गार्ड समझकर डाँट दिया, पर जब सच्चाई पता चली कि वो मालिक है – सबके पैरों तले ज़मीन खिसक गई!

दोस्तों, क्या हुआ जब चार कंपनियों का करोड़पति मालिक अपने ही ऑफिस के सामने गार्ड बनकर खड़ा हो गया? लेकिन उसी के ऑफिस में काम करने वाले लोगों ने उसके साथ इतना बुरा बर्ताव किया, जिसकी उसने तो क्या, शायद किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। लेकिन जब उसका सच सामने आया, तो फिर ऐसा हुआ जिससे सबके होश उड़ गए।

ऑफिस का माहौल

ऑफिस के बाहर एक से बढ़कर एक महंगी गाड़ियों की कतारें लगी थीं। Mercedes, BMW, Audi जैसी गाड़ियां जैसे कोई बड़ी शोभा यात्रा निकली हो। वजह थी शहर की सबसे बड़ी टेक कंपनी, वेदांत एंटरप्राइजेज में आज सीनियर मैनेजमेंट पोस्ट के लिए होने वाला इंटरव्यू। वह पोस्ट बेहद खास थी। महीने की सैलरी 5 लाख और कंपनी के संस्थापक की टीम में काम करने का मौका। इसलिए हर कोई अपने सबसे चमकदार कपड़े पहनकर, बेशकीमती घड़ियां पहनकर और चेहरे पर आत्मविश्वास चिपका कर आया था।

साधारण लड़का

इन्हीं लोगों की भीड़ से थोड़ी दूर, ऑफिस के गेट के पास एक सीधा साधा लड़का खड़ा था। नीली शर्ट, साधारण पैंट और हल्के बिखरे बाल, चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी। वह किसी से बात नहीं कर रहा था। बस आते-जाते लोगों को गौर से देख रहा था। लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया और जिनकी नजर पड़ी भी, उन्होंने उसे या तो गार्ड समझा या कोई चपरासी। कुछ ने तो बिना सोचे-समझे उस पर आदेश भी झाड़ दिए।

“भाई, पानी मिलेगा क्या?”
“ओए, मेरी गाड़ी पर नजर रखना जरा।”
“गेट अच्छे से खोलना। आज बड़े लोग आने वाले हैं।”

वह लड़का बस हल्की मुस्कान के साथ सबकी बात सुनता रहा। ना विरोध, ना कोई सवाल। जैसे उसे सब पहले से पता हो।

महिका का आगमन

तभी एक चमचमाती सफेद गाड़ी आकर गेट पर रुकी। ड्राइवर ने दरवाजा खोला और उसमें से निकली एक लड़की। लंबे सीधे बाल, आंखों पर काला चश्मा, तेज चाल और ऊंची एड़ी की आवाज से पूरा फर्श गूंज उठा। हाथ में महंगा मोबाइल, पहनावे में घमंड और चाल में मानो पूरी दुनिया झुकी हो। वह थी महिका।

उसकी चाल इतनी तेज थी कि गेट के पास खड़े लड़के वेदांत से हल्का टकरा गई। उसने बिना देखे कहा, “अंधा है। क्या दिखाई नहीं देता? कोई सामने से आ रहा है या नहीं? सामने से हट, मुझे देर हो रही है। इंटरव्यू के लिए आई हूं। ऐसे खड़े-खड़े मत देख सबको।” पीछे खड़े कुछ उम्मीदवार हंस पड़े। एक लड़का बोला, “अरे भाई, वीआईपी को रास्ता तो दो। कम से कम अपना काम तो ठीक से कर लो।” हंसी गूंजती रही। लेकिन वेदांत कुछ नहीं बोला। बस सिर झुकाकर एक कोने में चला गया।

इंटरव्यू की प्रक्रिया

भीतर रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका था। एक-एक करके उम्मीदवारों को बुलाया जा रहा था। महिका सबसे पहले पहुंच चुकी थी। उसने अपना नाम कुछ इस तरह बताया मानो उसी का सिलेक्शन होना तय हो। “महिका अरोड़ा,” उसने कहा। “एमबीए किया है विदेश से और ट्रेनिंग भी इंटरनेशनल लेवल पर की है। पापा का नाम तो आप जानते ही होंगे।” रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कुराकर बिना कुछ बोले सिर हिला दिया।

महिका ने कहा, “घबराना मत। पोस्ट मेरी ही है। यहां जो लोग आए हैं, वह बस दिखावे के खिलाड़ी हैं। असली प्रोफाइल तो मेरा है।”

वेदांत का असली रूप

उसी वक्त, नौवीं मंजिल पर एक सादा कमरा था, जहां कुछ सीसीटीवी स्क्रीन लगी थी। हर फ्लोर की लाइव फीड वहां दिख रही थी। उस कमरे में अकेला बैठा था वही सादा लड़का, वेदांत अग्रवाल। उसके सामने टेबल पर कुछ फाइलें थीं, जिनमें उम्मीदवारों की पूरी जानकारी दर्ज थी। नाम, शिक्षा, अनुभव, देश में नाम, इनकरता है, व्यवहार और सबसे खास कॉलम था नजरिया, जिसमें वह खुद अपने हाथ से नोट्स लिख रहा था।

क्योंकि वह कोई गार्ड नहीं था। वह था इस पूरी कंपनी का संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, सीईओ वेदांत अग्रवाल। लेकिन आज उसने अपना सूट पहनना जरूरी नहीं समझा। वह जानना चाहता था कि लोग बिना किसी पहचान जाने दूसरों से कैसे पेश आते हैं।

इंटरव्यू का माहौल

एक-एक कर उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए भीतर जा रहे थे। वहां तीन सदस्य पैनल बैठा था—मानव संसाधन प्रमुख, संचालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और वेदांत का करीबी एक पर्यवेक्षक। हर उम्मीदवार कुछ न कुछ झूठ बोल रहा था। किसी ने अपने परिचय में बढ़ा-चढ़ाकर बातें कीं, किसी ने ऐसे नाम गिनवाए जो असल में सिर्फ दिखावे के थे।

तभी नाम पुकारा गया “महिका अरोड़ा।” वह पूरी आत्मविश्वास के साथ कमरे में दाखिल हुई जैसे किसी शो में हिस्सा लेने आई हो। कुर्सी पर बैठते ही बोली, “मुझे लगता है कि आप मेरी योग्यता देख चुके होंगे। अब बस औपचारिक बात करनी है।”

महिका का आत्मविश्वास

इंटरव्यूअर ने मुस्कुराते हुए पहला सवाल किया, “आपने अब तक सबसे मुश्किल काम कौन सा किया है और आपने उसे कैसे संभाला?” उसने बिना रुके कहा, “मुझे अपने से नीचे लोगों के साथ काम करना पसंद नहीं। मैं चाहती हूं कि चीजें मेरे कंट्रोल में रहें।”

संचालन अधिकारी ने पूछा, “परिणाम जरूरी है या रिश्ते?” महिका ने जवाब दिया, “परिणाम भावनाओं में बहकर कोई अच्छी लीडर नहीं बनती।” तीसरे सदस्य ने कुछ नहीं कहा। बस हर बात को ध्यान से सुनता रहा और एक के बाद एक बातें नोट करता रहा।

उसके जवाब तेज थे, स्पष्ट थे। लेकिन उनमें ना विनम्रता थी, ना टीम भावना और ना ही इंसानियत। वह खुद को सबसे आगे दिखाने के लिए हर सीमा पार कर रही थी।

महिका की गलती

इंटरव्यू खत्म हुआ। एचआर हेड ने कहा, “धन्यवाद। हम आपको जल्द सूचित करेंगे।” महिका उठी, मुस्कुराई और बोली, “मुझे पूरा यकीन है कि कॉल सबसे पहले मेरी ही जाएगी।” बाहर आकर फिर से फोन कान पर लगाया और कहा, “इतना आसान था कि अब बस ऑफर लेटर का इंतजार है। उन्हें शायद पहले ही अंदाजा हो गया होगा।”

वेदांत का निर्णय

वेदांत ऊपर बैठा सब सुन रहा था। उसने रिसेप्शन को फोन किया, “चयनित उम्मीदवारों को मेरे ऑफिस भेजिए। आगे की प्रक्रिया मैं खुद देखूंगा।” सब चौंक गए। पहली बार कंपनी के सीईओ खुद किसी इंटरव्यू का अंतिम निर्णय लेने वाले थे। कुछ नाम बुलाए गए। धीरे-धीरे लोग लिफ्ट से ऊपर भेजे जाने लगे।

अंतिम नाम महिका का था। उसने आईना देखा। बाल ठीक किए और खुद से कहा, “अब असली गेम शुरू होता है।” लिफ्ट में खड़ी थी। लेकिन इस बार उसकी चाल में थोड़ा संकोच था। शायद मन में कुछ हलचल थी जो पहली बार हो रही थी।

महिका का सामना

लिफ्ट के दरवाजे खुले तो महिका के कदम धीमे हो गए। सामने वह दरवाजा था जिस पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था, “वेदांत अग्रवाल, मुख्य कार्यकारी अधिकारी।” उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अब वह उस शख्स से मिलने जा रही है जिसके हाथ में इस बड़ी कंपनी की सारी चाबी है।

अब तक वह सिर्फ यह सोचती आई थी कि उसे यह पोस्ट मिलना तय है। लेकिन अब उसका दिल पहली बार तेज धड़क रहा था। उसने गहरी सांस ली। अपने बालों को फिर ठीक किया। हल्की मुस्कान बनाई और दरवाजा खोला।

चौंकाने वाला सच

जैसे ही दरवाजा खुला, वह चौंक गई। सामने वही चेहरा, वही इंसान, वही साधारण कपड़े, वही शांत मुस्कान जो सुबह ऑफिस के गेट पर खड़ा था, जिसे उसने बिना देखे धक्का दिया था। जिसे उसने गार्ड समझकर अपमानित किया था। वह अब उसी ऑफिस में एक शानदार टेबल के पीछे बैठा था।

सूट में सामने फाइलें रखी थीं और पीछे कांच की दीवार से पूरी दुनिया दिख रही थी। वह था वेदांत। महिका के चेहरे से जैसे खून उतर गया। वह एक कदम पीछे हटी लेकिन दरवाजा बंद हो चुका था। उसके गले से आवाज नहीं निकल रही थी।

वेदांत की बातें

वेदांत ने उसकी ओर देखा। आंखों में कोई गुस्सा नहीं था। वह धीरे से खड़ा हुआ और सामने रखी फाइल उठाकर पढ़ने लगा। “महिका अरोड़ा, शिक्षा बढ़िया है। अनुभव भी ठीक-ठाक है। आत्मविश्वास भी ज्यादा ही है। लेकिन जो सबसे जरूरी था, वह नहीं है—इंसानियत।”

“जब कोई व्यक्ति अपनी भाषा से किसी को नीचा दिखाता है, तो उसकी डिग्री, उसके कपड़े, उसके शब्द सब बेकार हो जाते हैं।” महिका कांप रही थी। उसने कांपते हुए कहा, “मैं जानती नहीं थी कि आप…”

वेदांत ने उसकी बात बीच में ही रोक दी। “जानना जरूरी नहीं होता। समझना जरूरी होता है। जब किसी को देखकर आप उसके कपड़े, उसका स्टाइल देखकर उसकी हैसियत तय कर दो, तो आप किसी भी पोस्ट के काबिल नहीं रह जाते।”

महिका की आँखों में आंसू

महिका की आंखों में आंसू तैरने लगे। वह अब खुद को मजबूत नहीं रख पा रही थी। “आप चाहे तो मुझे माफी मांगने का मौका दें,” उसने कहा, “मुझे समझ में आ गया है कि मैंने क्या किया।”

वेदांत ने उसका चेहरा देखा। फिर टेबल पर रखी फाइल बंद की। धीरे से कहा, “माफी मांगना आसान होता है। लेकिन सबसे कठिन होता है यह जानना कि आप माफी के लायक हैं भी या नहीं। आपने मुझे नहीं, मेरी सोच को नीचा दिखाया था। और ऐसी सोच इस कंपनी में 1 इंच भी जगह नहीं ले सकती।”

दरवाजे का संकेत

उसने फाइल को उठाकर एक तरफ रख दिया। फिर हाथ से दरवाजे की ओर इशारा किया। “आप जा सकती हैं।” महिका की आंखों से आंसू निकल पड़े। उसकी चाल अब वैसी नहीं थी जैसी सुबह थी। अब वह लड़की जो सबसे ऊंची एड़ी पहनकर सबसे तेज चलती थी, अब चुपचाप झुकी ताल खालकर बाहर निकल रही थी।

महिका की वापसी

वह उसी लिफ्ट में बैठी लेकिन अब अकेली थी। सिर झुका हुआ, होठ कांपते हुए। नीचे आते वक्त उसे वह हर पल याद आ रहा था। गेट पर वेदांत से टकराना, उसके लिए बोली गई बातें और दूसरों के सामने उसकी बेइज्जती करना। अब वह हर शब्द उसके दिमाग में हथौड़े की तरह बज रहा था।

सबकी नजरें

जैसे ही लिफ्ट नीचे पहुंची, वह बाहर निकली तो सारे चेहरों की नजरें उसकी ओर थीं। किसी ने कुछ नहीं कहा लेकिन सब कुछ कह दिया गया था। वह बिना किसी से आंख मिलाए बाहर निकल गई। उसी वक्त ऑफिस के बाहर लगी बड़ी डिजिटल स्क्रीन पर लिखा था, “वेदांत एंटरप्राइजेज: हम योग्यता से पहले विचार देखते हैं।”

निष्कर्ष

और उसी के नीचे एक पंक्ति थी, “कभी किसी की सादगी को उसकी औकात मत समझो, क्योंकि कई बार जो सबसे सादा होता है, वही सबसे बड़ा होता है।” कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, लेकिन बदला पूरा हो चुका था। वेदांत ने कुछ नहीं कहा था। लेकिन जो कहा, वह जिंदगी भर याद रहेगा।

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