जब SP साहब ऑफीस जा रहे थे ; तो सड़क किनारे तलाकशुदा पत्नी पापड़ बेचती मिली फिर जो हुआ ….

दिनेश, एक ईमानदार दरोगा, जिनकी जिंदगी में एक दिन अचानक ऐसा मोड़ आया जिसने उनके दिल को झकझोर कर रख दिया। यह कहानी है एक ऐसे रिश्ते की जो टूटने के बाद भी फिर से जुड़ गया, और एक ऐसी महिला की जो अपने अहंकार को त्याग कर वापस अपने घर की चौखट पर लौट आई।

सुबह का वक्त था। थाने में तैनात दरोगा दिनेश अपनी फाइलों में डूबा हुआ था कि अचानक एक सिपाही भागता हुआ अंदर आया। “दरोगा साहब, एसपी साहब ने आपको तुरंत ऑफिस बुलाया है। कहा है कि मीटिंग बेहद जरूरी है।” दिनेश ने बिना कुछ कहे टोपी उठाई और थाने की जीप स्टार्ट कर दी। गाड़ी धूल उड़ाती हुई सड़क पर दौड़ पड़ी।

जैसे ही गाड़ी टोल बूथ पर पहुंची, उसकी नजर दाईं तरफ गई। एक महिला खड़ी थी। साधारण साड़ी, चेहरे पर थकान की गहरी लकीरें, हाथों में पापड़ों की टोकरी। लेकिन आंखों में अजीब सी बुझी हुई चमक। दिनेश का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने गाड़ी धीमी कर दी। ध्यान से देखा और अचानक मन में हलचल मच गई। यह चेहरा कहीं देखा हुआ लगता है… यह वही तो नहीं?

उसने तुरंत सिर झटक दिया और गाड़ी आगे बढ़ा दी। टोल पार हो गया लेकिन बेचैनी और बढ़ गई। दिल मानने को तैयार नहीं था। कुछ दूरी पर जाकर उसने अचानक ब्रेक मारी। स्टीयरिंग घुमाया और गाड़ी यूटर्न लेकर फिर उसी जगह लौट आया।

अब उसकी आंखें सिर्फ उस औरत पर थीं। महिला पापड़ बेचने में लगी रही। उसे इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि पुलिस की गाड़ी दूसरी बार भी आकर उसे देख रही है। दिनेश की सांसें भारी हो गईं। क्या यह सच में रीना है? वही रीना जिसने कभी उसके साथ सात फेरे लिए थे। वही रीना जो अपनी जिद और अहंकार में उसे छोड़कर चली गई थी।

दिनेश करीब पहुंच चुका था। उसकी धड़कनें और तेज हो गईं। वह औरत अब भी अपने काम में लगी थी। शायद उसे आभास भी नहीं था कि उसका अतीत आज उसके सामने खड़ा होने वाला है। दिनेश आगे बढ़ा और बिल्कुल उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

कुछ पल तक उसने कुछ कहा नहीं। बस गहरी नजरों से उसे देखता रहा। “रीना…?” उसके होठों से धीमी आवाज निकली। महिला चौंक गई। उसने पलटकर देखा। फिर जल्दी से नजरें झुका लीं। उसकी आंखों में अजीब सी घबराहट थी। वो जल्दी-जल्दी अपने पापड़ समेटने लगी। मानो यहां से भाग जाना चाहती हो।

दिनेश का दिल और बेचैन हो गया। उसने दो कदम आगे बढ़कर कहा, “रीना, सच-सच बताओ। क्या तुम वही हो?” उसकी आवाज में कठोरता नहीं थी बल्कि एक टूटा हुआ अपनापन था। रीना ने चेहरा दूसरी ओर फेर लिया। आंखों से आंसू ढलक पड़े। वो फुसफुसाई, “हां दिनेश… मैं ही रीना हूं।”

लेकिन अब तुम्हें मुझसे कोई मतलब नहीं होना चाहिए। तुम अपनी राह जाओ। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। यह कहते हुए उसके शब्दों में इतना दर्द था कि दिनेश की सांसें थम गईं। वह वही रीना थी। लेकिन अब टूटी-बिखरी रीना, जिसने कभी अपने अहंकार में उसे छोड़ा था और आज किस्मत के थपेड़ों में सड़क किनारे खड़ी थी।

दिनेश ने उसका कंधा पकड़कर उसे अपनी ओर घुमाया। उसकी आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे। दिनेश ने पहली बार उसे इतने कमजोर रूप में देखा था। “रीना, यह हाल कैसे हुआ? तुम पापड़ क्यों बेच रही हो?” उसकी आवाज में कठोरता नहीं बल्कि करुणा थी।

रीना और सह ना सकी। फूट-फूट कर रो पड़ी। कुछ देर तक सिर्फ उसकी सिसकियां सुनाई देती रहीं। फिर उसने ट
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