अमेरिका में भारतीय लड़के ने पकड़ी अमेरिकी इंजीनियर की गलती

सन 2024, अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया राज्य की धूप से भरी सुबह थी। सिलिकॉन वैली की चमकती इमारतों के बीच खड़ी थी एक हाई-टेक कंपनी – न्यू फ्यूचर इंजीनियरिंग कॉर्प। यह कंपनी दुनिया भर में चर्चित थी क्योंकि यहाँ एक ऐसा प्रोजेक्ट बन रहा था, जो पूरी दुनिया की इंडस्ट्री को बदल सकता था।

इस प्रोजेक्ट का नाम था – क्वांटम एनर्जी ग्रिड
एक ऐसा सिस्टम, जो पारंपरिक बिजली ग्रिड से हजार गुना तेज और सुरक्षित साबित हो सकता था। अगर यह सफल होता तो ऊर्जा संकट का अंत हो जाता और भविष्य की दुनिया ऊर्जा की कमी से मुक्त हो जाती। इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे दुनिया के सबसे बेहतरीन दिमाग – जर्मनी, जापान, अमेरिका, रूस और कई देशों के वैज्ञानिक व इंजीनियर।

लेकिन इसी टीम में हाल ही में शामिल हुआ था एक नया नाम – आरव मेहता

सिर्फ 24 साल का एक भारतीय लड़का। चेहरा शांत, स्वभाव विनम्र और दिमाग जीनियस। उसके सपनों में सिर्फ एक ही ख्वाब था – भारत का नाम रोशन करना

भारत से अमेरिका तक का सफ़र

दिल्ली की सर्द रात। एयरपोर्ट पर खड़ा था आरव। हाथ में हरे रंग का भारतीय पासपोर्ट और आँखों में सपनों का समंदर। पिता सरकारी स्कूल में गणित पढ़ाते थे, माँ गृहिणी थीं। घर अमीर नहीं था, लेकिन शिक्षा को हमेशा सबसे बड़ा खज़ाना माना गया।

बचपन से ही आरव मशीनों और कंप्यूटरों में खोया रहता। पुराने रेडियो खोलकर उनमें नई सर्किट लगाना, कंप्यूटर पर कोडिंग कर छोटे गेम बनाना – यही उसकी दुनिया थी।

पड़ोसी ताने मारते – “इतना पढ़-लिखकर करेगा क्या? अमेरिका जाएगा क्या?”
आरव हँसकर कहता – “हाँ, अमेरिका ही तो जाना है।”

कड़ी मेहनत के बाद उसने भारत की सबसे कठिन परीक्षा – IIT-JEE पास की। आईआईटी बॉम्बे से पढ़ाई की और स्कॉलरशिप मिली – MIT अमेरिका में मास्टर्स के लिए।

जब वह अमेरिका जाने के लिए विमान में बैठा, उसकी माँ की आँखें आँसुओं से भीग गईं। माँ ने कहा –
“बेटा, हम गरीब हैं, लेकिन तेरा सपना बड़ा है। जहाँ भी जा, सच बोलना, मेहनत करना और भारत का नाम रोशन करना।”
आरव ने प्रण लिया – “माँ, वादा करता हूँ, कभी झुकूँगा नहीं।”

सिलिकॉन वैली में पहला कदम

12 घंटे की लंबी उड़ान के बाद बोस्टन की बर्फीली हवा ने उसका स्वागत किया। MIT में दो साल की रिसर्च के दौरान उसने क्वांटम एनर्जी ग्रिड्स पर थीसिस लिखी। उसकी रिसर्च पढ़कर प्रोफेसर दंग रह गए।

डिग्री पूरी होते ही उसे ऑफर आया – न्यू फ्यूचर इंजीनियरिंग कॉर्प से।
यह वही जगह थी जहाँ दुनिया के सबसे बड़े दिमाग प्रोजेक्ट्स पर काम करते थे।

कंपनी का मुख्यालय भविष्य की इमारत जैसा था। शीशे की ऊँची दीवारें, जगह-जगह रोबोट, हर ओर डिजिटल स्क्रीन। टीम में अलग-अलग देशों के इंजीनियर थे – जापानी, जर्मन, अमेरिकी। सबके चेहरे पर आत्मविश्वास था।

चीफ इंजीनियर था – रिचर्ड हडसन। लगभग 45 साल का लंबा, नीली आँखों वाला अमेरिकी। अपने क्षेत्र का सबसे बड़ा नाम। जब उसने आरव से हाथ मिलाया, तो बस इतना कहा –
“ओह, तो तुम वही नया बच्चा हो इंडिया से।”

आरव मुस्कुराया – “यस सर, आई एम आरव मेहता।”
लेकिन वह समझ गया – यहाँ उसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।

संघर्ष की शुरुआत

पहले हफ्ते से ही उसे क्वांटम एनर्जी ग्रिड प्रोजेक्ट में लगा दिया गया। यह दुनिया की ऊर्जा व्यवस्था को बदलने वाला प्रोजेक्ट था। आरव दिन-रात मेहनत करता। लैब में देर रात तक रुककर नोट्स बनाना, कोड लिखना, मॉडल्स चेक करना – यही उसकी दिनचर्या बन गई।

लेकिन टीम मीटिंग्स में जब भी वह कोई आइडिया देता, अमेरिकी इंजीनियर हँसकर टाल देते।
“नाइस ट्राई आरव, बट मेबी यू शुड जस्ट फॉलो द प्रोसेस।”

उसके दिल को चोट लगती, लेकिन वह चुप रहता। माँ के शब्द याद आते – “सच बोलना और मेहनत करना कभी मत छोड़ना।”

गलती का खुलासा

एक दिन कंपनी में बड़ी मीटिंग थी। रिचर्ड हडसन ने टीम को नए डिजाइन का ब्लूप्रिंट दिखाया।
“थ्री मंथ्स के अंदर प्रोटोटाइप लॉन्च होगा।”

सभी इंजीनियर ताली बजा रहे थे। लेकिन आरव की नजर बार-बार ब्लूप्रिंट पर जा रही थी। अचानक उसकी तेज निगाहों ने एक भयानक गलती पकड़ ली।

उसने हाथ उठाया –
“सर, मुझे लगता है डिजाइन में एक गंभीर गलती है। अगर इसे ऐसे ही लागू किया गया, तो सिस्टम ओवरलोड होकर क्रैश कर जाएगा। यहां तक कि पावर ब्लास्ट भी हो सकता है।”

कमरे में सन्नाटा छा गया।
रिचर्ड गुस्से से बोला – “तुम जानते भी हो क्या कह रहे हो? मेरे पास 20 साल का अनुभव है। स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो।”

बाकी इंजीनियर फुसफुसाने लगे – “ये नया लड़का अभी से सीनियर को गलत बता रहा है।”

लेकिन आरव ने हिम्मत नहीं हारी –
“सर, मुझे 24 घंटे दीजिए। मैं सिमुलेशन से प्रूव कर दूँगा।”
रिचर्ड ने ताना मारा – “ठीक है। लेकिन अगर तुम गलत निकले, तो कंपनी से बाहर।”

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