10 साल का बच्चा हॉस्पिटल में खून देने आया…डॉक्टर ने उसका नाम सुना तो रो पड़ा
कभी-कभी जिंदगी ऐसा सवाल पूछती है जिसका जवाब आंसुओं में छिपा होता है। एक बच्चा, बस 10 साल का, नंगे पैर फटी शर्ट में भीगी सड़क पर दौड़ता हुआ सिर्फ इसलिए कि उसके अंकल की सांसें ना रुक जाएं। उसके छोटे हाथ कांप रहे थे, पर हिम्मत बड़ी थी। उसने कहा, “मेरा खून ले लो। बस उन्हें बचा लो।”
जब डॉक्टर ने उसका नाम सुना, तो सब कुछ थम गया। वह नाम वही था जो कभी उसके अपने बेटे का हुआ करता था। वो बेटा जिसे उसने एक रात खून की कमी से खो दिया था। उस पल हॉस्पिटल की हर दीवार गूंज उठी थी। एक बच्चे की मासूम दुआ और एक पिता के टूटे दिल के बीच से जहां खून से ज्यादा कीमती निकली इंसानियत।
भाग 2: आर्यन की जिंदगी
शहर के किनारे एक तंग सड़क थी जहां बारिश के पानी में कचरा बहता था। बिजली के खंभों से टपकती बूंदें जिंदगी की थकान जैसी लगती थीं। उसी सड़क के मोड़ पर एक टूटी-फूटी दीवार के पास नीले और सफेद प्लास्टिक से बनी एक छोटी सी गुफा थी। वो किसी का घर नहीं, पर वहां जिंदगी रहती थी।
10 साल का आर्यन वहीं बैठा था, प्लास्टिक की झोपड़ी के अंदर, जिसकी छत हर बारिश में टपकती थी। उसके सामने एक टूटी लकड़ी का बॉक्स पड़ा था, जिसमें उसने अपनी दुनिया सजा रखी थी। 25-30 पुरानी किताबें, कुछ स्कूल की, कुछ कहानियों की, कुछ इतनी फटी कि पन्नों में शब्द भी धुंधले थे।
आर्यन ने अपने छोटे हाथों से उन किताबों को सुखा रहा था क्योंकि रात भर बारिश ने सब भीगा दिया था। उसने बुदबुदाया, “अब कौन खरीदेगा इन्हें? सब भीग गई।” थोड़ी देर बाद उसने सड़क की ओर आवाज लगाई, “पुरानी किताबें लो। सस्ती किताबें सिर्फ ₹10।” राहगीर उसे देखते तो जरूर थे पर रुकते नहीं।
भाग 3: अंकल की मदद
किसी को जल्दी थी, किसी को परवाह नहीं थी। आर्यन के कपड़े कीचड़ से सने थे, पैरों में चप्पल नहीं, लेकिन चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी, जैसे उसने गरीबी से दोस्ती कर ली हो। जब भी वह किसी बच्चे को स्कूल यूनिफार्म में देखता, तो आंखों में हल्की सी चमक आ जाती थी। “काश मैं भी पढ़ पाता,” वह खुद से बुदबुदाता और फिर मुस्कुराकर आवाज लगाने लगता।
तभी सामने एक जोरदार ब्रेक की आवाज आई। एक बाइक फिसल गई और सड़क पर एक आदमी गिर पड़ा। खून उसके माथे से बहने लगा। आर्यन की आंखें चौड़ी हो गईं। वो पहचान गया, वो उसके मुरारी अंकल थे जो रोज शाम को उसे बचा हुआ खाना दे देते थे।
भाग 4: भीड़ का डर
भीड़ जमा हो गई। किसी ने मोबाइल निकाल लिया, किसी ने बस देखा पर कोई आगे नहीं बढ़ा। आर्यन दौड़ कर पहुंचा। उसके छोटे हाथ कांप रहे थे। “अंकल, आंखें खोलो ना। अंकल!” उसने चारों तरफ देखा। “कोई है क्या? प्लीज मदद करो।” पर सब चुप थे। किसी ने कहा, “पुलिस का झंझट है बच्चा। तू मत उलझ।”
आर्यन की आंखों में आंसू आ गए। वो सड़क के उस पार भागा। “जहां एक ऑटो खड़ा था। “भैया, प्लीज मेरे अंकल को हॉस्पिटल ले चलो। खून बहुत निकल गया है।” ऑटो ड्राइवर बोला, “बच्चे, मेरे पास टाइम नहीं है। किसी और को बोल।”
भाग 5: पैसे की कमी
आर्यन ने झोले से सिक्के निकाले। बस ₹7 थे, दिन भर की कमाई। उसने वो ऑटो वाले के हाथ में रख दिए। “भैया, पैसे रख लो। बस अंकल को बचा लो।” ऑटो ड्राइवर एक पल के लिए ठिठक गया। उसकी आंखें नरम पड़ गईं। “चल बेटा, जल्दी बैठा उन्हें।”
आर्यन और दो राहगीर मिलकर मुरारी अंकल को ऑटो में लाए। बारिश अब तेज हो गई थी। छोटे-छोटे हाथ कांप रहे थे। पर आर्यन बार-बार कहता जा रहा था, “भैया, जल्दी चलो। वो मर जाएंगे तो मेरा कोई नहीं रहेगा।”
भाग 6: हॉस्पिटल की दौड़
ऑटो हॉस्पिटल के गेट पर रुका। आर्यन ऑटो से कूद कर भागा। “रिसेप्शन काउंटर पर पहुंचा। “मदद करो प्लीज। मेरे अंकल का बहुत खून बह गया है।” नर्स ने स्ट्रेचर मंगवाया। डॉक्टर अंदर गया। इलाज शुरू हुआ। आर्यन वही दरवाजे के बाहर खड़ा रहा।
गीले बालों से पानी टपक रहा था। होठ सूखे, आंखें डरी हुई। वो भगवान से धीरे से बड़बड़ाया, “भगवान, प्लीज मेरे अंकल को बचा लो। मैं वादा करता हूं, अब कभी झूठ नहीं बोलूंगा।” बारिश थम चुकी थी पर उस बच्चे की सिसकियां अब भी चल रही थीं। कभी दरवाजे की तरफ देखता, कभी हाथ जोड़कर आसमान की ओर।
भाग 7: खून की जरूरत
तभी अंदर से डॉक्टर की आवाज आई। “खून तुरंत चाहिए, नहीं तो मरीज नहीं बचेगा।” आर्यन भाग कर अंदर गया। “अपनी बाहें आगे कर दी।” “मेरा ले लो खून। मैं दूंगा।” नर्स हैरान रह गई। “बेटा, तू तेरी उम्र तो बहुत कम है।”
आर्यन की आंखों से आंसू गिरे। “मैं छोटा हूं पर मेरा दिल बड़ा है। प्लीज, मेरे अंकल को बचा लो।” सन्नाटा छा गया। नर्स ने धीरे से कहा, “रुको बेटा, मैं डॉक्टर को बुलाती हूं।”
भाग 8: डॉक्टर का दर्द
ऑपरेशन थिएटर के बाहर सन्नाटा था। दीवार की घड़ी की सुइयां जैसे रुक गईं। आर्यन अभी भी वहां खड़ा था। गीले बालों से पानी टपक रहा था। होठ सूख चुके थे, लेकिन उम्मीद अभी बाकी थी। नर्स बाहर आई। “बेटा, डॉक्टर साहब आ गए हैं।”
दरवाजा खुला। एक सफेद कोट में डॉक्टर अंदर आया। डॉक्टर विवेक शर्मा, लगभग 40 साल का आदमी। चेहरे पर गंभीरता, आंखों के नीचे नींद की थकान। पर भीतर कहीं एक पुराना दर्द दबा हुआ। उसने बच्चे को देखा, छोटा मासूम, थरथर कांपता हुआ।
भाग 9: नाम की पहचान
नर्स ने बताया, “सर, यह कह रहा है कि यह अपना खून देना चाहता है।” डॉक्टर एक पल के लिए ठिठक गया। फिर धीमी आवाज में बोला, “तुम्हारा नाम क्या है बेटा?” आर्यन ने धीरे से कहा, “आर्यन। आर्यन कुमार।”
डॉक्टर के हाथ से फाइल गिर गई। उसका चेहरा सफेद पड़ गया। नर्स घबरा गई, “सर, क्या हुआ?” डॉक्टर विवेक के हाथ कांपे। आंखों में आंसू भर आए। वह कुर्सी पर बैठ गया। उसकी सांसें भारी होने लगीं। “आर्यन,” यही तो मेरे बेटे का नाम था।
भाग 10: एक पिता का वादा
कमरे में सन्नाटा छा गया। नर्स अवाक खड़ी थी। “सर, क्या आप ठीक हैं?” डॉक्टर ने सिर झुका लिया। हाथों से चेहरा ढक लिया। “छह साल हो गए।” डॉक्टर बोला, “6 साल पहले मेरा भी एक बेटा था। ठीक इसी उम्र का। उसे तेज बुखार था। लेकिन खून नहीं मिला। मैं असहाय देखता रहा। वो चला गया।”
वो रुक गया। आवाज कांप गई। “उस दिन से मैंने कसम खाई। किसी बच्चे को अब खून की कमी से नहीं मरने दूंगा। लेकिन आज वही नाम, वही चेहरा फिर से मेरे सामने है।” आर्यन कुछ नहीं समझ पाया। बस डॉक्टर की आंखों की तरफ देखता रहा। “अंकल, आप क्यों रो रहे हो? मैं ठीक हूं। आप मेरे अंकल को बचा लो ना।”
भाग 11: खून का संकल्प
डॉक्टर ने उसकी तरफ देखा। उस छोटे बच्चे की आंखों में वही मासूम चमक थी, जो उसने अपने बेटे में देखी थी। वो कांपते हाथों से बच्चे का चेहरा छूता है और धीरे से कहता है, “तू खून नहीं देगा बेटा, मैं दूंगा।” नर्स चौंक जाती है। “सर, आप हां?”
“इस बच्चे ने मुझे आज याद दिला दिया कि भगवान पुराने जख्म भी उसी रूप में भरता है जिससे दर्द सबसे गहरा था।” वह तुरंत उठता है। “ब्लड बैंक की ओर चलता है और कहता है, उस मरीज को मेरा खून दो। वह बच्चे का अंकल नहीं। अब मेरा फर्ज है।”
भाग 12: उम्मीद की किरण
आर्यन उसकी तरफ देखता है। आंखों में उम्मीद भर जाती है। डॉक्टर उसे मुस्कुरा कर कहता है, “डर मत बेटा। अब कोई नहीं मरेगा।” उस पल हॉस्पिटल के कोने में एक छोटे से बच्चे ने इंसानियत को झुकते देखा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या हुआ।
पर उसके दिल में एक अजीब सी शांति उतर आई थी। उसे लगा शायद ऊपर वाला आज वाकई सुन रहा था। डॉक्टर विवेक ब्लड बैंक की तरफ चल रहे थे। पर हर कदम के साथ उनकी आंखों के आगे बीते सालों की तस्वीरें घूम रही थीं।
भाग 13: बीते दिनों की यादें
6 साल पहले की बात थी। वह भी 1 जून की तपती दोपहर थी। विवेक तब एक सरकारी हॉस्पिटल में जूनियर डॉक्टर थे और उनकी गोद में खेलता था उनका चार साल का बेटा आर्यन। आर्यन बेहद हसमुख था। पापा के पास बैठकर खिलौनों से खेलता।
कभी स्टेथोस्कोप गले में डालकर हंसता। “पापा, मैं भी डॉक्टर बनूंगा। आपकी तरह।” वो सुनकर विवेक मुस्कुरा देते और कहते, “जरूर बेटा, तुम तो मुझसे भी बड़े डॉक्टर बनोगे।” लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

भाग 14: बुखार की रात
एक रात आर्यन को तेज बुखार हुआ। वह और उनकी पत्नी स्मिता बच्चे को गोद में लेकर हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टरों ने बताया प्लेटलेट्स बहुत कम हैं। तुरंत खून चाहिए। विवेक ने दौड़-भाग की। ब्लड बैंक गया पर वहां खून उपलब्ध नहीं था।
उसने दूसरे हॉस्पिटलों को फोन किए। हर जगह एक ही जवाब मिला। “सप्लाई कल तक आएगी।” वह रात शायद सबसे लंबी थी। बेटा ऑक्सीजन मास्क में था। धीरे-धीरे सांसें टूट रही थीं। विवेक ने उसकी हथेली पकड़ी। “बेटा, डरो मत। पापा यहीं हैं।”
भाग 15: बिछड़ने का दर्द
पर सुबह होते-होते मॉनिटर ने बीप देना बंद कर दिया। आर्यन चला गया। विवेक कुछ पल तक जड़ खड़ा रहा। फिर जमीन पर गिर पड़ा। उसकी चीखें हॉस्पिटल की दीवारों से टकरा रही थीं। उस दिन उसकी आंखों से आंसू नहीं, जान निकली थी।
स्मिता को सदमा लगा। वो महीनों तक कुछ नहीं बोली। विवेक ने खुद को अपने काम में झोंक दिया। हर मरीज को ऐसे देखने लगा जैसे वह उसका खुद का बच्चा हो। उसने कसम खाई, “अब कभी कोई बच्चा खून की कमी से नहीं मरेगा। चाहे मुझे खुद का खून देना पड़े।”
भाग 16: एक नई शुरुआत
और आज उसी नाम वाला बच्चा उसके सामने था। आर्यन कुमार, वो बच्चा जो किसी और की जान बचाने आया था, जिसकी आंखों में वही चमक थी, वही मासूम मुस्कान जो उसके अपने बेटे की थी। डॉक्टर विवेक ब्लड बैंक पहुंचे। वहां फॉर्म भरा जा रहा था।
नर्स ने पूछा, “सर, मरीज से कोई रिश्ता?” वो मुस्कुराया। “हां, इंसानियत।” सुई चुभी, खून बहा, पर आज उस खून के साथ वह अपने पुराने जख्म भी बहा देना चाहता था।
भाग 17: नए रिश्ते का जन्म
हर बूंद गिरते समय उसे अपने बेटे का चेहरा दिख रहा था और उसके मन में बस एक ही आवाज गूंज रही थी। “पापा, अब किसी को मत जाने देना।” डोनेशन खत्म हुआ। डॉक्टर की बाह पर पट्टी बांधी गई। वो बाहर निकला और देखा आर्यन अब भी वहीं बैठा था।
दोनों हथेलियां जोड़े, आंखें बंद किए जैसे प्रार्थना कर रहा हो। डॉक्टर उसके पास गया। हाथ उसके सिर पर रखा। “तूने आज मुझे इंसान बना दिया बेटा।” वो पल ऐसा था जहां भगवान, विज्ञान और इंसानियत तीनों एक जगह खड़े थे।
भाग 18: अस्पताल का माहौल
हॉस्पिटल के गलियारे में हल्की सी रोशनी थी। बारिश थम चुकी थी। पर उस रात की ठंडी हवा अब भी दीवारों में चिपकी थी। ऑपरेशन थिएटर के बाहर छोटा आर्यन फर्श पर बैठा था। उसकी आंखें दरवाजे पर टिकी थीं।
जहां लाल लाइट जल रही थी। हर बीप की आवाज उसके दिल की धड़कन से जुड़ रही थी। वो बुदबुदा रहा था, “भगवान, प्लीज मेरे अंकल को बचा लो। मैं अब कभी गुस्सा नहीं करूंगा। कभी चोरी नहीं करूंगा। बस उन्हें ठीक कर दो।”
भाग 19: सफल ऑपरेशन
उसी वक्त डॉक्टर विवेक अंदर खून दे चुके थे। मरीज की हालत धीरे-धीरे स्थिर हो रही थी। मॉनिटर की बीप अब नियमित थी। नर्स ने डॉक्टर को देखा। “सर, पेशेंट अब सेफ है।” विवेक ने गहरी सांस ली। आंखें बंद की। और धीरे से आसमान की तरफ देखा। “थैंक यू।”
कुछ देर बाद दरवाजा खुला। डॉक्टर बाहर आया। छोटा आर्यन दौड़ कर उसकी तरफ भागा। “अंकल, बच गए ना?” डॉक्टर मुस्कुराया। थकी हुई लेकिन सुकून भरी मुस्कान थी वो।
भाग 20: पुनर्मिलन
वो नीचे झुका। बच्चे के कंधे पर हाथ रखा। “हां बेटा। अब वो ठीक है। तेरे हौसले ने उन्हें मौत से खींच लाया।” बच्चा रो पड़ा। उसके छोटे हाथ कांप रहे थे। आंखों से आंसू निकलकर गालों पर बह गए। “थैंक यू अंकल। आपने उन्हें बचा लिया।”
डॉक्टर ने उसे गले लगा लिया। वो छोटा सा शरीर उसकी बाहों में सिमट गया। जैसे वो अपने खोए हुए बेटे को पा रहा हो। “बेटा, आज तूने मुझे याद दिला दिया कि इंसानियत कभी मरती नहीं। कभी-कभी भगवान हमें उसी रूप में भेजता है जिससे हमारा दर्द मिट सके।”
भाग 21: नया जीवन
आर्यन ने सिर उठाकर पूछा, “आप रो क्यों रहे हो?” डॉक्टर अंकल, विवेक मुस्कुराया। “खुशी के आंसू हैं बेटा। आज तूने किसी की जान नहीं बचाई। बल्कि मुझे भी फिर से जिंदा कर दिया।” पास खड़ी नर्स की आंखें भी भर आईं।
हॉल में सन्नाटा था। बस उस बच्चे की सिसकियां और डॉक्टर की थमी हुई सांसें सुनाई दे रही थीं। कुछ देर बाद मुरारी अंकल को स्ट्रेचर पर बाहर लाया गया। उनकी आंखें खुली थीं। कमजोर आवाज में बोले, “आर्यन, तू ठीक है ना बेटा?”
भाग 22: सच्ची दोस्ती
आर्यन उनके पास दौड़ा। हाथ पकड़ कर बोला, “आप अब ठीक हो गए अंकल। भगवान ने सुन ली।” डॉक्टर विवेक ने यह दृश्य देखा और खुद को रोक ना सका। वह अपनी जेब से एक चॉकलेट निकालकर बच्चे को देता है। “ले बेटा, यह मेरे बेटे आर्यन की पसंदीदा थी।”
बच्चा चुपचाप उसे लेता है और दोनों की आंखें मिलती हैं। एक बच्चे की मासूमियत, एक पिता का अधूरा प्यार। वो पल इतना सच्चा था कि हॉस्पिटल के बाहर खड़े लोग भी पोंछने लगे अपनी आंखें।
भाग 23: एक नई शुरुआत
बारिश की आखिरी बूंदें छत से टपक रही थीं जैसे आसमान भी भावुक हो गया हो। डॉक्टर विवेक धीरे से बुदबुदाए, “भगवान, तूने आज दोनों की सुन ली।” उस रात किसी ने किसी का खून नहीं लिया था। बल्कि दिल एक-दूसरे से मिल गए थे।
एक ने जान दी, दूसरे ने जीने की वजह। तीन दिन बीत चुके थे। मुरारी अंकल अब पूरी तरह ठीक थे। वार्ड में हल्की सी धूप आ रही थी। खिड़की से आती हवा के साथ बच्चे की हंसी सुनाई दी।
भाग 24: आर्यन की नई सोच
आर्यन जो तीन दिन से हॉस्पिटल के गलियारे में सो रहा था, अब मुस्कुरा रहा था क्योंकि उसके अंकल जिंदा थे। वो दरवाजे के पास बैठा, कागज से एक छोटी सी नाव बना रहा था। उस नाव पर उसने लिखा, “थैंक यू भगवान।”
उसी वक्त डॉक्टर विवेक वहां पहुंचे। उनके चेहरे पर अब थकान नहीं थी बल्कि एक शांति थी जैसे कोई अधूरा अध्याय पूरा हो गया हो। वो पास आए बच्चे के सिर पर हाथ रखा। “कैसे हो आर्यन?”
भाग 25: भविष्य की तैयारी
आर्यन खड़ा हो गया। मुस्कुराया। “मैं ठीक हूं अंकल। आपको पता है, अंकल, अब घर चल पाएंगे।” डॉक्टर हंसे, “अच्छा तो अब तू क्या करेगा?” बच्चा बोला, “मैं फिर किताबें बेचूंगा, लेकिन इस बार पैसे बचाऊंगा ताकि किसी गरीब की मदद कर सकूं।”
डॉक्टर की आंखें भर आईं। “तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा बेटा। बहुत बड़ा।” आर्यन ने अपनी जेब से कुछ निकाला। एक छोटी सी चॉकलेट। वही जो डॉक्टर ने उसे दी थी। “यह आपके लिए अंकल। क्योंकि अब आप मेरे हीरो हो।”
भाग 26: एक पिता का प्यार
डॉक्टर विवेक कुछ पल उसे देखते रहे। फिर उसे गले लगा लिया। “बेटा, तेरा दिल सोने का है।” आर्यन धीरे से बोला, “मम्मी कहती थी, अगर किसी की मदद करो ना, तो भगवान मुस्कुराता है।”
डॉक्टर रुक गए। “तुझे अपनी मां याद है?” बच्चा बोला, “थोड़ा-थोड़ा। वो बोलती थी कि जब कभी डर लगे, तो भगवान से बात करना। वह सुन लेते हैं।” विवेक की आंखों में आंसू छलक गए।
भाग 27: यादों का जाल
उन्होंने आसमान की तरफ देखा जैसे अपने बेटे से कह रहे हों। “देख बेटा, तेरा नाम आज जिंदा है।” मुरारी अंकल धीरे से बोले, “डॉक्टर साहब, आपने हम दोनों की जिंदगी बचा ली।” डॉक्टर विवेक मुस्कुराए। “नहीं अंकल, जिंदगी तो इस बच्चे ने बचाई है। मेरी भी, आपकी भी।”
भाग 28: एक नई सुबह
हॉस्पिटल के बाहर शाम ढल रही थी। आसमान में हल्का नारंगी रंग। बारिश के बाद चमकती सड़कें। डॉक्टर ने जाते-जाते आर्यन से कहा, “जब भी बड़ा आदमी बनो, तो किसी का खून मत मांगना बेटा। किसी का दिल जीतना।”
आर्यन ने हाथ जोड़कर कहा, “जी डॉक्टर अंकल।” वह दौड़कर हॉस्पिटल के गेट तक गया। मुड़कर देखा, डॉक्टर विवेक पीछे मुड़कर मुस्कुरा रहे थे। जैसे किसी पिता ने अपने बेटे को फिर से पा लिया हो।
भाग 29: इंसानियत की जीत
कभी-कभी भगवान जिंदगी में ऐसे लोगों को भेजता है जो हमें खुद से मिलवा देते हैं। खून से नहीं। रिश्ते दिल से बनते हैं। और जब इंसानियत बोलती है, तो भगवान भी झुक जाता है।
अंत
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