँ के अपमान पर फूटा गुस्सा | डॉक्टरों की नींद उड़ा दी – सरकारी हॉस्पिटल की सच्ची कहानी
सुबह की हल्की ठंडक थी। जिले की सबसे बड़ी अधिकारी, डीएम अनीता शर्मा, अपने ऑफिस में काम में व्यस्त थीं। उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि आज का दिन उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान साबित होने वाला है। उनकी मां, जो अब उम्रदराज़ थीं, रोज़ की तरह सब्जी खरीदने बाजार गईं। चलना अब उनके लिए मुश्किल था, मगर हौसला कायम था।
बाजार में अचानक भीड़ के बीच उन्हें दिल का दौरा पड़ा। वह धूप में जमीन पर गिर पड़ीं। शरीर बेजान था। आधा घंटा बीत गया। लोग आते-जाते रहे, पर किसी ने मदद नहीं की। ठेले वाले सामान बेचते रहे, कोई पानी तक देने नहीं आया। इंसानों की भीड़ में तमाशबीन थे, इंसानियत कहीं खो चुकी थी। एक युवक रवि ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया—”यह दादी आधे घंटे से बेहोश पड़ी हैं, कोई मदद नहीं कर रहा।”
वीडियो वायरल हुआ और कुछ ही देर में डीएम अनीता शर्मा के मोबाइल तक पहुंच गया। वीडियो देखते ही उनका दिल दहल गया, आंखें नम हो गईं। “हे भगवान, यह तो मेरी मां है!” वह कुर्सी से उठीं, अपने इंस्पेक्टर को बस इतना कहा—”मैं घर जा रही हूं।” फिर अपनी सरकारी जीप में बैठकर बाजार की तरफ दौड़ पड़ीं।
बाजार पहुंचकर अनीता ने मां को गोद में उठाया, पानी पिलाया, चेहरे पर छींटे मारे। कुछ देर बाद मां को होश आया। अनीता ने वहां खड़े लोगों को गुस्से से देखा, “आप लोगों में इंसानियत बची भी है या नहीं? एक औरत धूप में बेहोश पड़ी रही, किसी को दया नहीं आई, बस तमाशा देखते रहे। आप सब इंसान के नाम पर कलंक हैं।” उनकी डांट सुनकर भीड़ में सन्नाटा छा गया।
मां को लेकर अनीता घर लौटीं और बोलीं, “मां, मैं आपको तुरंत अस्पताल ले चलती हूं।” एंबुलेंस को कॉल किया, कपड़े बदले, सलवार सूट पहना और मां को लेकर जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पहुंचीं। वहां सीधे डॉक्टर राजेश के पास गईं, “डॉक्टर साहब, मेरी मां की हालत बहुत खराब है, कृपया तुरंत इलाज शुरू कीजिए।”
मगर डॉक्टर राजेश ने बिना देखे बेरुखी से कहा, “यहां इलाज नहीं हो पाएगा। इन्हें किसी और अस्पताल ले जाओ।” अनीता की आवाज दर्द और गुस्से से कांप रही थी, “यह जिले का सबसे बड़ा अस्पताल है, मेरी मां की हालत गंभीर है, जितना खर्च होगा मैं दूंगी।” डॉक्टर ने ठंडी हंसी के साथ जवाब दिया, “तुम दोगी? तुम्हारे पास इतने पैसे हैं? खुद को बेच दो तब भी इलाज नहीं होगा। वैसे भी तुम जैसे लोगों के पास खाने के भी पैसे नहीं होते होंगे।”
यह सुनकर अनीता का खून खौल उठा। चेहरा गुस्से से लाल हो गया, मगर खुद को संभाला। “मैं गरीब हूं या अमीर, इससे आपको कोई मतलब नहीं होना चाहिए। आपका काम है इलाज करना। मैंने कहा ना, जितना खर्च होगा मैं दूंगी। बस मेरी मां का इलाज शुरू कीजिए, वरना पछताओगे।” डॉक्टर ने तंज कसा, “अगर मैं इलाज ना करूं तो मुझे पछताना पड़ेगा? तुम मेरा क्या कर लोगी? बकवास मत करो, इन्हें लेकर घर जाओ। वैसे भी इनकी उम्र निकल चुकी है।”
अनीता के हाथ कांपने लगे, आंखों में आंसू और चेहरे पर गुस्सा था। फिर उन्होंने अपना पर्स खोला, सरकारी पहचान पत्र निकाला, डॉक्टर के सामने रखा। “पहले यह देखो, फिर बोलो कि तुम्हारे पास टाइम नहीं है।” कार्ड देखते ही डॉक्टर के पसीने छूट गए, चेहरा पीला पड़ गया। कांपती आवाज में बोला, “माफ कीजिए मैडम, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे नहीं पता था कि आप डीएम अनीता शर्मा हैं। अभी इलाज शुरू करवाता हूं।”
अब डॉक्टर तुरंत स्टाफ को दौड़ाने लगा। अनीता की मां को स्ट्रेचर पर ले जाया गया, नर्सें दवाइयां लाने लगीं। अनीता बाहर से शांत दिख रही थीं, मगर अंदर गुस्सा उफान पर था। “यह लोग सरकारी अस्पताल में गरीबों के साथ ऐसा करते हैं। सरकार इन्हें तनख्वाह देती है ताकि बेसहारा लोगों का इलाज कर सकें, मगर ये अमीरों की चापलूसी में लगे हैं। ऐसे लोग डॉक्टर कहलाने के लायक नहीं।”
कुछ देर बाद नर्स आई, “मैडम, आपकी मां अब ठीक हैं, लेकिन कम से कम एक हफ्ता आपको यहीं रहना होगा।” इलाज के बाद अनीता मां के पास गईं, उनकी हालत बेहतर थी। मां को ठीक देखकर अनीता की आंखों से आंसू निकल आए। दोनों मां-बेटी फूट-फूटकर रो पड़ीं। मां सोच रही थी, “मैंने अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए कितने कष्ट झेले,” और अनीता सोच रही थी, “अगर मेरी मां ना होती तो मैं यहां तक नहीं पहुंच पाती।”
अगले दो दिन और दो रातें अनीता मां के पास अस्पताल में रहीं। तय कर लिया था कि इस अन्याय को ऐसे ही नहीं छोड़ेंगी। तीसरे दिन थाने से कॉल आया, “मैडम, आपको मीटिंग में आना होगा।” अनीता ने मां को दिलासा देकर मीटिंग में पहुंचीं, फिर अस्पताल लौटीं। एक हफ्ता अस्पताल में गुजारने के बाद मां को लेकर घर लौटीं। मां की हालत स्थिर थी, मगर अनीता के दिल में आग जल रही थी। “अगर मैं डीएम ना होती, तो आज मेरी मां शायद जिंदा ना होती। गरीबों के साथ रोज ऐसे ही होता होगा। यह अन्याय है और मैं इसे ऐसे नहीं छोड़ूंगी।”
कुछ दिनों बाद अनीता ने अपना निर्णय लिया। थाने गईं, इंस्पेक्टर और हवलदारों को साथ लिया और सीधे अस्पताल पहुंचीं। सभी डॉक्टरों और स्टाफ को एक जगह बुलाया। गुस्से से कांपती आवाज में बोलीं, “आप लोगों की वजह से ना जाने कितने गरीबों की जान गई होगी। सरकार आपको तनख्वाह देती है कि आप गरीबों का सहारा बनें, मगर आप लोग सिर्फ अमीरों की चापलूसी और गरीबों को अपमानित करने का काम करते हैं। एक हफ्ता पहले आपने मेरी मां के साथ जो किया, वह हर गरीब के साथ होता है। आपको किसने हक दिया कि किसी को औकात दिखाएं?”
“आपकी औकात आपको तब समझ में आएगी जब मैं आप सबको इस पद से हटवाऊंगी। अब मैं आप लोगों पर सख्त कार्रवाई करूंगी ताकि आप जान सकें इंसानियत के साथ खिलवाड़ का अंजाम क्या होता है।” पूरा अस्पताल सन्न था। डॉक्टरों के चेहरे पर डर साफ दिख रहा था। अस्पताल के सबसे बड़े डॉक्टर आगे आए, हाथ जोड़कर बोले, “मैडम, हमें माफ कर दीजिए। आगे से हम ऐसी हरकत कभी नहीं करेंगे। हर मरीज का इलाज पूरी कोशिश से करेंगे, चाहे उनके पास पैसे हों या ना हों।”
माफी के बावजूद अनीता शर्मा का गुस्सा शांत नहीं हुआ। ठंडी लेकिन सख्त आवाज में बोलीं, “आप लोग कितना भी माफी मांग लें, मैं आपको माफ नहीं करूंगी क्योंकि आपने सिर्फ मेरे साथ नहीं, ना जाने कितने लोगों के साथ ऐसा किया होगा। कितने गरीब यहां से अपमानित होकर लौटे होंगे, जिनकी जान आप लोगों ने लापरवाही से छीनी है। इससे बेहतर है कि ऐसे लोग डॉक्टर रहे ही ना।”
“इसलिए माफी की उम्मीद मत कीजिए। मैं ऐसा फैसला लूंगी कि आगे से कोई मरीज यहां अपमानित ना हो।” डॉक्टर घबरा गए, सभी हाथ जोड़कर कहने लगे, “मैडम, हमें एहसास हो चुका है कि हमने गलत किया। हमें हर मरीज को इंसान समझकर बराबरी से देखना चाहिए। आगे से हम हर किसी का अच्छे से इलाज करेंगे, किसी के साथ भेदभाव नहीं होगा। हमें एक मौका और दीजिए।”
अनीता शर्मा ने कुछ देर खामोश रहकर उन्हें देखा। संघर्ष चल रहा था कि क्या ये सच में सुधरेंगे या फिर वही करेंगे जो अब तक करते आए हैं। कुछ पल सोचने के बाद गहरी सांस ली, “ठीक है, मैं इस बार छोड़ रही हूं, मगर याद रखिए यह मेरी आखिरी चेतावनी है। अगर आगे कभी किसी गरीब की आवाज मुझे सुनाई दी, किसी मरीज के साथ बदतमीजी हुई या इलाज में लापरवाही की गई तो आप में से कोई भी इस अस्पताल में काम नहीं कर पाएगा। मैं आप सबको नौकरी से निकलवा दूंगी और ऐसा सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखेंगे।”
पूरा स्टाफ चुप हो गया, चेहरे शर्म और डर से झुक गए। अनीता ने इंस्पेक्टर और हवलदारों को इशारा किया, “चलो।” वहां से निकल गईं। उस दिन के बाद अस्पताल की तस्वीर बदल गई। डॉक्टरों को समझ आ चुका था कि जिंदगी हर इंसान के लिए बराबर कीमती है—चाहे अमीर हो या गरीब। उन्होंने रवैया बदल लिया, हर मरीज को इंसानियत की नजर से देखना शुरू किया।
अब जिले के अस्पताल में कोई गरीब अपमानित नहीं होता था। डीएम अनीता शर्मा की सख्ती ने पूरे सिस्टम को झकझोर दिया। शहर में चर्चा थी—”अगर हर अधिकारी ऐसा हो जाए तो गरीबों को इंसाफ मिलना तय है।” अनीता ने साबित कर दिया कि पद और ताकत का सही इस्तेमाल समाज बदल सकता है।
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