किस्मत का खेल: मंदिर के भंडारे में मिला भूखा पति

किस्मत का खेल भी कितना अजीब होता है। जिन लोगों को हम अपनी ज़िंदगी से निकाल देते हैं, वही एक दिन ऐसे मोड़ पर सामने आ जाते हैं कि नफरत और गुस्सा आंसू बनकर बहने लगते हैं। यह कहानी है प्रिया और रोहन की, जो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं।

प्रिया ने अपने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा पार कर ली थी। तलाक के बाद उसने खुद को संभाला, पढ़ाई की, नौकरी की और फिर एक छोटा सा एनजीओ शुरू किया। सालों की मेहनत के बाद वह आत्मनिर्भर बन गई थी। आज वह शहर के सबसे बड़े मंदिर में भंडारा करवा रही थी, ताकि अपने संघर्षों के लिए भगवान का धन्यवाद कर सके। सैकड़ों गरीब और जरूरतमंद लोग लाइन में लगे थे, और प्रिया अपने हाथों से उन्हें खाना परोस रही थी। उसके चेहरे पर सुकून था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

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जैसे ही उसने अगली प्लेट बढ़ाने के लिए सिर उठाया, उसकी नजर सामने खड़े एक आदमी पर पड़ी। फटे पुराने कपड़े, बिखरे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और आंखों में खालीपन। यह चेहरा प्रिया कभी नहीं भूल सकती थी—यह उसका पूर्व पति रोहन था। वही रोहन, जो कभी लाखों की गाड़ी से नीचे पैर नहीं रखता था, आज दो पूड़ी के लिए लाइन में खड़ा था। प्रिया का दिल कांप उठा। उसे याद आया, कैसे रोहन ने अहंकार में डूबकर उसे घर से निकाल दिया था। “तुम मेरे स्टेटस से मेल नहीं खाती,” ये शब्द आज भी उसके कानों में गूंज रहे थे।

एक पल के लिए प्रिया पीछे हटना चाहती थी, लेकिन उसके पैर जैसे जमीन में जम गए। उसने कांपते हाथों से पूरी-सब्जी की प्लेट उठाई और रोहन के कटोरे की तरफ बढ़ाई। रोहन ने जब नजरें उठाकर प्रिया को देखा, उसके चेहरे पर शर्म और पछतावे के भाव थे। उसने नजरें झुका लीं और चुपचाप भीड़ में एक कोने में जाकर बैठ गया। प्रिया देख रही थी कि वह कितनी भूख से हर निवाला खा रहा है। उसकी आंखें भर आईं।

भंडारा खत्म होने के बाद, प्रिया ने देखा कि रोहन अभी भी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा था। वह उसके पास गई और धीरे से पूछा, “तुम यहां इस हालत में?” रोहन की आंखों से आंसू बह निकले। उसने बताया, कैसे तलाक के बाद उसने एक मॉडर्न लड़की से शादी की, जिसने उसे बुरी आदतों में डाल दिया। बिजनेस पार्टनर्स ने धोखा दिया, सारा पैसा, घर, कंपनी सब छिन गया। जिस लड़की के लिए उसने प्रिया को छोड़ा था, वह भी बुरे वक्त में उसे छोड़ गई। पिछले छह महीने से वह दर-दर की ठोकरें खा रहा था।

रोहन ने रोते हुए कहा, “मुझे माफ करने का कोई हक नहीं है। मैंने तुम्हारे साथ जो किया, वही मेरी सजा है।” प्रिया चुपचाप सब सुनती रही। उसे एहसास हुआ कि असली शांति बदला लेने में नहीं, बल्कि माफ कर देने में है। उसने अपने पर्स से पैसे निकालकर रोहन को देने चाहे, लेकिन रोहन ने मना कर दिया। प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है, भीख मत लो। काम करोगे? मेरे एनजीओ में मुझे एक भरोसेमंद मैनेजर चाहिए।”

रोहन की आंखों में उम्मीद की किरण जागी। उसने कांपते हाथों से प्रिया का धन्यवाद किया। उस दिन मंदिर की सीढ़ियों पर दो टूटे हुए इंसान बैठे थे—एक जिसने सब कुछ खोकर भी मानवता नहीं खोई थी, और दूसरा जिसने सब कुछ पाकर भी खो दिया था। यह कहानी उनके फिर से एक होने की नहीं है, बल्कि माफी, इंसानियत और दूसरा मौका देने की है। प्रिया ने रोहन को नौकरी दी, लेकिन अपने दिल में जगह नहीं। उसने उसे फिर से जीने का मौका दिया, क्योंकि हर इंसान एक दूसरा मौका डिज़र्व करता है।

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