यतीम बच्चे ने करोड़पति से कहा मेरे भाई को खरीद लो वो बहुत भूखा है ,सुनकर उसने जो किया उसने हैरान कर
“मोहब्बत, भूख और इंसानियत की अमृतसर वाली कहानी”
अमृतसर, गुरु की नगरी। वही शहर जिसकी मिट्टी में सेवा की खुशबू और हवा में कुर्बानी की मिठास घुली है। स्वर्ण मंदिर के सुनहरे गुंबद के साए में जहाँ लाखों लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं, वहीं कुछ गलियाँ ऐसी भी थीं जहाँ भूख एक सच्चाई थी। इन गलियों में दो भाई, अमन (15 साल) और रोहन (8 साल), अपनी किस्मत से लड़ते हुए दर-दर भटक रहे थे। उनके सिर से माँ-बाप का साया तब उठ गया था जब उन्हें यह भी नहीं पता था कि अनाथ होना क्या होता है।
उनके माता-पिता पंजाब के एक छोटे से गाँव में मजदूर थे। दो साल पहले एक भयानक बाढ़ में उनका घर और सारी दुनिया बह गई थी। उस हादसे में दोनों तो बच गए, लेकिन उनके माँ-बाप नहीं बच पाए। गाँव वालों ने कुछ दिन सहारा दिया लेकिन गरीबी में कोई किसी का बोझ कब तक उठाए। आखिरकार, एक ट्रक में बैठकर दोनों अमृतसर आ गए, इस उम्मीद में कि यहाँ कोई काम, कोई सहारा मिल जाएगा। लेकिन यह शहर किसी पर इतनी आसानी से मेहरबान नहीं होता।
अमन अब सिर्फ भाई ही नहीं, बल्कि रोहन का माँ-बाप सब कुछ था। वह दिनभर छोटे-मोटे काम करता, कभी ढाबे पर बर्तन मांजता, कभी गाड़ी साफ करता, कभी कूड़े से प्लास्टिक की बोतलें चुनता। जो भी कमाई होती, उससे अपने छोटे भाई के लिए रोटी का इंतजाम करता। रोहन बहुत कमजोर था। कुपोषण और सड़कों की सख्त जिंदगी ने उसके शरीर को तोड़ दिया था। अमन खुद भूखा रह लेता लेकिन अपने भाई को खाना देने की पूरी कोशिश करता। रात में जब रोहन ठंड से ठिठुरता, तो उसे अपनी फटी कमीज के अंदर छिपा लेता, कहानियाँ सुनाता, हँसाने की कोशिश करता, उम्मीद दिलाता कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा।
लेकिन पिछले कुछ दिनों से हालात और भी खराब हो गए थे। बारिश की वजह से अमन को कोई काम नहीं मिला था। तीन दिन हो गए थे उन दोनों के पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था। भूख की आग अब बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थी। रोहन की हालत बहुत बिगड़ गई थी। उसकी साँसें धीमी चल रही थीं। अमन ने हर दरवाजा खटखटाया, हर दुकान के सामने हाथ फैलाए। लेकिन किसी के पास रुक कर दो भूखे बच्चों की तरफ देखने का वक्त नहीं था। लोग धुत्कारते, भगा देते।
चौथा दिन था। रोहन लगभग बेहोशी की हालत में था। अमन को लग रहा था कि अगर आज उसके भाई के पेट में कुछ नहीं गया तो वह उसे खो देगा। वह हताशा, लाचारी और बेबसी के उस आखिरी मुकाम पर पहुँच चुका था जहाँ इंसान को सही-गलत का फर्क समझ में आना बंद हो जाता है। उसके दिमाग में सिर्फ एक बात चल रही थी—किसी भी कीमत पर अपने भाई को बचाना है।
इसी वक्त शहर के सबसे बड़े कपड़ा बाजार, हॉल बाजार के बाहर एक चमचमाती काली Mercedes आकर रुकी। गाड़ी से एक रौबदार सरदार जी बाहर निकले—सरदार जोगिंदर सिंह। शहर के सबसे बड़े और सम्मानित उद्योगपति। उनके पास दौलत, शोहरत, इज्जत सब कुछ था, लेकिन उनकी जिंदगी में एक बहुत बड़ा खालीपन था। 20 साल पहले उन्होंने अपने इकलौते बेटे को एक सड़क हादसे में खो दिया था। उसके बाद उनकी दुनिया उजड़ गई थी। वह बाहर से सख्त और कामयाब दिखते थे, लेकिन अंदर से टूटे हुए तन्हा बाप थे।
आज भी वह अपनी नई दुकान का उद्घाटन करने आए थे। जैसे ही गाड़ी से उतरे, उनकी नजर फुटपाथ पर बैठे अमन और रोहन पर पड़ी। अमन ने उनकी गाड़ी और महंगे कपड़े देखे। उसके हताश दिमाग में एक ऐसा दिल दहलाने वाला ख्याल आया, जो शायद कोई भाई अपने भाई के लिए कभी नहीं सोच सकता। वह अपने बेसुद भाई को पीठ पर लादकर सरदार जी की तरफ दौड़ा, उनके पैरों में गिर पड़ा। रोते हुए बोला, “सरदार जी, मेरे इस भाई को खरीद लो। बहुत भूखा है साहब, चार दिन से कुछ नहीं खाया। मर जाएगा। आप इसे खरीद लो, अपने घर ले जाओ, नौकर बना लेना, गुलाम बना लेना, बस दो वक्त की रोटी दे देना।”
सरदार जोगिंदर सिंह, जिन्होंने लाखों-करोड़ों के सौदे किए थे, आज अपनी जिंदगी के सबसे दर्दनाक सौदे का सामना कर रहे थे। उनकी आँखों में वह दो यतीम बच्चे नहीं, अपना खोया हुआ बेटा नजर आ रहा था। उनकी आँखों से सालों बाद आँसुओं की दो गर्म लकीरें बह निकलीं। उन्होंने रोहन को अपनी मजबूत बाहों में उठाया, अमन के कंधे पर हाथ रखा, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे भाई को खरीदूंगा नहीं। मैं तुम दोनों को आज से अपना बेटा बनाऊंगा।”
हॉल बाजार ने एक ऐसा नजारा देखा जो शायद पहले कभी नहीं देखा था। शहर का सबसे बड़ा करोड़पति अपनी लाखों की गाड़ी में दो मैले-कुचैले यतीम बच्चों को बिठाकर दुकान का उद्घाटन किए बिना ही वहाँ से चला गया। दोनों को लेकर अपने आलीशान घर पहुँचे। उनकी पत्नी सतवंत कौर, जो बेटे के जाने के बाद से जिंदा लाश की तरह जी रही थी, दरवाजे पर दो अजनबी बीमार बच्चों को देखकर हैरान रह गई। जोगिंदर सिंह ने कहा, “सतवंत देख, आज वाहेगुरु ने हमारी सुन ली। उसने हमारा एक बेटा छीन लिया था, आज दो लौटा दिए हैं।”
सतवंत कौर ने बच्चों की हालत देखी, पति की आँखों में सालों बाद पिता की ममता की चमक देखी, तो सब समझ गई। दौड़कर आई, अमन को सीने से लगा लिया। डॉक्टर बुलवाया गया, रोहन को ड्रिप लगी। जोगिंदर सिंह और सतवंत कौर दोनों रात भर बच्चों के पास रहे। अपने हाथों से कपड़े बदले, बालों में तेल लगाया, प्यार से सहलाया।
अगली सुबह अमन की आँख खुली तो लगा कोई सपना देख रहा है। मुलायम बिस्तर, नए कपड़े, बगल में रोहन शांति से सो रहा था। सतवंत कौर दूध का बड़ा गिलास लेकर आई, “पी ले पुत्तर, अब तुझे और तेरे भाई को कभी भूखा नहीं सोना पड़ेगा। आज से यही तेरा घर है।” अमन की आँखों से आँसू बहने लगे—खुशी के आँसू, अपनेपन के आँसू।
उस दिन के बाद अमन और रोहन की जिंदगी बदल गई। सरदार जोगिंदर सिंह और सतवंत कौर ने उन्हें अपना नाम, प्यार, सब कुछ दे दिया। कानूनी तौर पर गोद लिया। अब वे सिंह एंपायर के वारिस अमन सिंह और रोहन सिंह बन चुके थे। शहर के सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला हुआ। अमन पढ़ाई में होशियार था, जल्दी ही सबको पीछे छोड़ दिया। रोहन की सेहत भी सुधर गई, खोया बचपन वापस मिल गया। सरदार जोगिंदर सिंह उनके लिए सिर्फ पिता नहीं, दोस्त और गुरु थे। बिजनेस के दाँव-पेच सिखाते, लेकिन उससे ज्यादा जिंदगी के उसूल सिखाते—सच्ची अमीरी सेवा और वंट छकने में है।
वो दोनों भाई अपने हाथों से हजारों गरीबों को लंगर में खाना परोसते। अमन से कहते, “पुत्र, तुम उस जगह से आए हो जहाँ भूख क्या होती है तुमने खुद महसूस किया है। जब भी बड़े बनना, अपनी जड़ों को मत भूलना। हमेशा जरूरतमंदों की मदद करना।”
समय का पहिया घूमता रहा। 15 साल गुजर गए। अमन अब 30 साल का पढ़ा-लिखा, काबिल नौजवान बन चुका था। लंदन से MBA कर आया, सिंह एंपायर को संभाल रहा था। रोहन 23 साल का होनहार आर्किटेक्ट बन गया था। सरदार जोगिंदर सिंह अब बूढ़े हो चले थे, लेकिन दुनिया के सबसे खुश और संतुष्ट इंसान थे। उनके बेटों ने विरासत को, उसूलों और सेवा की भावना को पूरी शिद्दत से अपनाया।
आज अमृतसर में सरदार जोगिंदर सिंह चैरिटेबल हॉस्पिटल एंड लंगर हॉल का उद्घाटन था। पंजाब का सबसे बड़ा और आधुनिक चैरिटेबल अस्पताल, जहाँ हर गरीब का इलाज मुफ्त, और 24 घंटे लंगर चलता था। यह अमन और रोहन का सपना था।
समारोह में शहर के बड़े लोग, मंत्री, अधिकारी मौजूद थे। अमन को मंच पर बुलाया गया। उसकी आवाज भर्रा रही थी, लेकिन आत्मविश्वास और सम्मान था। “आज से 20 साल पहले इसी शहर की एक सड़क पर एक 15 साल के लाचार भाई ने एक अमीर आदमी से अपने 8 साल के भूखे भाई को खरीदने का सौदा किया था। उस बड़े भाई ने अपने भाई की कीमत सिर्फ दो वक्त की रोटी लगाई थी। वह अमीर आदमी चाहता तो उस बच्चे को धुत्कार सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने उस सौदे को मंजूर कर लिया, लेकिन सिर्फ उस छोटे भाई को नहीं, दोनों भाइयों को खरीद लिया। कीमत के तौर पर उन्हें सिर्फ दो वक्त की रोटी नहीं, अपनी पूरी जिंदगी, प्यार, नाम, सब कुछ दे दिया।”
पूरा हॉल सन्नाटे में था। अमन और रोहन मंच से उतरे, भीड़ में बैठे रोते हुए सरदार जोगिंदर सिंह के पैरों में गिर पड़े। उस दिन वहाँ मौजूद हर इंसान की आँखें नम थीं। सब उस असाधारण परिवार को देख रहे थे जिसकी नींव खून पर नहीं, भूख, मोहब्बत और इंसानियत की सबसे पाक बुनियाद पर रखी गई थी।
सीख:
यह कहानी हमें सिखाती है कि दुनिया में सबसे बड़ा धर्म इंसानियत है और सबसे बड़ी दौलत किसी के आँसू पोंछ कर उसे सीने से लगा लेने की ताकत है। सरदार जोगिंदर सिंह ने दो यतीम बच्चों को अपनाकर साबित कर दिया कि पिता होने के लिए सिर्फ जन्म देना जरूरी नहीं होता। अमन और रोहन ने साबित कर दिया कि एक सच्चा बेटा सिर्फ दौलत का ही नहीं, अपने पिता के उसूलों और नेकी का भी वारिस होता है।
आपका धन्यवाद!
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