पाकिस्तानी बच्चा गाय चरा रहा था, अचानक भारतीय सीमा में पहुँच गया… फिर जो हुआ, पूरी सरहद थम गई
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पहला भाग: एक मासूम का सफर
सरहद यह सिर्फ नक्शे पर खींची लकीरें नहीं है। यह सदियों की नफरत, गोलियों की गूंज और टूटे सपनों की कहानी है। यहां कदम फिसला तो जान जा सकती है। यहां गलती नहीं। किस्मत इंसान को धकेलती है। और ठीक ऐसे ही, 14 साल का एक मासूम पाकिस्तानी बच्चा, इमरान, सिर्फ अपनी गायों के पीछे भागते-भागते गलती से हिंदुस्तान की धरती पर कदम रख देता है। उसके छोटे-छोटे हाथ कांप रहे थे। आंखों में डर नहीं, मौत का साया था।
उसे सिखाया गया था कि अगर इंडियन फौज दिखे तो भाग जाना। नहीं तो… लेकिन उस दिन गोलियों वाली वर्दी ने बंदूक नहीं उठाई। दिल खोल दिया और जो हुआ, वह सिर्फ इतिहास नहीं, इंसानियत की जीत है। इसलिए इस कहानी को आखिर तक जरूर देखिएगा क्योंकि आज नफरत नहीं, इंसानियत जीतने वाली है।
कश्मीर की घाटी में सुबह का धुंध था। हवा में ठंडक थी। लेकिन पहाड़ी गांवों की सुबह की शांति में एक सुकून भी घुला रहता है। गांव के छोटे से मिट्टी के घर से 14 साल का इमरान लाठी उठाते हुए निकला। झोली में थोड़ी सी सूखी रोटी, पगड़ी आधी खुली, पैरों में फटी चप्पल और दिल में अपने मवेशियों के लिए मासूम जिम्मेदारी। उसके साथ ही उसकी दो गाय थीं। एक सफेद गुलबकावी और दूसरी भूरी छोटन।
इमरान उन गायों को ऐसे बुलाता था जैसे कोई अपनी छोटी बहनों को पुकार रहा हो। उसका घर बहुत साधारण था। अब्बू खेतों में मजदूरी करते। अम्मा घर और सिलाई से थोड़ा बहुत कमाती। और घर में बस एक ही सपने का दरवाजा था—कल बेहतर होगा। लेकिन गरीबी की गोद में पलने वाला इमरान कभी शिकायत नहीं करता। उसे बस गायों से प्यार था, पहाड़ों से मोहब्बत थी और जिंदगी उसके लिए सादा थी।

दूसरा भाग: गायों का पीछा
उसने हाथ में तेल लगी पुरानी लकड़ी की लाठी उठाई और रास्ते पर चल पड़ा। आवाज लगाई, “चलो गुलबकावी, चल छोटन।” ठंडी हवा, दूर से अजान की आवाज, घाटियों में घुली शांति और इमरान की खिलखिलाहट। उसे क्या पता था कि आज की सुबह उसकी जिंदगी बदल देगी।
पहाड़ियों पर घास बहुत थी और इमरान गायों को चारा खिलाते खिलाते मुस्कुरा रहा था। चिड़ियों की चहचहाट, जंगलों की महक, बहते झरने का संगीत। कश्मीर अपनी खूबसूरती में जन्नत जैसा लग रहा था। लेकिन उसी जन्नत में सरहद की सच्चाई भी बसती थी।
ऊपर पहाड़ी पर तेज हवा चली और अचानक गाय पहाड़ियों की दूसरी तरफ भागने लगीं। इमरान पहले तो हंसा, “ए छोटन, रुक जा। कहां भाग रही है?” फिर उसने देखा कि गाय धुंध में गुम होती जा रही हैं। उसकी हंसी अचानक डर में बदल गई। उसने दौड़ लगाई। “गुलबकावी, छोटन, रुको, रुक जाओ!” धुंध बढ़ती गई। पहाड़ की पगडंडी पतली बढ़ती गई और इमरान दौड़ते दौड़ते यह भूल गया कि वह किस तरफ जा रहा है।
कुछ देर बाद वह एक मैदान में पहुंच गया। सांस फूल रही थी। गाय सामने थी लेकिन उसकी नजर जमीन पर पड़ी और वह अचानक ठिटक गया। कांटेदार तार, वार्निंग बोर्ड और दूर एक झंडा भारतीय तिरंगा लहराता हुआ। इमरान की सांस रुक गई। चेहरे पर पसीना, दिल की धड़कन तेज। उसे एहसास हुआ, “अल्लाह, मैं सरहद पार कर गया।”
पीछे धुंध, आगे इंडिया की चौकी और बीच में खड़ा एक मासूम बच्चा जो सिर्फ गायों को चरा रहा था। उसी समय दूर से हल्की आवाज आई, “स्टॉप। डोंट मूव।” भारतीय सेना की चौकी जाग चुकी थी। इमरान के पैर कांपने लगे। लाठी हाथ से गिर गई। वह बस इतना बोला, “मैं… मैं तो बस गाय के पीछे आया। मैं दुश्मन नहीं।” उसकी आंखें डर से भर गईं। सरहद ने जन्नत का रास्ता अचानक डर में बदल दिया था।
तीसरा भाग: भारतीय सेना का सामना
यह वो पल था जब एक बच्चा और एक सीमा आमने-सामने खड़े थे। और आगे जो होने वाला था वो इतिहास में दर्ज होना था। “स्टॉप, राइट देयर!” ठंडी हवा में गूंजती आवाज और हथियारों की मैटले क्लिक। इमरान जम गया। सांस जैसे गले में अटक गई। धुंध हल्की हट रही थी। भारतीय सेना की चौकी का दृश्य साफ होने लगा।
तीन जवान हथियार तने हुए। बर्फीले पहाड़ों की पृष्ठभूमि में पूरी चौकसी। उनमें से एक जवान आगे बढ़ा। लंबा, मजबूत कद, चेहरे पर सख्ती लेकिन आंखों में चौकन्ना मानवीय भाव। इमरान ने डर के मारे हाथ ऊपर कर दिए। “सर, बच्चा लगता है,” पीछे से किसी जवान ने धीमी आवाज में कहा।
इमरान की आवाज कांप रही थी। “मैं… मैं पाकिस्तान से हूं। मैं बस गाय चरा रहा था। मैं गलती से आ गया। मुझे मत मारो साहब। मैं कुछ नहीं किया।” वो बोलते-बोलते रो पड़ा। उसके शब्द नहीं, उसकी सांसे कांप रही थीं। मेजर अर्जुन मलिक आगे आए। चेहरा कठोर लेकिन दिल सुनने को तैयार।
उन्होंने धीमी आवाज में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है बेटा?” “ए इमरान। मैं कसम खाता हूं साहब। मैं बस अपने जानवर ढूंढ रहा था।” मेजर ने गहरी नजर से उसे देखा। धोखा या मासूमियत, लेकिन यह आंखें झूठ नहीं बोल रही थीं। तभी भूरी गाय छोटन आगे आई और इमरान की बाजू को चाटने लगी। जवानों के चेहरों पर हल्की मुस्कान तैर गई।
इमरान की कमीज की जेब से एक पुराना टिफिन झांक रहा था। मेजर ने देखा उसमें दो सूखी रोटियां। बस दो रोटियां। और दुनिया की चिंता लिए खड़ा यह बच्चा। “पानी दो इसे,” मेजर अर्जुन ने इशारा किया। जवान ने बोतल आगे बढ़ाई। इमरान के हाथ कांप रहे थे। लेकिन उसने पानी पकड़ लिया। घूंट पिया और आंखों से आंसू गिरने लगे। प्यास सिर्फ पानी की नहीं थी। सुरक्षित होने की थी।
चौथा भाग: इंसानियत की जीत
मेजर ने रेडियो पर कंट्रोल रूम से बात की। “सर, एक पाकिस्तानी माइनर लड़का मिला है। आर्म्ड, टेरिफाइड, सीम्स लॉस्ट।” उधर से जवाब आया, “बच्चे को चौकी पर लाओ। किसी तरह की चोट या फोर्स मत लगाना।” मेजर ने अपना ग्लव उतारा। और इमरान के सिर पर हाथ रखा। “डरो मत। कोई तुम्हें छुएगा नहीं। तुम हमारे मेहमान हो अब।”
इमरान के अंदर का डर थोड़ा पिघला। उसने हिम्मत करके पूछा, “आप मुझे घर भेज दोगे ना?” मेजर मुस्कुराए, “पहले गरम खाना खिलाएंगे, फिर घर पहुंचाएंगे।” जवानों ने हल्के हंसते हुए कहा, “चलो जनाब, आप भी हमारे बंकर में चलो। बॉर्डर देख ली, अब इंडिया की मेहमानवाजी भी देख लो।”
इमरान ने झिझकते हुए पूछा, “मेरी गाय?” मेजर ने हंसकर कहा, “वह भी आएंगी बेटा, कोई तुम्हारी गाय को नहीं छू सकता जब हिंदुस्तान पहरा दे रहा हो।” सैनिकों ने गायों को भी साथ लिया। चारों पहाड़ी रास्ते से चौकी की तरफ बढ़े।
इमरान पीछे मुड़कर एक बार सरहद की तरफ देखने लगा। धुंध, पहाड़, कांटेदार तार और उस पार उसका घर, मां की दुआएं, अब्बू की थकी आवाजें, दिल तड़प रहा था। लेकिन इस तरफ इंसानियत खड़ी थी। हथियारों के बीच नरमी थी और एक एहसास था कि दुनिया सिर्फ नफरत पर नहीं चलती।
उसने सर झुका कर धीमे से धन्यवाद कहा। “शुक्रिया साहब। अल्लाह भला करे आपका।” एक जवान ने मुस्कुरा कर कहा, “अल्लाह वही है जिसे तुम भी मानते हो। हम भी बस झंडे अलग हैं। दिल तो इंसान के ही हैं।”
बर्फ गिर रही थी। हवा में ठंड थी। लेकिन उस पल दिलों में गर्माहट थी। इमरान जब भारतीय चौकी में पहुंचा तो उसकी आंखें हैरानी से फैल गई। उसने सोच रखा था कि फौज मतलब बस बंदूकें, डर, सख्ती। लेकिन यहां लकड़ी जलती थी। चाय उबल रही थी और जवान हंसते हुए एक दूसरे से बात कर रहे थे। जैसे कोई घर हो। बस सरहद वाला घर।
एक जवान ने उसके लिए कुर्सी खींची। “बैठो, घबराओ मत। यहां कोई तुम्हें दुश्मन नहीं समझता।” इमरान धीरे-धीरे बैठ गया। हाथ अब भी कांप रहे थे। दूसरा जवान लंगर से चाय और पराठे लेकर आया। “गर्म खा लो बेटा। बाहर ठंड बहुत है।” चाय की खुशबू। गर्म पराठे।
पांचवां भाग: उम्मीद का पल
उस पल वह खाना नहीं था। उम्मीद थी। सुकून था। इमरान की आंखों से पानी आ गया पर किसी डर से नहीं। इस अपनापन के बोझ से उसने टूटते-टूटते पूछा, “आप लोग मुझे क्यों अच्छे से रख रहे हैं? मैं तो पाकिस्तान से हूं।”
एक जवान ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, सरहद सरकारों की होती है। बच्चे भगवान के होते हैं।” दूसरा बोला, “जब कोई भूखा मिलता है तो रोटी पहले दी जाती है। पूछताछ बाद में होती है।” मेजर अर्जुन पास ही खड़े थे। वह बस चुपचाप इमरान को देख रहे थे और शायद अपने दिल में उसके घर वालों की बेचैनी को महसूस कर रहे थे।
“अपने अब्बू को मिस कर रहे हो?” मेजर ने धीरे से पूछा। इमरान ने सिर हिलाया। गला भारी था। “अब्बू कहेंगे मैं भाग गया। अम्मी रो रही होंगी। मेरा छोटा भाई अयान मुझे ढूंढ रहा होगा।” उसकी आवाज टूट गई। “मुझे घर जाना है साहब। मैं डर गया हूं।”
मेजर के चेहरे की सख्त लकीरें नरम पड़ गईं। उन्होंने अपने टिफिन बॉक्स में से एक मिठाई निकाली और इमरान को दी। “इसे खा लो और सुनो। मैं वादा करता हूं। हम तुम्हें सकुशल घर भेजेंगे। ना कोई पूछताछ, ना कोई दर्द, बस इंसानियत।”
इमरान ने आंसू पोछे। एक छोटे से बच्चे की तरह सिर हिलाकर बोला, “थैंक यू भाई।” जवान हंस पड़े, “अब तो तू हमें रिशेदारी में ले गया।” इमरान भी हल्का मुस्कुराया। उसी पल उसे लगा डर के उस पार भी प्यार होता है।
चौकी के बाहर बर्फ गिर रही थी। वातावरण ठंडा था। लेकिन अंदर, अंदर दिल पिघल रहे थे। तभी रेडियो पर आवाज आई। “एचक्यू से अपडेट: पाकिस्तानी रेंजर्स को सूचित किया जा रहा है। बच्चे को मानवीय आधार पर वापस भेजा जाएगा।” मेजर ने चैन की सांस ली।
उनकी आंखों में जो राहत थी, वह बताती थी कि वह भी एक बेटे के पिता हैं। और इंसानियत उनसे बड़ी कोई ड्यूटी नहीं। इमरान चुपचाप आग के पास बैठा था। गाय भी एक कोने में घास खा रही थी। शांत, सुरक्षित।
छठा भाग: इंसानियत की पहचान
पहाड़ों की चोटी पर धुंध हटने लगी थी और ऐसा लग रहा था कि जैसे आसमान भी मुस्कुरा रहा है। इमरान ने धीरे से कहा, “अगर सब लोग ऐसे सोचें तो क्या युद्ध कभी होगा?” एक जवान ने उत्तर दिया, “युद्ध दिल में शुरू होता है। और वही खत्म भी।”
वो बोला, “यही फर्क है बेटा। बंदूक से देश बचता है और दिल से दुनिया।” इमरान ने पहली बार समझा, “सरहद लकीर है, नफरत नहीं।”
सुबह होते ही पहाड़ों के ऊपर हल्की धूप फैलने लगी। चौकी के बाहर बर्फ पर सूरज की किरणें ऐसे चमक रही थीं जैसे भगवान खुद इस पल पर नजर रखे हुए हों। इमरान रात भर सो नहीं पाया था। डर नहीं, अब बेचैनी थी। वह घर जाना चाहता था। अम्मी के आंचल में सिर छुपाना चाहता था।
अब्बू की डांट भी उसे याद आ रही थी। और छोटे भाई अयान की चिल्लाहट। “भैया!” एक जवान ने उसके पास बैठते हुए कहा, “सो नहीं पाए ना?” इमरान ने धीमे कहा, “अगर मैं वापस ना जा पाया तो? अगर आप मुझे यहां रोक लेंगे?”
जवान ने हंसकर उसके कंधे पर हाथ रखा। “तू बहुत सोचता है। सैनिकों की कसम, तुझे छोड़ेंगे। मेहमान बनाकर नहीं रखेंगे।” इमरान के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। उसी वक्त मेजर अर्जुन बाहर आए। हाथ में रेडियो, चेहरे पर जिम्मेदारी की रेखाएं।
“सब ध्यान रखो। 2 घंटे में हम बच्चे को नो मैनसलैंड पॉइंट पर सौंपेंगे। पाक रेंजर्स की कंफर्मेशन मिल गई है।” जवान अलर्ट हो गए। पर माहौल में डर नहीं। एक अजीब सा प्यार था। इमरान ने धीरे से पूछा, “मैं जा रहा हूं?”
मेजर ने सिर हिलाया। “हां बेटा, अपने घर, अपने लोगों के पास।” इमरान ने झिझकते हुए कहा, “आप लोग बुरे नहीं हो। हमने तो सुना था हिंदुस्तानी फौज बहुत सख्त होती है।” मेजर मुस्कुराए। “बेटा, सख्ती सीमा के दुश्मनों के लिए होती है। बच्चों के लिए नहीं।”
जवानों ने तब तक तैयारी शुरू कर दी थी। बुलेट प्रूफ जीप निकाली गई। सफेद झंडा लगाया गया और रास्ता साफ किया जा रहा था। इमरान गायों को गले लगाते हुए बोला, “गुलबकावी, छोटन, अब घर जा रहे हैं।”
एक जवान ने मजाक किया, “अरे भाई, गायों को तो इंडिया अच्छी लग रही होगी। दूध भी बढ़ जाएगा यहां की हवा में।” सब हंस दिए। इमरान की आंखों में आंसू आ गए। “मैं आपको कभी नहीं भूलूंगा।” एक जवान भावुक हो गया। “हम भी नहीं बेटा, तू हमारी यादों का हिस्सा है।”
अब चलने से पहले उन्होंने इमरान को गर्म जैकेट दी। “यह पहन लेना। वहां हवा ठंडी होगी।” इमरान ने पकड़ते हुए कहा, “यह तुम्हारी है।” जवान बोला, “अब तुम्हारी है। दोस्ती में उधार नहीं होता।”
इमरान ने हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा। मेजर ने उसका हाथ पकड़ा। “हाथ नहीं जोड़ते। ऐसे मिलते हैं।” और उसे गले लगा लिया। एक सैनिक ने चुपके से आंख पोंछी। जीप तैयार थी। इमरान जीप में बैठ गया। गाय पीछे बांधी गई। दरवाजा बंद हुआ। इंजन स्टार्ट हुआ।
सातवां भाग: विदाई का पल
उस पल पहाड़ों में एक खामोशी सी छा गई। किसी ने कहा नहीं। पर सबके अंदर एक हल्की टीस थी। जैसे कोई अपना घर छोड़कर जा रहा हो। जीभ धीरे-धीरे चौकी से निकलने लगी। इमरान पीछे मुड़कर देखता रहा। जवान हाथ हिला रहे थे और कुछ आंखें नम थीं।
सरहद पर पहुंचे तो सामने पाकिस्तानी रेंजर्स दिखे। वह भी उतने ही तनाव में। लेकिन आंखों में उम्मीद की गर्मी थी। इमरान का दिल तेज धड़कने लगा। बस कुछ कदम और और वह अपनी मिट्टी में लौटने वाला था। जीप धीरे से रुक गई। सामने कांटेदार तार, बीच में बर्फीली जमीन का टुकड़ा, नो मैनसलैंड, दाई तरफ भारतीय जवान खड़े थे। बाई तरफ पाकिस्तानी रेंजर्स।
इमरान के गले में गांठ सी पड़ गई। वो जीभ से उतरा। दोनों हाथों से गायों की रस्सी पकड़े हुए। हवा में एक अजीब सी खामोशी थी। जैसे पहाड़ भी सांस रोके खड़े हों। दूर एक तरफ एक दंपति कापती आवाज में नाम पुकार रहा था। “इमरान, इमरान बेटा!”
इमरान के पैरों में ताकत जैसे लौट आई। वो आवाज में अपनी अम्मी की दुआएं और अब्बू का दर्द पहचान गया। “अम्मी!” वो चिल्लाया और पहाड़ों में उसकी आवाज गूंज उठी। उसकी अम्मी भागती हुई आई। आंचल उड़ता हुआ। आंखें आंसुओं से भरी हुई।
अब्बू पीछे-पीछे दौड़ते हुए। “दोनों ने इमरान को कसकर सीने से लगा लिया। “अम्मी, रोती जा रही थी। कहां चला गया था तू? मेरी जान निकल गई थी।” अब्बू की आवाज टूट रही थी। “बेटा, तू ठीक है ना? किसी ने मारा तो नहीं? मेरे लाल।”
इमरान सिसकते हुए बोला, “अब्बू, इन लोगों ने मेरी बहुत मदद की। इन्होंने मुझे खाना दिया, कपड़े दिए। इनका दिल बहुत बड़ा है।” पाकिस्तानी ऑफिसर कैप्टन अहमद ने भारतीय जवानों की तरफ देखा। उनकी आंखों में हैरानी और सम्मान का मिलाजुला रंग था।
मेजर अर्जुन ने इमरान की पीठ थपथपाई। “अब तू घर पहुंच गया बेटा।” इमरान ने उनके हाथ पकड़े जैसे जाने ही ना देना चाहता हो। “साहब, मैं आपकी दुआएं नहीं भूलूंगा। आप लोग बुरे नहीं हो। कोई भी बुरा नहीं होता। बस बातें बुरी होती हैं।”
मेजर ने मुस्कुराकर कहा, “सीमा सिर्फ नक्शे पर है। इमरान इंसानियत में नहीं।” इमरान की अम्मी ने आगे बढ़कर भारतीय सैनिकों को सलाम किया। उनकी आवाज भरी हुई थी। “अल्लाह आपका भला करे। आपने हमारे बच्चे को बचाया। हमने तो सुना था। लेकिन आज देखा है आप लोग फरिश्ते हैं।”
भारतीय जवानों ने तुरंत सिर झुकाकर सलामी लौटाई। उनकी आंखें भी भीग चुकी थीं। पाकिस्तानी कप्तान आगे बढ़े। “मेरी तरफ से भारतीय सेना को शुक्रिया। आज आपने साबित कर दिया कि यूनिफार्म से पहले दिल होता है।” मेजर ने हाथ बढ़ाया। “हम दुश्मन नहीं। बस जिम्मेदारियां अलग हैं।”
दोनों अफसरों ने हाथ मिलाया। वह क्षण ऐसा था जैसे नफरत की दीवार में एक दरार खुल गई हो। इमरान ने अंतिम बार भारतीय जवानों की तरफ देखा। और अचानक दौड़कर मेजर अर्जुन से लिपट गया। “मुझे भूल मत जाना।” मेजर ने उसकी पीठ थपथपाई। “तुमने हमें याद दिलाया कि दुश्मन हमेशा सरहद पर नहीं होते। कभी-कभी गलत धारणाओं में होते हैं।”
इमरान ने हाथ जोड़कर कहा, “खुदा हाफिज साहब।” एक जवान ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “रब रखिया भाई।” इमरान अपने माता-पिता के साथ सीमा पार जाने लगा। गाय पीछे-पीछे चल रही थी। कुछ दूर जाते हुए उसने मुड़कर आखिरी बार देखा।
आठवां भाग: नई शुरुआत
भारत के सैनिक वहीं खड़े थे। सिर ऊंचा, दिल नम। और आंखों में इंसानियत चमकती हुई। उस पल पहाड़ों में एक सच्चाई गूंजी। “सरहद सिर्फ मिट्टी बांटती है। दिल नहीं।” परिवार पास था। लेकिन इमरान के दिल में एक और परिवार बस चुका था।
और किसी पहाड़ी सुबह ईद के दिन किसी दुआ में उसे यह आवाज याद आएगी। “डर मत बेटा, तू हमारा मेहमान है।”
इमरान ने अपने घर पहुंचकर अपने अब्बू और अम्मी को गले लगाया। उसकी आंखों में आंसू थे, लेकिन अब वह डर नहीं था। उसकी आंखों में विश्वास था। उसने अपने परिवार को बताया कि कैसे भारतीय सेना ने उसकी जान बचाई और उसे घर लौटने में मदद की।
उसने कहा, “अम्मी, अब्बू, मैं अब जानता हूं कि इंसानियत क्या होती है।” उसके अब्बू ने उसे गले से लगा लिया और कहा, “बेटा, तुमने हमें गर्वित किया है।”
नौवां भाग: एक नई पहचान
इमरान की कहानी ने पूरे गांव में सुनाई दी। लोग उसकी बात सुनकर हैरान रह गए। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि सरहद पार करने के बाद भी इंसानियत जिंदा रह सकती है। इमरान अब गांव का हीरो बन गया।
उसकी कहानी ने लोगों को यह सिखाया कि नफरत की दीवारें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, इंसानियत हमेशा उन्हें तोड़ने का रास्ता खोज लेगी। इमरान ने अपने गांव के बच्चों को बताया कि कैसे भारतीय जवानों ने उसे प्यार और सम्मान से बर्ताव किया।
उसने कहा, “हमें एक-दूसरे से नफरत नहीं करनी चाहिए। हमें एक-दूसरे को समझना चाहिए।” गांव के लोग अब इमरान की बातों को सुनते थे और उनकी सोच में बदलाव आ रहा था।
दसवां भाग: एक नई सुबह
समय बीतता गया और इमरान बड़ा हो गया। उसने हमेशा अपने दिल में उस दिन की याद रखी जब उसने भारतीय जवानों के साथ इंसानियत की एक नई कहानी लिखी थी।
वह अब अपने गांव में एक शिक्षक बन गया। उसने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और उन्हें सिखाया कि नफरत से कुछ नहीं मिलता, बल्कि प्यार और समझ से सब कुछ हासिल होता है।
इमरान ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उसके छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम हो। उसने अपनी कहानी को हर बच्चे तक पहुंचाया ताकि वे भी समझ सकें कि इंसानियत सबसे बड़ी ताकत है।
निष्कर्ष
इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि सरहदें केवल भौगोलिक सीमाएं होती हैं, लेकिन इंसानियत की सीमाएं अनंत होती हैं। जब हम एक-दूसरे को समझते हैं और प्यार से पेश आते हैं, तो हम सभी एक परिवार की तरह होते हैं।
इमरान की कहानी ने यह साबित कर दिया कि नफरत की दीवारें कितनी भी ऊंची क्यों न हों, इंसानियत हमेशा उन्हें तोड़ने का रास्ता खोज लेगी।
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फिर मिलेंगे एक नई दिल को छू लेने वाली कहानी के साथ। तब तक खुश रहिए। जय हिंद!
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