कर्मों का खेल: जब एक भिखारी ही अरबपति की जिंदगी का आखिरी सहारा बना
मुंबई के आसमान को छूता था अरबपति अर्नव मल्होत्रा का साम्राज्य। दौलत, रुतबा, और ताकत – सब उसके इशारों पर चलते थे। लेकिन आज, शहर के सबसे महंगे अस्पताल के प्रेसिडेंशियल स्वीट में, अर्नव जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। दुनिया की बेहतरीन मशीनें उसकी सांसों को खींच रही थीं, लेकिन उसकी जान बचाने के लिए एक चमत्कार चाहिए था।
डॉक्टर शर्मा ने बताया, “सर, आपका लीवर पूरी तरह फेल हो चुका है। हमें तुरंत डोनर चाहिए।” रोहन, अर्नव का बेटा, घमंड से बोला, “लिस्ट में हमें सबसे ऊपर डाल दीजिए, हम जितना भी पैसा देना पड़े देंगे।” लेकिन डॉक्टर ने एक कड़वा सच सामने रखा – “सर, आपका ब्लड ग्रुप बॉम्बे OH है। यह दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड ग्रुप है। जब तक इसी ब्लड ग्रुप का डोनर नहीं मिलेगा, कुछ नहीं हो सकता।”
अर्नव मल्होत्रा, जिसने हमेशा पैसे से हर दरवाजा खोलने का सपना देखा था, आज एक ऐसी चीज के लिए मोहताज था जिसे खरीदा नहीं जा सकता। पूरे शहर में इश्तहार दिए गए, करोड़ों का इनाम रखा गया। लेकिन वक्त तेजी से फिसल रहा था।

बांद्रा फ्लाईओवर के नीचे
इसी शहर के एक कोने में, बांद्रा फ्लाईओवर के नीचे, बारिश में भीगा हुआ राजन वर्मा बैठा था। फटी बोरी, एलुमिनियम का कटोरा, और कुछ बेकार यादें – यही उसकी दुनिया थी। दस साल पहले वह भी एक सफल व्यापारी था, लेकिन अर्नव मल्होत्रा की चालबाजियों ने उसकी फैक्ट्री, घर, और परिवार सब छीन लिया था। उसकी पत्नी इलाज के अभाव में चल बसी, और राजन सड़क पर आ गया।
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एक रात, जब बारिश राजन की उम्मीदों को भी भिगो रही थी, उसने दो आदमियों की बात सुनी – “अर्नव मल्होत्रा को बॉम्बे ब्लड ग्रुप चाहिए, 10 करोड़ का इनाम है!” राजन को याद आया, उसका ब्लड ग्रुप भी बॉम्बे OH है। उसके पास अब एक मौका था – वही आदमी जिसने उसकी जिंदगी तबाह की थी, आज उसी के खून की भीख मांग रहा था।
संघर्ष और इंसानियत
राजन के भीतर नफरत और इंसानियत की जंग छिड़ गई। क्या वह उस आदमी को बचाए जिसने उसकी दुनिया उजाड़ दी थी? पैसे की लालच थी, लेकिन सुजाता की कही बातें याद आईं – “असली दौलत इंसान का जमीर है, उसे कभी मत बेचना।” राजन ने फैसला किया, वह अर्नव मल्होत्रा को बचाएगा – इसलिए नहीं कि वह अच्छा है, बल्कि इसलिए कि राजन खुद बुरा नहीं बनना चाहता।
राजन अस्पताल पहुंचा, लेकिन गार्ड्स ने उसे गंदा भिखारी समझकर बाहर फेंक दिया। उसने अपनी आखिरी ताकत जुटाकर डॉक्टर शर्मा को पुकारा, “मेरा ब्लड ग्रुप बॉम्बे OH है, मैं डोनर हूं।” डॉक्टर ने उसकी बात सुनी, मेडिकल टेस्ट हुआ, और सच साबित हुआ – राजन ही वह दुर्लभ डोनर था।
मुलाकात: सच्चाई का आईना
रोहन ने पैसों का लालच दिया, लेकिन राजन ने इंकार कर दिया। उसकी एक ही शर्त थी – “मैं अपना खून तब दूंगा जब अर्नव मल्होत्रा होश में होगा और मेरी आंखों में देखेगा।” डॉक्टर ने मजबूरी में अर्नव को होश में लाया। राजन उसके सामने खड़ा हुआ – मैले कपड़े, थकी आंखें, लेकिन आत्मसम्मान से भरा।
“पहचाना मुझे?” राजन ने पूछा। “मैं वही राजन वर्मा हूं, जिसे आपने दस साल पहले बर्बाद किया था। आज मेरी रगों का खून ही आपको जिंदगी देगा।” अर्नव मल्होत्रा की आंखों में शर्मिंदगी थी, जुबान पर ताला। उसकी सारी दौलत, उसका सारा घमंड – एक भिखारी के सामने धूल में मिल गया।
राजन ने कहा, “मैं आपको नहीं बचा रहा, मैं अपने जमीर को बचा रहा हूं। अगर आज मैंने आपको मरने दिया, तो मैं भी आपके जैसा बन जाऊंगा। मेरी पत्नी कहती थी, सबसे गरीब वो है जिसके पास इंसानियत नहीं है। आज आपकी रगों में उसी आदमी का खून दौड़ेगा जिसे आपने बर्बाद किया था। यही आपकी सजा है, यही मेरा इंसाफ।”
नया जीवन, नया नजरिया
ऑपरेशन सफल रहा। अर्नव मल्होत्रा की जान बच गई। लेकिन वह अब पहले जैसा नहीं था। उसने 10 करोड़ का चेक राजन के लिए बनवाया, लेकिन राजन ने उसे छुआ भी नहीं। वह वापस उसी फ्लाईओवर के नीचे लौट गया, अपने कुत्ते मोती के साथ। उसके पास आज भी कुछ नहीं था, लेकिन पहली बार उसे अपनी गरीबी पर गर्व था। उसने बदला नहीं लिया, बल्कि इंसाफ किया – और अरबपति को एक आईना दिखा दिया।
कहानी यही सिखाती है – असली दौलत तिजोरियों में नहीं, उस दिल में होती है जो इंसानियत के लिए धड़कता है।
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